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ग्राउंड रिपोर्ट : ब्रह्मपुत्र और बराक दोनों घाटियां बाढ़ में डूबीं, लाखों हुए बेघर

पूरी बराक घाटी अब पूर्वोत्तर से पूरी तरह कट गई है।
assam

एक महीने के बाद भी, ऐसा लगता है कि असम के लोगों को दशकों की सबसे भीषण बाढ़ से अभी भी कोई राहत नहीं मिली है। बराक घाटी के बुरी तरह प्रभावित होने से राज्य की दोनों घाटियां बाढ़ में डूब गई हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पूरा राज्य अब बाढ़ का सामना कर रहा है, और कुछ दिनों में इसका सामान्य स्थिति में लौटना संभव नहीं दिख रहा है।

बराक घाटी के तीनों ज़िले पानी में डूबे

दक्षिण असम का सबसे बड़ा शहर और बराक घाटी का प्रवेश द्वार सिलचर, पिछले दो दिनों में बाढ़ में पूरी तरह डूब चुका है। इस शहर के लगभग हर हिस्से में बाढ़ आई हुई है, जिसे लोगों ने इतिहास में पहले कभी नहीं देखा है। सिलचर ने शायद ही कभी ऐसी भीषण बाढ़ देखी होगी, और यह बाढ़ बराक नदी के कारण आई है जिसने बेथुकंडी के तटबंध को तोड़ दिया था।

बेथुकंडी तटबंध के टूटने से पानी की धारा बहने लगी, जिससे सिलचर रात भर बाढ़ में डूबा रहा। यह वहां के निवासियों के सामने 'कहीं कोई विकल्प नहीं, और न ही ‘कोई आश्रय' जैसी स्थिति थी।

पूरी बराक घाटी अब पूर्वोत्तर से कट चुकी है। बिजली और मोबाइल नेटवर्क कनेक्टिविटी की समस्या बढ़ गई है और वहां के लोगों से आसानी से बात नहीं की जा सकती है। कछार जिले के एक ब्लॉक उदरबोंड के निवासी और सिलचर से सिर्फ 17 किलोमीटर दूर श्रीपद धर ने हमें फोन पर बताया कि सिलचर को दीमा हसाओ और मेघालय के माध्यम से शेष असम से जोड़ने वाली सड़कें बाढ़ के कारण अवरुद्ध हो गई हैं।

धर ने कहा, "सिलचर अब समुद्र की तरह है। बराक नदी का तटबंध टूटने से लोगों को परेशानी हुई है। पीने के पानी का भारी संकट है। गांवों में लोगों को बिना किसी मदद के रात को  आश्रय शिविरों में भागना पड़ा।" कीमतें रातों-रात आसमान छू रही हैं। ऐसा लगता है कि स्थिति पर हेमंत बिसवा सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, और न ही चुने हुए प्रतिनिधि कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए या लोगों की दुर्दशा को कम करने के लिए कुछ कर रहे हैं।"

बराक के पानी में डूबा सिलचर (फोटो: मोहसिन अहमद)

उन्होंने कहा कि कछार और सिलचर के अलावा बोरखोला, कटिगोरा और लखीपुर भी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अकेले लखीपुर के लगभग 40 गाँव, कम या बिना किसी सुविधाओं वाले शिविरों में शरण लिए हुए हैं।

मोहसिन अहमद करीमगंज जिले के बरईग्राम गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि 22 जून को कुशियारा नदी उच्चतम बाढ़ स्तर (एचएफएल) से आठ सेंटीमीटर नीचे लगातार बह रही थी। 

कुशियारा नदी, इस जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा से होकर बहती है, जो बराक की एक शाखा है, जो करीमगंज पहुंचने पर दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है, दूसरी शाखा सूरमा नदी कहलाती  है।

अहमद ने कहा कि, "अन्य महत्वपूर्ण नदियां, शिंगला और लोंगई ने भी जिले में कहर बरपाया हुआ है। लोंगई ने मुख्य रूप से पाथरकंडी और शिंगला ने राताबारी को प्रभावित किया है।"

हालांकि लोंगई और शिंगला का पानी थोड़ा कम हो गया है, लेकिन कुशियारा खतरनाक बनी हुई  है।

सहायता प्रदान करने के लिए आश्रय शिविरों में जाने में व्यस्त अहमद ने हमें बताया कि लोग संकट में हैं। उन्होंने यह भी बताया कि एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और अर्धसैनिक बलों के अलावा विभिन्न गैर सरकारी संगठन और संगठन बचाव कार्य कर लोगों को बचा रहे हैं और सहायता प्रदान कर रहे हैं।

एक युवा स्वयंसेवी समूह का नेतृत्व करने वाली करीमगंज की वकील हसीना रहमान चौधरी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि, "19 जून को, शंकरपुर गांव का आधा हिस्सा पानी में डूब गया था। हमने वहां संबंधित क्षेत्र अधिकारी से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। अंतत: हमने एक स्कूल की प्रबंध समिति से बात की। लोगों ने खुद चीजों की व्यवस्था करके वहां शरण ली। लेकिन फील्ड अधिकारी ने फिर से सहायता देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, काफी प्रयास के बाद, सहायता देर रात पहुंची, जिसमें केवल चावल, दाल और नमक था। इसके अलावा, स्कूल का परिसर रहने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं था। पहले, हमने बचाव के लिए भी संपर्क किया, लेकिन समान प्रतिक्रिया मिली और बचाव के लिए बीएसएफ से संपर्क करना पड़ा।"

उसने कहा कि उन्हें दीनपुर गांव में भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा। उनका अनुभव प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है। उन्होंने गांव पंचायत अध्यक्ष द्वारा निभाई गई एक जघन्य भूमिका का भी आरोप लगाया, जिनके अधिकार क्षेत्र में शंकरपुर और दीनपुर दोनों गांव शामिल हैं।

भूटान बांधों से पानी आने को लेकर आशंका

इस साल दूसरी बाढ़ के दौरान सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र नागांव जिले के राहा और कामपुर थे, जो मध्य असम में होजई जिले और ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट हैं। इन इलाकों में बाढ़ की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। राहा और कामपुर के कुछ हिस्सों में जल स्तर में वृद्धि देखी जा रही है। भारी बारिश और नीपको (नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड) के बांधों से पानी छोड़े जाने से स्थिति और खराब हो गई है।

न्यूज़क्लिक ने राहा सर्कल (गुवाहाटी से 100 किलोमीटर से अधिक) के स्थानों का दौरा किया, जहां लोग आश्रय शिविरों में दयनीय परिस्थितियों में रह रहे हैं, जिनमें ज्यादातर स्कूल घर और बाजार परिसर हैं। ऐसे ही एक कैंप में फुलगुरी के पास बाजार परिसर में गांवों से लोग रात भर आ रहे थे।  

यह कोई नामित शिविर नहीं था। यहां जकोरुवा-उदैभेटी और डांगोबिबील कछारी गांवों के 140 परिवारों ने शरण ली हुई थी। 

जकोरुवा उदयभेटी गांव के 65 वर्षीय जितेन बोरदोलोई ने यहां आश्रय लेते हुए न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके गांव के 65 घरों में से केवल पांच या छह पक्के घर हैं, जबकि बाकी कच्चे घर हैं, और सभी डूब गए हैं। कोई अनुमान लगा सकता है कि पानी लगभग 10 फीट तक बढ़ गया था। लगभग पूरी तरह से खेती पर निर्भर यहां के लोग बिजली की गति से बहते पानी में अपने कच्चे घरों को डूबने से डरते हैं। उनकी धान की फसल पूरी तरह से नहीं कट सकी और बुवाई का नया मौसम तेजी से हाथ से निकल रहा है।

इसी तरह, धेमाजीगांव गांव के एक सरकारी स्कूल में बने अन्य शिविर में लोगों ने अपनी पीड़ा व्यक्त की। 

ललित सैकिया, दुशेश्वरी काकोटी और बोकुल कलिता ने बताया कि उनका पूरा गांव अभी शेल्टर कैंप में है और उनके यहां कुल 80 घर हैं, जिनमें से 15 ही पक्के हैं। उन्हें अपने घर और सामान के खो जाने का भी डर है।

इसके अलावा, इन शिविरों की स्थिति भी बेहद दयनीय है। 18 जून को लोग यहां पहुंचे थे। फिर भी, प्रशासन 20 जून की दोपहर से खाद्य सामग्री देना शुरू किया था। उन्हें चावल, थोड़ी सी दाल और नमक दिया गया, लेकिन नाके पास आग जलाने और खाना पकाने के लिए कुछ भी नहीं तहा और न ही कुछ दिया गया था। महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी होती है क्योंकि उनके पास कपड़े, सैनिटरी नैपकिन आदि की कमी होती है।

पीड़ितों के हालात पर टिप्पणी करते हुए, असम के एक वामपंथी नेता, बिबेक दास ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हम मांग कर रहे हैं कि महिलाओं के लिए कपड़े, शिविरों में उचित शौचालय, भोजन और पोषण प्रदान किया जाए, साथ ही गर्भवती महिलाओं के लिए और मच्छरदानी प्रदान की जाए ताकि उनकी अतिरिक्त देखभाल की जा सके। दूसरे, हम यह भी मांग कर रहे हैं कि उनके घरों के पुनर्निर्माण के लिए शिविरों के भीतर 10,000 रुपये और टिन उपलब्ध कराए जाएं और भू-राजस्व माफ किया जाए।”

बराक घाटी के शिविरों तक नहीं पहुंचा हुआ कठिन।

गुवाहाटी से ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट पर पश्चिम की ओर बढ़ते हुए, सभी जिले- कामरूप, नलबाड़ी, बजली, बारपेटा, बोंगाईगांव और कोकराझार लगभग एक सप्ताह से पानी में डूबे हुए हैं। न्यूज़क्लिक ने राजधानी शहर से लगभग 100 किलोमीटर दूर बजली जिले के पाठशाला की यात्रा की। बाढ़ पीड़ित राष्ट्रीय राजमार्ग पर ठहरे पाए गए। काफी जगहों पर रोड़ को एक तरफ से बंद का दिया गया था। ज्यादातर मामलों में, बारिश से बचाव के लिए तिरपाल की व्यवस्था की गई थी। खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने का प्रावधान दुर्लभ था। 

बैहाता चरियाली, कामरूप, असम में मौजूद एक सैन्य ट्रक से लोग भोजन के लिए लाइन में लगे हुए हैं। 

निचले असम में दो मुद्दे प्रमुख रूप से उभर कर सामने आए हैं। लगभग हर जगह लोग कह रहे हैं कि बाढ़ अभूतपूर्व है और भूटान से पानी छोड़ा गया है।

यह पूछे जाने पर कि वे बांधों से पानी छोड़े जाने के बारे में कैसे जानते हैं, कुछ ने कहा कि उन्होंने तब सुना जब गांवबुरहा (ग्राम प्रधान) ने अपने गांवों में अलर्ट की घोषणा की थी। कुरिचु बांध से पानी छोड़ना सार्वजनिक समाचार रहा है; हालाँकि, मंगदेछु जैसे भूटान के अन्य बांधों के बारे में जानकारी मालूम नहीं है।

इस बारे में पूछे जाने पर तामूलपुर के एसडीओ (अनुमंडल अधिकारी) रामानुज हजारिका ने कहा कि उन्हें इस तरह की कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि तामूलपुर में एक लाख से अधिक लोगों को प्रभावित करने वाले 100 से अधिक गांव पानी में डूबे हुए हैं, जो अभूतपूर्व है।

दारांग जिले में भी बाढ़ देखी गई, जहां लोगों ने कभी बाढ़ नहीं देखी थी; साथ ही कुछ जगहों पर चंद घंटों में ही पानी भर गया था।

मंगोल्डोई के बिचित्र कुमार मेधी, एक वृद्ध व्यक्ति और क्षेत्र के एक प्रमुख भूगोलवेत्ता, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बाढ़ की तीव्रता और गति को देखने के बाद, उन्होंने निष्कर्ष निकाला ऐसी बाढ़ कुदरती नहीं हो सकती है। 

 “हो सकता है कि भूटान के ऊपरी हिस्से में र कुछ गतिविधियाँ हुई हों और कुछ स्रोतों से पानी बहता है जो विभिन्न नदियों के माध्यम से असम में आता है। मुझे नहीं पता कि जिला प्रशासन को इसके बारे में पता था या नहीं। 

एक प्रमुख असमिया दैनिक दैनिक असोम के वरिष्ठ पत्रकार जितेन चौधरी ने अपने हालिया लेख में इस पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने भूटान में बनाए जा रहे बांधों के बारे में भी इसी तरह के विचार रखे, जिसमें भारत-भूटान संयुक्त उद्यम भी हैं।

"उदाहरण के लिए, मंगदेछु बांध, जो 2020 में उत्पादन के लिए तैयार किया गया था। यह एक भारत-भूटान संयुक्त उद्यम है जिसका उद्देश्य 720 मेगावाट बिजली का उत्पादन करना है।"

हालांकि, गुवाहाटी में एक स्वतंत्र शोधकर्ता मिर्जा जुल्फिकुर रहमान ने बताया कि यह आकलन करना कठिन है कि कौन सा बांध असम के किस हिस्से को और किस तीव्रता के साथ  प्रभावित करेगा, हालांकि कुरिचु बांध के बारे में जानकारी है जो बारपेटा जिले के निचले हिस्से को प्रभावित करता है।

"इसलिए कुछ कानूनी प्रावधान होने चाहिए ताकि असम में लोग कम से कम भारत-भूटान उपक्रमों के मामले में भूटान में जलविद्युत परियोजनाओं के ठिकाने को जान सकें। यह यहां के समुदायों का अधिकार है।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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