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बीएचयू : सेक्सुअल हैरेसमेंट की बढ़ती घटनाओं के ख़िलाफ़ स्टूडेंट्स ने निकाला चेतावनी मार्च

"महज़ 20 दिनों के अंदर बीएचयू कैंपस में छात्राओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट की चार वारदातें इस बात की तस्दीक़ करती है कि यह विश्वविद्यालय अब लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है।"
BHU

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं से तंग आकर छात्राओं ने 30 जनवरी की शाम विश्वनाथ टैंपल से लंका गेट तक चेतावनी मार्च निकाला। भगत सिंह छात्र मोर्चा के बैनर तले निकाले गए मार्च में शामिल छात्राएं लाठी-डंडों से लैस थीं। इस अनूठे आंदोलन में शामिल छात्राएं सेक्सुअल हैरेसमेंट की लगातार बढ़ती वारदातों के मामले में बीएचयू प्रशासन के खिलाफ नारेबाज़ी कर रही थीं।

बीएचयू कैंपस में पिछले 20 दिनों के अंदर छात्राओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट की चार घटनाओं के चलते छात्राओं में ज़बर्दस्त आक्रोश है। सेक्सुअल हैरेसमेट की घटनाओं को लेकर भगत सिंह छात्र मोर्चा ने बीएचयू परिसर में प्रतिरोध मार्च निकाला। इस मार्च में शामिल छात्राएं बीएचयू प्रशासन के खिलाफ नारेबाज़ी कर रही थीं। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि बीएचयू कैंपस गर्ल्स स्टूडेंट के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है। छात्राओं का कहना है कि बीएचयू परिसर में 'लंपटों' की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। यहां स्टूडेंट्स की सुरक्षा के नाम पर हर साल करीब तीस करोड़ रूपये खर्च किए जा रहे हैं, इसके बावजूद कैंपस में छात्राओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट की घटनाएं बढ़ती जा रही है। हाल के दिनों में ऐसी चार घटनाएं सामने आई हैं और न जाने कितनी घटनाओं को दबा दिया गया।

सेफ महसूस नहीं कर रहीं छात्राएं

मार्च के दौरान आक्रोशित छात्राओं ने चेतावनी देते हुए कहा, "अगर भविष्य में किसी छात्रा के साथ छेड़छाड़ की कोई वारदात हुई तो छात्राएं चुप नहीं बैठेगी। छात्राएं खुद अपराधियों को पीटेंगीं और बीएचयू प्रशासन को भी करारा जवाब देंगी। हमें इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े। छात्राओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामले में बीएचयू प्रशासन ने 'लंपटों' के आगे हथियार डाल दिया है। बीएचयू प्रशासन से छात्राओं की हिफाज़त की उम्मीद करना व्यर्थ है।"

मार्च में शामिल छात्राओं ने बीएचयू और पुलिस प्रशासन दोनो को चेतावनी देते हुए कहा, "दृष्टिबाधित छात्रा के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामले में आरोपित के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो बीएचयू के स्टूडेंट्स बड़े पैमाने पर आंदोलन करने के लिए विवश होंगें और इसकी सारी ज़िम्मेदारी विश्वविद्यालय प्रशासन की होगी।"

प्रतिरोध मार्च के दौरान प्रदर्शनकारी स्टूडेंट्स ने पीड़िताओं के लिए न्याय की मांग की और आरोपियों के खिलाफ़ सख़्त कदम उठाने को कहा। बीएचयू परिसर स्थित काशी विश्वनाथ टेंपल से शुरू हुआ प्रतिरोध मार्च लंका गेट पर पहुंचकर समाप्त हो गया। मार्च में शामिल स्टूडेंट्स अपने हाथों में पोस्टर और बैनर लेकर चल रहे थे। 

साल 2017 से लेकर अब तक सेक्सुअल हैरेसमेंट की बढ़ती घटनाओं पर बीएचयू प्रशासन ने बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन हालात नहीं बदले। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में यौन हिंसा के खिलाफ कई मर्तबा बड़े स्तर पर आंदोलन हो चुके हैं इसके बावजूद छात्राएं खुद को सुरक्षित महसूस नही करती हैं। बीएचयू परिसर में यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के विरोध में दो साल पहले भी छात्राओं ने ज़बर्दस्त आंदोलन छेड़ा था। बीएचयू की छात्राओं का एक आरोप यह भी है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने के बजाय उन्हें 'क्लॉस्ट्रोफोबिक' महसूस कराया जा रहा है।

 

एक समय पर सबसे सुरक्षित कैंपस था बीएचयू

साल 1916 में स्थापित बीएचयू को लड़कियों के लिए सबसे सुरक्षित परिसरों में से एक माना जाता था। लेकिन बीती कुछ घटनाओं से ऐसा लगता है कि ये अब इतिहास हो गया है। बीएचयू के पूर्व छात्र और इस विश्वविद्यालय को करीब से देखने वाले पूर्व स्टूडेंट लीडर अनिल श्रीवास्तव कहते हैं, "बीएचयू साल 2000 तक लड़कियों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित था। उसके बाद भी, लड़कों द्वारा लड़कियों पर टिप्पणी करने की घटनाएं साल में एक या दो बार होती थीं। बीएचयू में अब सेक्सुअल हैरेसमेंट की घटनाएं आम हो गई हैं। यह भी कह सकते हैं कि हाल के दिनों में स्थिति बद से बदतर हो गई है। मुझे लगता है कि राजनीतिक आधार पर कुलपतियों की नियुक्ति के चलते स्थितियां विषम हुई हैं और सेक्सुअल हैरेसमेंट की अप्रिय वारदातें बढ़ती जा रही हैं।"

प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी, जिन्होंने साल 1970 के दशक की शुरुआत में बीएचयू में अध्ययन किया और 1978 में हिंदी विभाग में प्रोफेसर के रूप में शामिल हुईं, ने कहा कि उन्होंने अपने छात्र दिनों के दौरान कभी भी असुरक्षित महसूस नहीं किया।

प्रो. चंद्रकला कहती हैं, “मैं 70 के दशक में एक छात्रा थी और साल 1978 में एक संकाय के रूप में बीएचयू में शामिल हुई। एक छात्रा के रूप में, मैं अक्सर पुस्तकालय जाती थी। मैंने परिसर में सुरक्षा की कमी कभी महसूस नहीं की। हाल के दिनों में जो घटनाएं घटी हैं, वे उन दिनों कल्पना से परे थीं। हाल के दिनों में जो कुछ भी हुआ वह विचारधाराओं के टकराव का परिणाम था।”

प्रो. चंद्रकला ज़ोर देकर आगे कहती हैं, "बनारस हिंदू विश्वविद्यालय अभी भी महिलाओं के लिए एक सुरक्षित जगह है। जहां तक ​​लड़कियों की सुरक्षा की बात है तो बीएचयू सुरक्षित जगह है। तस्वीर उतनी धूमिल नहीं है, जितनी मीडिया ने चित्रित की है।"

बनारस घराने के जाने-माने वायलिन वादक पंडित सुखदेव मिश्र ने साल 2004 तक बीएचयू में अध्ययन किया। वह कहते हैं, "साल 2000 से पहले भी विश्वविद्यालय में लड़कियों की पर्याप्त संख्या थी, लेकिन उन्हें कभी सुरक्षा की चिंता नहीं थी। साल 2000 के बाद बीएचयू कैंपस की स्थिति बदलनी शुरू हुई और साल 2005 के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल गई। महज़ 20 दिनों के अंदर बीएचयू कैंपस में छात्राओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट की चार वारदातें इस बात की तस्दीक़ करती है कि यह विश्वविद्यालय अब लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है।"

 

सुरक्षा या दमघोंटू नियम?

छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र बीएचयू प्रशासन ने परिसर की सुरक्षा बढ़ाई है, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रही है। चीफ प्रॉक्टर अभिमन्यु सिंह कहते हैं, "बीएचयू प्रशासन ने कैंपस के अंदर प्रमुख सड़कों पर कई निगरानी कैमरे और हैलोजन लैंप लगवाया है। साथ ही एक महिला सुरक्षा दस्ते का गठन भी किया गया है। सुरक्षाकर्मियों की तैनाती पर हर महीने बड़ी धनराशि खर्च की जा रही है।"

हालांकि बीएचयू प्रशासन के इस दावे के बावजूद छात्राओं का दावा है कि, "विश्वविद्यालय, सुरक्षा के नाम पर उन पर दमघोंटू नियम और प्रतिबंध लगा रहा है। बाहर क्या चित्रित किया जा रहा है और वास्तव में क्या किया जा रहा है, ये दो अलग-अलग चीजें हैं। लड़कियों को छात्रावास से बाहर जाने में दी गई छूट पर्याप्त नहीं है।"

बीएचयू की छात्राएं सेक्सुअल हैरेसमेंट के खिलाफ लंबे समय से एक लिंग संवेदीकरण समिति (जीएस-कैश) के गठन की वकालत कर रही हैं। कुछ साल पहले इन छात्राओं के एक समूह ने मिनेशी मिश्रा के नेतृत्व में जीएस-कैश के गठन के लिए मुख्य प्रॉक्टर को 400 छात्रों द्वारा हस्ताक्षर किया हुआ एक ज्ञापन सौंपा था। छात्राओं का आरोप है कि इसके बाद विश्वविद्यालय के अधिकारी उनके साथ बहुत सख़्त हो गए और वे सुरक्षा के नाम पर छात्राओं पर नए प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। एक छात्रा ने बताया, "वे रिश्तेदारों, पुरुष छात्रों और परिचितों को हॉस्टल के विज़िटिंग एरिया में थोड़ी देर के लिए भी बैठने की अनुमति नहीं देते हैं। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन यह तय करेगा कि हमें किससे मिलना चाहिए?”

 

बीएचयू ने कहा, कैंपस सुरक्षित

बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर अभिमन्यु सिंह का कहना है कि कैंपस में छात्राओं की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। वह कहते हैं, "तीन त्वरित प्रतिक्रिया टीमों (क्यूआरटी) का गठन किया गया है और गश्त तेज़ कर दी गई है, जिसकी 'केंद्रीय निगरानी प्रणाली' के माध्यम से चौबीसों घंटे निगरानी की जाती है। क्यूआरटी तुरंत घटना का जवाब देते हैं और पांच मिनट के भीतर मौके पर पहुंच जाते हैं। रात के समय औचक चेकिंग की जाती है और परिसर में कोई बाहरी व्यक्ति पकड़ा जाता है तो कड़ी कार्रवाई की जाती है। बीएचयू स्थित महिला शिकायत प्रकोष्ठ (डब्ल्यूजीसी) को भद्दी टिप्पणी, ताना मारने, अपमानजनक टिप्पणियों और जानबूझकर टारगेट करने से संबंधित जितनी भी शिकायतें मिलती हैं उन पर सख़्त कार्रवाई की जाती है।"

इसके अलावा वे आगे कहते हैं, "हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि शिकायत दर्ज होने के दो-तीन दिनों के अंदर जांच पूरी कर ली जाए। इस दौरान शिकायतकर्ता और अभियुक्तों को तलब कर मामले की सुनवाई की जाती है। जांच के बाद उचित कार्रवाई की जाती है। स्थिति गंभीर होने पर हम पुलिस को मामला भेजने में संकोच नहीं करते हैं।"

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