Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

विधानसभा चुनाव: लोग गुस्से में हैं, लेकिन क्या बीजेपी सुन पा रही है?

बढ़ती बेरोजगारी, किसानों की बदहाली और रोज़गार के सवाल पर मज़दूरों के बीच बढती असुरक्षा की भावना ने बीजेपी के ख़राब शासन के रिकार्ड को उजागर कर दिया है, नतीजतन इन चुनावों में पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा है।
Assembly Elections
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार: flicker

हालाँकि भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना गठबंधन को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल हो चुका है, और हरियाणा के अंदर बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई है, लेकिन संख्या- खासकर कुल वोटों में हिस्सेदारी- जनता के बीच पार्टी के लिए तेजी से बढ़ते संकुचन को प्रदर्शित करती है। सत्ता पाने के लिए सीटों की संख्या की गणना होती है, लेकिन चुनावों में किसके हिस्से में कितने वोट आये, उससे असली मायने में पता चलता है कि किस हद तक जनसमर्थन प्राप्त है।

चूँकि ये चुनाव विधान सभाओं के लिए हुए थे, इसलिये यह स्वाभाविक है कि इसकी तुलना 2014 के पिछले विधानसभा चुनावों के साथ की जायेगी। लेकिन यह इस बात को समझने के लिए सामयिक है कि वही लोग आज क्या सोच रहे हैं, जिन्होंने हाल ही में कुछ माह पूर्व हुए लोकसभा चुनावों में अपना मत दिया था।

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में दोनों ही गठबंधन (बीजेपी+सेना और कांग्रेस+राष्ट्रवादी कांग्रेस दल) को 2014 में हुए विधानसभा में प्राप्त मतों की तुलना में इस चुनाव में अपने अपने हिस्से में प्राप्त वोटों में आई गिरावट देखने को मिली है। जहाँ एक ओर बीजेपी-सेना को 2014 के 47% की तुलना में 42% ही वोट प्राप्त हुए, वहीं कांग्रेस+एनसीपी की हिस्सेदारी 35% से गिरकर 33% पहुँच गई। अन्य पार्टियों और स्वतंत्र उम्मीदवारों के हिस्से में 2014 के 18% की तुलना में इस बार 25% तक का उछाल देखने को मिला है। (नीचे तालिका में देखें)

table 1_3.PNGइसकी एक वजह यह भी है कि 2014 में बीजेपी और शिव सेना ने वह चुनाव कांग्रेस और एनसीपी की तरह अकेले ही लड़ा था। इसलिए उन्हें उन स्थानों से भी वोट मिले, जहाँ से उन्होंने इस बार गठबंधन के तहत चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन इसके बावजूद बीजेपी-सेना के वोटों में 5 प्रतिशत की गिरावट उल्लेखनीय है। साफ तौर पर यह उनके समर्थक आधार में आई गिरावट का प्रतीक है।

आइये अब इन गठबन्धनों की वर्तमान विधानसभा चुनाव परिणामों की तुलना लोकसभा चुनावों से करते हैं। बीजेपी-सेना के वोट शेयर में 51% से 42% तक भारी गिरावट देखने में को मिली है। यह बहुत बड़ी गिरावट है।

क्या लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तुलना आपस में की जानी चाहिए? आमतौर पर ऐसा करना कुछ ख़ास काम का नहीं होता, लेकिन इस चुनाव अभियान की एक प्रमुख विशेषता यह रही कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राष्ट्रीय मुद्दों-अनुच्छेद 370, ‘विदेशियों’ का सवाल, राष्ट्रीय गौरव और तथाकथित राष्ट्रवाद जैसे ढेर सारे मुद्दों पर जबर्दस्त बयानबाजी की।

जिस चीज को बीजेपी ने लगातार नजरअंदाज किया वह है, महाराष्ट्र में जनता का भीषण आर्थिक संकट का सामना करना, जहाँ कर्ज-माफ़ी के बावजूद किसानों की आत्महत्या जारी हैं, लाखों औद्योगिक मजदूरों को छंटनी और नौकरी से बर्खास्तगी का सामना करना पड़ रहा है, आर्थिक मंदी के कारण वेतन और मजदूरी में कटौती हुई है, बेरोजगारी में निरंतर इजाफे और बीजेपी शासित राज्य राज्य सरकार को इन मामलों में अँधेरे में टटोलते हुए देखा जा सकता है कि किन मुद्दों पर संघर्ष किया जाए।

ये कड़वी सच्चाई सभी बयानबाजियों भारी पड़ीं। मजेदार तथ्य यह है कि (शासन में भागीदारी के बावजूद) शिव सेना ने खुले तौर पर मोदी सरकार की विनाशकारी निर्णयों पर उसकी जमकर आलोचना की, जैसे नोटबंदी और बेरोजगारी को न रोक पाने में  उसकी विफलता। अगर सीटों के रूप में देखें तो उसे उतना नुकसान नहीं झेलना पड़ा जितना बीजेपी को।

हरियाणा

इस राज्य में, बीजेपी का पतन कहीं अधिक नाटकीय रहा है। 2014 के विधानसभा चुनावों की तुलना में इसके कुल मतों की संख्या में 33% की तुलना में 36% के रूप में बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिन अगर लोकसभा चुनावों से इसकी तुलना की जाए, तो इसके मतों में 22 प्रतिशत अंकों की चौंका देने वाली गिरावट दर्ज हुई है। (नीचे तालिका में देखें)

table 2_2.PNGसीएमआईई के अनुमानों के अनुसार देश के प्रमुख राज्यों में से एक हरियाणा में बेरोजगारी की दर लगभग 20% होने के साथ सबसे ऊँची थी। यह राष्ट्रीय औसत से दोगुने से भी अधिक है। यह देश के अन्न का कटोरा कहे जाने वाले हिस्से के रूप में जाना जाता है, लेकिन फसल का उचित दाम न मिलने की कारण यहाँ किसान नाखुश है।

इन गंभीर आर्थिक चिंताओं ने उस जाट किसान समुदय के अंदर भी अपने लिए आरक्षण की मांग के लिए आन्दोलन छेड़ने के लिए उकसा दिया जो आमतौर पर संपन्न हैं, और बीजेपी शासन में एक हिंसक आन्दोलन फूट पड़ा, जिसने इस समुदाय पर घाव के निशान छोड़ दिए, जिसने इस दल को अपना समर्थन दिया था।

लेकिन जैसा कि चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि केवल जाट समुदाय के ही बीच पार्टी का आधार नहीं खिसका बल्कि पंजाबी और अन्य समुदायों के बीच भी यह गिरावट दर्ज हुई है। मनोहर लाल खट्टर द्वारा संचालित राज्य सरकार के खराब शासन के साथ केंद्र में मोदी सरकार की विनाशकारी नीतियां भी बीजेपी से इस तेज खिसकाव के लिए जिम्मेदार हैं।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि हरियाणा में, ओ पी चौटाला के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (INLD), जिसमें परिवार के दिग्गज भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सींखचों के भीतर और पारिवारिक बिखराव के कारण पूरी तरह से धराशायी हो चुका है, इस बीच उनके पोते की अगुआई में परिवार के एक धड़े ने नए संगठन जननायक जनता पार्टी (JJP) का निर्माण किया है, जिसने 15% वोट हासिल कर कुछ हद तक इनेलो के आधार को अपने पक्ष में संगठित करने में सफलता पाई है। यह भी बीजेपी विरोधी वोट है क्योंकि जजपा और इसके नेता दुष्यंत चौटाला ने अपने चुनाव अभियान में बीजेपी की आलोचना की थी।

राष्ट्रीय बनाम राज्य चुनाव

जहाँ आमतौर पर यह रुझान देखने को मिलते थे कि जिस दल को लोकसभा चुनावों में बहुमत मिला हो, यदि कुछ समय बाद राज्यों में चुनाव हों, तो उसी दल को सफलता हासिल होती थी जिसने राष्ट्रीय चुनावों में जीत हासिल की थी, उस रुख में अब बदलाव देखे जा रहे हैं। जनता अब अधिक परिपक्व हो चुकी है और राष्ट्रीय और राज्य के चुनावों में फर्क करने लगी है।

यह हमें (उलटकर) मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के 2018 के विधान सभा चुनावों में देखने को मिला, जिसमें बीजेपी शासित तीनों राज्यों में उसे कांग्रेस ने अपदस्थ किया, लेकिन लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस को धूल चटा दी। वर्तमान चुनाव में, जहाँ बीजेपी+ को लोकसभा में थोक के भाव में वोट पड़े, लेकिन विधानसभा चुनावों में अपने हाथ खींच लिए। बीजेपी और संघ के दिग्गज अब अपने ख़राब प्रदर्शन के लिए इसे एक बहाने के तौर पर जिम्मेदार ठहराकर प्रचारित करने में जुटे हैं।

लेकिन ये भ्रमपूर्ण सोच के लक्षण हैं। जैसा कि पहले जिक्र किया गया है, बीजेपी ने अपना पूरा जोर राष्ट्रीय मुद्दों पर लगाया था और स्थानीय मुद्दों को दरकिनार कर दिया। लोगों ने उनकी इस ठग विद्या को नकार दिया है और उन्हें बेहतर गवर्नेंस प्रदान करने और नीतियों पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत पर ध्यान दिलाया है। आज, यह संदेश कुछ राज्यों से आ रहा है। कल, यह पूरे देश से आयेगा।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Assembly Elections: People Are Angry, But Is BJP Listening?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest