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विधानसभा चुनाव 2022: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता के अहम मुद्दे

7 करोड़ की आबादी के आंकड़े को पार कर चुका उत्तर प्रदेश का ये पश्चिमी क्षेत्र देश, राज्य की राजनीति से हट कर अपने अलग मुद्दों और समस्याओं को समझता और जानता है जिसमें महंगाई, बेरोजगारी और सरकारी नौकरियों में भर्तियां न निकलने जैसे मुद्दों समेत अन्य मुद्दों भी शामिल हैं।
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लोकतंत्र का त्योहार कहा जाने वाला चुनाव जब भी किसी भी राज्य में होता तो राज्य के लोग मोटे तौर पर एक ऐसे मुद्दे पर वोट करते हैं जो उनके लिए महत्वपूर्ण होता है या उन्हें महत्वपूर्ण लगता है। जैसे दिल्ली की जनता ने 2020 में मुफ्त बिजली और पानी के मुद्दे पर वोट दिया था। अब यही समय उत्तर प्रदेश की जनता के लिए आ गया है जहां चुनावों होने वाले हैं। अब इसे थोड़ा सा क्षेत्रीय आधार देते हुए देखें तो देश की राजधानी से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका है।

पश्चिम उत्तर प्रदेश 22 ज़िलों में फैला गंगा और यमुना जैसी महान नदियों के दोनों और बसा हुआ विशाल क्षेत्र है। जहां ऐतिहासिक दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण स्थान हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर से ही पवित्र नदी गंगा उत्तर प्रदेश की सीमा में बहना शुरू होती है। महाभारत काल से जुड़ा हुआ प्राचीन हस्तिनापुर और 1857 की क्रांति की धरती रही मेरठ भी इसी क्षेत्र में स्थित हैं। गन्ने की खेती के लिए प्रसिद्ध वेस्ट यूपी का ये क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर तो महत्वपूर्ण है ही इसके अलावा राजनीतिक तौर पर भी इसका अपना दबदबा हमेशा से रहा है।

"जाट" लैंड कहे जाने वाला ये क्षेत्र पिछले एक साल से सबसे ज़्यादा चर्चाओं में रहा है क्योंकि मुख्य तौर पर इसी क्षेत्र में रहने वाले किसानों ने एक बड़ा आंदोलन दिल्ली के बॉर्डर पर अन्य किसानों के साथ मिलकर शुरू किया था। जिसका अंत एक साल बाद गुरु नानक जयंती पर तब हुआ जब पीएम मोदी ने कृषि बिल वापस लेने की घोषणा की। लेकिन आज जिन मुद्दों पर हम बात कर रहे हैं वो यहां की उन समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश है जिन पर चर्चा नहीं हो पाती है या फिर ये मुद्दे मुख्य मुद्दे ही कभी बन नहीं पाते हैं।

7 करोड़ की आबादी के आंकड़े को पार कर चुका उत्तर प्रदेश का ये पश्चिमी क्षेत्र देश, राज्य की राजनीति से हट कर अपने अलग मुद्दों और समस्याओं को समझता और जानता है जिसमें महंगाई, बेरोजगारी और सरकारी नौकरियों में भर्तियां न निकलने जैसे मुद्दों समेत अन्य मुद्दों से जुड़ा है। जिन्हें ध्यान में रखते हुए ही हमने विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले क्षेत्रीय लोगों से अलग अलग मुद्दों को जानने की कोशिश की है।

व्यापारी वर्ग राज्य सरकार से संतुष्ट नहीं

ब्राह्मण महासभा के पश्चिमी यूपी के उपाध्यक्ष और व्यापारी कुलवंत शर्मा का कहना है कि "व्यापारी वर्ग इस सरकार में परेशान रहा है। फ्लाईओवर बने हैं, सड़कें बनी है लेकिन गरीब, मज़दूर, छोटे-छोटे काम वाले व्यापारियों की समस्याएं बरकरार हैं। फ्लिपकार्ट और अमेज़ॉन जैसी ऑनलाइन सुविधाओं ने रोजगार का भारी नुकसान किया है सरकार ने 'डिजिटल' करने के नाम पर उन्हें छूट दे रखी है और व्यापार करने वालों को भारी नुकसान हो रहा है।'

महंगाई और रोजगार जैसे मुद्दों को देखें तो ये समझ आता है कि लोगों में नाराज़गी बहुत है, दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में से एक होते हुए भी हालात संभल नहीं पा रहे हैं। सिर्फ किसान ही नहीं, आम लोग भी महंगाई को लेकर परेशान हैं।

उन्होंने कहा कि "मैंने 2017और 2019 में भाजपा को वोट दिया,भाजपा ने 370 हटाया बहुत अच्छा काम किया, लेकिन गरीब आदमी को तो रोटी चाहिए और व्यापारी को व्यापार चाहिए। अब ऐसा नज़र आ रहा है कि वोट किसे देना है इस पर विचार करना आवश्यक है। क्योंकि अभी जो हालात हो गए हैं उन्हें देख कर ऐसा लगता है कि कहीं व्यापार खत्म ही तो नहीं हो जाएंगे"।

हाईकोर्ट बेंच की आवश्यकता

मेरठ के खरखौदा क्षेत्र के रहने वाले अधिवक्ता चौधरी अनस बताते हैं कि "पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट की बेंच नहीं है जिसका बहुत बड़ा नुक़सान इस इलाके के लोगों को होता आया है। सालों से चली आ रही इस समस्या पर फिलहाल राजनीतिक दल सिर्फ अपने नंबर बढ़ाने के लिए राजनीति कर रहे हैं। लेकिन कोई भी इस पर ठोस कार्य नहीं कर पाया है। भविष्य में भी इसकी संभावना कम ही नज़र आती है क्योंकि पूर्वी (यूपी) के वकील खुद भी ऐसा नहीं चाहते हैं इसलिए इस मांग पर वो कुछ ठोस कार्य करना नहीं चाहते हैं।

वहीं एक और बहुत बड़ा मुद्दा है जिस पर राज्य सरकार को कार्य करना चाहिए,वो है "एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट" क्योंकि एक वकील के लिए खुद की और खुद के परिवार की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता बना रहना स्वभाविक है। ये एक ऐसा कार्य है जिस पर राज्य सरकार आसानी से काम कर सकती है और अगर राज्य की मौजूदा सरकार या आने वाली सरकार इस पर कार्य करे तो ये कम से कम वकील बिरादरी और उनके लाखों की तादाद में निवासी परिवारों के लिए ये महत्वपूर्ण होगा।

आज भी ज़रा सी बारिश में शहरों में भर जाता है पानी

"हम 2021 में डिजिटल इंडिया पर कार्य कर रहे हैं और आज भी ज़रा सी बारिश होने से हमारे बड़े-बड़े और आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण शहरों में पानी भर जाता है,जिसमें अमरोहा,मुरादाबाद जैसे कई बड़े शहर शामिल हैं। ये बड़ी समस्या है जिस पर कोई भी सरकार गंभीरता से कार्य नहीं करती है। इस पर ज़रूर चर्चा होनी चाहिए।"

ये कहना है "वेक अप यंगस्टर्स" एनजीओ के संस्थापक वसीम शानू का जो अमरोहा से संबंध रखते हैं और एक्टिविस्ट के तौर पर युवाओं की शिक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं।

वे आगे कहते हैं, "इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य का मुद्दा है, जिन मुद्दों पर ईमानदारी से कार्य होना चाहिए। सरकारी स्कूलों का पश्चिमी यूपी में ये हाल है कि वहां गरीब बच्चे सिर्फ इसलिए जाते हैं ताकि उन्हें मिड डे मील का लाभ हासिल हो सकें।

वहीं स्वास्थ्य क्षेत्र की सच्चाई कोरोना ने सामने ला ही दी थी। लेकिन हमारा प्रशासन सबक नहीं ले पाया है। सरकारी अस्पतालों की स्थिति बदतर है और प्राइवेट में गरीब आदमी जा नहीं सकता है। इसलिए मेरा ये मानना है कि इन क्षेत्रों में कार्य होना चाहिए और ये मुद्दे चुनावी मुद्दे बनने चाहिए।"

जवान और किसान दोनों ही पश्चिमी यूपी के अहम मुद्दे

पत्रकार पंकज शर्मा कहते है कि "जवान और किसान पश्चिमी यूपी के सबसे बड़े मुद्दे हैं, किसान खेती कर रहा है और युवा पुलिस, बीएसएफ और आर्मी में जाने के लिए लगातार तैयारियां कर रहा है सरकारों को इन दो वर्गों पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए।

पिछले एक साल से सड़कों पर बैठें किसानों ने इस तीनों कृषि कानूनों की वापसी के साथ साथ 2013 (मुजफ्फरनगर दंगे) के ज़हर को भी कम किया है जिसका असर भी देखने को मिला है और मिलेगा भी। इसलिए आने वाले चुनावों में ये मुद्दे फर्क डालेंगें क्योंकि कहीं न कहीं सिर्फ कृषि कानूनों से ही नहीं, बल्कि पश्चिमी यूपी का युवा वर्ग भर्तियां न निकलने की वजह से या भर्तियों के बाद नौकरी नहीं मिलने की वजह से खासा परेशान रहा है।"

महंगाई और बेरोजगारी ने प्रदेश के युवाओं को बर्बाद कर दिया

इटावा के रहने वाले मशहूर शायर "रौनक़ इटावी" प्रदेश में फैली हुई बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा बताते हैं। उनका मानना है कि "प्रदेश में बड़ी संख्या में पढ़े लिखे युवा हैं जिन्हें नौकरियां नहीं मिल पार रही है। आखिर इसकी क्या वजह है? आखिर क्यों ये सबसे बड़ा मुद्दा नहीं है। कई वर्षों बाद बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विवाद समाप्त हुआ है और अब मथुरा को लेकर आवाज़ उठ रही है। देश मे हिंदू-मुसलमान का सवाल कब तक बना रहेगा? युवाओं को सरकार रोज़गार क्यों नहीं दे पा रही है। मैं ख़ुद ऐसे युवाओं को जानता हूं जो पढ़े लिखे हैं लेकिन मजबूरी में ऑटो चला रहे हैं।क्योंकि पेट तो भरना ही है, क्या ये सबसे बड़ा मुद्दा नही है जिस पर बोलना बहुत ज़रूरी है जिस पर काम होना चाहिए लेकिन सरकार और विपक्ष दोनों ही इन मुद्दों से दूर कहीं और ही राजनीति कर रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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