अकाली-भाजपा फिर हो सकते हैं साथ!
पंजाब में राजनीतिक सरगर्मियां एका-एक रफ्तार पकड़ रहीं हैं। नए समीकरण बन रहे हैं। इस मुहावरे को पुख्ता ज़मीन मिल रही है कि सियासत में अपने हितों के लिए कभी भी, कुछ भी संभव हो सकता है। ताज़ा संदर्भ में अकाली-भाजपा गठबंधन की विधिवत घोषणा आने वाले कुछ दिनों या घंटों में कभी भी हो सकती है। शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी, दोनों की ओर से ऐसे स्पष्ट संकेत निरंतर मिल रहे हैं। ख़बर है कि दोनों के बीच गठबंधन पर सहमति बन गई है, सिर्फ औपचारिक घोषणा बाकी है, जो किसी भी वक्त हो सकती है। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल विदेश गए हुए थे और बुधवार की शाम वापस वतन लौटे हैं। भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो पंजाब का रुख करने से पहले दिल्ली में उनकी मुलाकात पंजाब भाजपा के नए अध्यक्ष सुनील जाखड़ और पार्टी महासचिव तरुण चुघ से हुई और उसके बाद गठबंधन के खाके पर बाकायदा काम शुरू हो गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है। दोनों पार्टियों के दिग्गज चाहते हैं कि बगैर किसी देरी के अकाली-भाजपा गठबंधन की विधिवत घोषणा हो जाए।
फिलहाल शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ है। नए हालात बताते हैं कि यह गठबंधन टूट सकता है और अगर कायम रहता है तो भी भाजपा को इससे कोई एतराज़ नहीं होगा। सुखबीर सिंह बादल के बेहद करीबी एक वरिष्ठ अकाली नेता ने एक संवाददाता से बातचीत में ये पुष्टि की है कि सीटों के बंटवारे तक का खाका बाकायदा तैयार कर लिया गया है। सूत्रों के मुताबिक शिरोमणि अकाली दल आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा और भाजपा पांच सीटों पर। भाजपा इसमें कोई दखल नहीं देगी कि अकाली दल अपने खाते से बसपा के लिए एक या दो सीटें छोड़े। भाजपा इस रणनीति पर चल रही है कि लोकसभा चुनाव के पहले राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों का महागठबंधन कैसे कमज़ोर किया जाए। हालांकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के विपक्षी महागठबंधन में रहते अकाली दल किसी भी सूरत में उसमें शामिल नहीं होगा। विदेश जाने से पहले सुखबीर सिंह बादल ने कई बार यह दोहराया था। कांग्रेस से अकाली दल का शाश्वत राजनीतिक बैर है तो आम आदमी पार्टी पंजाब में दल की मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी है। राज्य सरकार अकालियों के खिलाफ हर संभव हथकंडा इस्तेमाल कर रही है।
सुनील कुमार जाखड़ के पंजाब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने की चर्चा के दिन से ही गठबंधन की संभावनाओं को बल मिलने लगा था। बेशक समान नागरिक कानून का मुद्दा कुछ आड़े आएगा लेकिन दोनों पार्टियों के नेता मानते हैं कि बावजूद इसके गठबंधन कायम होने का रास्ता अंततः साफ हो जाएगा और इसमें ज़्यादा समय नहीं लगेगा।
ख़बर है कि विदेश से लौटे सुखबीर सिंह बादल ने अपने चंडीगढ़ स्थित आवास पर पार्टी के टकसाली और वरिष्ठ नेताओं की 'बंद कमरे' की बैठक बुलाई और भाजपा के साथ एकबार फिर गठबंधन के प्रस्तावित मसौदे पर विस्तृत चर्चा की। मंथन इस पर भी हुआ कि नए हालात में शिरोमणि अकाली दल किस भूमिका में रहेगा। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार भाजपा की ओर से सुखबीर बादल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने की पेशकश की गई है। तय शर्त के मुताबिक अकाली दल से केंद्र में एक ही मंत्री को जगह मिलेगी। अकाली नेता चाहते हैं कि हरसिमरत कौर बादल को मंत्रिमंडल में शुमार किया जाए लेकिन भाजपा की सोच है कि सुखबीर सिंह बादल को केंद्रीय मंत्री बनाया जाए ताकि उन्हें पंजाब की ब्यूरोक्रेसी का पूरा प्रोटोकॉल हासिल हो सके और वह लोकसभा चुनाव में सूबे में अफसरशाही पर अपना दबदबा कायम रख सकें। बहुत से अकाली नेता और कार्यकर्ता मानते हैं कि सुखबीर अगर केंद्र सरकार में चले जाते हैं तो पंजाब के लिए उनके पास मुनासिब वक्त नहीं बचेगा। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी अपने साथ छोटे क्षेत्रीय दलों को जोड़ने में जुटी हुई है। इसीलिए वह पंजाब में फिर से अकालियों के साथ गठबंधन करना चाहती है।
भाजपा से गठबंधन तोड़कर शिरोमणि अकाली दल काफी नुकसान में रहा और नफा भाजपा को भी नहीं मिला। एक मिसाल है: हाल ही में जालंधर लोकसभा उपचुनाव हुए थे। आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी और उसके प्रत्याशी को 34.05 फ़ीसदी वोट मिले थे। शिरोमणि अकाली दल को 17.85 फ़ीसदी मत हासिल हुए तथा भाजपा को 15.19 फ़ीसदी वोट मिले। यह गणित बताता है कि अगर अकाली-भाजपा गठबंधन वजूद में होता और पूरा ज़ोर लगाता तो जीत-हार का परिदृश्य सिरे से बदल सकता था। आप की राह कतई इतनी आसान नहीं होती। खास बात यह भी है कि भाजपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले जालंधर उपचुनाव में 5 फ़ीसदी अधिक वोट हासिल किए थे।
गौरतलब है कि शिरोमणि अकाली दल ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से गठबंधन खत्म किया था और हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अब अकाली दल राज्य की सत्ता से बाहर है। 2024 में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस स्थानीय राजनीतिक दलों से गठजोड़ की कवायद कर रहीं हैं। ऐसे में भाजपा एनडीए के सशक्तिकरण के लिए अपनी पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल को फिर से साथ जोड़ना चाहती है। जुड़ना अकाली दल भी चाहता है। हालांकि इस वक़्त वह इस पर मुखर नहीं है। पिछले महीने पंजाब भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ने का फैसला लिया गया था। हालांकि भाजपा के कुछ पुराने नेता गठजोड़ के पक्षधर थे। समूह पंजाब भाजपा का मानना था कि शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ में समझौते के तहत पार्टी लोकसभा की तीन और विधानसभा की 23 सीटों तक सीमित नहीं रहेगी। शिरोमणि अकाली दल के साथ फिलहाल तक बसपा भी है।
कुछ भाजपाइयों का मानना है कि पहले के दौर में अकाली दल बड़े भाई की भूमिका में रहता था और भाजपा छोटे भाई की। लेकिन अब बराबरी का रिश्ता होना चाहिए। अगर अकाली-भाजपा गठबंधन होता है तो अकाली अपने कोटे से बसपा को जो देना चाहें, दें। वैसे, लगता नहीं कि अकाली-बसपा गठबंधन ज़्यादा दिन तक टिकेगा। एक बात और, प्रकाश सिंह बादल के सहयोगी रहे पुराने अकाली अपने अनुभव से बखूबी जानते हैं कि इस बार राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुईं हैं। जो मान-सम्मान एनडीए में दिवंगत प्रकाश सिंह बादल को हासिल था; उस तक पहुंचने में सुखबीर सिंह बादल को लंबा वक्त लगेगा। उन्हें खुद का सियासी कायाकल्प करना पड़ेगा। विनम्रता के गहने पहनने पड़ेंगे। आरामपरस्ती त्यागनी पड़ेगी। सूबे में अपना वजूद फिर से कायम करने के लिए शिरोमणि अकाली दल को भाजपा के मुताबिक सीटों के फार्मूले पर सहमति जतानी पड़ सकती है। वहीं समान नागरिक संहिता पर सूक्ष्म पैंतरे के साथ रुख बदलना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो बलविंदर सिंह भूंदड़, प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा, विरसा सिंह वल्टोहा, बिक्रमजीत सिंह मजीठिया, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, डॉ. दलजीत सिंह चीमा, सिकंदर सिंह मलूका और सुरजीत सिंह रखड़ा सरीखे अकाली भाजपा-अकाली गठजोड़ के प्रबल पक्षधर हैं। ये सब नेता मंगलवार को सुखबीर सिंह बादल के चंडीगढ़ स्थित आवास पर गठजोड़ पर मंथन के लिए खासतौर से मौजूद थे। संपर्क करने पर एक अकाली नेता ने इसे रूटीन बैठक बताकर पल्ला झाड़ लिया लेकिन इशारों-इशारों में यह भी कह दिया कि आने वाले दिनों में कुछ बड़ा परिवर्तन होने वाला है। इस संभावित 'परिवर्तन' का अर्थ हर कोई जानता है।
अगर अकाली-भाजपा गठबंधन होता है तो सूबे की सियासत के समीकरण सिरे से बदल जाएंगे। लगता था कि 2024 का लोकसभा चुनाव बहूकोणीय होगा। गठबंधन वजूद में आया तो यह त्रिकोणीय हो जाएगा। अकाली कारकून चाहते हैं कि किसी तरह 1996 का पैटर्न ही फिर से गठबंधन का आधार बने। लेकिन यह व्यवहारिक तौर पर संभव नहीं लगता। तब प्रकाश सिंह बादल के भाजपा आलाकमान के साथ बेहद गहरे तथा विश्वसनीय रिश्ते थे। सुखबीर सिंह बादल अभी उस रूतबे से काफी दूर हैं। पहले के समझौते के तहत भाजपा लोकसभा की 3 और विधानसभा की 23 सीटों पर गठबंधन के आधार पर चुनाव लड़ती रही है। अब अकाली दल भी पंजाब की राजनीति में इस वक़्त हाशिए पर है और हार और हताशा की मायूसी से बाहर नहीं आ पा रहा। गठबंधन को पुनर्जीवित करना सुनील कुमार जाखड़ और सुखबीर सिंह बादल के हाथों में है। सुनील जाखड़ की भूमिका ज़्यादा अहम है। वह सुखबीर को अपना छोटा भाई कहते हैं और बादल परिवार से जाखड़ परिवार के बहुत पुराने रिश्ते हैं। लेकिन राजनीति की मजबूरियां और विसंगतियां अपनी जगह होतीं हैं। इतना ज़रूर कहा जा रहा है कि अकाली-भाजपा गठबंधन की विधिवत घोषणा कभी भी हो सकती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।