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विकास की बलि चढ़ता एकमात्र यूटोपियन और प्रायोगिक नगर- ऑरोविले

ऑरोविले एक ऐसा ही नगर है जो 1968 से धीरे-धीरे बसना शुरू हुआ। इस छोटे से नगर को पूरी दुनिया में एक प्रायोगिक शहर के तौर पर देखा जाता है। इस नगर को यूटोपियन यानी सुंदर कल्पना के तौर पर भी पूरी दुनिया देखती है। 
Auroville

गुजरात विधानसभा, 2017 के चुनाव अभियान के दौरान एक नारा बहुत लोकप्रिय हुआ था। ‘विकास गांडो थायो छे’। जिसका मतलब होता है- विकास पागल हो गया है। वाकई विकास इस कदर पागल हो गया है कि उसमें कुछ रचने की वजाय हर विरासत को, धरोहर को, परंपरा को, प्रकृति को ध्वंस करने का उन्माद पैदा हो गया है। क्योंकि यह विकास केवल सीमेंट, कंक्रीट, लोहा और ठेकेदारी की भाषा में सोचता है। यह मुनाफे का जरिया बन गया है और पीले रंग की एक विध्वंशक मशीन के रूप में पूरे देश में हर जगह दिखलाई दे रहा है। इस मशीन को आम चलन में जेसीबी कहा जाता है। 

यह जेसीबी बहुत क्षमतावान मशीन है। तमाम तरह की शक्तियों से लैस इस मशीन के सामने पहाड़, चट्टान, जंगल बहुत असहाय साबित होते हैं। एक झटके में यह पुरानी से पुरानी इमारत को मिट्टी में मिला देने की क्षमता रखती है। हरे भरे जंगलों को एक दिन में उजाड़ सकती है। बहते हुए दरिया की धारा मोड़ सकती है। इस मशीन में मानव बल की ज़रूरत कम से कम है। एक व्यक्ति इसे संचालित कर सकता है। यह भी एक वजह है कि कुछ रचने के भ्रम में एक संवेदनहीन मशीन सब कुछ तबाह कर सकती है।

हाल ही में पूरे देश ने अबाधित प्रसारण के जरिये काशी का कायाकल्प होते देखा बल्कि देश को ऐसा दिखलाया गया।  लेकिन जिस धरोहर और इतिहास को ज़मींदोज़ करके एक प्राचीनतम शहर के भूगोल को उसके इतिहास के साथ हमेशा हमेशा के लिए कंक्रीट, सीमेंट, और लोहे की खपत और उसके जरिये मुनाफे के लिए नव्या, दिव्य और भव्य के वाग्जाल में दफन कर दिया गया। उसमें भी इसी विनाशकारी मशीन की भूमिका है। गाहे बगाहे इन चार सालों में काशी से ऐसी तस्वीरें आती रहीं जो एक प्राचीन नगरी को रौंद रही हैं। 

बहरहाल, इस विकास की कुदृष्टि अब एक ऐसे शहर की तरफ गढ़ गयी है जिसे भविष्य का शहर कहा जा सकता है। जब मानवता अपने उत्कर्ष पर होगी, पूरी दुनिया तमाम क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, धार्मिक, जातीय और सांस्कृतिक पहचानों और संकीर्णताओं से मुक्त होकर वास्तविकता में विश्व मानव होने की काबिलियत अर्जित करके यहाँ अपना जीवन प्रकृति के सीधे सानिन्ध्य में रचनात्मकता को समर्पित कर सकता है।

आरुविल या ऑरोविले में अवस्थित एक ऐसा ही नगर है जो 1968 से धीरे-धीरे बसना शुरू हुआ। इस छोटे से नगर को पूरी दुनिया में एक प्रायोगिक शहर के तौर पर देखा जाता है। इस नगर को यूटोपियन यानी सुंदर कल्पना के तौर पर भी पूरी दुनिया देखती है। इस नगर को बसाने की कल्पना मीरा अल्फाजों की है जो श्री अरविंदो स्प्रिचुअल रिट्रीट में 29 मार्च 1914 को पुदुच्चेरी आई थीं और फिर यहीं बस गईं।

मीरा अल्फ़ाज़ों की जीवन यात्रा भी बहुत दिलचस्प है। वह प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वह कुछ समय के लिए जापान चली गई थी लेकिन 1920 में वापिस यहाँ लौटीं और 1924 में श्री अरविंदो स्प्रिचुअल संस्थान से जुड़ गईं जिसके बाद से वह जनसेवा के कार्य करने लगीं। भारत में मीरा अल्फाजों को लोग 'मां' कहकर पुकारने लगे थे।

1968 आते-आते उन्होंने ऑरोविले की स्थापना कर दी जिसे यूनिवर्सल सिटी का नाम दिया गया जहा कोई भी कहीं से भी आकर रह सकता है। 'ओरोविले' शब्द का मतलब एक ऐसी वैश्विक नगरी से है, जहां सभी देशों के स्त्री-पुरुष सभी जातियों, राजनीति तथा सभी राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर शांति एवं प्रगतिशील सद्भावना की छांव में रह सकें।

ऑरोविले का उद्देश्य मानवीय एकता की अनुभूति करना है। साल 2015 तक इस नगर का आकार बढ़ता चला गया और दुनिया भर का ध्यान इस वैश्विक नगर की ओर गया। आज इस शहर में करीबन 58 देशों के लोग रहते हैं। इस शहर की आबादी तकरीबन 3500 है। यहां पर एक भव्य मंदिर भी है जहां किसी भगवान की मूर्ति नहीं है बल्कि वह एक सामुदायिक प्रार्थना की जगह है। सामुदायिक निर्णय प्रक्रिया जो यहाँ के निवासियों की एक ऐसी विशेषता है जो भारत में पहली दफा एक कानून के रूप में चलन में आयी। इसे ऑरोविले फाउंडेशन एक्ट 1988 के नाम से जाना जाता है। बाद में भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बाद पंचायती राज की स्थापना के जरिये गाँव समाज में सामूहिक निर्णय प्रक्रिया को वैधानिक स्वरूप दिया गया।

इस बनते हुए नगर को भारत सरकार ने आर्थिक संरक्षण दिया है और यूनेस्को ने भी इस नगर को अपनी संरक्षण सूची में जगह दी है।

अब इस नगर पर विकास के ध्वंसक बादल मंडरा रहे हैं। 4 दिसंबर 2021 को शहर विस्तार योजना के तहत तमिलनाडु सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के यहाँ निर्मित इमारतों को जेसीबी से बुलडोज़ करना शुरू कर दिया। शहर विस्तार योजना के तहत न केवल यहाँ मौजूद इमारतों, आवासों और भवनों को ही गिराया जाने लगा बल्कि बीते 50 सालों में इस नगर में बसे 50 देशों के नागरिकों द्वारा संरक्षित और उत्पादित जंगलों को भी तहस नहस किया जाने लगा।

दिलचस्प है कि जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौती से जूझ रही है और यह पहल की जा रही है कि इंसान को अपनी जीवन शैली इस तरह विकसित करने की ज़रूरत है ताकि उसके द्वारा कम से कम कार्बन उत्सर्जन हो यानी उसकी जीवन शैली ऐसी हो जहां प्रकृति के साथ कम से कम खिलवाड़ हो और प्रकृति का संरक्षण किया जाये। ऐसे में ऑरोविले जो वनीकरण, ऊर्जा के अक्षत स्रोतों, टिकाऊ आर्किटेक्ट पर आधारित  सामुदायिक जीवन की भविष्य की प्रयोगशाला के तौर पर जाना जाता है उसे शहर विस्तार परियोजना की बलि चढ़ाया जा रहा है। 

4 दिसंबर 2021 के बाद से भविष्य के इस नगर में 1946 से चली आ रही उन स्थापनाओं को गंभीर क्षति पहुंचाई है जो पूरी दुनिया के लिए आज की चुनौतियों से निपटने में समाधान प्रस्तुत करता है। शहर विस्तार परियोजना के बहाने इस नगर की सहभागिता पर आधारित प्रक्रियाओं और मानवीय एकता को महसूस करने और जीने की तमाम प्रतिबद्धताओं पर भी गंभीर चोट की है। 

4 दिसंबर 2021 को इस नगर पर अचानक मध्य रात्रि में सोए हुए लोगों के घरों पर बुलडोजर चला दिये गए। पुलिस ने इस नगर के लोगों के साथ न केवल दुर्व्यवहार किया बल्कि इसका विरोध कर रहे नागरिकों को अस्थायी तौर पर गिरफ्तार भी किया। जो लोग इन अवैधानिक कार्रवाई का वीडियो बना रहे थे उन्हें ऐसा करने पर सजाएँ दी गईं। सबसे खौफनाक खबरें यह भी कि पुलिस के साथ ऐसे स्थानीय लोग भी इस तरह की ध्वंसात्मक कार्रवाई में शामिल थे जो इस नगर को अय्याशी का अड्डा बताते रहे हैं। लोगों की शिकायत है कि उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है। उनके बारे में वैसे भी हिंदुस्तान की मीडिया कभी कोई रुचि नहीं लेती लेकिन जब उन पर इस तरह पुलिसिया उत्पीड़न हो रहा है तब वो खुद अपनी आवाज़ विभिन्न तरीकों से बाहर पहुंचाना चाहते हैं लेकिन पुलिस और स्थानीय गुंडे हर उस माध्यम को नष्ट कर रहे हैं जिसके जरिये वो कुछ बता सकें।  

यहाँ बसा वैश्विक मानव समुदाय, स्थानीय निवासियों के रूप में अपने उस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहता है जो कानूनन उन्हें मिला हुआ है। वो अपनी गाँव सभा के सामूहिक निर्णय के अधिकार के इस्तेमाल से उस तथाकथित विकास के काम को विवेकसंगत नहीं मानते और इस मामले में वो लगातार तमिलनाडु सरकार व भारत सरकार को लिखते आ रहे हैं कि आरुविले में मौजूद जैव विविधतता से समृद्ध जंगल को तबाह नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन कोई भी सरकार उनके इस वैधानिक अधिकार को तवज्जो नहीं दे रही है।  

ऑरोविले मास्टर प्लान’ के तहत क्राउन एरिया के विकास के लिए 16.7 मीटर का रास्ता दरकार है। लेकिन यह रास्ता बनाने के लिए मौजूदा इमारतों, जैव विविधतता से समृद्ध जंगल और जल संरचनाओं को तबाह किया जाना है जिसकी खिलाफत यहाँ के निवासी कर रहे हैं। इस मास्टर प्लान में खामियां बताते हुए यहाँ के निवासी कहते हैं कि यहाँ की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे लचीला होना चाहिए ताकि यहाँ की विशिष्ट परिस्थितियों को कोई गंभीर क्षति न पहुंचे और सबसे महत्वपूर्ण बात कि इस योजना में यहाँ के निवासियों की राय को सर्वोच्च महत्व दिया जाना चाहिए। 

अगर ऑरोविले मास्टर प्लान को सरकार और अधिकारियों के नज़रिये से देखा जाये जो पूरे देश में आम चलन है तो इस प्लान में स्थानीय रहबासियों की चिंताओं को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है। उन्हें किसी भी कीमत पर इस प्लान को अमल में लाना है जबकि यहाँ के स्थानीय निवासी यह मांग कर रहे हैं कि इसी योजना को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहते हुए भी अमल में लाया जा सकता है। 

अगर यह योजना सरकार और अधिकारियों की मंशा से अमल में आती है और इसके लिए स्थानीय विशिष्टतताओं को नज़रअंदाज़ किया जाता है तो जिस अद्वितीयता के लिए यह नगर जाना जाता है वह खत्म हो जाएगी। ऑरोविले के लोग यही कहना चाहते हैं कि शहर का विस्तार, इस धरती की शर्तों पर हो न कि धरती को हर बार शहर के लिए अपनी बलि देना पड़े।

(लेखक पिछले डेढ़ दशकों से जन आंदोलनों से जुड़े हुए हैं। यहाँ व्यक्त विचार निजी हैं।)

ये भी देखें: पीएम मोदी का काशी-अभियान, क्या कहता है संविधान!

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