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‘प्रतिरोध, आज़ादी और लोकतंत्र की संस्कृति’ के लिए एकजुट हुए देशभर के संस्कृतिकर्मी

इस सांस्कृतिक समागम में कला-साहित्य के विविध मोर्चे पर सक्रिय कई चर्चित व्यक्तित्वों के अलावा मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और देश के आदिवासी प्रतिरोध की प्रतीक आंदोलनकारी सोनी सोरी की सक्रिय भागीदारी काफ़ी मानीख़ेज़ रही।
Jan Sanskriti Manch

‘फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध, आज़ादी और लोकतंत्र की संस्कृति के लिए’ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जन संस्कृति मंच (जसम) के 16वें राष्ट्रीय सम्मलेन में देश भर के जन संस्कृतिकर्मियों का जुटान हुआ।

8 व 9 अक्टूबर को आयोजित हुए इस सांस्कृतिक समागम में कला-साहित्य के विविध मोर्चे पर सक्रिय कई चर्चित व्यक्तित्वों के अलावा मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और देश के आदिवासी प्रतिरोध की प्रतीक आंदोलनकारी सोनी सोरी की सक्रिय भागीदारी काफी मानीख़ेज़ रही।

ये महज़ कोई संयोग मात्र नहीं कहा जा सकता है कि वर्ष 2022 की समाप्ति और आसन्न लोकसभा चुनाव से पूर्व देश के प्रमुख वामपंथी सांस्कृतिक संगठन (जलेस, प्रलेस व जसम) अपने राष्ट्रीय आयोजनों के माध्यम से देश भर के संस्कृतिकर्मियों को एकजुट कर रहे हैं।

गत 23-25 सितंबर को जयपुर में जलेस (जनवादी लेखक संघ) ने भी जोशपूर्ण ढंग से अपना राष्ट्रीय सम्मलेन संपन्न किया है। प्रलेस (प्रगतिशील लेखक संघ) का भी राष्ट्रीय सम्मलेन आगामी नवम्बर माह में होने की चर्चा है।

वजह साफ़ है कि केंद्र में काबिज़ मौजूदा सत्ता-संस्कृति जिस हमलावर ढंग से देश के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को लगातार भयावह और संकटपूर्ण बना रही है, इसके मुकाबले की भी एकजुट तैयारियों का सिलसिला बढ़ रह है। जिसके जरिये राष्ट्र और आम जन के प्रति ज़मीनी स्तर पर चिंतित और सक्रिय रहने वाला बौद्धिक-सांस्कृतिक समुदाय व उनके संगठनों में सामूहिक विमर्श के जरिये व्यापक एकजुटता और आंदोलनों की तात्कालिक और उससे आगे की कार्य योजनायें बनाने की कोशिशें की जा रहीं हैं।

जन संस्कृति मंच ने अपने 16वें राष्ट्रीय सम्मलेन स्थल के नगर का नाम जनकवि मुक्तिबोध नगर रखा। ख्यात कवि मंगलेश डबराल व प्रसिद्ध नाटककार हबीब तनवीर के नाम पर परिसर-सभागार तथा बृज बिहारी पाण्डेय व आलोचक रामनिहाल गुंजन के नाम पर सम्मलेन के मंच को समर्पित किया गया। इस सम्मलेन में हिंदी पट्टी के प्रमुख राज्य- दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखण्ड से लेकर गैर हिंदी प्रदेश- आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व गुजरात से पहुंचे 250 से भी अधिक प्रतिनिधि संस्कृतकर्मियों ने भागीदारी की।

सम्मलेन से पूर्व रायपुर नगर स्थित आशीर्वाद भवन परिसर से ‘फ़ासीवाद के विरुद्ध सांस्कृतिक मार्च’ निकाला गया। नगाड़ा-डफली के ताल पर जोशपूर्ण नारे लगाता हुआ यह मार्च नगर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरा। इस दौरान शहीद भगत सिंह तथा डॉ. आंबेडकर कि प्रतिमा पर माल्यार्पण कर सांस्कृतिक-संकल्प सभाएं की गयीं।

इन सभाओं को संबोधित करते हुए जसम के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक राजेन्द्र कुमार ने मौजूदा शासन के आतंक के राज के ख़िलाफ़ लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए  निर्णायक व शक्तिशाली सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने का आह्वान किया।

सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं गांधीवादी विचारक हिमांशु कुमार ने गांधी जी को याद करते हुए कहा कि देश का लोकतंत्र पूरी तरह से सैन्यतंत्र में तब्दील किया जा चुका है। जिसके बल पर इस देश की सरकार ने यहाँ के संसाधनों की खुली लूट के लिए अपनी ही जनता के ख़िलाफ़ अघोषित युद्ध छेड़ दिया है।

विगत दिनों आदिवासी समुदायों पर हो रहे अत्यचारों के विरुद्ध इन्साफ की आवाज़ उठाने पर देश के न्यायतंत्र द्वारा उन्हें ही दोषी ठहराते हुए जुर्माना भरने अथवा जेल की सज़ा सुनाए जाने की चर्चा करते हुए हिमांशु कुमार ने कहा कि हम हर हाल में बिना डरे हुए विरोध अभियान जारी रखेंगे। देश भर से उनके पक्ष में हुए समर्थन को ही अपनी लड़ाई की ताक़त बताते हुए कहा कि इस देश की सूरत को बदलना हर लोकतंत्र पसंद का अहम् दायित्व बन चुका है।

सत्र को संबोधित करते हुए चर्चित एक्टिविस्ट लेखक विशिष्ठ अतिथि भंवर मेघवंशी ने “हिंदुत्व” के जवाब में ‘बंधुत्व’ को स्थापित करने के अभियान का आह्वान किया। भारतीय फ़ासीवाद पर व्यापक चर्चा की आवश्यकता बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें साफ तौर से यह समझ लेना चाहिए कि यह सम्प्रदायवाद-पूंजीवाद-मनुवाद का एक भयावह संश्रय का राज है। और केवल राजनीतिक विरोध से इस फ़ासीवाद का मुकाबला संभव नहीं है।

जाने माने एक्टिविस्ट फिल्मकार मेघनाथ ने अपने कार्य अनुभवों की चर्चा करते हुए कहा कि ज़मीनी लोकतंत्र की मजबूती के लिए आदिवासी समुदायों से सीख लेनी चाहिए। जहाँ बहुलतावाद और सबकी सहमति समाज की अनिवार्य जीवन शैली है।

मोदी सरकार को अपने एकजुट तेवर से पीछे हटने पर मजबूर कर देने वाले देश के किसान आंदोलन के समर्थन में आंदोलन के मोर्चे पर सक्रिय रहनेवाली युवा एक्टिविस्ट नवकिरण नट ने वहाँ के सांस्कृतिक प्रयोग के अनुभवों को साझा किया। बताया कि कैसे ‘ट्रॉली टाइम्स’ को आंदोलनकारी किसानों ने अपना वैकल्पिक मीडिया तथा पुस्तकालयों को अपना विचार केंद्र बना लिया था। इससे आज के सांस्कृतिक आंदोलन के कर्मियों को भी अपनी कार्य दिशा को समृद्ध बनाने की ज़रूरत है।

सम्मलेन में दलित लेखक संघ तथा प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से भेजे गए शुभकामना संदेशों को भी पढ़ा गया। जिसमें सभी समान विचारधारा की आंदोलनकारी ताक़तों के एकजुट आंदोलन की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। जलेस की ओर से संगठन के छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि ने सम्मलेन को शुभकामनाएं देते हुए अपनी एकजुटता जाहिर की।

सत्र का संचालन हिंदी के आलोचक और आलोचना पत्रिका के संपादक प्रो. आशुतोष कुमार ने किया। इसी सत्र में कई प्रमुख रचनाकारों की किताबों का भी लोकार्पण किया गया।

सम्मेलन के दूसरे दिन आयोजित विचार सत्र ‘फ़ासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध के रूप’ की मुख्य वक्ता रहीं आंदोलनकारी सोनी सोरी। जिन्होंने आदिवासी समुदाय के खिलाफ लोकतान्त्रिक कहलाने वाली सरकारों व शासनतंत्र द्वारा उनपर ढाई गयी बर्बर-अमानवीय यातनाओं को विस्तार से बताया।

सोनी सोरी ने बताया कि कैसे शासन-सत्ता के अत्याचारों ने बस्तर के भोले भाले आदिवासी युवाओं के हाथों में कलम की जगह बंदूक पकड़ने को मजबूर कर दिया है। जिस पर एक जागरूक शिक्षिका होने के नाते आवाज़ उठाने पर उन्हें भी पति के साथ इस क़दर भीषण यातनाओं और जेल में बंद किये जाने का सामना करना पड़ा कि ‘उनके हर ज़ुल्म-दमन ने उनके आंसुओं को सुखाकर फौलाद और लड़ाकू बना दिया है’, जो पूरी निडरता के साथ आज भी जारी है।

सोनी सोरी ने बस्तर में जल जंगल ज़मीन और आदिवासियों के अधिकारों पर किये जा रहे हमलों तथा उसका विरोध करने वालों पर आज भी जारी भीषण राज्य-दमन और पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ व्यापक सांस्कृतिक प्रतिरोध की आवाज़ उठाने का पुरजोर अनुरोध किया।

सत्र को संबोधित करते हुए गुजरात से आये एक्टिविस्ट शिक्षाविद भरत मेहता ने गुजरात में जारी सांस्कृतिक प्रतिरोध की जानकारी देते हुए कहा कि गुजरात से लेकर देश की मौजूदा फ़ासीवादी सत्ता की अमानवीयता ने उन्हीं की विचारधारा की लेखिका पारुल खख्खर जैसों को भी उनके खिलाफ लिखने को विवश बना दिया है। गोदी मीडिया के सेंशरशिप से परे गुजरात में भी आज व्यापक विरोध का सिलसिला जारी है।

चर्चित कवि देवीप्रसाद ने कहा कि ये घोषित हो या ना हो, भारत एक हिन्दू राष्ट्र बनाया जा चुका है। और अन्याय को थोपते हुए पूरे राष्ट्र में भयावह सामाजिक वातावरण बना दिया गया है। देश की दुखित जनता को झांसे में रखकर राष्ट्र के सम्पूर्ण संसाधनों को बेचने-लूटने का खुला खेल जारी है। ऐसे में वर्तमान के फ़ासीवाद और उसके सभी रूपों की गहन शिनाख़्त कर उसके प्रतिरोध की विस्तृत और कारगर ज़मीनी रणनीति बनानी होगी।

उपन्यासकार और विचारक रणेंद्र ने देश में हावी फ़ासीवाद की ऐतिहासिकता की जानकारी देते हुए कहा कि आज यह ‘अहिंसा और विवेक’ को किसी भी सूरत में स्वीकारने को तैयार नहीं है। इसीलिए कथित धर्म के नाम पर फैलाई जा रही ‘हिंसा की संस्कृति’ को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किस तरह से कॉर्पोरेट-पूंजीवाद हर स्तर पर इस देश को धड़ल्ले से लूट रहा है। धर्मान्धता फैलाकर ‘अनेकता में एकता’ की जगह जबरन एकरूपता थोपने के एजेंडे के विरुद्ध व्यापक जन की वैचारिक एकता-सक्रियता ही कारगर काट होगी।

सत्र को संबोधित करते हुए कवि लाल्टू ने कहा कि असहाय बोध का माहौल बनाकर ही वर्तमान में साम्प्रदायिकता बढ़ रही है। ऐसे में हमें सड़कों की तात्कालिक के साथ साथ विचारों की भी लम्बी लड़ाई की तैयारी करनी होगी।

ओडिशा से आये एक्टिविस्ट राधाकांत सेठी ने वर्तमान के फ़ासीवाद से मुकाबले के लिए संस्कृतिकर्मियों को राजनीतिक कर्मी बनने को अनिवार्य बताते हुए देश की सभी भाषाओं व क्षेत्रों में हो रहे सांस्कृतिक प्रतिरोध के परस्पर संयोजन पर जोर दिया।

जसम की नयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी

सम्मलेन के संगठन सत्र में पूर्व की राष्ट्रीय कमिटी द्वारा प्रस्तुत सांगठनिक प्रपत्र पर व्यापक चर्चा कर सर्वसम्मति से भावी कार्यक्रमों-योजनाओं व संघर्ष के मुद्दों को पारित किया गया। सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधियों की पूर्ण सहमति से 141 सदस्यीय राष्ट्रीय परिषद् और 35 सदस्यीय कार्यकारिणी का चुनाव किया गया। वरिष्ठ आलोचक रविभूषण को जसम का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मनोज सिंह को दोबारा महासचिव निर्वाचित किया गया।

सम्मलेन स्थल पर असमय दिवंगत हुए युवा जन चित्रकार राकेश दिवाकर की स्मृति में कला प्रदर्शनी लगाई गयी।

सम्मलेन के सभी सत्रों के अध्यक्ष मण्डल में महिला प्रतिनिधियों का मंचासीन रहना, वाम सांस्कृतिक धारा की बौद्धिक वाहिनी में महिलाओं की बढ़ती सक्रियता को दर्शाने वाला रहा।

सम्मलेन के विविध सांस्कृतिक सत्रों में आन्ध्र प्रदेश जन संस्कृति मंडली के साथ साथ मंच की विभिन्न प्रदेशों की नाट्य-गायन टीमों के जन कलाकरों व पश्चिम बंग गण संस्कृति परिषद् के जन गायकों की जोशपूर्ण प्रस्तुतियों ने सम्मलेन में समां बाँध दिया। वहीं छत्तीसगढ़ी भाषा के गीत गायन, स्थानीय चर्चित शास्त्रीय कलाकार अजुल्का-वसु गंधर्व की काव्य प्रस्तुतियों के साथ साथ रायपुर के ही ‘इंडियन रोलर बैंड’ की आकर्षक प्रस्तुतियों ने भी काफी प्रभावित किया।

सम्मलेन में हुआ कविता पाठ का सत्र भी असरदार रहा। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि राजेन्द्र कुमार व संचालन चर्चित युवा कवि अनुपम सिंह ने किया। सत्र में एक ओर, हिमांशु कुमार, देवी प्रसाद , लाल्टू, जहूर आलम, वासुकी प्रसाद एवं शम्भू बादल जैसे वरिष्ठ कवियों ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। वहीं, पंकज चतुर्वेदी, मुकुल सरल, अनुपम सिंह, बलभद्र, कमलेश्वर साहू, आनंद बहादुर, प्रियदर्शन मालवीय, घनश्याम त्रिपाठी एवं राजेश कमल जैसे कई चर्चित युवा कवियों ने भी अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं।

सम्मलेन में संस्कृतिकर्म की कई प्रमुख विधाओं से जुड़े युवा सांस्कृतिक प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी, गोदी मीडिया और फ़ासीवाद के पैरोकार लेखक-विश्लेषकों के संगठित दुष्प्रचार कि “ वाम सांस्कृतिक संगठनों में कहाँ हैं युवा” का प्रत्यक्ष जवाब देने वाली कही जा सकती है।

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