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दिल्ली दंगे: अदालत ने तीनों छात्र ऐक्टिविस्टों को तत्काल रिहा करने का दिया आदेश

दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को तत्काल जेल से रिहा करने का ओदश दिया।
दिल्ली दंगे: अदालत ने तीनों छात्र ऐक्टिविस्टों को तत्काल रिहा करने का दिया आदेश
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को तत्काल जेल से रिहा करने का बृहस्पतिवार को ओदश दिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के दो दिन बाद अदालत ने यह आदेश दिया क्योंकि इन छात्रों को ज़मानत मिले 36 घंटे से अधिक हो गया है फिर भी दिल्ली पुलिस इन्हें औपचारिकताओं का बहाना बनाकर रिहा नहीं कर रही थी। जिसे लेकर आसिफ इकबाल तन्हा और देवांगना कालिता और नताशा नरवाल ने जेल से तुरंत रिहाई का अनुरोध करते हुए बृहस्पतिवार को उच्च न्यायालय का रुख किया। जिस पर सुनवाई करने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालत से तीनों छात्रों की रिहाई के मामले पर गौर करने को कहा, जिस पर कार्रवाई करते हुए निचली आदलत ने तुरंत रिहाई का आदेश दिया।

ज़मानत के बाद भी पुलिस द्वारा रिहाई नहीं देने पर उठ रहे हैं सवाल

आपको बता दें इन्हें पिछले साल फरवरी में दंगों से जुड़े एक मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था। इन्हें उनके पते और जमानतदारों से जुड़ी जानकारी पूर्ण न होने का हवाला देते हुए समय पर जेल से रिहा नहीं किया गया था।

जबकि लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक़ छात्रों ने कहा कि सभी जमानतदार अपनी अग्रिम आयु/पेशेवर दायित्वों के बावजूद, 15 और 16 जून को दोपहर 12 बजे से शाम 5.00 बजे तक शारीरिक रूप से उपस्थित थे। आवेदक की सभी जमानतें और उनके बॉन्ड और उनकी FD को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष रखा गया है।

इसके बाद भी ज़मानत नहीं मिली, जिसके बाद इन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष दायर अत्यावश्यक आवेदनों में उन्होंने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद उनकी रिहाई के आदेशों को स्थगित करने की निचली अदालत की कार्रवाई उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

हालाँकि यह खुली किताब का बंद सच की तरह है कि दिल्ली पुलिस क्यों इन्हें रिहा नहीं कर रही है। अदलतों से ज़मानत मिलने के बाद भी पुलिस कोई न कोई अड़चन लगा कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही थी कि इनकी रिहाई न हो सके। इस बार भी वो यही प्रयास करती दिख रही है, लेकिन लगता है इस बार वो इसमें कामयाब नहीं होगी। ऐसा लगता है कि इस बार तीनों की रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है।

इसको लेकर दिल्ली पुलिस की मंशा पर लोग सवाल उठा रहे हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) पोलित ब्यूरो की सदस्य और पूर्व सांसद बृंदा करात ने बुधवार को आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से संबंधित मामलों में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के उच्च न्यायालय के आदेश को जानबूझकर बाधित करने की कोशिश कर रही है।

करात ने आरोप लगाया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम कर रही दिल्ली पुलिस नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और आसिफ इकबाल तन्हा की जमानत पर रिहाई को रोकने के लिए अजीबोगरीब बहाने बना रही है। करात ने नरवाल की रिहाई के लिए आवश्यक जमानत भी दी।

उच्च न्यायालय ने क्या कहा?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को निचली अदालत से जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा देवांगना कालिता और नताशा नरवाल की जेल से रिहाई के मामले पर ‘‘तत्परता’’ से गौर करने को कहा।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में इन तीनों छात्रों को 15 जून को अदालत से जमानत मिल गई थी।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने आरोपियों के वकील और दिल्ली पुलिस से संयुक्त रूप से दोपहर 12 बजे निचली अदालत के समक्ष रिहाई का मामला रखने को कहा। उच्च न्यायालय दोपहर साढ़े तीन बजे मामले पर फिर सुनवाई करेगा।

अदालत तीनों छात्रों की जेल से तत्काल रिहाई की याचिकाओं पर सुनाई कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि जमानत संबंधी आदेश पारित होने के 36 घंटे बाद भी आरोपियों को जेल से रिहा नहीं किया गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘निचली अदालत से उम्मीद की जाती है कि वह तत्परता से उसके समक्ष रखे मामले पर फैसला करेगी।’’

जामनत देते हुए आदलत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

इससे पहले 15 जून को जामनत देते हुए भी कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कल तीनों को जमानत देते हुए कहा था कि राज्य ने प्रदर्शन के अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है तथा यदि इस तरह की मानसिकता मजबूत होती है तो यह ‘‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।’’

इसने यूएपीए के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा को ‘‘कुछ न कुछ अस्पष्ट’’ करार दिया और इसके ‘‘लापरवाह तरीके’’ से इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने के निचली अदालत के आदेशों को निरस्त कर दिया था।

उच्च न्यायालय ने 113, 83 और 72 पृष्ठों के तीन अलग-अलग फैसलों में कल कहा था कि यूएपीए की धारा 15 में ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा व्यापक है और कुछ न कुछ अस्पष्ट है, ऐसे में आतंकवाद की मूल विशेषता को सम्मिलित करना होगा तथा ‘आतंकवादी गतिविधि’ मुहावरे को उन आपराधिक गतिविधियों पर ‘‘लापरवाह तरीके से’’ इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती जो भारतीय दंड संहिता के तहत आते हैं।

अदालत ने कहा था, ‘‘ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने की अपनी बेताबी में सरकार के दिमाग में प्रदर्शन करने के लिए संविधान प्रदत्त अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ न कुछ धुंधली होती हुई प्रतीत होती है। यदि यह मानसकिता प्रबल होती है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा...।’’

पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश को उच्चतम न्यायालय में दी चुनौती

दिल्ली हाई कोर्ट के ज़मानत के फ़ैसले के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने इस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दी।

पुलिस ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी  है। पुलिस का कहना है कि हाई कोर्ट का जमानत देने का फैसले बिना किसी आधार के था। 

क्या थे आरोप

24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था। हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे। इन तीनों पर इनका मुख्य ‘‘साजिशकर्ता’’ होने का आरोप है।

दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में दर्ज प्राथमिकी 59/2020 में कुल 15 लोगों को नामजद किया गया था। इनमें तन्हा, नरवाल और कलिता, गुलफिशा फातिमा, इशरत जहां, सफूर ज़रगर, मीरन हैदर, खालिद सैफी, शिफू-उर-रहमान और कई अन्य कार्यकर्ता भी शामिल है। पुलिस ने दावा किया कि तन्हा ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को अंजाम देने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। हालाँकि अदलात में पुलिस के सारे तर्क धराशाही हो गए हैं।

तन्हा, कालिता और नरवाल कौन है

आपको बता दें कि तन्हा जामिया मिलिया इस्लामिया में बीए (ऑनर्स) (फारसी) के अंतिम वर्ष के छात्र हैं। उन्हें मई 2020 में यूएपीए के तहत दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार किया गया था और तब से लगातार हिरासत में हैं। जबकि देवांगना कलिता सेंटर ऑफ़ वीमेन स्टडियज़ में एमफिल की छात्रा हैं, वहीं नताशा नरवाल सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज में पीएचडी की छात्रा हैं। वे दोनों पिंजरा तोड़ की संस्थापक सदस्य हैं। ‘पिंजरा तोड़’ की स्थापना साल 2015 में हॉस्टल और पेइंग गेस्ट में छात्राओं की सुविधा और अधिकारों के मकसद से की गई थी। कालिता और नरवाल ने क्रमशः डीयू के मिरांडा हाउस और हिंदू कॉलेज से ग्रेज्युशन किया है। अभी ये दोनों भी मई 2020 से ही जेल में हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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