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असम: बाल विवाह से जुड़ी बीजेपी सरकार की कार्रवाई पर सराहना और सवाल दोनों!

बड़ी संख्या में महिलाएं अपने पतियों और बेटों की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ यह कहते हुए विरोध कर रही हैं कि इससे उनके सामने आजीविका की गंभीर समस्या खड़ी हो जाएगी।
Assam
फ़ोटो साभार: PTI

पूर्वोत्तर राज्य असम बीते कुछ दिनों से बाल विवाह को लेकर सुर्खियों में है। असम की बीजेपी सरकार 14 साल से कम उम्र की नाबालिग़ लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत सख़्त कानूनी कार्रवाई कर रही है, जिसकी कई जगह सराहना भी हो रही है। बाल विवाह के खिलाफ इस व्यापक मुहिम के तहत बीते शुक्रवार, 3 फरवरी को 2,044 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसकी जानकारी खुद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने दी। हालांकि 4 फरवरी को जगह-जगह बड़ी संख्या में महिलाएं अपने पतियों और बेटों की गिरफ्तारी के खिलाफ सड़कों पर उतरी और इस कदम का यह कहते हुए विरोध भी किया कि इससे उनके सामने आजीविका की समस्या हो जाएगी। महिलाओं के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ अन्य लोगों ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस मामले में इतनी बड़ी कार्रवाई करने से पहले सरकार को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए था।

बता दें कि भारत में बाल विवाह गैर-कानूनी है और इसे किसी तरह की कोई क़ानूनी मान्यता हासिल नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के अनुसार 18 वर्ष की आयु से पहले बच्चों की शादी मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है। भारत में शादी की उम्र लड़कों के लिए 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल है, जिसे अब बढ़ाकर 21 ही करने की कवायद चल रही है। बावजूद इसके भारत समेत दुनिया भर में ये प्रथा जारी है। यूनिसेफ के मुताबिक़ भारत में हर साल लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। हालांकि बचपन में शादी के बंधन में बंधने वाले लोग वयस्क होकर अपनी शादी को ख़ारिज करा सकते हैं लेकिन ऐसा कराने के लिए उनको अपने ज़िला न्यायालय में अर्ज़ी देनी होती है। बहरहाल, बाल विवाह एक सामाजिक कुप्रथा है और केंद्र और राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए कई स्तरों पर प्रयासरत हैं।

पुरुषों के ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट के तहत सख़्त कानूनी कार्रवाई

असम की बात करें तो, सरकार का ये कदम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के बाद सामने आया। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि असम में औसतन 31 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले कर दी गई थी। इसके अलावा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि असम में मातृ व शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है और बाल विवाह ही इसकी प्रमुख वजह रहा है।

इस रिपोर्ट के बाद असम में बीजेपी की सरकार ने 14 साल से कम उम्र की नाबालिग़ लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत सख़्त कानूनी कार्रवाई करने का फ़ैसला किया। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कैबिनेट के इस फ़ैसले की ख़ुद जानकारी देते हुए कहा, "जो युवक 14 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करेगा, हम उनके ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई करेंगे। हमारी सरकार ने बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर राज्यव्यापी अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है।"

इसके अलावा लड़के के भी नाबालिग होने पर उसे Juvenile Justice Board के सामने पेश किया जाएगा।

राज्य में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह को रोकने के लिए कैबिनेट ने सभी 2,197 ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत 'बाल विवाह रोकथाम (निषेध) अधिकारी' के रूप में नामित करने का फ़ैसला किया है। ये अधिकारी पॉक्सो एक्ट के तहत उन मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराएँगे, जहाँ दुल्हन की उम्र 14 साल से कम है। वहीं लड़की की उम्र 14 साल से 18 साल के बीच होने पर बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत एफ़आईआर दर्ज कराई जाएगी।

मुस्लिम बहुल इलाकों में सबसे अधिक गिरफ़्तारियां

राज्य सरकार ने निचले असम के जिन जिलों में बाल विवाह के ज़्यादा मामले होने के आँकड़े दिए है, उन इलाक़ों में बंगाली मूल के मुसलमान समुदाय की आबादी ज़्यादा है। इसलिए इस फैसले को धार्मिक नजरिए से भी देखा जा रहा है। इसकी एक वजह ये भी है कि असम पुलिस ने जिन इलाकों में बाल विवाह के मामले दर्ज किए हैं उनमें से ज्यादातर मुस्लिम-बहुल हैं। लेकिन मुख्यमंत्री की दलील है कि बाल विवाह के खिलाफ अभियान किसी खास तबके को निशाना बनाने के लिए शुरू नहीं किया गया है।

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली एक गैर सरकारी संगठन से जुड़ी जूली गोगोई न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि असम की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 3 करोड़ 10 लाख है। यहां मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 34 प्रतिशत है। अभी सबसे अधिक 370 मामले जिस धुबड़ी जिले में दर्ज किए गए हैं, वो मुस्लिम बहुल इलाका है, उसके बाद होजई (255) और उदालगुड़ी (235) का नंबर है, यहां भी मुसलमानों की अच्छी आबादी है। इसके अलावा यहां चाय उत्पादन करने वाली जनजातियों की जनसंख्या भी 15-20 प्रतिशत है। जो जोरहाट और शिवसागर ज़िले में मुख्य रूप से रहती है, यहां भी 24.9 प्रतिशत लड़कियों की शादी 14 साल से कम उम्र में हुई है।

जूली की मानें तो बाल विवाह यहां सालों से एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसका समाधान निकालने के लिए कानून के अलावा सामाजिक स्तर पर भी जागरूकता की जरूरत है। क्योंकि ऐसी ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों से लोगों में डर तो बैठ जाएगा लेकिन जो शादियां सालों पहले हो चुकी हैं, उन दंपतियों का जीवन बर्बाद होने की भारी आशंका है। क्योंकि इस सब में सबसे ज्यादा महिलाओं का ही जीवन प्रभावित होने की संभावना है। जूली सरकार के कदम को सही और जरूरी मानती हैं लेकिन इसके क्रियान्वयन में थोड़ी राहत और वास्तविकता को समझने की गुंजाइश भी करती हैं।

सराहना के साथ ही सरकार का विरोध

सराहना के साथ ही सरकार के इस बाल विवाह विरोधी अभियान का विरोध भी हो रहा है। लोग अपने परिवार के सदस्यों को रिहा करने की मांग कर रहे हैं, जगह-जगह बड़ी संख्या में महिलाएं अपने पतियों और बेटों की गिरफ्तारी का विरोध कर रही हैं। इस बीच मीडिया में ये भी खबर सामने आई कि राज्य सरकार की कार्रवाई के चलते एक महिला ने कथित रूप से सुसाइड कर लिया। बताया जा रहा है कि महिला को डर था कि उसकी बचपन में शादी कराने के आरोप में उसके पिता की गिरफ्तारी हो सकती है।

माजुली जिले में 55 साल की निरोदा डोले ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा कि केवल आदमियों को ही क्यों पकड़ा जा रहा? हम और हमारे बच्चे कैसे जिंदा रहेंगे? हमारे पास आय का कोई साधन नहीं है। वहीं मोरीगांव की मोनोवारा खातून कहती हैं कि उनकी बहू 17 साल की थी जब उसकी शादी हुई थी। अब वह 19 साल की है और पांच महीने की गर्भवती है। ऐसे में मर्दो की गिरफ्तारी के बाद उसकी देखभाल कौन करेगा?

पुलिस के केस दर्ज करने से समस्या का समाधान नहीं होगा

ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एएएमएसयू) के अध्यक्ष रेजौल करीम सरकार ने मीडिया के सामने दावा किया कि वे पिछले पांच वर्षों से अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में बाल विवाह को समाप्त करने के लिए काम कर रहे थे और सरकार को कई ज्ञापन सौंपे थे, लेकिन अधिकारियों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। अब सिर्फ लोगों को गिरफ्तार करने और पुलिस को केस दर्ज करने के लिए कहने से समस्या का समाधान नहीं होगा।

वहीं इस ममामले में आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने एक बयान जारी कर बाल विवाह के खिलाफ व्यापक मुहिम के तहत असम पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारियों के लिए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा पर निशाना साधा और कहा कि यह कदम राज्य के मुसलमानों को सताने के लिए उठाया गया है।

असम के धुबरी से सांसद अजमल ने कहा, ‘हमारे मुख्यमंत्री साहब कभी-कभी अचानक ख्वाब देखते हैं कि बहुत दिन हो गया मैंने मुसलमानों को नहीं सताया। तो वह नींद से उठते हैं और शुरू कर देते हैं कि किन-किन योजनाओं से मुसलमानों को सता सकते हैं।’

अजमल ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत 2007 में ही बाल विवाह को दंडनीय अपराध बनाया गया था, लेकिन सरकार (असम) ने इसे लेकर एक दिन के लिए भी कोई अभियान नहीं चलाया। अब सरकार गिरफ्तारी कर रही है, तो इसमें पता चलेगा कि 90 प्रतिशत लड़के-लड़कियां मुसलमान होंगे। ये एक तरफा गिरफ्तारी करेंगे क्योंकि इनका मिजाज मुसलमान विरोधी है।

कुप्रथा को धर्म से जोड़ना सही नहीं, लेकिन पहले जागरूकता अभियान की थी ज़रूरत

वहीं बच्चों के अधिकारों और बाल विवाह रोकने की दिशा में सालों से काम कर रहे संजू सिन्हा न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि असम में बाल विवाह सिर्फ मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है। राज्य की कई जनजातियों में भी यह परंपरा जारी है। इसलिए इस सामाजिक कुप्रथा को सिर्फ धर्म से जोड़ कर देखना उचित नहीं है। लेकिन क्योंकि सरकार ने इस दिशा में ये कदम एकाएक उठाया है, इसलिए कहा जा सकता है कि इतनी बड़ी कार्रवाई करने से पहले सरकार को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए था।

संजू बताते हैं कि 23 जनवरी को जब सीएम सरमा ने कहा था कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ शादी करने वालों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज होगा, तभी यहां लोगों में डर और तनाव दिखाई दे रहा था, हालांकि किसी को इतने व्यापक कार्रवाई की उम्मीद नहीं थी।

गौरतलब है कि सरकार का ये त्वरित कदम पहले नज़र में जानकारों और लोगों को भा तो रहा है लेकिन दूसरे ही पल घर में अकेली पड़ी बेसहारा औरतों के दर्द को कम करने के लिए इसमें कोई उपाय नज़र नहीं आता। सरकार इन औरतों के बेहतर भविष्य के लिए क्या करेगी, कैसे इनका आगे गुजारा होगा और जो लड़कियां मां बन चुकी हैं या बनने वाली हैं उनको सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या ठोस आधार होंगे अभी इसकी कोई रूपरेखा सामने नहीं आई है।

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