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असम के दक्षिण-पश्चिमी जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद दयनीय – I

भले ही महामारी हो या न हो, किंतु कर्मचारियों की भारी कमी, आवश्यक उपकरणों और बुनियादी व्यवस्था के अभाव और खराब कनेक्टिविटी ने स्वास्थ्य सेवाओं को दूर-दराज के इलाकों में रह रहे लोगों की पहुँच से बाहर की चीज बना रखा है।
Assam
दक्षिण साल्मारा-मनकछार जिले के हत्सिंगिमारी में स्थित एसडीसीएच।

दुनियाभर में कोविड-19 के प्रसार ने एक प्रकार से भानुमति का पिटारा ही खोलकर रख दिया है, क्योंकि अधिकाँश देशों में मामलों की संख्या में दिन-दूनी रात-चौगुनी वृद्धि से निपटने के मामलों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहद अपर्याप्त पाया गया था। कई देशों में मौतों को रोक पाना बेहद दुष्कर कार्य जान पड़ा। महामारी ने वैज्ञानिक समुदाय के सामने एक हिमालय जैसी अलंघ्यनीय चुनौती पेश कर दी थी – जैसे कि रोग की गंभीरता के शरीर-क्रियात्मक आधार की खोज करना, इसके लिए दवाओं या टीकों की खोज करना, इत्यादि।

अधिकांश वैज्ञानिक प्रयासों एवं कुछ उपलब्धियों ने अपनी उल्लेखनीय रफ्तार और दक्षता के कारण वैश्विक ध्यान को अपनी ओर आकर्षित किया है। उदाहरण के लिए, चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में इस बार टीके का अभूतपूर्व गति से विकसित किया गया है। अब जबकि निकट भविष्य में महामारी के कहीं से भी पूरी तरह गायब हो जाने की उम्मीद नहीं दिख रही है, फिर भी इसके खिलाफ एक बहादुराना संघर्ष की सफलता के बारे में की जा रही उन्मत्त घोषणाएं हर तरफ से देखने को मिल रही हैं।

हालाँकि, यदि कुछ मामलों पर गहराई से विचार किया जाए तो ये प्रकाशिकी एक बाजीगरी वाला मामला जान पड़ता है।

आइये पृथ्वी के एक बेहद छोटे भूभाग के मामले को लेते हैं, जो भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में असम राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित है।

दक्षिण-पश्चिमी असम में दक्षिण साल्मारा-मनकछार धुबरी और गोआलपाड़ा जिलों के हिस्से में शामिल है। व्यापक नदी के मुहाने पर की रेत (स्थानीय भाषा में चारस) और तटवर्ती इलाकों से मिलकर बना हुआ, असम का यह हिस्सा राज्य के कुछ सबसे दुर्गम स्थानों में से एक है और सड़क संपर्क के मामले में भी यहाँ की स्थिति सबसे खराब है।

कुछ चारस में तो सिर्फ नावें ही एकमात्र संचार के साधन के रूप में मौजूद हैं। महामारी के बावजूद इस क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से में स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर हैं। गौरतलब है कि असम में ऐसे कई दुर्गम रेत के टीले हैं, जहाँ पर इसी प्रकार की दयनीय स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद की जा सकती है।

दक्षिण सल्मारा-मानकछार जिला 

असम की सांख्यिकीय पुस्तिका -2020 में स्वास्थ्य सुविधा जैसे विभिन्न राज्य संकेतक आंकड़े दिए हुए हैं। जिले में सिर्फ एक उप-मंडल सिविल अस्पताल (एसडीसीएच) मौजूद है, एक भी पूरी तरह से विकसित सिविल अस्पताल मौजूद नहीं है, और सिर्फ 49 उप-केंद्र हैं। दिलचस्प बात यह है कि जब हम जिला प्रशासन की वेबसाइट पर नजर डालते हैं तो इस आंकड़े में थोड़ा हेर-फेर नजर आता है, जिसमें बताया गया है कि जिले में उप-केंद्रों की संख्या 55 है। 

हालाँकि, जिला प्रशासन की वेबसाइट एक विकट तस्वीर चित्रित करती है जब यह कहती है कि जिले में एक भी चेस्ट अस्पताल, ब्लड बैंक और रक्त भंडारण ईकाई नहीं है और दो तटवर्ती पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) हैं जो चालू हालत में नहीं हैं। जबकि विशेष रूप से जिले में तटवर्ती क्षेत्रों का एक महत्वपूर्ण झुण्ड है।

इन अस्पतालों में से एक के डॉक्टर ने न्यूज़क्लिक को जो व्याख्यायित किया, उससे सरकारी स्वास्थ्य संरचना की श्रेणियों को समझा जा सकता है। नाम न छापे जाने के अनुरोध पर उन्होंने बताया: “स्वास्थ्य प्रणाली के पदानुक्रम में उप-केंद्र का स्थान सबसे नीचे है और इसके द्वारा करीब 5,000 लोगों को सेवाएं प्रदान की जाती हैं। अगले स्तर पर राज्य औषधालय या पीएचसी है, जो लगभग 15,000-20,000 लोगों को सुविधायें मुहैया कराता है। इसके बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की बारी आती है जिनके द्वारा 1 से 1.5 लाख लोगों को सेवाएं प्रदान की जाती हैं और इसके बाद जाकर सिविल अस्पतालों (जिला अस्पतालों) या एसडीसीएच (उप-मंडल सिविल अस्पताल) की बारी आती है।” 

उन्होंने आगे बताया “असल में उप-केंद्रों में डाक्टरों को तैनात नहीं किया जाता है; वहां पर सिर्फ नर्सों और अन्य कर्मचारियों को तैनात किया जाता है, जिनके द्वारा कुछ बेहद प्रारंभिक स्वास्थ्य सेवाओं को ही प्रदान किया जाता है। यदि जरा सा भी जटिल मामला हुआ तो उनके द्वारा निकटतम अगले उच्च दर्जे के अस्पताल के लिए रेफ़र कर दिया जाता है।” जिले में सिविल अस्पताल सर्वोच्च स्तर पर होते हैं। 

जिले का एकमात्र एसडीसीएच जिला मुख्यालय हत्सिंगिमारी में है और यह डीसी कार्यालय (उपायुक्त) के समीप स्थित है। एसडीसीएच के प्रभारी डॉ. समसुल हक़ ने इस बारे में न्यूज़क्लिक के साथ विस्तार से बात की और अस्पताल की वर्तमान स्थिति और कोविड-19 के प्रसार के चरम स्तर पर पहुँचने के दौरान किये गए उपायों के बारे में बताया।

जब उनसे डाक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता के बारे में सवाल किया गया तो हक़ ने बताया कि अस्पताल में फिलहाल 14 डॉक्टर हैं।

उनका कहना था “लेकिन हमारे अस्पताल में नर्सों की संख्या पर्याप्त नहीं है। वर्तमान में हमारे यहाँ सिर्फ 6-7 नर्सें हैं। इसके अलावा, चिकित्सा-सहायकों और अन्य कर्मचारियों की भी कमी बनी हुई है, खासकर सफाई कर्मियों की, जो कि किसी भी अस्पताल के लिए अत्यावश्यक हैं। हमने कुछ सफाई कर्मियों को काम पर रखा है।” विशेष रूप से यह एकमात्र जिला अस्पताल है जिसपर लगभग 3.5 से 4 लाख की आबादी की इलाज की जिम्मेदारी है।

अस्पताल के पास आईसीयू की सुविधा तक नहीं है, गंभीर मरीजों को वेंटीलेटर सुविधायें प्रदान करने की तो बात तो खैर भूल ही जाइए।

उन्होंने आगे बताया “हालाँकि, अस्पताल का एक सिविल अस्पताल के तौर पर उन्नयन किया जा रहा है, और इसमें 12 आईसीयू बेड्स के साथ-साथ बच्चों के अलग से 12 आईसीयू बेड्स होंगे।”

न्यूज़क्लिक ने निर्माणाधीन सिविल अस्पताल ‘बनने जा रहे’ भवन का भी दौरा किया। इसके परियोजना प्रबंधक सरीफुल इस्लाम ने बताया कि उनका लक्ष्य इस साल तक निर्माण कार्य को पूरा करने का है।

हत्सिंगिमारी में मौजूदा एसडीसीएच के अलावा ‘होने जा रहे’ सिविल अस्पताल की तस्वीर। 

जिले के नागरिकों की दृष्टि में, उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा और सेवाएं स्तरीय नहीं हैं।

हत्सिंगिमारी के चरकाचारीपारा गाँव के निवासी, सोइफुल इस्लाम ने न्यूज़क्लिक को बताया: “वैसे तो यहाँ पर कई उप-केंद्र मौजूद हैं, लेकिन न तो वे हमें उपचार प्रदान करने की स्थिति में हैं और न ही नुस्खा ही दे पाते हैं। ज्यादा से ज्यादा उनकी ओर से प्राथमिक मरहमपट्टी और प्राथमिक स्तर की दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, और वे हमें झट से सिविल अस्पताल के लिए रेफर कर देते हैं। सिविल अस्पताल में भी हमारे पास ऐसे विशेषज्ञ मौजूद नहीं हैं जो हमें असाध्य एवं गंभीर बीमारियों में इलाज दे सकें। हमारे यहाँ नेत्र विशेषज्ञ, हृदयरोग विशेषज्ञ आदि नहीं हैं। 

जो इस्लाम ने बताया था उसकी तस्दीक अन्य ग्रामीणों द्वारा भी की गई थी। हत्सिंगिमारी से कुछ दूरी पर स्थित फुलबारी के पास एक अन्य गाँव के सालेह अशाउद ने अपनी पीड़ा और गुस्से का इजहार किया। 

अशाउद ने बताया “हमारा गाँव नदी के तट पर बसा एक दूरस्थ स्थान है। अस्पताल की सुविधाओं की तरह ही सडकों की हालत भी काफी खस्ताहाल है। यदि किसी रोगी आपातकालीन सेवा की जरूरत पड़ती है तो यह हमारे लिए एक बड़ी समस्या बन जाती है, क्योंकि हमारे पास एम्बुलेंस सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। सिर्फ ग्रामीणों के आपसी सहयोग की वजह से ही अतीत में कुछ लोगों की जान को बचा पाना संभव हो सका है। 

गजरीकंडी के एक युवा लड़के रिंकू ने याद करते हुए बताया कि बेहतर इलाज के लिए उन्हें कितनी दूर तक का सफर करना पड़ता है और यह सब कितना कष्टदायक है।

उसने बताया “यहाँ पर हममें से कई लोग गोआलपाड़ा जिले के अस्पतालों पर निर्भर हैं, वो भी निजी क्षेत्र के अस्पतालों पर जो कभी-कभी काफी खर्चीला साबित होता है। इसकी वजह से स्वास्थ्य सुविधायें सिर्फ संपन्न लोगों तक ही सीमित होकर रह गई हैं। अन्यथा हमें गुवाहाटी तक की यात्रा करनी पड़ती है, जो यहाँ से करीब 250 किलोमीटर दूर है।”

गाँव के घर, जहाँ घरों को ईंट-गारों के बजाय टिन से बनाया जाता है। जब बाढ़ का प्रकोप आता है तो इन टिन के बने घरों को आसानी से तोड़ दिया जाता है।

मनकछार या हत्सिंग्मारी से गुवाहाटी की यात्रा करना कोई आसान काम नहीं है। हत्सिंगिमारी से गुवाहाटी के लिए वाया गोआलपाड़ा जाने वाली सीधी सीधा सड़क मार्ग की स्थिति बेहद दयनीय है, जिसका अनुभव हमने भी किया। हत्सिंगिमारी से गोआलपाड़ा जाने के लिए असम-मेघालय सीमा में वाया चिबिनांग,टिक्रिकिला से होकर गुजरने करने की जरूरत पड़ती है। यह पूरा रास्ता ही बेहद उबड़-खाबड़ है। 

कुछ जगहों पर तो वस्तुतः पक्की सड़क तक नहीं है। रिंकू ने बताया “असम-मेघालय की सीमा पर स्थित होने के कारण, असम और मेघालय की दोनों ही सरकारों में से किसी को भी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस सबका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है। एनईसी (नार्थ ईस्ट काउंसिल) ने कुछ साल पहले पक्की सड़क का निर्माण कराया था।

दूसरी सड़क जो मनकछार से तुरा (मेघालय) की पहाड़ियों पर जाती है और गोआलपाड़ा के लिए ढलान पर उतरती है, की स्थिति अच्छी है।

दिलचस्प बात यह है कि सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र अपने वजूद और क्षमता में सीमित स्तर पर बना हुआ है और जहाँ तक निजी अस्पतालों का प्रश्न है तो पूरे जिले में इनका संख्या भी न के बराबर है। यहाँ तक कि हत्सिंगिमारी में मुख्य केंद्र में भी निजी अस्पताल या बड़ा क्लिनिक देखने में नहीं आया। दवा की दुकानों की संख्या भी बेहद निराशाजनक थीं। 

बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे की इस यथास्थिति को देखते हुए किसी को भी इस बात पर आश्चर्य हो सकता है कि यहाँ पर महामारी से कैसे लड़ा गया होगा?

हक़ ने कोविड-19 को काबू में रखने के लिए किये गए कुछ उपायों के बारे में जानकारी दी, जिसमें दवाओं, बिस्तरों, ऑक्सीजन और खाद्य आपूर्ति की उपलब्धता का विवरण शामिल था।

उन्होंने बताया “हमें कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ा था। हमारे ऑक्सीजन सिलिंडर खत्म होने से पहले ही हम इसे बोंगाईगाँव से खरीद लिया करते थे। कुछ खर्चों का बोझ जिला प्रशासन द्वारा वहन किया जाता था, जो इस समूचे दौर में बेहद मददगार साबित हुआ।” 

हक़ के अनुसार: “रेमडिसविर, इमेग्लिबिन, पिपेरसिलिन जैसी दवाएं हमारे पास उपलब्ध थीं। लेकिन चूँकि अस्पताल में आईसीयू की सुविधा उपलब्ध नहीं थीं, ऐसे में हमें गंभीर मरीजों को गुवाहाटी, बारपेटा या गोआलपाड़ा के लिए रेफर करना पड़ा। हालाँकि हमारे लिए गुवाहाटी सबसे अच्छा विकल्प था। जब कभी हमें अतिरिक्त एम्बुलेंस की जरूरत पड़ती थी तो जिला प्रशासन ने इस संबंध में हमारी मदद की।”

यह पूछे जाने पर कि क्या उस दौरान बेड्स की संख्या और अन्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की गई थी, पर उनका कहना था: “हमारे पास कोविड-19 मरीजों के लिए 34-35 बेड्स उपलब्ध थे। अस्पताल में एक ऑक्सीजन संयंत्र भी स्थापित किया गया था, लेकिन यह अभी तक पूरी तरह से चालू हालत में नहीं पहुँच पाया है। हमने कनेमारी पीएचसी में भी कोविड-19 मरीजों के लिए एक आइसोलेशन सेंटर बना रखा था।” 

असम सरकार ने गुवाहाटी में कोविड-19 मरीजों के लिए एक डेडिकेटेड अस्थाई अस्पताल बनाया था। वे विज्ञापन हेतु सरकार के फोकस बिंदुओं में से एक थे। हालाँकि, इस प्रकार की पहल दक्षिण सल्मारा-मनकछार के सुदूर जिले के लिए देखने को नहीं मिली।

जिले के एडीसी (अतिरिक्त उपायुक्त) ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए इस बात पर भी सहमति जताई कि जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढाँचे में सुधार की जरूरत बनी हुई है।

उन्होंने कहा “जिले में ऐसे कई दूरस्थ तटीय क्षेत्र हैं जहाँ तक स्वास्थ्य सेवाओं का पहुँच पाना बेहद दुष्कर कार्य है। हमें और अधिक बुनियादी ढाँचे की जरूरत है।”

धीमा टीकाकरण अभियान और इस पर कैसे काबू पाया गया 

दक्षिण सल्मारा-मनकछार जिला भारत में सबसे कम टीकाकरण करने वाला जिला बना हुआ था। जून तक, जिले में टीकाकरण की दर प्रति 100 लोगों पर 3.2 खुराक थी। हालाँकि, अब जिले में कुछ सुधार देखने को मिल रहा है।

जिला प्रशासन, स्वास्थ्य कर्मियों, स्थानीय नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तित्वों और बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार के जरिये टीकाकरण की दर को गति प्रदान करने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई है।

डीआईओ (जिला प्रतिरक्षण अधिकारी) डॉ. मो. सिराजुल इस्लाम ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए लिए गए उपायों के बारे में विस्तार से बताया, “शुरु-शुरू में टीके को लेकर सोशल मीडिया, खासतौर पर व्हाट्सएप्प के जरिये व्यापक स्तर पर फैले अफवाहों और अंधविश्वासी धार्मिक संदेशों के चलते हर तरफ हिचकिचाहट का वातावरण बना हुआ था। लोग नाहक डरे हुए थे, और कोई भी टीका लगाने के लिए उत्सुक नहीं था। हमें इस दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।” 

सैंडबार्स में टीकाकरण अभियान। फोटो साभार: सिराजुल इस्लाम। 

“इसके बाद जिला प्रशासन और स्वास्थ्य कर्मियों ने एकजुट होकर इस चुनौती को स्वीकार किया। इसके लिए हमने क्षेत्र के प्रभावशाली हस्तियों, शिक्षकों, एनजीओ को इस प्रकिया में शामिल किया। हम सभी ने लोगों तक पहुंचना शुरू किया और उन्हें समझाने का प्रयास किया कि टीके से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। कुछ जगहों पर बुजुर्गों एवं प्रभावशाली लोगों ने ग्रामीणों के सामने बैठकर टीके की खुराक ली। इन अवसरों के लिए हमें बैठकें आयोजित करनी पड़ीं। धीरे-धीरे श्रमसाध्य तरीकों को अपनाकर हम टीकाकरण अभियान को बढ़ा पाने में सफल रहे, जो अब सामान्य गति से चल रहा है।”

एडीसी ने भी कुछ इसी प्रकार की भावनाओं को प्रतिध्वनित किया है। उन्होंने कहा “हमें टीकाकरण की कुछ उचित दर तक पहुँच बनाने के लीये बड़े पैमाने पर अभियान के साथ समाज के सभी हितधारकों को इस मुहिम में शामिल करने की आवश्यकता पड़ी। दूर-दराज के नदी क्षेत्रों और रेत के टीलों में नावों के जरिये स्वास्थ्य कर्मियों को भेजा गया और टीकाकरण किया गया। सभी प्रकार के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं - आशा कार्यकर्ताओं, एएनएम नर्सों, जीएनएम कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं और लोगों के भारी समर्थन के बिना ऐसा कर पाना संभव नहीं होता।”

दक्षिण सल्मारा-मनकछार में एक टीकाकरण केंद्र। चित्र साभार: सिराजुल इस्लाम। 

हाँ, बांग्लादेश की सीमा से लगे सुदूर और दुर्गम जिले में बेहतर स्वास्थ्य ढाँचे की जरूरत है, लेकिन केवल इतना भर ही पर्याप्त नहीं है। वहां के लोग, मुख्यता प्रवासी श्रमिक हैं जो बाढ़ और कटाव में अपनी जमीनों को खो देने की चिंता में लगातार डूबे रहते हैं। उनके लिए हर प्रकार की विकास की नीतियों, वो चाहे शिक्षा, बेहतर आजीविका, सामाजिक स्थिति में सुधार या बिजली हो, की जरूरत बनी हुई है।

(लेख अगले अंक में जारी रहेगा) 

(यह शोध/रिपोर्टिंग ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के द्वारा समर्थित थी। ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के द्वारा इस शोध की विषयवस्तु पर किसी प्रकार के संपादकीय नियंत्रण का इस्तेमाल नहीं किया गया है।)

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Assam’s South-Western Districts have Abysmal Healthcare Services – I

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