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IIT-BHU गैंगरेप मामला: आरोपियों की गिरफ़्तारी के लिए बड़े जनआंदोलन की तैयारी!

मंगलवार शाम बीएचयू के मौजूदा और पूर्व छात्र नेताओं की बैठक हुई जिसमें आरोपियों की गिरफ़्तारी के लिए 'बेटी बचाओ-बीएचयू बचाओ' के नारे के साथ एक बड़े जनआंदोलन का ऐलान किया गया।
BHU
फ़ोटो: एक्स

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की आईआईटी छात्रा के साथ गैंगरेप की वारदात के बाद कमिश्नरेट पुलिस की जांच को लेकर छात्र सवाल उठा रहे हैं। पूर्व छात्रों ने 'बेटी बचाओ-बीएचयू बचाओ' का नारा देते हुए जनआंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है जिसके मुताबिक़ 26 नवंबर, 2023 को जन-पंचायत के बाद बनारस में विशाल मार्च निकाला जाएगा, जिसमें देश भर में फैले बीएचयू के पूर्व छात्र, चिंतक, लेखक, पत्रकार और एक्टिविस्ट शामिल होंगे।

खांटी बनारसियों का मानना है कि यह विश्वविद्यालय न केंद्र सरकार का है और न ही सिर्फ बीएचयू प्रशासन का। एशिया का सबसे बड़ा शिक्षण संस्थान माने जाने वाला बीएचयू बनारस और देश के लोगों का है। सरकार और बीएचयू प्रशासन इसके सिर्फ कस्टोडियन हैं।

नवंबर महीने की शुरुआत में 20 वर्षीय आईआईटी-बीएचयू की छात्रा के साथ रात करीब डेढ़ बजे कथित तौर पर गैंगरेप, छेड़छाड़ और वीडियो बनाने की वारदात हुई थी। छात्रा के मुताबिक, वह अपने पुरुष मित्र के साथ टहलने निकली थी। बुलेट सवाल तीन युवकों ने उनके साथ मारपीट की। छात्रा के ज़ोर ज़बरदस्ती की, एफआईआर में गैंगरेप की धारा भी जोड़ी गई है। छात्रा का आरोप है कि मदद के लिए चीखने-चिल्लाने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई।

शिकायत के बाद, पुलिस ने तीन अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 354-बी और 506 के तहत मामला दर्ज किया। मजिस्ट्रेटी बयान के बाद बनारस की  लंका थाना पुलिस ने आईपीसी धारा 376-डी (गैंगरेप), धारा 341 (यौन उत्पीड़न), 342 (गलत व्यवहार), 507 (एक गुमनाम संचार द्वारा आपराधिक धमकी) के अलावा, और 509 (एक गुमनाम संचार द्वारा आपराधिक धमकी) की नई धाराएं जोड़ीं। बीएचयू के छात्र इसलिए भी गुस्से में हैं क्योंकि उन्हें आशंका है कि वीडियो को कभी भी प्रचारित और प्रसारित किया जा सकता है। ऐसे में अभियुक्तों की गिरफ्तारी बेहद ज़रूरी है।

पुलिस छावनी बनता जा रहा बीएचयू

बीएचयू में इस वारदात के बाद इतना बदलाव ज़रूर हुआ है कि लंका गेट से आईआईटी तक पुलिस की कुछ टुकड़ियां परिसर में तैनात कर दी गई हैं। कुछ तिराहों और चौराहों पर रात के समय भी सुरक्षाकर्मी दिख रहे हैं। कुछ स्थानों पर यूपी पुलिस की ओर से इस आशय के बोर्ड लगाए गए हैं कि आप सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में हैं। इस बोर्ड पर बीएचयू कंट्रोल रूम, आईआईटी कंट्रोल रूम, बीएचयू चौकी, वुमन हेल्पलाइन के अलावा पुलिस के सिटी कंट्रोल रूम, एसीपी भेलूपुर, एसएचओ लंका और डायल-112 का नंबर अंकित है।

बनारस की कमिश्नरेट पुलिस छात्रों के आंदोलन के मद्देनज़र दबाव में है। उस पर छात्र आरोप लगा रहे हैं कि वह आरोपितों को पकड़ने से ज़्यादा बीएचयू परिसर में पुलिस की तैनाती पर ज़ोर दे रही है। अभी तक इस विश्वविद्यालय परिसर की सुरक्षा की कमान प्रॉक्टोरियल बोर्ड संभालता रहा है। बीएचयू प्रशासन सुरक्षा पर करीब हर साल करीब 11 करोड़ रुपये खर्च करता रहा है। विश्वविद्यालय परिसर में पूर्व सैनिकों की तैनाती की गई है। करीब 1,300 एकड़ (5.3 वर्ग किमी) में फैला बीएचयू परिसर. एशिया के सबसे बड़े आवासीय परिसरों में से एक है। इसमें आईआईटी-बीएचयू भी शामिल है जहां अक्सर छात्राओं को परिसर के चारों ओर सुरक्षा उपायों के साथ हमलों का सामना करना पड़ रहा है।

बनारस के दैनिक अखबार जनसंदेश टाइम्स के कार्यकारी संपादक प्रदीप श्रीवास्तव कमिश्नरेट पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। प्रदीप बीएचयू के छात्र नेता भी रहे हैं। वह कहते हैं, "पुलिस प्रशासन की नाकामी साफ तौर पर दिख रही है। हमें लगता है कि पुलिस जानबूझकर जनता को गुमराह कर रही है। जब रात के समय बीएचयू परिसर के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं तो अपराधी फरार कैसे हो गए? बड़ा सवाल यह है कि क्या अपराधियों को ज़मीन निगल गई या आसमान खा गया? आईआईटी-बीएचयू की छात्रा से गैंगरेप करने वाले अपराधी परिसर के अंदर के ही हैं। छात्रा के फोन से ही अपराधियों ने अपने फोन पर उसका नंबर भी डायल किया था। ऐसे में पुलिस उन्हें क्यों नहीं पकड़ पा रही है।"

"यह बात साफ-साफ समझी जा सकती है कि ये वारदात अचानक नहीं हुई। सब कुछ प्लानिंग के साथ हुआ। लगता है जैसे छात्रा और उसके दोस्त की लंबे समय से रेकी की जा रही थी। जिस वक्त दोनों हॉस्टल से निकले उसी समय तीनों आरोपितों का आना और इस वारदात को अंजाम देना प्लांट क्राइम है। इस अपराध को पुलिस आखिर क्यों नहीं भेद पा रही है? कमिश्नरेट पुलिस की ढीली जांच-पड़ताल से लगता है कि उसके ऊपर कोई बड़ा दबाव है अथवा वह पूरी तरह नाखादा है।"

लंका थाना पुलिस पर गंभीर सवाल करते हुए प्रदीप कहते हैं, "इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस घटना के तार कहीं न कहीं, काफी बड़े असरदार लोगों से जुड़े हैं। घटना की जांच एक इंस्पेक्टर के हवाले करके चुप बैठ जाना पुलिस अफसरों की नीयत पर शंका और संदेह पैदा करता है। आईआईटी छात्रा से गैंगरेप का सवाल सिर्फ बीएचयू के मौजूदा और पूर्व छात्रों तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश की बेटियों की सुरक्षा का सवाल है। ऐसे में बनारस की जनता तमाशबीन बनी नहीं रह सकती।"

"बीएचयू देश का इकलौता विश्वविद्यालय रहा है जहां के आजीवन चांसलर काशी नरेश रहे। उनके निधन के बाद कोई दूसरा चांसलर नहीं बना। महामना ने इस तरह की संचरना इस भावना के साथ की थी कि इस विश्वविद्यालय का स्वरूप शिक्षा के मामले में भले ही देशव्यापी रहे, लेकिन यहां की समूची व्यवस्था के मामले में काशी की जनता की निगहबानी बनी रहे। अब जो भी विश्वविद्यालय के अंदर फैसले लिए जाएं उस पर काशी की जनता की मुहर भी लगनी चाहिए। बनारस का सन्नाटा टूटना चाहिए। इस इश्यू पर हर किसी को सामने आना चाहिए। बनारस, पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। वह तमाम मसलों पर बोलते हैं और और ट्वीट भी करते हैं। इस संगीन मामले में उनकी चुप्पी समझ से परे है।"

हालांकि इसके विपरीत पुलिस आयुक्त अशोक मुथा जैन दावा करते हैं, "हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ढीली जांच का कोई सवाल ही नहीं है। जांच को लंका पुलिस स्टेशन के एक निरीक्षक सौंपा गया है। साथ ही क्राइम ब्रांच और एसआईटी की छह टीमें अलग से काम कर रही हैं।"

"बनारस में होगा बड़ा जनांदोलन"

बनारस के लहुराबीर में मंगलवार, 14 नवंबर की शाम बीएचयू के मौजूदा और पूर्व छात्र नेताओं की बैठक में इस वारदात को अंजाम देने वाले अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस पर दबाव बनाने के लिए 'बेटी बचाओ-बीएचयू बचाओ' के नारे के साथ बड़ा जनआंदोलन खड़ा करने का ऐलान किया गया। बीएचयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्र (बनारस के पूर्व सांसद), अनिल श्रीवास्तव के अलावा सुरेंद्र पटेल (पूर्व मंत्री), अरविंद सिंह (पूर्व एमएलसी), विजय नारायण सिंह समेत तमाम स्टूडेंट्स लीडर्स ने इस मुद्दे पर 17 नवंबर को प्रेस कांफ्रेंस का ऐलान किया है और 26 नवंबर, 2023 को संविधान बचाओ दिवस के अवसर पर बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी।

पराड़कर भवन सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में बीएचयू और अन्य शिक्षण संस्थाओं के छात्रसंघ के वर्तमान व पूर्व पदाधिकारी भी जुटें। यह आंदोलन दलीय सीमा से अलग होगा। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा से लगायत बीजेपी नेता भरत सिंह, शतरुद्र प्रकाश व अंजना प्रकाश को भी आमंत्रित किया जाएगा। ये सभी नेता बीएचयू के पूर्व छात्र नेता रहे हैं। खबर है कि बनारस में एक विशाल मार्च निकाले जाने की तैयारी भी चल रही है।

बीएचयू की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का ज़िक्र करते हुए यहां के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे अनिल श्रीवास्तव न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "साल 2017 में, बीएचयू के छात्रों ने एक छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न का विरोध किया था। छात्रावास से लौटते समय दो युवकों ने छात्रा से छेड़छाड़ की थी। भले ही सुरक्षा अधिकारी पास में तैनात थे, लेकिन की छात्रा को कोई सहायता नहीं मिली। पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रा को ही दोषी ठहराने की कोशिश की। अभियुक्तों को पकड़ने के बजाय वह अंधेरे में तीर चलाती रही। छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया तो उन पर लाठियां भांजी गईं। बीएचयू में गैंगरेप की वारदात यह एहसास कराती है कि विश्वविद्यालय परिसर में सुरक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं रह गई है। भारत के अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक बीएचयू का असुरक्षित होना डबल इंजन की सरकार पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।"

"कहां खर्च हो रहा 11 करोड़?”

बीएचयू के पूर्व छात्र नेता एवं पूर्व सांसद राजेश मिश्रा कहते हैं, "आईआईटी छात्रा के साथ हुई गैंगरेप की वारदात बीएचयू के इतिहास में सबसे ज़्यादा शर्मसार करने वाली घटना है। दुनिया भर के छात्र आक्रोशित हैं। 9 नवंबर 2023 को हमने पुलिस आयुक्त अशोक मुथा जैन से मुलाकात कर उन्हें मांग-पत्र सौंपा। उन्हें बीएचयू के प्रॉक्टोरियल बोर्ड की नाकामियां गिनाई। मगर कोई नतीजा सामने नहीं आया। बीएचयू परिसर की सुरक्षा के नाम पर हर साल खर्च होने वाले 11 करोड़ रुपये आखिर कहां जा रहे हैं? प्रॉक्टोरियल बोर्ड इन दिनों इतना निरीह क्यों हो गया है जिसके चलते उसे पुलिस की मदद लेनी पड़ रही है। कैंपस को पुलिस छावनी में बदलने के पीछे बीएचयू प्रशासन की बदनियति साफ-साफ दिख रही है। अपनी नाकामी को छिपाने के लिए प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने परिसर में पुलिस चौकी बनवा दी है। आई कार्ड जांचने के बहाने अब स्टूडेंट्स को परेशान किया जाने लगा है। प्रॉक्टोरियल बोर्ड अब बीएचयू के छात्रों पर आंदोलन-प्रदर्शन नहीं करने के लिए दबाव बना रहा है। हमें लगता है कि पुलिस सब कुछ जानती है।"

डॉ. मिश्रा यह भी कहते हैं, "पीड़िता के लिए न्याय मांगने वाले स्टूडेंट्स के ख़िलाफ़ फर्जी मामले दर्ज किए जा रहे हैं। यह सब उस बनारस में हो रहा है जहां के सांसद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। महामना मदन मोहन मालवीय की कर्मस्थली में पुलिसिया साज़िश और गैंगरेप की वारदात को दबाने की कवायद गंभीर सवाल खड़ा करती है। बेटी पढ़ाओ का नारा लगाने वाली सरकार के लिए यह मामला उसे कलंकित कर रहा है, लेकिन उस पर कोई असर नहीं दिख रहा है।"

आइसा से जुड़े विवेक और धनंजय कहते हैं, "बनारस कमिश्नरेट पुलिस सिर्फ दिखावा कर रही है। वह दबाव में काम कर रही है और अपराधियों को घूमने की आज़ादी दे रही है। एबीवीपी जैसे संगठन के दबाव बाकी छात्र संगठन से जुड़े स्टूडेंट्स को प्रताड़ित किया जा रहा है। हमारी तहरीर और शिकायत तक दर्ज नहीं की जा रही है। पुलिस ने 17 लोगों के ख़िलाफ़ संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है, जिसमें एससी/ एसटी एक्ट भी शामिल है।"

कैसे होगी बेटियों की हिफाजत?

बीएचयू परिसर में हाल के कुछ सालों में छात्राओं के साथ यौन हिंसा की कई वारदातें सामने आई हैं। इसी साल (फरवरी-2023) में एक दिव्यांग छात्रा के साथ यौन हिंसा की वारदात हुई थी। घटना के विरोध में प्रदर्शन भी हुए, लेकिन आरोप है कि लंका पुलिस और बीएचयू प्रशासन आज तक पीड़िता को न्याय नहीं दिला सका है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, "भारत के विश्वविद्यालयों में यौन उत्पीड़न के हर चार कथित मामलों में से एक उत्तर प्रदेश से आता है।" यह आंकड़ा उस समय आया था जब छह बरस पहले बीएचयू परिसर में छात्रा के साथ यौन हिंसा की वारदात हुई थी। यूजीसी के आंकड़ों के मुताबिक, "यूपी में यौन हिंसा के सर्वाधिक मामले अलीगढ़ विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय और शारदा विश्वविद्यालय से मिले हैं। चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय से 12 और केरल के कालीकट विश्वविद्यालय से 13 शिकायतें आई थीं। यौन हिंसा के आठ मामले हरियाणा में दर्ज किए गए थे।"

यूजीसी साल 2017 से विश्वविद्यालय परिसरों और सड़कों पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए सार्थक कदम उठा रहा है। शैक्षणिक संस्थाओं में यौन हिंसा रोकने लिए जीएसकैश लागू करने के लिए सभी विश्वविद्यालयों को सख्त निर्देश दिए गए हैं।

आइसा की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव चंदा ने न्यूज़क्लिक से कहा, "बीएचयू में एक नवंबर की रात गैंगरेप की जघन्य वारदात सामने आने के बाद इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-बीएचयू में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। सैकड़ों छात्रों ने न्याय की मांग की। स्टूडेंट्स ने अपनी सुरक्षा पर सवाल उठाया और मजबूत सुरक्षा उपायों की मांग की। यह भी कहा कि विश्वविद्यालय कैंपस में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि यहां कोई गार्ड नहीं हैं। अपराधियों को पकड़ने के बजाय पुलिस ने चंद सिपाहियों को चौराहे पर तैनात कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।"

चंदा कहती हैं, "आईआईटी-बीएचयू ने विरोध करने वाले छात्रों को भरोसा दिलाया था कि कैंपस में दीवार खड़ा कर उसे अलग कर दिया जाएगा। क्या इससे बीएचयू परिसर में यौन हिंसा रूक जाएगी, इस सवाल का जवाब आज भी अनुत्तरित है। हर वारदात के बाद हमें भरोसा दिलाया जाता है कि बीएचयू कैंपस में उस तरह की घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी। आखिर इस सवाल का हल कब तक निकाला जाएगा।?

क्यों बढ़ रही यौन हिंसा?

यूजीसी ने सभी संस्थानों और कॉलेजों को यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर वार्षिक आंकड़ों की रिपोर्ट करने का आदेश भले ही जारी किया है, लेकिन क्या इससे कोई फर्क आया है। आखिर बीएचयू जैसे शैक्षणिक संस्थान में छात्राओं की सुरक्षा के सवाल पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन क्यों करना पड़ रहा है? एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा बताता है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सरकार को सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है।

जुलाई 2023 में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने ऐलान किया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने बुनियादी सुविधाओं के अलावा स्टूडेंट्स की सुरक्षा के दिशा निर्देश तैयार किए हैं। उच्च शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं के लिए सुरक्षित वातावरण देने की कोशिश की जा रही है। इस बाबत सेमिनार और कार्यशालाएं भी आयोजित की जा रही हैं।

महिलाओं के उत्थान के लिए सालों से काम कर रहीं एक्टिविस्ट श्रुति नागवंशी कहती हैं, "शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं की सुरक्षा और समानता दोनों मामलों में काम करने की ज़रूरत है। बीएचयू में आए दिए यौन हिंसा की वारदातें सामने आ रही हैं। ऐसे में शैक्षिक संस्थानों को एक स्तंभ के रूप में काम करना चाहिए। बेटियों की सुरक्षा का सवाल सिर्फ बीएचयू का सवाल नहीं, समूचे देश और समाज का सवाल है। इसे सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी हर किसी की है।"

"समाज को यह व्यवस्था देनी होगी कि महिलाएं कभी भी और किसी के साथ कहीं भी घूम सकें। सिर्फ लड़कियों पर यह पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है कि वह घरों में कैद रहें। आज औरतें ऐसे मोड़ पर खड़ी हैं जहां वो अपनी हिफाजत के लिए अनुरोध कर रही हैं। ऐसे में सरकार और शिक्षण संस्थाओं के अधिकारियों को चाहिए कि वो लड़कियों की सुरक्षा के साथ ही उनकी स्वतंत्रता को अहमियत दें।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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