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दुनिया भर की: श्रमिक असंतोष की तपिश झेल रहा है समूचा यूरोप

इसकी कई वजह हैं, लेकिन सबके मूल में प्रमुख बात यही है कि लोगों के लिए बढ़ती महंगाई के मौजूदा दौर में अपने व अपने परिवार के खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है।
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फोटो साभार: रायटर्स

लगभग समूचा यूरोप इस समय गहरे श्रम संकट की चपेट में है। ब्रिटेन में बीते एक हफ्ते में तीन बार वहां के रेल कर्मचारी 24-24 घंटे की हड़ताल पर जाकर वहां के रेल नेटवर्क को ठप कर चुके हैं। यूरोप के कई हवाई अड्डे पिछले कई दिनों से श्रमिकों-कर्मचारियों की हड़ताल को झेल रहे हैं, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में उड़ानों को भी रद्द करना पड़ा है। बीते हफ्ते ऐसा पहली बार हुआ कि यूरोपीय संघ की राजधानी ब्रुसेल्स से सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करना पड़ा।

जो श्रमिक संकट पहले केवल ट्रैवल क्षेत्र को असर करता दिखाई दे रहा था, उसने अब काफी व्यापक स्वरूप ले लिया है धीमे-धीमे बाकी क्षेत्र भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसकी कई वजह हैं, लेकिन सबके मूल में प्रमुख बात यही है कि लोगों के लिए बढ़ती महंगाई के मौजूदा दौर में अपने व अपने परिवार के खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। दो साल की कोविड महामारी की मार और फिर अचानक आ पड़े यूक्रेन पर रूसी हमले ने स्थितियों को विकट बना दिया है।

फोटो साभार: रायटर्स

ज्यादातर जगह श्रमिकों की चिंता रोजगार की सुरक्षा की है और वे बेहतर वेतन-भत्तों की मांग कर रहे हैं। यह सब इसलिए हो पा रहा है क्योंकि यूरोप में श्रमिक यूनियनें तुलनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत व संगठित हैं।

यह श्रमिक संकट इस बात का भी नमूना है कि कोविड महामारी की अप्रत्याशित स्थिति में जब सब तरफ बंदी का दौर था, तो लोगों के रोजगार से कैसे निबटा गया, उसमें किस तरह से दूरदृष्टि व संवेदनशीलता का अभाव रहा और बंदी के दौर में खर्चे बचाने की फिराक में किस तरह से श्रमिक तबके व कामगारों के बारे में सबसे कम सोचा गया। अब वही उनके सामने संकट बनकर खड़ा है।

मजेदार बात यही है कि बाजारवादी व्यवस्था के पैरोकार हर जगह एक-सी ही सोच रखते हैं। तो जब ब्रिटेन में रेल कर्मचारी काम की बेहतर स्थितियों की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे थे तो बीते बृहस्पतिवार को वहां के मंत्री कानून में उन बदलावों पर विचार करने के लिए बैठ रहे थे जिससे कंपनियों के लिए अस्थायी कर्मचारी काम पर रखना आसान हो जाए। मकसद यही था कि एक तो स्थायी कर्मचारियों की हड़ताल बेअसर हो जाए और दूसरा बदले में अस्थायी कर्मचारी रखे जाएं जिन्हें कभी भी रखा और निकाला जा सके।

यूरोप के ज्यादातर देशों में खाद्य पदार्थों व तेल की कीमतें इस समय आसमान छू रही हैं, जिससे मध्य व निम्नवर्गीय परिवारों के लिए खर्च चलाना मुश्किल होता जा रहा है। यही कारण है कि ट्रेड यूनियनें बेहतर स्थितियों की मांग उठाने पर मजबूर हो गई हैं। लेकिन जब सरकारें किसी न किसी बहाने से इन मांगों को दरकिनार करने लगी हैं तो यूनियनों को हड़ताल का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। छह दिन में तीन बार रेल नेटवर्क ठप करने के बाद ब्रिटेन के रेल कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि वेतन सुधारने और छंटनी रोकने को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ तो हड़ताल का दायरा फैल सकता है।

ब्रिटेन और यूरोप के लिए असंतोष की गर्मी बढ़ती जा रही है। कोविड के दौर में जब उड़ानें बंद थीं तो कई यूरोपीय देशों ने एयरपोर्ट कर्मचारियों की छंटनी कर दी। फिर इस साल जब कोविड की पाबंदियां खत्म हुईं और उड़ानें शुरू हुईं तो कम कर्मचारी होने की वजह से हवाईअड्डों की व्यवस्थाएं चरमरा गईं। लंबी-लंबी कतारें लगने लगीं और बेहिसाब उड़ानें रद्द हो गईं। इसी में बाकी कर्मचारी भी बेहतर स्थितियों की मांग करने लगे और हड़तालें फैल गईं।

लंदन के हीथ्रो हवाईअड्डे पर ब्रिटिश एयरवेज के कर्मचारियों ने भी काम से वॉकआउट करने का फैसला किया। कई बजट एयरलाइंस अपनी सैकड़ों उड़ानें रद्द करने पर मजबूर हुई हैं। बेल्जियम के अलावा स्पेन, फ्रांस व स्कैंडिनेवियाई देशों में हड़तालों की आशंका गहरा रही है। कर्मचारियों की कमी व श्रमिक हड़तालें गर्मियों से पहले भी लंदन, एम्सटर्डम, पेरिस, रोम व फ्रैंकफर्ट में असर दिखा चुकी हैं। शुक्रवार को रेयनएयर के भी कई केबिन क्रू बेल्जियम, स्पेन व पुर्तगाल में हड़ताल पर चले गए। फ्रांस व इटली में भी यही होने जा रहा है।

बताया जाता है कि दुनियाभर में महामारी के दौरान अकेले उड्डयन क्षेत्र में 23 लाख नौकरियां चली गईं। ग्राउंड हैंडलिंग व सुरक्षा में लगे कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा गाज गिरी। ऐसे में दो साल बाद जब गर्मियों की छुट्टियों का पहला खुला सीजन सामने आया है तो हालात बेकाबू हो गए। यूनियनें दो साल से खामोश थीं लेकिन अब उनको लगने लगा है कि बढ़ती महंगाई में लोगों की क्रय शक्ति लगातार कम होती जा रही है।

इसी से यह बात भी सामने आई कि खास तौर पर उड्डयन क्षेत्र में कर्मचारियों के काम की स्थितियां कितनी खराब हैं और अब क्यों लोग हवाईअड्डों पर काम करने के लिए नहीं लौटना चाहते। इसके उदाहरण के तौर पर पुर्तगाल की यूनियन से जुड़े एक व्यक्ति का यह कथन बहुत है कि स्थितियां इतनी खराब हैं कि किसी क्रू मेंबर को फ्लाइट पर पानी की एक बोतल तक साथ नहीं ले जाने दी जाती।

बेल्जियम में बीते सोमवार को सार्वजनिक क्षेत्र के कमर्चारियों ने देशव्यापी हड़ताल की। फोटो साभार: रायटर्स

जाहिर है कि हड़तालों व असंतोष का ज्यादा असर परिवहन क्षेत्रों में ही दिखलाई दे रहा है। फ्रांस की यूनियनों ने भी 6 जुलाई को रेलवे कर्मचारी हड़ताल का आह्वान कर दिया है। फ्रांस की ट्रेड यूनियन सीजीटी ने शुक्रवार को तेल रिफाइनरियों के कर्मचारियों के लिए एक दिन की हड़ताल की। बेल्जियम में तो बीते सोमवार को सार्वजनिक क्षेत्र के कमर्चारियों ने देशव्यापी हड़ताल की थी और राजधानी ब्रसेल्स में 80 हजार कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया। हड़ताल में परिवहन के अलावा स्कूलों, अस्पतालों व अन्य सार्वजनिक सेवाओं के कर्मचारी भी शामिल हुए। वहां भी उनकी मांग वास्तविक वेतन में बढ़ोतरी करने की ही है। ग्रीस में भी बीते बुधवार को स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के कर्मचारियों ने 24 घंटे की देशव्यापी हड़ताल की।

अब विसंगतिपूर्ण बात यही है कि जहां एक तरफ यूरोपीय संघ बेरोजगारी की दर के सबसे निम्न स्तर पर होने की बात कर रहा है, यह भी कहा जा रहा था कि यूक्रेन से आने वाले शरणार्थी यूरोप में श्रमिकों की कमी की भरपाई कर देंगे, जर्मनी हजारों की संख्या में अस्थायी विदेशी कर्मचारियों की नियुक्ति कर रहा है, वहीं तमाम क्षेत्रों में मौजूदा कर्मचारी बेहतर वेतन व बेहतर स्थितियों की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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