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क्या कॉर्पोरेट टैक्स की कटौती का कुछ फ़ायदा भी है?

पार्लियामेंटरी एस्टीमेट कमिटी के मुताबिक कॉर्पोरेट टैक्स कम होने की वजह से सरकर के राजस्व को तकरीबन 1.84 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
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Image courtesy : The Indian Express

किताबी बात यह है कि जब कंपनियों को टैक्स की रियायत दी जाती है तो उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा उनके पास रहता है। इस पैसे का निवेश किया जा सकता है। निवेश बढ़ेगा तब कंपनी के कामकाज का दायरा बढ़ेगा। कम्पनी के कामकाज का दायरा बढ़ेगा तो रोजगार बढ़ेगा। कंपनी में काम करने वालों की आमदनी बढ़ेगी। मांग बढ़ेगी। अर्थव्यवस्था ढंग से चलेगी। इसी किताबी आधार पर कंपनियों पर लगने वाले कॉर्पोरेट टैक्स को कम करने की बात कही जाती है।  

सितम्बर 2019 कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती कर दी गयी। अगर सेस, सरचार्ज से लेकर सभी जोड़कर देखा जाए तो कॉर्पोरेट टैक्स 35 प्रतिशत से घटकर 25 प्रतिशत हो गया। अगर सरचार्ज और सेस को हटाकर देखा जाए तो यह 30 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गया।   पार्लियामेंटरी  एस्टीमेट कमिटी के 16 सदस्यों में 12 भाजपा के हैं।  इस कमिटी के मुताबिक कॉर्पोरेट टैक्स कम होने की वजह से सरकर के राजस्व को तकरीबन 1.84 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

इतनी बड़ी राशि का शायद आप अनुमान न लगा पाए। तो इसे ऐसे समझिये कि मनरेगा के तहत तकरीबन 3 करोड़ परिवार काम लेते हैं। यानि तकरीबन 15 करोड़ लोग मनरेगा पर आश्रित हैं। मनरेगा के लिए सरकार ने इस साल तकरीबन 72 हजार करोड़ रूपये आबंटित किये थे। इसका तकरीबन 2 गुने से ज्यादा 1.84 हजार करोड़ रूपये की राशि होती है। भयंकर बेरोजगारी के चलते मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है और जबकि उसका बजट कम होते जा रहा है। अब आप सोचकर देखिये कि कॉर्पोरेट टैक्स की इतनी बड़ी राशि सरकार को मिलती तो इसका क्या फायदा हो सकता था?

कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि कॉर्पोरेट टैक्स की कटौती करते समय भाजपा सरकार कहती थी कि सरकार का टैक्स कलेक्शन ज्यादा होगा। लेकिन टैक्स कलेक्शन कम हुआ है। जबकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के आंकड़े कहते हैं कि वित्त वर्ष 2021 में 2020 के मुकाबले 30 हजार लिस्टेड कंपनियों ने अपना सारा ख़र्च निकालने के बाद तकरीबन 138 प्रतिशत का मुनाफा कमाया।

अब थोड़ा किताबी तर्कों का एक के बाद एक जवाब खोजते हैं। टैक्स की कटौती से क्या पूंजी में निवेश बढ़ा? तो आंकड़े बताते हैं कि साल 2021- 22 के पूंजीगत खर्चें की दर में महज 2.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह पिछले छह सालों में सबसे कम है।  टैक्स की कटौती से बचे पैसे का इस्तेमाल कॉर्पोरेट ने पूंजीगत खर्च की बजाए अपने कर्ज को चुकाने में किया है। अपने कैश रिज़र्व को मजबूत करने में किया है। मुनाफा बढ़ाने में किया है।  

इन सबके आलावा सोचने वाली बात यह है भी है कि अगर कॉर्पोरेट कटौती का फायदा हुआ होता तो वह दिखता क्यों नहीं है? जीडीपी की दर बताती है की कॉर्पोरेट कटौती से अर्थव्यवस्था से उतना फायदा पंहुचा नहीं है जितनी की उम्मीद की जाती है। आर्थिक असमानता बढ़ी है। अमीर लोग अमीर हुए हैं। गरीब लोग गरीब। मुनाफा कुछ हाथों में सिमटता गया है। रोजगार की दर महज 40 फीसदी के आसपास है। ढेर सारे लोगों ने रोजगार की उम्मीद छोड़ दी है। जिन्हें रोजगार मिली है, उसमें अधिकतर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जिनके बारे में सरकार का ही आंकड़ा है कि अधिकतर की कमाई 10 से 12 हजार महीने से कम है।

इन सबका मतलब है कि कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती करते हुए जिन फायदों को गिनाया जाता है, भारत को वैसे किसी भी तरह के फायदे नहीं पहुंचे है।  इससे ज्यादा असर तब होता है जब कॉर्पोरेट टैक्स से हुई कमाई को मानव संसाधन में इन्वेस्ट किया जाता।

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