Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

आलोक धन्वा : जिनसे नई पीढ़ी भी आकर्षण महसूस किया करती है

कवि आलोक धन्वा के 75 वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच का संयुक्त आयोजन हुआ।
alok

प्रख्यात कवि आलोक धन्वा के 75वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच द्वारा संयुक्त रूप से कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के कवि, कहानीकार, साहित्यकार, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग मौजूद थे। कार्यक्रम में आलोक धन्वा से संबंधित संस्मरण, बातचीत का लम्बा दौर चला।

आगत अतिथियों का स्वागत नागरिक समाज की ओर से पुलिस पदाधिकारी सुशील कुमार ने किया। सबसे पहले बंगला कवि व ' बिहार हेराल्ड' के सम्पादक बिद्युतपाल ने आलोक धन्वा के साथ अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि "आलोक जी जब पंजाब से लौटे थे तभी उनसे पहली मुलाकात हुई थी। उनका भिखना पहाड़ी में फ्लैट था। आलोक जी की तीन प्रमुख कविताएं भागी हुई लड़कियां, कपड़े के जूते और पतंग तीनों का पहला पाठक रहा हूँ। आलोक जी मैं और दीपन मित्रा घूमने निकला करते और कविता के बारे में बात किया करते थे। "

बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रवींद्र नाथ राय ने कहा " आलोक धन्वा की कविता गोली दागो पोस्टर और जनता का आदमी को आरा से निकलने वाली पत्रिका ' वाम' में प्रकाशित हुई थी। उन्हीं कविता से उनके विचार से अवगत हुआ।"

साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने कहा " 1970 का दशक मुक्ति का दशक के रूप में जाना जाता था। उस वक्त अपनी कविताओं से आलोक धन्वा ने पूरे हिंदी जगत का ध्यान आकृष्ट किया था वह अजीब तरह का अनुभव है। हिन्दी में नई पीढ़ी का जो साहित्य उभर रहा था उसमें उपलब्धि थी। आलोक जी से मिलना, बात करना एक अलग अनुभव होता था। उनसे बात करने में मुक्तिबोध, निराला और पुश्किन हुआ करते थे। आज भी नई पीढ़ी उनसे अपना आकर्षण महसूस किया करती है। "

जन संस्कृति मंच के राज्य अध्यक्ष जीतेन्द्र कुमार के अनुसार " मेरा परिचय आलोक धन्वा की कविताओं से बना। आलोक धन्वा का संबन्ध आरा के जमीन से बहुत रहा है। एक काव्य संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' में आरा के संघर्षों को भी जगह मिली है। आज आलोक धन्वा जैसी कविताएं नहीं लिखी जा रही है। आज समकालीन कविता में नैराश्य का स्वर है। यदि इस निराशा के स्वर को दूर करें तो बहुत अच्छी बात होगी। आलोक धन्वा अपने घर परिवार से लेकर दुनिया जहान की बातें करते हैं।"

पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष तरुण कुमार ने कहा " आज जो लोग इस आयोजन में आये हैं वे खुद ब खुद आये हैं। ऐसे चमक हाल में किसी आयोजन में नहीं देखी गई थी। जब हिंदी सिनेमा में एन्ग्री यंग मैन का अभ्युदय हुआ उसी वक्त आलोक धन्वा हिंदी कविता में आते हैं। मैं आलोक धन्वा से 1977 में तब मिला था जब मैं पटना कॉलेज में मिंटू हॉस्टल में सांस्कृतिक सचिव था और काव्य पाठ के लिए आलोक धन्वा से मिला था। 1970 के दशक में नई कविता का जो आविर्भाव हुआ उसके तेजोमय धूमकेतु बने आलोक धन्वा। राजकमल चौधरी के बाद बिहार का सबसे अधिक नाम रौशन किया। जहां आग व पानी का खेल चलता है उस विरुद्धों का सामंजस्य आलोक धन्वा ने साधा है। बिना गहरी करुणा के आलोक धन्वा जैसी कविता नहीं लिखी जा सकती। हिंदी कविता को दाखिल-खारिज की तरह नहीं देखा जा सकता। आलोक धन्वा विभिन्न भाव भंगिमाओं व काल खंडों के कवि हैं। महिला व पुरुष दोनों इन्हें आकृष्ट करते हैं। आलोक धन्वा की कविता इतिहास के सबसे घिनौने राज खोलने वाली कविता है। "

राजनेता शिवानन्द तिवारी ने आलोक धन्वा के साथ अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा " बनारस में मैं आलोक जी से मिला। भिखना पहाड़ी के उनके फ्लैट में कई बार मिला। 1970-71 में मैं मुंगेर गया। आलोक धन्वा ने ही जाबिर हुसैन से मिलवाया था। तब मैं समाजवादी युवजन सभा मे था।"

बुजुर्ग कवि राम तिवारी ने कहा "आलोक धन्वा के काव्य जीवन की शुरुआत आरा से हुई। आरा से शुरू उनका सफर शुरू हुआ है।"

कहानीकार संतोष दीक्षित ने कहा " आलोक धन्वा हिंदी कविता के किंवदन्ती पुरुष हैं। जब भी बाहर किसी शहर में जाते हैं तो लोग पूछते हैं कि आलोक धन्वा कैसे हैं?लोग इनका ख्याल रखने के लिए कहते हैं। हमलोगों ने काफी कुछ सीखा है इनके व्यक्तित्व से। कविताओँ की सबसे बड़ी बात है कि कठिन शब्द नहीं रहा करता है। भाव के कवि हैं। कवि का वितान आपको खींच के दूसरी दुनिया मे न पहुँचा देता है। कहानीकारों को वैसे कविता पंक्ति याद नहीं रहती। लेकिन मेरी कहानी, उपन्यास के लिए उनकी स्मृतियाँ धरोहर का काम करता है।"

जसम के सुधीर सुमन ने कहा " आलोक जी ने हमारे अवचेतन में जगह बना ली है। सत्तर के दशक के जिन लोगों ने हमारी चेतना में जगह बनाई उनमें आलोक धन्वा रहे हैं। आलोक जी रिक्शे से आते थे उनसे सहज ही मिलना जुलना होता था। उनसे मिलने के सुमधुर यादें हैं। आलोक जी से ऐसी अभिन्नता है कि उनसे असहमति जाहिर करते हैं। उनकी कविताओँ में डूबी हुई है। "

पूर्णिया से आईं नूतन आनन्द ने कहा "आलोक धन्वा जी रचनाओं गोली दागों पोस्टर, जनता का आदमी कविताओं से परिचित थी लेकिन इस बार प्रलेस का अमृतसर में जालियांवाला बाग में उनसे नजदीक होने का मौका मिला। उनका मोबाइल गुम हो गया।मैंने देखा कि इन्हें खुद से अधिक दूसरों को चिंता अधिक थी। जब हम आज का दशक देखते हैं तो आज के मुकाबले सत्तर का दशक अधिक क्रांतिकारी था।"

चर्चित शायर संजय कुमार कुंदन ने कहा " आलोक धन्वा की आत्मा हमेशा जवान रहती है। जो ये अंदर हैं वही बाहर हैं। आलोक धन्वा जैसा सरलतम व्यतित्व बनना बेहद कठिनतम काम है।"

मुजफ्फरपुर से आये रमेश ऋतम्भर ने कहा " दुनिया का हर महान आदमी मासूम होता है। आलोक धन्वा के अंदर मासूम, छल-कपट को धता बताने वाला व्यक्ति है। सारी बौद्धिकता और पीढ़ियों के अंतराल को खत्म करते हैं। ये पीढ़ियों के कवि है। पांच- सात पीढ़ियां जो पटना शहर में जवान हुई वह उनके सामने खड़ी हुई हैं। ऐसा कवि व एक्टीविस्ट बहुत कम होते हैं। इन्होंने पोस्टर साटे हैं सुंदर समाज बनाने के लिए पूरी जिन्दगी देने वाले पूर्णकालिक कवि हैं आलोक धन्वा। कविता के अलावा दूसरा काम नहीं किया है आलोक धन्वा ने।"

माकपा नेता अरुण मिश्रा ने कहा "आलोक धन्वा आगे आने वाले वक्त में सृजनशील बने रहे। जिस ढंग का सृजनशील दौर है उसमें हमें जनता का आदमी जैसी कविताएं और सुनने को मिलेगी। बाबा नागार्जुन के बाद हमलोग आलोक धन्वा के पास पहुंचते रहे हैं। इनकी कविताएं सम्मोहित करने वाली थीं। इनके पढ़ने का अंदाज़ भी हमें सम्मोहित करता है। इनके अंदर एक छोटा बच्चा है जो हमेशा उछलता-कूदता रहता है। "

संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने कहा "आलोक धन्वा ने नुक्कड़ों पर भाषण दिए हैं और कविता पाठ किये हैं। प्रेमचंद रंगशाला मुक्ति आन्दोलन में जो मुहिम चली उसमें आलोक धन्वा सिर्फ शब्दों के ही नहीं सड़कों के भी कवि है। जैसे 1857 के प्रतीक थे बहादुरशाह जफर उसी तरह आज के जद्दोजहद भरे समय के कवि हैं आलोक धन्वा।"

विनोद कुमार वीनू ने कहा " मैंने आलोक जी की जितनी तस्वीरें खींचीं हैं उस सबमें स्त्रियां रहा करती हैं। उनके व्यक्तित्व में एक बेबाकीपन रहा करता है। उनके साथ खूबसूरत यादें जुड़ी हुई हैं। "

कथाकार रत्नेश्वर के अनुसार " आलोक धन्वा योगी की तरह कविता पढ़ते हैं। इनकी एक एक तस्वीर में देखें तो ये नायक बनने लायक हैं। जब कविता पढ़ते हैं। पंच तत्वों में जो धड़कन हुआ करती है उसे महसूस कर सकूं।"

सुनीता गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा "पटना की अनजान धरती पर जब मैं आई तो सबसे पहले आलोक धन्वा से मुलाकात हुई। इनकी तरल आत्मीयता से उनसे मुलाकात हुई। उनके अंदर जो स्त्री मन है, कोमलता है वह बेहद आकर्षित करता है। वे संघर्ष के कवि हैं उन स्त्रियों के निकट जाते है जो संघर्ष करती रही हैं। जो हर संकट के काम मे काम आती हैं।"

सभा को गया के आये कवि सत्येंद्र कुमार, भाकपा-माले के नेता के डी यादव, समता राय, विनोद कुमार वीनू, सौम्या सुमन, सीटू तिवारी, सौम्या सुमन, घमंडी राम, राष्ट्रीय सहारा के पूर्व सम्पादक चंदन कुमार, नीलांशु रंजन, समारोह का संचालन युवा रँगकर्मी जयप्रकाश ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन राजेश कमल ने किया ।

इस मौके ओर आलोक धन्वा ने जे.एन.यू , कोलकाता सहित कई शहरों अपनी पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए कहा " यह गांधी और नेहरू का देश है, मौलाना आज़ाद का देश है और ऐसी स्थिति में कोई कविता लिखता है तो अपने देश के इतिहास से, दुनिया में अपने संघर्षों के इतिहास से परिचित होना पड़ेगा।"

आलोक धन्वा ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता के साथ अपनी चर्चित कविता ' भागी हुई लड़कियां' का भी पाठ किया। समारोह की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता झा ने की।

कार्यक्रम स्थल पर आलोक धन्वा की पिछले पांच दशकों की तस्वीरों का एक कोलाज बनाया गया था जिसमें विभिन्न साहित्याकारों, रंगकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ तस्वीरें थीं। यह कोलाज विशेष आकर्षण रहा।

आलोक धन्वा के 75 वें वर्ष के अवसर पर हुए कार्यक्रम बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। इस आयोजन में गजेंद्रकांत शर्मा, विनीत राय सहितप्रमुख लोगों में श्रीकांत, कुमार मुकुल, गालिब खान, जया, नीतीन चैनपुरी, ओसामा खान, रुनझुन, श्रीधर करूणानिधि , मुकेश प्रत्यूष, समीर परिमल, अरुण नारायण, योगेश प्रताप शेखर, विनीत राय, गौतम गुलाल, बी.एन विश्वकर्मा, देवानन्द, छाया, कुमार वरुण, कुमार रजत, अभिषेक, रमेश सिंह, सुमन्त शरण, अनीश अंकुर, सोनी कुमार, मंजुल कुमार दास, मुन्ना सिंह, विभा रानी श्रीवास्तव, सुनील सिंह, अजय कुमार , अरुण सिंह, गोपाल शर्मा, कुलभूषण गोपाल, अर्चना, नवाब आलम, आशुतोष कुमार पांडे, कृष्ण समृद्ध, अंचित, राजन आदि मौजूद थे।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest