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निजीकरण के ख़िलाफ़ बैंक कर्मचारियों की हड़ताल, किसानों और ट्रेड यूनियनों ने भी किया विरोध प्रदर्शन

हड़ताल कर रहे बैंक कर्मचारियों के समर्थन में आरबीआई से लेकर बीएसएनएल और अन्य पब्लिक सेक्टर के ट्रेड यूनियनों ने भी प्रदर्शन किया।
निजीकरण के ख़िलाफ़ बैंक कर्मचारियों की हड़ताल, किसानों और ट्रेड यूनियनों ने भी किया विरोध प्रदर्शन

बैंक कर्मचारी की दो दिन की देशव्यापी हड़ताल के समर्थन में, 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा ने भी नरेंद्र मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियों का विरोध करते हुए रेलवे स्टेशनों पर नारेबाज़ी की।

दोनों संगठनों द्वारा किये गए साझे आह्वान के तहत, सोमवार को "एन्टी-प्राइवेटाइज़ेशन" और "एन्टी-कॉरपोरेटाइज़ेशन" दिवस मनाया गया और केंद्रीय सरकार द्वारा इस साल के बजट में पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग(पीएसयू) के बड़े स्तर पर निजीकरण करने की नीतियों का विरोध किया गया। संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन के साथ जोड़ कर निजीकरण का विरोध किया।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा, "पूरे भारत में 1 लाख से ज़्यादा जगहों पर दफ़्तरों और रेलवे स्टेशनों के सामने प्रदर्शन किये गये। किसानों ने ग्रामीण क्षेत्रों में शामिल होकर अपना विरोध दर्ज किया।"

राजधानी दिल्ली में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने धरना प्रदर्शन किया गया जिसमें ट्रेड यूनियन के ज़्यादातर सदस्य और नेता शामिल हुए। ऐसे ही प्रदर्शन हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखंड, तेलंगाना और अन्य राज्यों के ज़िलों में भी किये गए।

सोमवार को यूनियन नेताओं ने कहा कि यूनाइटेड फ़ोरम ऑफ़ बैंक यूनियंस(यूएफ़बीयू) जो 9 बैंक यूनियनों की अम्ब्रेला बॉडी है, के द्वारा मोदी सरकार की दो पब्लिक सेक्टर बैंकों के निजीकरण की योजना के ख़िलाफ़ 2 दिन की हड़ताल भी सफल रही।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस(एटक) की जनरल सेक्रेटी अमरजीत कौर ने कहा, "आज देश भर में सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के निजीकरण के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। हड़ताल कर रहे सभी बैंक कर्मचारियों का ट्रेंड यूनियन, अन्य कर्मचारियों के संगठन और किसानों ने समर्थन किया है।" उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशनों को मोदी सरकार की क्रूर नीतियों का विरोध करने के लिए प्रतीकात्मक तौर पर चुना गया है।

ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयीज़ एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी सी एच वेंकटाचलम ने चेन्नई से न्यूज़क्लिक को फ़ोन पर बताया, "बैंक कर्मचारियों द्वारा देश भर में धरने और रैलियाँ की गई हैं। उन राज्यों में भी प्रदर्शन हुए जहाँ आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं।" उन्होंने बताया कि सिर्फ़ नागपुर में जहाँ कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं, हड़ताल कर रहे कर्मचारियों और अधिकारियों का जमा होना मुमकिन नहीं हो सका।"

इस दौरान, बैंक कर्मचारियों की हड़ताल को अन्य पब्लिक सेक्टर की यूनियनों का भी समर्थन मिला। देश भर में भारत संचार निगम लिमिटेड(बीएसएनएल) के कर्मचारियों ने लंच के दौरान प्रदर्शन किया। इसी तरह से रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया(आरबीआई) के कर्मचारियों ने भी ऑल इंडिया रिज़र्व बैंक एम्प्लॉयीज़ एसोसिएशन और ऑल इंडिया रिज़र्व बैंक वर्कर्स फ़ाउंडेशन के आह्वान पर लंच के दौरान प्रदर्शन किया।

यूनाइटेड फ़ोरम ऑफ़ रीजनल रूरल बैंक यूनियंस(यूएफ़आरआरबीयू) ने भी निजीकरण के ख़िलाफ़ दो दिन की हड़ताल का आह्वान किया है।

वेंकटाचलम ने बताया कि लगभग हर सरकारी बैंक में पुराने निजी बैंकों में हड़ताल की गई है। उन्होंने बताया कि युवा अब "स्थायी नौकरियाँ" चाहते हैं। उन्होंने कहा, "आज ख़ासतौर पर युवा अगुवाई कर रहे थे। वे प्राइवेट सेक्टर में अपनी स्थिति से प्रेरित होकर हड़ताल में शामिल हुए।"

'नीतियों का सबसे ज़्यादा नुक़सान आम आदमी को'

फ़रवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए 2021-22 के केंद्रीय बजट में केंद्र ने ₹1.75 लाख करोड़ के विघटन लक्ष्य की घोषणा की। जिसमें से ₹75,000 करोड़ विघटन से और ₹1,00,000 करोड़ पब्लिक सेक्टर बैंक और आर्थिक संस्थानों में हिस्सेदारी बेच कर हासिल किये जायेंगे।

पिछले वित्त वर्ष में यह लक्ष्य ₹2.1 लाख करोड़ का था, जिसमें 2021-22 के बजट में संशोधित अनुमान ₹32,000 करोड़ रुपये आंका गया- इसकी वजह महामारी की वजह से पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को बताया गया है।

इसके साथ ही, सीतारमण ने दो सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों(आईडीबीआई के अलावा) के निजीकरण की केंद्र की नीति की भी घोषणा की। इसके अलावा सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी में सरकार के आंशिक हिस्से के साथ निजीकरण की भी घोषणा की थी। इन घोषणाओं की वजह से आर्थिक क्षेत्र के कर्मचारी मौजूदा समय में बड़े स्तर पर हड़ताल कर रहे हैं। 

बैंक कर्मचारियों की हड़ताल के बाद 17 मार्च को जनरल इन्शुरन्स कॉर्पोरेशन(जीआईसी) और 18 मार्च को एलआईसी के कर्मचारी भी एक-एक दिन की हड़ताल करने वाले हैं।

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस(सीटू), दिल्ली के जनरल सेक्रेटरी अनुराग सक्सेना जो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हड़ताल कर रहे बैंक कर्मचारियों के समर्थन में नारेबाज़ी कर रहे थे, ने कहा कि मोदी सरकार की इन नीतियों का "सबसे ज़्यादा नुक़सान आम  आदमी" को होगा। पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस के बढ़े दामों की वजह से प्रदर्शनकारियों में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा साफ़ ज़ाहिर था।

सक्सेना ने कहा, "इस सब के साथ लेबर क़ानूनों को कोड में बदल कर सरकार कामकाजी वर्ग पर दोहरा वार करने का काम कर रहे है।" उन्होंने आगे कहा कि "सबको सरकार की इन नीतियों का एकजुट होकर विरोध करना चाहिये।"

ऑल इंडिया किसान सभा(एआईकेएस) के जॉइंट सेक्रेटरी विजू कृष्णन भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शन में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि "मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़" मज़दूर और किसान एकजुट हैं। एआईकेएस, संयुक्त किसान मोचा के साथियों में से एक है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

As Bank Employees Strike Work, Farmers and TUs Join Protest Against Privatisation

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