असम : बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही, क्या है लाखों लोगों के बेघर होने की वजह?
असम में विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन से दिन-प्रतिदिन स्थिति बद् से बदतर होती जा रही है। राज्य के बजली, बक्सा, बारपेटा, विश्वनाथ, बोंगाईगांव, चिरांग, दरांग, धेमाजी, डिब्रूगढ़, धुबरी, दीमा हसाओ, गोलपारा, होजई, कामरूप और कामरूप मेट्रोपॉलिटन समेत 32 जिलों में बाढ़ से 31 लाख के करीब लोग प्रभावित हुए हैं। राज्य में मरने वालों की संख्या अब तक लगभग 62 हो गई है। वहीं पिछले 24 घंटों में बाढ़ के पानी में डूबने से आठ लोगों की मौत हो गई है - बारपेटा और करीमगंज जिलों में दो-दो, दरांग, हैलाकांडी, नलबाड़ी और सोनितपुर जिलों में एक-एक और आठ लोग अभी भी लापता हैं।
राज्य में बारिश और बाढ़ के कारण लोगों का हाल बेहाल है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से जारी बुलेटिन के मुताबिक भारी बारिश और बाढ़ के कारण 13 तटबंध टूट गए, 64 सड़कें और कई पुल क्षतिग्रस्त हो गए हैं। अब तक 62 लोगों में से 51 लोगों की बाढ़ में मौत हो गई, जबकि 11 लोग भूस्खलन में मारे गए।
कई नदियां ख़तरे के निशान से ऊपर
ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में जल स्तर बढ़ रहा है, जबकि मानस, पगलाडिया, पुथिमारी, कोपिली और गौरंगा नदियां कई स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। धुबरी और नेमाटीघाट में ब्रह्मपुत्र का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है। दूसरी ओर गुवाहाटी शहर में भूस्खलन की कई घटनाओं की सूचनाएं मिली हैं।
एएसडीएमए की रिपोर्ट में कहा गया है कि 118 राजस्व सर्कल के तहत 4,291 गांव बाढ़ के पानी में डूब गए हैं और 66,455.82 हेक्टेयर फसल भूमि बाढ़ के पानी में डूब गई है। बाढ़ की मौजूदा लहर में 25.54 लाख से अधिक जानवर प्रभावित हुए हैं। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 72 राजस्व मंडलों के अंतर्गत आने वाले 1,510 गांव फिलहाल पानी में डूबे हुए हैं।
बाढ़ प्रभावित जिलों के प्रशासन ने 514 राहत शिविर और 302 राहत वितरण केंद्र स्थापित किए हैं और 1,56,365 लोग वर्तमान में राहत शिविरों में रह रहे हैं। इसके अलावा कई बाढ़ प्रभावित लोग अपने घरों में बाढ़ का पानी भर जाने के बाद सड़कों, तटबंधों और ऊंची जमीनों पर शरण ले रहे हैं।
पिछले 24 घंटों में, 22 जिलों में प्रभावित क्षेत्र भारतीय सेना, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीएफआर), अग्निशमन और आपातकालीन सेवाओं और जिला प्रशासन की बचाव टीमों ने विभिन्न बाढ़ से बच्चों और महिलाओं सहित 9,102 लोगों को बचाया है।
बाढ़ प्रभावित जिलों के प्रशासन ने अलर्ट जारी करते हुए लोगों से अपील की है कि वे अपने घरों से बाहर न निकलें जब तक कि बहुत जरूरी न हो या कोई मेडिकल इमरजेंसी न हो। असम के अलावा मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में भी भारी बारिश ने सामान्य जनजीवन को प्रभावित किया है। मेघालय में भूस्खलन, आकाशीय बिजली गिरने और अचानक आई बाढ़ से कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई है।
सरकार क्या कर रही है?
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सभी जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि सभी बाढ़ प्रभावित जिलों में पर्याप्त खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए और राहत कार्यों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा सभी उपायुक्तों को कार्मिक विभाग को राहत अभियान के लिए अतिरिक्त मानव संसाधन के लिए अनुरोध करना चाहिए।
राज्य सरकार कनेक्टिंग सड़कों पर मौजूदा भूस्खलन की स्थिति को देखते हुए बराक घाटी जिलों में ईंधन और आवश्यक खाद्य पदार्थों के स्टॉक की उपलब्धता की निगरानी कर रही है। खबरों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने जल संसाधन विभाग द्वारा सभी उल्लंघन बिंदुओं की पहचान करने और बाढ़ के पानी की कमी के तुरंत बाद अस्थायी रूप से बंद करने के कार्य करने के निर्देश दिए हैं साथ ही सभी डीसी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की निगरानी के लिए मजबूत कदम उठाने की बात भी कही है।
लोग क्या कह रहे हैं?
सरकारी आंकड़ों की माने तो इस साल पहले चरण की बाढ़ में सबसे ज्यादा नुकसान नौगांव जिले के कामपुर रेवेन्यू सर्किल के तहत आने वाले गांवों को हुआ है। आलेहा बेगम का गांव बुकलुंग भी इस कामपुर रेवेन्यू सर्किल के तहत ही आता है। बुकलुंग नदी के पास बसे बुकलुंग गांव के लोग सरकार की तरफ से अभी तक राहत नहीं मिलने से नाराज हैं। यहां के लोगों का कहना है कि बाढ़ ने उनके गांव को तबाह कर दिया है। घर, मकान, धान-मछली सब कुछ खत्म हो गया है। ऐसे में उनके पास सड़क किनारे दिन गुजारने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। इनके मुताबिक गांव में कई सालों से बाढ़ आ रही है लेकिन इतनी बड़ी विनाशकारी बाढ़ कभी नहीं देखी।
इस गांव में बीते कई सालों से रह रहीं रफ्फू निशा न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया है। अब सड़क पर रह रहे हैंं, कामकाज बंद हो गया है और पैसा भी नहीं है। सरकार मदद की बात कर रही है, कुछ लोगों को चावल-दाल मिल भी रहा है लेकिन अब तक हम लोगों को किसी से कोई मदद नहीं मिली है।
डिब्रूगढ़, सिलचर समेत कई इलकों के राहत शिविरों में रह रहे लोगों की हालात ठाक नहीं बताई जा रही है। वजह घर छोड़ने का दुख तो है ही साथ ही खांसी, बुखार जैसी शिकायत भी देखने को मिल रही है। कई लोगों के पैर में त्वचा संक्रमण हुआ है। शिविरों में छोटे बच्चे भी हैं, इसलिए ज्यादातर शिविरों में चिकित्सकों की एक टीम जाकर लोगों की जांच कर रही है और जो बीमार है उनकों दवाइयां दी जा रही है। जिससे इन बिमारियों को फैलने से रोका जा सके।
खेती, घर-बार, सब हो गया है बर्बाद
मालूम हो कि असम के कई गांवो में ज्यादातर लोग खेती करके अपनी जीविका चलाते हैं। लेकिन हर साल बाढ़ के कारण इनकी फ़सल बर्बाद हो जाती है। यहां अधिकतर किसानों का आरोप है कि बाढ़ का पानी सूखने के बाद ज़िला प्रशासन के लोग नुक़सान का आंकलन करने ज़रूर आते हैं लेकिन नुक़सान के एवज में मिलता कुछ नहीं है।
दरअसल असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है लेकिन सरकार की तरफ से पीड़ितों को उनकी आवश्कता के अनुसार मदद नहीं मिलती जिसके कारण उनकी हालत और ख़राब हो जाती है। यहां बाढ़ और भूकटाव के कारण ऐसे सैकड़ों परिवार हैं जो अपनी जमीन गंवा चुके हैं। 1950 से अब तक यहां करीब 25 से ज्यादा बड़े सैलाब आ चुके हैं। प्रदेश ने 1986 के बाद सबसे भयंकर बाढ़ और जान-माल की हानी का मंजर देखा है।
जलवायु परिवर्तन के चलते यहां बाढ़, मिट्टी के कटाव और भूकंप का खतरा हर वक्त मंडराता रहता है। ऐसे परिवार जो पीढ़ियों से आजीविका के लिए खेती करते आ रहे है अब मिट्टी के कटाव के कारण बेघर होते जा रहे हैं। इंसानों के साथ-साथ मवेशियों और काजीरंगा नेशनल पार्क के जानवरों को भी भारी नुकसान पहुंचा है।
पेड़ो की कटाई पर रोक ज़रूरी
इस बार असम में आई बाढ़ की स्थिति काफी गंभीर है और बारिश की आवृत्ति में काफी वृद्धि देखने को मिल रही है। लेकिन इसे सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़ने से पहले यहां की प्रमुख नदियों के प्रबंधन से लेकर फॉरेस्ट कवर से जुड़ी बातों पर भी गौर करना जरूरी है। कई जानकारों का मानना है कि पिछले दिनों जिस कदर उत्तर भारत का तापमान असमान्य तौर पर बढ़ा है उसका असर यहां हो रही लगातार बारिश से हो सकता है। जंगलों की कटाई हो रही है जिससे नदियों में सिल्टेशन पहुंच रहा है और नदियों की आधार शक्ति कम हो रही है। खासकर नदियों के पास बड़े पेड़ो की कटाई पर रोक लगाने की जरूरत है। क्योंकि इन पेड़ों की जड़ों में पानी रोकने की क्षमता बहुत होती है।
गौरतलब है कि असम में साल-दर-साल भयानक बाढ़ आने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। ब्रह्मपुत्र नदी पर अध्ययन करने वाले जानकार बताते है कि बढ़ते प्रदूषण और तापमान से तिब्बत के पठार पर जमी बर्फ़ और हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। जिसके चलते ब्रह्मपुत्र नदी पर बने बांधों और नदी दोनों का जलस्तर बढ़ जाता है।
प्रशासन की अनदेखी
भारत, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश यानी चार देशों से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी असम को दो हिस्सों में बांटती है। इसकी दर्जनों सहायक नदियां भी हैं। तिब्बत से निकलने वाली यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लेकर आती है, जो धीरे-धीरे असम के मैदानी इलाकों में जमा होता रहता है। इससे नदी की गहराई कम होती है और पानी बढ़ने पर बाढ़ और तटकटाव की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। दरअसल तिब्बत में नदी के उद्गम स्थल पर तलछट इकट्ठा होना शुरू हो जाता है, क्योंकि ग्लेशियर पिघलकर मिट्टी को नष्ट कर देते हैं।
जैसे-जैसे पानी असम की ओर बढ़ता है, यह अधिक तलछट इकट्ठा करके अपने साथ लेकर आता है। जबकि ब्रह्मपुत्र की अन्य सहायक नदियाँ इस तलछट को नष्ट करने में अप्रभावी बताई जाती हैं, जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ आती है और मिट्टी का कटाव होता है। अपने साथ तलछट लाने वाली दुनिया की शीर्ष पांच नदियों में ब्रह्मपुत्र एक है। इसे लेकर प्रशासन के पास पुख्ता जानकारी और अध्ययन दोनों मौजूद हैं बावजूद इसके शासन-प्रशासन लोगों को राहत देने के लिए बाढ़ और तबाही का इंतजार करता है।
इसे भी पढ़ें: असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।