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गैस चैंबर बनी दिल्ली: 'झांसा न दें कि आप लोग एक्शन ले रहे हैं'

''इस तरह झांसा न दें कि आप लोग एक्शन ले रहे हैं क्योंकि ये ज़िम्मेदारी आपको दी गई है, पर्यावरण का मंत्रालय बनाया गया है। इतनी बड़ी सरकारी मशीनरी इसमें है, आपके पास संसाधन है आम इंसान इसको कंट्रोल नहीं कर पाएगा।''
air pollution

साल 2023 की शुरुआत में स्विस ग्रुप IQAir की तरफ से दुनिया के 50 देशों की लिस्ट जारी कि गई जिसमें बताया गया कि दुनिया के 50 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में दिल्ली चौथे स्थान पर रही। कई रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली का बढ़ता प्रदूषण लोगों की उम्र कम कर रहा है। इन रिपोर्ट के आने के बाद देश की राजधानी दिल्ली की हवा को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए गए? सरकार और प्रशासन की तरफ से उठाए गए कदम को देश का आम नागरिक नहीं जानता। लेकिन अक्टूबर-नवंबर आते-आते दिल्ली वालों का दम घुटने लगा, दिल्ली की हवा इतनी ज़हरीली हो गई की सांस लेना मुश्किल हो गया, दिल्ली एक गैस चैंबर में तब्दील हो गई।  

एबीपी न्यूज़ की बेवसाइट पर 6 नवंबर को छपी ख़बर के मुताबिक स्विस ग्रुप IQAir ने दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट जारी की, वायु प्रदूषण के आधार पर एयर क्वालिटी इंडेक्स तैयार करने वाले इस ग्रुप के मुताबिक देश की राजधानी दिल्ली पहले स्थान पर आ गई। दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के कई इलाके दमघोटू हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दिल्ली के कई इलाकों का AQI (Air Quality Index) 400 के पार कर गया।

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हालात बिगड़े तो 'ताबड़तोड़ एक्शन' की बात कही जाने लगी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पर्यावरण और परिवहन समेत तमाम विभाग के मंत्री बैठक कर इस परेशानी से निकलने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार फिर से दिल्ली में ऑड-ईवन लाने के बारे में सोचा जाने लगा। एक तरफ जहां दिल्ली सरकार प्रयास कर रही है (जो बहुत पहले किए जाने चाहिए थे) वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट सख़्त हिदायतें दे रहा है।

* कोर्ट ने हरियाणा, यूपी और राजस्थान की सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा कि पराली जलाना तुरंत बंद करें।

* साथ ही कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के ऑड-ईवन पर भी सवाल उठाए, जस्टिस संजय किशन कौल ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आप पहले भी ऑड-ईवन सिस्टम ला चुके हैं, क्या तब यह सफल हुआ था?

इस बीच दिल्ली के सभी स्कूलों की छुट्टियां बढ़ा दी गई और इस बार शीतकालीन अवकाश पहले कर दिया गया। दिल्ली के स्कूलों को 9 नवंबर से 18 नवंबर तक के लिए बंद कर दिया गया।  

गैस चैंबर में तब्दील हुई दिल्ली की हवा के बारे में हमने 'सेंटर फॉर साइंस एंड इंविरमेन्ट' (Center for Science and Environment) के प्रिंसिपल प्रोग्राम मैनेजर (क्लीन एयर टीम) विवेक चट्टोपाध्याय से फोन पर बात की और दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के बारे में कुछ समझने की कोशिश की। पेश है बातचीत का मुख्य अंश :

दिल्ली की एयर क्वालिटी का क्या हाल है?

एयर क्वालिटी इंडेक्स जो बता रहा है वो सीवियर ज़ोन (गंभीर) में है, सीवियर यानी ख़तरनाक श्रेणी है। एयर क्वालिटी इंडेक्स चूंकि हेल्थ इफेक्ट से लिंक किया गया कि क्या दुष्प्रभाव होते हैं तो ये इस वक़्त सबसे ज़्यादा श्रेणी में है। इसका मतलब ये है कि अस्वस्थ्य लोग तो डेफिनेटली इससे प्रभावित हैं ही इससे जिनको सांस की तकलीफ हो रही है, या फिर कार्डियक प्रॉब्लम है या तमाम तरह की दिक्कत हैं। बच्चे और बुजुर्ग इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं और ये पूरे क्षेत्र में है। ऐसा नहीं है कि कुछ एरिया में है। ये प्रदूषण बड़े पैमाने पर है। और ये काफी चिंता का विषय है कि पूरे-दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में ये हाल है और न सिर्फ दिल्ली-एनसीआर बल्कि मेरे ख़्याल से इसका दायरा काफी बड़ा है। पास के कई शहरों में अगर आप मेरठ, बुलंदशहर जाएंगे या फिर आगरा में भी देखिए तो ये पूरे नॉर्दन बेल्ट का ये हाल है।

AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) को कैसे काउंट करते हैं? क्या तरीका है?

आठ Pollutants (प्रदूषक) हैं, जो प्रमुख हैं जिनमें से कुछ के नाम मैं बता देता हूं जैसे पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 जो काफी महीन प्रदूषण के कण होते हैं। वे हमारे लंग्स के लोएस्ट लेवल तक जा सकता है यहां तक कि इसके कण ख़ून में भी चले जाते हैं, तो उस दृष्टि से PM 2.5 हेल्थ के लिए सबसे खतरनाक पोल्यूटेंट माना जाता है। दूसरा कार्बन मोनोऑक्साइड है जो कि अपने आप में wellknown toxic गैस है, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड होता है जो कि हेल्थ पर बहुत बुरा असर डालता है। PM 2.5 के साथ PM 10 भी होता है। कुल 8 पॉलुटेंस को सिम्पलिफाई करके उनके लेवल की प्रतिदिन मॉनिटरिंग होती है और उसको कैलकुलेट करके देखा जाता है कि उस दिन के लिए कौन से पोल्यूटेंट के प्रमुख रूप से कॉन्संट्रेशन (concentration) सबसे ज़्यादा हाई रहे और वो इंगित करता है कि इसकी इंडेक्स वैल्यू ये होगी। एक वेल्यू दी जाती है और उसकी कलर कोडिंग करके ये दर्शाते हैं कि इससे हेल्थ इफेक्ट किस तरह से जुड़ा हैं। कुल मिलाकर वो जानकारी जनता के लिए बनाई जाती है क्योंकि उनके लिए प्रदूषण को समझना काफी मुश्किल होता है, तो इसे इंडेक्स के तौर पर बताया जाता है और कलर कोडिंग के माध्यम से बताया जाता है। इसमें जब सीवियर होता है तो मरून कलर का होता है।  

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चलिए इसी बात को कुछ आसान भाषा में समझते हैं, दरअसल हवा की शुद्धता मापने के लिए AQI का इस्तेमाल किया जाता है। इसके आधार पर पता चलता है कि किसी इलाके की हवा कितनी साफ है। इसमें अलग-अलग कैटेगरी होती है जिससे समझा जाता है कि उस स्थान की हवा में कितना प्रदूषण है। AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) मुख्य रूप से 8 Pollutants (प्रदूषक) से मिलाकर बनाया जाता है। जो हवा में घुले ज़हरीले और मिट्टी के कणों को मापने के लिए PM2.5 और PM10 के इस्तेमाल से होता है।

हर साल ऐसा होता कि इन दिनों प्रदूषण बढ़ जाता है लेकिन इस साल ऐसा क्या हो गया कि हालात इतने बिगड़ गए?
इस बार ख़ास अंतर ये आ गया कि हमारा मॉनसून पहले खत्म हो गया, पिछले साल अक्टूबर तक बारिश होती रही थी लेकिन बारिश के पहले खत्म होने से ये हुआ कि इससे शहर को जो फायदा होता है वो नहीं हुआ। नॉर्थ वेस्टर्न विंड आ रही है जो ड्राई विंड होती है। इस विंड की स्पीड अचानक ड्रॉप हो रही है, पहले ये ग्रेजुअली होती थी।

एयर टेम्परेचर गिर रहा है और शहर की सरफेस विंड स्पीड भी कम हो रही है। साथ ही स्मॉग की वजह से सूरज की किरणें ठीक से नहीं आ पा रही हैं। एक बाउंड्री लेयर होती है। एटमॉस्फेयर का जो लोएस्ट लेवल होता है वो सतह के काफी करीब है यानी 1 से 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर तो इससे ठीक से Dispersion (हवा फैल नहीं पाना) नहीं हो पाता है। वेंटिलेशन इंडेक्स एक पैरामीटर होता है जिससे पता चलता है कि वातावरण वेंटिलेट कर पा रहा है यानी हवा यहां से निकल पा रही है। अगर वो इंडेक्स काफी कम है तो इससे पता चलता है कि ये सारे मेट्रोलॉजिकल फैक्टर बिल्कुल ही अनुमति नहीं दे रहे हैं कि पॉल्यूशन यहां से बाहर जाए और बाहर से जो पॉल्यूशन आया है वो यहां जमा हो रहा है।
 
ऐसे हालात में कुछ ख़ास बातें जो हमें करनी चाहिए और जो नहीं करनी चाहिए?

विशेष रूप से जो हेल्थ के एक श्रेणी में आते हैं बहुत ही कमज़ोर (vulnerable) हैं। बहुत छोटे बच्चे हैं यानी 5 साल से कम या फिर स्कूल जाने वाले बच्चे भी हैं उसको सुरक्षित करना। वे ज़्यादा बाहर न निकालने। मॉर्निंग वॉकर्स, जॉगर्स अभी सैर पर जाने से बचें क्योंकि जितनी आप मेहनत करेंगे आप ज्यादा ब्रेदिंग करेंगे और एयर के साथ प्रदूषण के कण भी सांस में लेंगे। जो कमजोर श्रेणी में आ रहे हैं, जिन्हें कार्डियक प्रॉब्लम आ रही हैं, या रेस्पिरेटरी हेल्थ प्रॉब्लम्स हैं या जिन्हें अस्थमा हैं, वे डॉक्टर के संपर्क में रहें, उनकी सलाह से दवाइयां ले और ज़रूरत पड़े तो डॉक्टर के पास जाएं। क्योंकि डॉक्टर कह रहे हैं कि मरीजों के इमरजेंसी विजिट बहुत ज़्यादा बढ़ रहे हैं तो उन लोगों को डॉक्टर के संपर्क में रहना है। एयर क्वालिटी इंडेक्स 40 लोकेशन का दिया जा रहा है जिसे मास-मीडिया के द्वारा प्रचारित किया जाना चाहिए ताकि लोग उन एरिया में जाने से बचें और आप पॉल्यूशन का हिस्सा न बनें।

ऐसे समय में वातावरण के प्रभाव से बचने के लिए मास्क पहनना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा इंडोर रहें, बाहर जो जा रहे हैं वो ज़रूर सावधानी बरतें। ख़ासकर सरकार के लिए मैं कहना चाहूंगा कि वो इसको काफी गंभीरता से ले। ट्रैफिक वॉल्यूम को कम करने की दिशा में सोचे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट अगर फ्री भी करना पड़े तो करे। वहीं सरकार कंनस्ट्रक्शन बंद करे और पॉलूटिंग यूनिट की पहचान कर उन्हें बंद करे।
ये सारे उपाय शायद पॉल्यूशन पॉलिसी में लिखे भी हुए हैं, सरकार को इसे फॉलो करना है। इन्हें लागू करने में काफी अंतर देखे जाते हैं, उसे पूरा करना है और जो टीम बनाई जाती हैं उनसे डेली और वीकली रिपोर्ट लेनी है। साथ पब्लिक डोमेन में जानकारी देनी है कि क्या एक्शन लिया। सिर्फ प्रेस रिलीज जारी करने से नहीं चलेगा, हार्ड एक्शन और फैक्ट सामने आने चाहिए।

अभी प्रदूषण बढ़ गया है तो बात हो रही है लेकिन पर्यावरण कितना अहम मुद्दा है हमारे लिए और सरकार के लिए भी।  
दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों की दिन-प्रतिदिन जो स्थिति होती जा रही है इसको लेकर कई स्टडी ये बता रही हैं कि आपकी आयु सीमा कम हो रही है। प्रोडक्टिविटी लॉस हो रहा है, इससे हेल्थ पर खर्च वहन करने वालों पर बोझ बहुत ज़्यादा बढ़ रहा है। उस लिहाज़ से देखा जाए तो दिल्ली-एनसीआर में रहना काफी मुश्किल है।

दूसरा ये कि बैठकें और दूसरी चीजें होती हैं परंतु गंभीरता काफी कम होती है। जैसे ही विंड स्पीड बढ़ जाएगी या बारिश हो जाएगी तो सब शांत हो जाएंगे। मैं कहना चाहूंगा कि लोगों को इस तरह झांसा न दें कि आप लोग एक्शन ले रहे हैं क्योंकि ये जिम्मेदारी आपको दी गई है, पर्यावरण मंत्रालय बनाया गया है। इतनी बड़ी सरकारी मशीनरी इसमें है। आपके पास संसाधन है आम इंसान इसको कंट्रोल नहीं कर पाएगा। नियम और रेगुलेशन बनाना सरकार की जिम्मेदारी है उसको लागू करना भी उनकी जिम्मेदारी है।

दिल्ली में भले ही अब बड़े स्तर पर वायु प्रदूषण को रोकने की कोशिश की जा रही है लेकिन ये कुछ ऐसा लग रहा है कि जब प्यास लगी तब कुआं खोदना। हर गुज़रते साल के साथ प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, देश की राजधानी दिल्ली हांफ रही है लेकिन क्या पर्यावरण 2024 का मुद्दा बन पाएगा ? 

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