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आकलन: इस विशेष सत्र में बदला जा सकता है देश का नाम-क्रम!

इस mystery session का एक एजेंडा तो मेरी नज़र में लगभग साफ़ है- वो है India, that is Bharat को बदलकर Bharat, that is India करना।
INDIA
प्रतीकात्मक तस्वीर: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार

18 से 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र का एजेंडा अभी तक गोपनीय है। लेकिन मेरी नज़र में इसका एक अहम एजेंडा संविधान के आर्टिकल 1 (1) में संशोधन करना हो सकता है यानी India, that is Bharat की जगह Bharat, that is India करना।

और मेरे आकलन के अनुसार इस संशोधन प्रस्ताव को पहले ही दिन 18 सितंबर को पेश किया जाएगा, क्योंकि इसी दिन सन् 1949 में डॉ. भीमराव अंबेडकर की ओर से पेश आर्टिकल-1 के ड्राफ्ट को अपनाया गया था।

उस समय भी इंडिया बनाम भारत की बहस थी। हालांकि संविधान में इंडिया और भारत में कोई भेद नहीं किया गया है।

संविधान का आर्टिकल-1(1) कहता है- India, that is Bharat, shall be a Union of States… इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा। इसे हिंदी एडिशन में यूं भी पढ़ा और लिखा गया है भारत, अर्थात्‌ इंडिया, राज्यों का संघ होगा।

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मतलब संविधान निर्माताओं की नज़र में भारत और इंडिया एक हैं। दो नाम नहीं हैं। इसे किसी भी तरह पढ़ा जा सकता है- इंडिया जो कि भारत है या भारत जो कि इंडिया है।

इसमें न और (and) है, न या (or) का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन विवाद करने वालों को करना है। इसके अलावा यह आरएसएस-बीजेपी के हिंदूराष्ट्र परियोजना का भी हिस्सा है।

और अब तो इंडिया (I.N.D.I.A) नाम का विपक्षी गठबंधन भी हो गया, जिससे इन चुनावों में सीधे टकराना है। तो उसका डर तो है ही... तभी मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, खेलो इंडिया, जीतो इंडिया और इंडिया-फर्स्ट (India-First) जैसे नारे देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडिया का गठन होते ही अचानक India-Iको India-II करने पर आमादा हो गए हैं। और न केवल इंडिया-सेकेंड बल्कि उसे बदनाम करने पर भी उतर आए और गठबंधन ‘इंडिया’ की तुलना- भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी और आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन तक से करने लगे हैं।
इंडिया यानी विपक्षी दलों का गठबंधन होते ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सलाह दी कि हमें इंडिया की बजाय भारत नाम इस्तेमाल करना चाहिए। इधर उन्होंने 2 सितंबर को असम के गुवाहाटी में यह सलाह या निर्देश जारी किया और उधर मोदी सरकार ने इसे लागू भी कर दिया।

राष्ट्रपति भवन ने जी-20 शिखर सम्मेलन के मेहमानों के लिए 9 सितंबर को आयोजित रात्रि भोज लिए ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के बजाय ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ के नाम पर निमंत्रण भेजा। और इसी के साथ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री के नाम के आगे की पट्टी भी बदल गई।

इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 सम्मेलन में जहां हमारे प्रधानमंत्री के आगे इंडिया की पट्टी थी, वहीं इस बार भारत की पट्टी लगाई गई। यानी तैयारी पूरी कर ली गई है।

Bali 

पुरानी बहस

संविधान के ड्राफ्ट आर्टिकल 1 यानी मसौदा अनुच्छेद 1 (भारत के संविधान 1950 का अनुच्छेद 1) पर 15 और 17 नवंबर 1948और 17 और 18 सितंबर 1949 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा की बैठक में बहस हुई। मसौदा अनुच्छेद 1 (1) में India, that is Bharat, shall be a Union of States का प्रस्ताव पेश किया गया।

जब इस प्रस्ताव पर बहस हुई तो कई सदस्य Federation और Union शब्द को लेकर उलझे। इसी तरह कुछ सदस्य देश के नामकरण या इस नाम-क्रम से सहमत नहीं थे। संविधान सभा के सदस्य एचवी कामत ने बहस का प्रस्ताव करते हुए भारत शब्द को पहले रखने की बात कही।

सेठ गोविंद दास ने विष्णु और ब्रह्म पुराण का उदाहरण देते हुए इंडिया नाम का विरोध किया।

कमलापति त्रिपाठी ने भी कहा कि संविधान में भारत दैट इज इंडिया... लिखा जाना चाहिए।

हरगोविंद पंत ने भारतवर्ष नाम पर जोर देते हुए जंबूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त का उल्लेख किया।

संविधान सभा ने ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा पेश किए गए संशोधनों को छोड़कर ड्राफ्ट आर्टिकल में सभी संशोधनों को खारिज कर दिया। इसे 18 सितंबर 1949 को अपनाया गया।

बाद में भी उठता रहा विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने इंडिया बनाम भारत के मुद्दे को लेकर 2016 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया था और कहा था कि नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार देश को इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं।

पीआईएल में कोर्ट से यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि भारत को सभी उद्देश्यों के लिए ‘भारत’ कहा जाए। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल द्वारा दायर इस याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था— “भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, आगे बढ़ें। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उसे इंडिया कहने दें।”

विशेष सत्र की ज़रूरत

मेरा आकलन तो यही कहता है कि यह विशेष सत्र बुलाया ही भारत बनाम इंडिया की बहस के लिए है। और दिन भी इसीलिए वही चुना गया है, 18 सितंबर। वरना क्या वजह है कि जब अभी 20 जुलाई से शुरू होकर 11 अगस्त तक मानसून सत्र बीता है और शीतकालीन सत्र आने वाला है तो उसके बीच में यह विशेष सत्र क्यों बुलाया गया है।

लेकिन यह भी सोचा जा सकता है कि इसके लिए पांच दिन के सत्र की भी क्या ज़रूरत है। हो सकता है कि इस बहस को खींचा जाए, क्योंकि जितनी इसकी बहस होगी बीजेपी का हिंदुत्व का मुद्दा मज़बूत होगा। वे शुरू से ही इंडिया को अंग्रेजों की ग़ुलामी का प्रतीक बता रहे हैं। आप कितना ही कहते रहें, समझाते रहें कि इंडिया नाम इंडिका से आया है, आप उसका इतिहास बताते रहें, लेकिन उनका एजेंडा सेट है। वो इसे देश (पढ़ें हिंदुओं) के गौरव की बात कहते रहेंगे, वो ये भी कहेंगे कि वे नाम नहीं बदल रहे बल्कि नामक्रम बदल रहे हैं। वे कहेंगे कि पहले भी दो नाम थे, अब भी रहेंगे बस शब्दावली बदली है... India, that is Bharat को बदलकर Bharat, that is India किया गया है।

इसके अलावा चंद्रयान-3, सूर्ययान (आदित्य एल-1) और जी-20 के गुणगान के साथ इस सबके लिए “थैंक्यू मोदी जी’ जैसा कोई अभियान शुरू कर दिया जाए, इसका भी कोई भरोसा नहीं।

वैसे इस सत्र में हिंदुत्व का तड़का भी है क्योंकि 19 सितंबर से गणेश उत्सव शुरू हो रहा है, यानी गणेश चतुर्थी है। इसी बहाने यानी इस “शुभ मुहूर्त” में नए संसद भवन का श्रीगणेश भी हो जाएगा। यानी सनातन की बहस के साथ सेंगोल युग की बाक़ायदा शुरुआत। जिसे पहले ही नई संसद में स्थापित किया जा चुका है।

इस सब शोर या “धूमधाम” के बीच जनहित के नाम पर अपने हित के एक-दो बिल और पास करा लिए जाएं तो बड़ी बात नहीं। एक बात चल रही है ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की, तो उसके लिए भी कोई संशोधन लाया जा सकता है। हालांकि अभी इस बारे में कहना जल्दीबाजी होगा। लेकिन अगर अगले चुनाव तक इसकी व्यवस्था करनी है तो मोदी सरकार को कदम तो जल्द उठाना ही होगा। हालांकि एक साथ एक चुनाव अभी संभव न होने की दशा में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव कुछ आगे टालकर और 2024 में होने वाले चुनाव कुछ पहले अनाउंस करके आम चुनाव के साथ फरवरी-मार्च में कराने की भी कोई व्यवस्था की जा सकती है। हालांकि इसके लिए विशेष सत्र की तो आवश्यकता नहीं थी। मोदी कैबिनेट और चुनाव आयोग इस बारे में कोई फ़ैसला ले सकते हैं। इसके लिए क्या कुछ संभव है, आप इस रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं—

संविधान और सियासत: क्या पांच राज्यों के चुनाव टाले भी जा सकते हैं!

ख़ैर प्रमुख मुद्दा भारत बनाम इंडिया का ही लग रहा है। आप नाम से लेकर एक चुनाव तक के मुद्दे को भले ही इसे देश के संघीय ढांचे पर हमला बताते रहें लेकिन अब मोदी सरकार कुछ सुनने के मूड में नहीं है। उसने अपनी गाड़ी पांचवें गियर में डालकर पूरा एक्सेलेरेटर दे दिया है और ब्रेक से पांव हटा लिए हैं। अब अगले चुनाव या आरएसएस के शताब्दी वर्ष 2025 तक आप और देश कितना लहूलुहान हो जाए, उन्हें इसकी फ़िक्र नहीं है, वे और उनका मीडिया इस सबको देश का गौरव और मास्टर स्ट्रोक साबित कर ही देंगे।

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