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रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के करियर का असामान्य सफ़र 

बालासोर ट्रेन हादसे के बाद रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफ़े की मांग की जा रही है। सिविल सर्वेंट से बिजनेसमैन बने राजनेता ने कभी भी इस किस्म के तीव्र विरोध का सामना नहीं किया, जैसा कि वे वर्तमान में कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक ने इस उनके रंगीन और विवादास्पद करियर की प्रोफाइल तैयार किया है।
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न तो वैष्णव और न ही केंद्र सरकार में किसी ने, भारतीय रेलवे के प्रशासन में 'गंभीर खामियों' के बारे में विपक्ष द्वारा लगाए गए कई आरोपों का जवाब दिया है, वे खामियां जिनके कारण यह दुर्घटना हुई है। (छवि: अश्विनी वैष्णव। छवि सौजन्य: फ़्लिकर)

नई दिल्ली/भुवनेश्वर: जब भारत की प्रमुख पुलिस जांच एजेंसी, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 2 जून की बालासोर ट्रेन त्रासदी की जांच शुरू की, तो इसे नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा देश की रेलवे प्रणाली में निहित तकनीकी कमियों के लिए जो मानव निर्मित आपदा का कारण बनी का एक "राजनीतिक समाधान" खोजने का प्रयास बताया है।

दुर्घटना के बाद 48 घंटे से भी कम समय में, जिसमें कम से कम 275 लोग मारे गए और 1,000 घायल हुए, केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी कुमार वैष्णव ने ट्रिपल ट्रेन त्रासदी के पीछे एक संभावित "आपराधिक" नजरिए की तरफ संकेत दिया। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड ने आपराधिक मामलों की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की है। 

वैष्णव ने कहा कि, "हालात को देखते हुए और अब तक हासिल प्रशासनिक जानकारी को ध्यान में रखते हुए, रेलवे बोर्ड घटना की आगे की जांच के लिए सीबीआई जांच की सिफारिश कर रहा है।"

उस दिन के पहले, बोर्ड ने स्पष्ट रूप से कहा था कि "सिग्नल में हस्तक्षेप" दुर्घटना का मुख्य कारण था, और कि दोषियों की पहचान कर ली गई है, और "तोड़फोड़ की संभावना" से इंकार नहीं किया गया था।

दुर्घटना के बाद 24 घंटे से भी कम समय में, मोदी ने त्रासदी को एक "घटना" के रूप में संदर्भित किया – न कि एक दुर्घटना के रूप में - और जोर देकर कहा कि जो लोग "दोषी पाए जाएंगे उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी।"

यह दावा कर के कि "तोड़फोड़ की संभावना" का पता लगाने के लिए सीबीआई जांच होगी,  क्या वैष्णव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अटकलों वाली टिप्पणियों को सही नहीं ठहरा रहे थे?

शासन के स्पिन डॉक्टरों ने पहले ही त्रासदी को एक सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया है, जो उन घटनाओं पर उनकी एक मानक प्रतिक्रिया होती है जो सत्ताधारी राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत भारी पड़ती हैं।

जुलाई 2021 में रेल मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद से वैष्णव के समाने बालासोर ट्रेन हादसा पहला उदाहरण है, जब वे जनता के भारी दबाव में आए हैं। इस त्रासदी में मृतकों और घायलों की संख्या को देखते हुए - दुर्घटना को लगभग तीन दशकों में देश में सबसे घातक दुर्घटना के रूप में वर्णित किया गया है - यह आश्चर्य की बात नहीं थी कि वैष्णव बालासोर में बहानागा बाजार रेलवे स्टेशन के पास दुर्घटनास्थल पर पहुंचे। यह भी अस्वाभाविक था कि सोशल मीडिया पर, जहां बचाव कार्य की देखरेख करते हुए उनकी तस्वीरें प्रचारित की गईं, उन पर दुर्घटना की जिम्मेदारी लेने और अपने पद से इस्तीफा देने के बजाय नौटंकी और प्रकाशिकी का सहारा लेने का भी आरोप लगाया गया।

न तो वैष्णव, न ही प्रधानमंत्री सहित केंद्र सरकार में किसी ने भी, कांग्रेस पार्टी सहित विपक्ष द्वारा लगाए गए कई उन आरोपों का जवाब नहीं दिया, जो भारतीय रेलवे के प्रशासन में मौजूद 'स्पष्ट खामियां' दुर्घटना का कारण बनी। कांग्रेस और वामपंथियों ने उन चिंताओं की तरफ इशारा किया जिसमें कहा कि दुनिया के सबसे व्यापक रेलवे नेटवर्क में से एक के पास पर्याप्त श्रमशक्ति नहीं है।

कई विपक्षी राजनेताओं और स्वतंत्र टिप्पणीकारों ने इशारा किया है कि कैसे अपर्याप्त मानव संसाधन के कारण भारतीय रेल की सुरक्षा और ऑपरेशन दक्षता बाधित और समझौतापरस्त बनी हुई है। 

स्टाफ की कमी तथा भारतीय रेलवे में व्याप्त खराब रखरखाव

जैसा की जगज़ाहिर है कि, "ग्रुप सी" कर्मियों के कम से कम 3,11,000 पद खाली पड़े हैं, जबकि देश के 39 रेलवे क्षेत्रों में 18,881 राजपत्रित कैडर पदों में से 3,081 रिक्त पड़े हैं। इसी समय, भारत के रेलवे नेटवर्क का केवल 2 प्रतिशत  यानी 68,000 किलोमीटर में से मात्र 1,450 किलोमीटर, ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (जिसे कवच कहा जाता है) द्वारा कवर किया जा रहा है।

वैष्णव के तहत, भारतीय रेलवे, जो कभी रोजगार का प्रमुख स्रोत हुआ करता था, ने नई भर्तियों में कटौती की है। जनवरी 2022 में, वैष्णव के मंत्रालय का कार्यभार संभालने के लगभग छह महीने बाद, रेलवे में भर्ती में देरी को लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश में दंगे भड़क गए थे। विपक्षी राजनीतिक दलों ने न केवल सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों की कमी को लेकर केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर हमला किया था, बल्कि इस मुद्दे पर भी हंगामा किया कि पुलिस ने युवाओं में फैली अशांति को कैसे संभाला। यह कैबिनेट मंत्री के रूप में वैष्णव के सामने आने वाली शुरुआती चुनौतियों में से एक थी। कर्नाटक में हिजाब के मुद्दे आसपास के विवाद खड़ा कर अशांति को जल्द ही राष्ट्रीय समाचार चक्र से हटा दिया गया था। 

कैग की सिफारिशों की अनदेखी

दिसंबर 2022 में संसद में पेश भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट का संदर्भ दिया गया था, जिसमें रेलवे पटरियों के रखरखाव पर खर्च में गिरावट का दस्तावेजीकरण किया गया है, जो 2017-18 और 2020-21 के बीच दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण रहा है। 

कैग की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (आरआरएसके) के लिए निर्धारित खर्च के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया गया है, जो महत्वपूर्ण सुरक्षा संबंधी कार्यों के वित्तपोषण का एक कॉर्पस फंड है; भारतीय रेलवे को इसके लिए सालाना 5,000 करोड़ रुपये का योगदान करके आरआरएसके को आंतरिक संसाधनों से सालाना 15,000 करोड़ रुपये के सकल बजटीय समर्थन के रूप में दिया जाना था। हालांकि, कैग की रिपोर्ट बताती है कि रेलवे ने चार साल (2017-18 से 2020-21) में केवल 4,225 करोड़ रुपये दिए, जिससे उसके योगदान में 79 प्रतिशत की कमी आई है। रेलवे के कुल ख़र्च में पूंजीगत व्यय का हिस्सा हाल के वर्षों में लगातार बढ़ा है।

लग्जरी ट्रेनों पर अधिक फोकस

इस लेख के लेखकों ने 7 जून को वैष्णव को एक ई-मेल भेजा था जिसमें एक विस्तृत प्रश्नावली का जवाब मांगा गया था जो नहीं मिला। पूछे गए सवालों में से एक यह था कि क्या ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा के लिए रखी गई धनराशि को अन्य परियोजनाओं में लगाया गया था। हाल के दिनों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री द्वारा "लक्जरी" ट्रेनों के बहुत धूमधाम से किए गए उद्घाटनों के मद्देनज़र, और आम यात्रियों की सुविधाओं में सुधार पर  खर्च में कटौती करने के लिए मोदी सरकार की आलोचना की थी। 

फरवरी 2019 में मोदी द्वारा पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के बाद से कम से कम 18 लग्जरी ट्रेनों, जिन्हें वंदे भारत एक्सप्रेस कहा जाता है, को ट्रैक पर छोड़ा है। ऐसा लगता है कि वैष्णव इस परियोजना का सूक्ष्म प्रबंधन कर रहे हैं। बालासोर हादसे से कुछ हफ़्ते पहले, ओडिशा की पहली वंदे भारत एक्सप्रेस को प्रधानमंत्री ने हरी झंडी दिखाई थी। बालासोर हादसे के बाद सरकार की एकतरफा प्राथमिकताओं पर बार-बार सवाल उठ रहे हैं। 

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पूर्व रेल मंत्रियों, विशेष रूप से तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव की विफलताओं की तरफ इशारा करके वैष्णव को आलोचना से बचाने की कोशिश की है।

यह सर्वविदित है कि वैष्णव को मोदी का विश्वास हासिल है। भारतीय रेलवे के अलावा, उन्हें दो और महत्वपूर्ण विभागों, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभार दिया गया है।

विपक्षी राजनीतिक दल के एक सूत्र ने नाम न लेने की शर्त पर कहा कि, " ऐतिहासिक रूप से केंद्रीय रेल मंत्री राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रहे हैं, जो रेल भवन में अपनी मियाद खत्म होने के बाद लोकसभा चुनाव जीतते हैं क्योंकि वे रोजगार पैदा करने वाली परियोजनाओं पर खर्च करके अपने निर्वाचन क्षेत्रों का 'पोषण' कर सकते हैं।" फिर नाम न छापने की शर्त पर आगे जोड़ा कि: "लाइटवेट वैष्णव की नियुक्ति अतीत से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान थी।" 

बीजद ने वैष्णव का समर्थन क्यों किया?

रेलवे सहित महत्वपूर्ण मंत्रालयों के विभागों को संभालना किसी नौसिखिए राजनीतिक के लिए असामान्य नहीं है। आखिरकार, वैष्णव पहली बार संसद सदस्य (सांसद) बने हैं, लोकसभा से नहीं बल्कि राज्यसभा से। जून 2019 में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व में भाजपा और बीजू जनता दल (बीजद) के एक साथ आने के कारण उन्हें संसद के उच्च सदन, राज्यसभा के लिए चुना गया था।

ओडिशा के वैष्णव के कैबिनेट सहयोगी और भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान (जो वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के पूर्व मंत्री हैं) ने कहा था कि वैष्णव को राज्यसभा के लिए एक आम उम्मीदवार के रूप में उतारने के लिए भाजपा और बीजद के बीच बनी समझ किसी से छुपी नहीं थी। 

"यह [समझ] खुली चर्चा के माध्यम से बनाई गई थी। कि यह कदम ओडिशा के हित में होगा। लोकतंत्र में ऐसे समझौते होते हैं।'

फिर भी, ओडिशा से राज्यसभा सांसद पद के उम्मीदवार के रूप में वैष्णव के नाम की घोषणा नाटकीय और विवादास्पद थी। जून 2019 में, खाली हुई राज्यसभा की तीन सीटों में से एक पर वैष्णव को उम्मीदवार घोषित करने के कुछ ही मिनट बाद, बीजेडी सुप्रीमो नवीन पटनायक ने पलटी मारी और घोषणा की कि वैष्णव को बीजेपी ने मैदान में उतारा है और उनकी अपनी पार्टी बीजेडी खुद की उम्मीदवारी का समर्थन करेगी।

ओडिशा के मुख्यमंत्री ने खुद सफाई दी कि: "मुझे लगता है कि श्री अश्विनी वैष्णव के बारे में कुछ भ्रम था। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री (अमित शाह) ने मुझसे बात की थी। हम श्री अश्विनी वैष्णव की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे, जो वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनके निजी सचिव थे।

कांग्रेस ने राज्यसभा सांसद के रूप में वैष्णव की उम्मीदवारी का विरोध किया था 

जैसे ही वैष्णव के नाम को राज्यसभा सांसद के पद के लिए मंजूरी दी गई, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भाजपा और बीजद के बीच सांठगांठ का आरोप लगाते हुए ओडिशा विधानसभा की कार्यवाही बाधित कर दी थी। विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता नरसिंह मिश्रा ने राज्य में खनन माफिया के साथ वैष्णव के कथित संबंधों के बारे में मुख्यमंत्री पटनायक से बयान देने की मांग की थी। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि, "राज्य के खनिज संसाधनों को लूटने वालों को राज्यसभा में हमारा प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा जा रहा है," उन्होंने इसे "बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण" करार दिया था।

यह बड़ी आश्चर्य की बात थी कि ओडिशा में सत्ताधारी दल के पास संख्या होने के बावजूद राज्यसभा की एक सीट का "त्याग" कर दिया था। और वैष्णव निर्विरोध निर्वाचित हुए।

इस लेख के लेखकों में से एक ने मिश्रा से भुवनेश्वर में उनके आधिकारिक बंगले पर मुलाकात की और उनसे वैष्णव के खनन माफिया के साथ कथित संबंधों के बारे में पूछा। मिश्रा ने इस मुद्दे पर और टिप्पणी करने से इनकार कर दिया: और कहा कि, "मैंने जो कुछ भी कहा है वह विधान सभा के रिकॉर्ड में पहले से ही मौजूद है।" 

इस पर और अधिक लेख में थोड़ी देर बाद चढ़ा की जाएगी।

एक असामान्य कैरियर का सफ़र 

वैष्णव के करियर में कई विवाद देखे गए हैं, उनके पूर्व नौकरशाह सहयोगियों और ओडिशा के शीर्ष राजनीतिक नेताओं ने लेखकों को इस बारे में बताया है। सभी इस बात से सहमत थे कि ओडिशा कैडर से संबंधित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1994 बैच के एक अधिकारी से केंद्र सरकार में तीन महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के लिए उनका उत्थान बड़ा कदम रहा है।

भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी अमिताभ कुमार दास, जो अकादमी में उनके समकालीन थे, कहते हैं, "लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में, वे एक लो प्रोफाइल थे।"

2003 में, उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया जहां उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में उप-सचिव के रूप में काम किया। 

ओडिशा कैडर के एक सेवानिवृत्त सिविल सेवक, जिन्होंने अतीत में वैष्णव के साथ मिलकर काम किया था, ने इस लेख के लेखकों को बताया कि उन्हें आमतौर पर एक अच्छा और कुशल अधिकारी माना जाता था, लेकिन बाद में "सत्ता उनके सिर पर चढ़ गई थी"।

“ओडिशा में अपने कार्यकाल के दौरान, वैष्णव अशोक सैकिया के संपर्क में आए थे, जब अशोक सैकिया वाजपेयी के पीएमओ में संयुक्त सचिव थे। यह सैकिया ही थे जो उन्हें उप-सचिव के रूप में पीएमओ में लाए थे। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा कि, फिर वैष्णव वाजपेयी के निजी सचिव बन गए थे।” 

दिलचस्प बात यह है कि 2004 में पूर्व-प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद भी वैष्णव वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में काम करते रहे। 2006 से, वैष्णव प्रतिष्ठित व्हार्टन बिजनेस स्कूल से एमबीए करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्ययन अवकाश पर जाने से पहले दो साल के लिए गोवा में मोरमुगाओ पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में काम किया। भारत लौटने पर, उन्होंने सिविल सेवा छोड़ दी। उनके समकालीनों में से एक ने कहा कि, "कुछ ऐसे हैं जो मानते हैं कि उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। लेकिन अश्विनी के मामले में ऐसा नहीं था। 20 साल की सेवा के बाद ही कोई स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले सकता है। उनके मामले में, चूंकि उन्होंने सेवा छोड़ दी थी, उन्हें सेवानिवृत्ति के लाभ नहीं मिले होंगे।”

वैष्णव के लिए यह मायने नहीं रखता कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी, जिन्होंने जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) और सीमेंस (क्रमशः उनके परिवहन और गतिशीलता प्रभागों में) सहित बहुराष्ट्रीय निगमों में वरिष्ठ प्रबंधन पदों को संभाला था। 2012 में, उन्होंने मोदी के गृह राज्य, गुजरात में कुछ ऑटो-कंपोनेंट निर्माण इकाइयों की स्थापना करके एक उद्यमी बनने के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र को छोड़ दिया था।

ओडिशा की खनन लॉबी के साथ कथित संबंध

जुलाई 2021 में कुछ से अधिक भौहें तब तनी, जब वैष्णव, जिनके पास सरकारी मंत्रालय का नेतृत्व करने का कोई अनुभव नहीं था, को मोदी ने कैबिनेट फेरबदल में रेलवे सहित तीन महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के लिए चुना था। कई अन्य जो खुद को अधिक अनुभवी मानते थे और इसलिए, मंत्री पद के योग्य थे, इस दौड़ में हार गए थे।

समाचार-पत्रिका आउटलुक के एक लेख में यह कहा गया था कि: “यह माना जाता है कि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में अनुभव का यह दुर्लभ संयोजन है जिसने उनके (पक्ष) में तराजू को झुका दिया गया है … जब पीएम मोदी ने नामों को अंतिम रूप दिया और कहा कि आज के फेरबदल में जो मंत्री शामिल होंगे, उनकी दक्षता और विविध अनुभव सवालों से परे हैं, यह मुख्य रूप से बी प्रभाकरन के साथ उनके जुड़ाव के कारणथा, जब वैष्णव को विवादों से घिरा पाया था क्योंकि उनका नाम 2013 में ओडिशा में बड़े पैमाने पर खनन घोटाले पर एमबी शाह आयोग की रिपोर्ट में पाया गया था।

प्रभाकरन को 2004 और 2012 के बीच कथित तौर पर हुए घोटाले में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था।

नवंबर 2017 में, वैष्णव और प्रभाकरन उत्तरी ओडिशा के खनिज समृद्ध जिले केओन्झार में लौह अयस्क धूल से छर्रों के निर्माण के लिए एक फर्म को शामिल करने के मामले में एक साथ आए थे। वैष्णव ने इस फर्म, त्रिवेणी पेलेट्स प्राइवेट लिमिटेड में जून 2019 तक निदेशक के रूप में काम किया था।

फरवरी 2018 में, वैष्णव प्रभाकरन के साथ एक अन्य आयरन पेलेट-निर्माण कंपनी, ब्राह्मणी रिवर पेलेट्स लिमिटेड के निदेशक बन गए थे। अरबपति व्यवसायी, सज्जन जिंदल, जिनके ओडिशा में कई व्यावसायिक हित हैं, जिनमें जगतसिंहपुर के धिंकिया क्षेत्र में विवादास्पद एकीकृत स्टील-निर्माण इकाई भी शामिल है, फरवरी 2018 में इस कंपनी के निदेशकों में से एक के रूप में वैष्णव और प्रभाकरन के साथ शामिल हो गए थे। वैष्णव जुलाई 2021 में मोदी द्वारा कैबिनेट मंत्री के रूप में नामित करने से तीन दिन पहले तक वे इस कंपनी से के प्रबंध निदेशक के रूप में काम कर रहे थे।

“प्रभाकरन चेन्नई का एक चतुर व्यवसायी है जिसके परिवार की जड़ें श्रीलंका में हैं। वह चेन्नई, दिल्ली और भुवनेश्वर के बीच काम करता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभाकरन अपने खनन हितों के कारण ओडिशा में नवीन पटनायक की सरकार का दृढ़ता से समर्थन करते हैं। वह नवीन पटनायक, अमित शाह और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के करीबी माने जाते हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास ने कहा कि: "मेरा मानना है कि वैष्णव व्यवसायी गौतम अडानी के करीबी हैं, जो प्रधानमंत्री के भी करीबी माने जाते हैं।"

राजनीतिक संबंध

वैष्णव को हिंदुस्तान टाइम्स ने यह कहते हुए उद्धृत किया था कि: “जब लोग मेरी ईमानदारी को निशाना बनाते हैं तो मैं निराश महसूस करता हूं। मैंने पारदर्शी जीवन जिया है। राजनीति के प्रति मेरा कभी मोह नहीं रहा। जब चुनाव लड़ने का प्रस्ताव आया तो मैं वास्तव में हैरान रह गया था। लेकिन एक बार सांसद चुने जाने के बाद मैं पूरी जन-भावना के साथ काम करूंगा।

त्रिवेणी रिवर पेलेट्स के साथ अपने संबंधों पर, उन्होंने कहा कि: "मेरा लक्ष्य एक ऐसा उद्यम बनाना था जो 1,500 परिवारों का पेट भर सके। कलिंग नगर प्लांट में हम अपने संविदा कर्मचारियों को भी सब्सिडी वाला खाना दे रहे हैं। मैं अपने लक्ष्य को हासिल करके खुश था और राज्यसभा सांसद की पेशकश आने तक 5,000 परिवारों का पेट पालने के लक्ष्य की दिशा में काम कर रहा था।”

एक पूर्व सांसद ने आरोप लगाया कि जिन कंपनियों में वैष्णव की रुचि थी, उनमें से एक ने झारखंड में एक खनन ब्लॉक के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाई थी, लेकिन गुजरात के एक व्यवसायी के पक्ष में इसे छोड़ दिया था, जिसके कथित रूप से गृहमंत्री अमित शाह के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। पूर्व सांसद ने विवरण का खुलासा किए बिना आरोप लगाया कि, "इस तरह वैष्णव ने शाह का विश्वास जीता था।" इस लेख के लेखक स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं कर पाए हैं। इस मुद्दे पर वैष्णव की प्रतिक्रिया का भी इंतजार है।

पूर्व सांसद ने नवीन पटनायक के मुख्य व्यक्ति वी कार्तिकेयन पांडियन के साथ प्रभाकरन के कथित संबंधों पर भी जोर दिया, जो एक आईएएस अधिकारी हैं, जिनका ओडिशा में बीजद सरकार में काफी दबदबा है।

जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद

एक विवाद जो खुले में आया है और जो ओडिशा में एक नौकरशाह के रूप में काम अकर्ने के उनके करियर के दौरान वैष्णव को स्पष्ट रूप से डराता है, वह भुवनेश्वर के एक तेजी से विकसित क्षेत्र में 2,400 वर्ग मीटर भूमि के भूखंड के आवंटन से संबंधित है। वैष्णव उस भूखंड के लाभार्थियों में से एक थे, जिसे उन्होंने 2003 में ओडिशा सरकार द्वारा शुरू की गई "विवेकाधीन कोटा योजना" के माध्यम से खरीदा था। भारत के चुनाव आयोग के साथ दायर अपने हलफनामे के अनुसार वह जमीन के भूखंड का मालिक आज भी है।

राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव तारादत्त (वह जिस नाम का इस्तेमाल करते हैं) के माध्यम से ओडिशा सरकार द्वारा कथित रूप से विवेकाधीन भूमि आवंटन घोटाले की जांच शुरू की गई थी। इसके बाद, दिसंबर 2014 में राज्य सरकार द्वारा आवंटन रद्द कर दिया गया था।

इस मामले में, पुलिस उपाधीक्षक, सतर्कता, सतर्कता प्रकोष्ठ इकाई कार्यालय, भुवनेश्वर पुलिस अधीक्षक, सतर्कता, भुवनेश्वर डिवीजन के समक्ष एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रारंभिक जांच के आधार पर यह यह पाया गया कि भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण (बीडीए) और आवास और शहरी विकास विभाग, ओडिशा सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे कुछ लोक सेवकों ने वाणिज्यिक परिसर जिला केंद्र, चंद्रशेखरपुर, भुवनेश्वर में प्रमुख भूखंडों को "गुप्त रूप से" वितरित किया था।

वैष्णव को ईमेल किए गए इस विवादास्पद भूमि आवंटन पर हमारे सवालों का जावाब लेख के प्रकाशन के समय तक नहीं दिया गया था।

फर्मों के बोर्ड में वैष्णव का परिवार

वैष्णव के परिवार के सदस्य, जिसमें उनकी पत्नी सुनीता वैष्णव, उनके बेटे राहुल वैष्णव और उनकी बेटी तान्या वैष्णव शामिल हैं, वे उन कंपनियों के निदेशक मंडल में हैं, जिनसे वे जुड़े थे, जब उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से पहले इन फर्मों से जुलाई 2021 में अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था। इनमें से दो फर्म – 3टी इंडस्ट्रियल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड और एडलर इंडस्ट्रियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड - राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में गुरुग्राम, हरियाणा में हैं।

वैष्णव और उनकी पत्नी के मोबाइल फोन पर पेगासस स्पाइवेयर

जुलाई 2021 में वैष्णव ने रेल मंत्रालय के साथ संचार, और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद मोदी सरकार कथित पेगासस घोटाले से हिल गई थी। कई राजनीतिक विरोधियों, मोदी सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और अन्य के मोबाइल फोन डेटा से समझौता करने के लिए इज़राइली स्पाइवेयर का दुरुपयोग करने का आरोप एक अंतरराष्ट्रीय जांच के हिस्से के रूप में वायर पोर्टल में प्रकाशित लेखों की एक श्रृंखला में लगाया गया था।

21 जुलाई, 2021 को संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रमुख के रूप में वैष्णव ने लोकसभा में एक बयान दिया जिसमें वायर द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल उठाया था। आश्चर्यजनक रूप से, कुछ घंटों बाद, वेबसाइट ने लिखा कि नवनियुक्त मंत्री वैष्णव और उनकी पत्नी सुनीता उन लोगों में से थे जिनके फोन कथित तौर पर पेगासस स्पाईवेयर से संक्रमित हो गए थे।

द वायर की रिपोर्ट में कहा गया था कि: “ऐसा लगता है कि उन्हें 2017 में संभावित निगरानी के लिए निशाना बनाया गया था, जब तक उन्होंने भाजपा के पक्ष में कदम नहीं उठाया था। ऐसा लगता है कि उनकी पत्नी के नाम पर एक अन्य नंबर भी निगरानी के लिए चुना गया लगता है।

इसके बाद, कुछ व्यक्तियों (इस लेख के लेखकों में से एक सहित) ने पेगासस विवाद में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी, जिनके मोबाइल फोन डेटा के साथ स्पाईवेयर का उपयोग करके कथित रूप से समझौता किया गया था।

स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके मोबाइल फोन की जासूसी के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल का गठन किया था। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि केंद्र सरकार ने जांच में "सहयोग नहीं" किया। वैष्णव ने विशेषज्ञ पैनल के समक्ष गवाही नहीं दी। मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ा है।

इस लेख को तब अपडेट किया जाएगा जब मंत्री वैष्णव उस विस्तृत प्रश्नावली का जवाब दे देंगे, जिसे हमने उन्हें 7 जून को ईमेल के ज़रिए भेजा था। 

लेखक, दिल्ली में स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

The Unusual Trajectory of Railway Minister Ashwini Vaishnaw’s Career

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