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ख़बरों के आगे-पीछे: सरकार के श्वेतपत्र का कमाल

श्वेतपत्र आया जिसमें आदर्श घोटाले का जिक्र है और उसके आरोपी अशोक चव्हाण ने कांग्रेस छोड़ दी। इसके एक दिन बाद भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर लिया।
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Photo: PTI

राज्यसभा का चरित्र बदल रही है भाजपा 

राज्यसभा के लिए भाजपा ने जैसे चेहरों का चुनाव किया है वह पार्टी के लोगों को भी हैरान करने वाला है। इस बार भाजपा के 28 राज्यसभा सदस्य रिटायर हो रहे हैं लेकिन भाजपा ने सिर्फ चार सदस्यों- पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव व एल. मुरुगन और पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी को वापस राज्यसभा में भेजने का फैसला किया है। कहा जा रहा है कि बाकी के 24 में से कुछ लोगों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जाएगा। आमतौर पर राज्यसभा में पार्टियों के बड़े और पुराने नेताओं को भेजा जाता है। बेहतर बौद्धिक क्षमता वाले नेताओं को उच्च सदन के लिए तरजीह दी जाती है। माना जाता है कि लोकसभा की कार्यवाही पर चेक एंड बैलेंस के लिए उच्च सदन जरूरी है। उच्च सदन समाज और राजनीति की विविधता का भी प्रतिनिधित्व करने वाला सदन है। इसीलिए वहां सिर्फ राजनीति से जुड़े लोग ही नहीं होते हैं बल्कि जीवन के अलग-अलग क्षेत्र में अच्छा काम करने और नाम कमाने वाले लोगों को उस सदन में भेजा जाता है। इसके उलट लोकसभा में जमीनी राजनीति करने वाले लोग बैठते हैं। ऐसा लग रहा है कि भाजपा का मौजूदा नेतृत्व राज्यसभा के खास चरित्र को बदलने के लिए पूरी मेहनत कर रहा है। भाजपा ने पहले भी राज्यसभा में ऐसे नेताओं को भेजा है जो राजनीति में ज्यादा जाने-पहचाने नहीं थे या किसी क्षेत्र विशेष से बाहर उनकी पहचान नहीं थी। इसका नतीजा यह हुआ है कि उच्च सदन, जो एक समय अच्छी चर्चाओं के लिए जाना जाता था, वहां चर्चा की गुणवत्ता कम होती गई। 

सरकार के श्वेतपत्र का कमाल

केंद्र सरकार ने इस बार बजट सत्र में एक श्वेतपत्र पेश किया, जिसमें कांग्रेस के 10 साल के राज यानी 2004 से 2014 के मनमोहन सिंह सरकार के समय के कथित घोटालों का जिक्र किया गया। लोकसभा में पेश इस श्वेतपत्र पर दोनों सदनों में इस पर चर्चा हुई। चर्चा क्या हुई, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर हमला करते हुए दोनों सदनों में लंबे-लंबे भाषण दिए। श्वेतपत्र में जिन 15 कथित घोटालों का जिक्र है, उनमें महाराष्ट्र का आदर्श घोटाला भी शामिल है। सेना की जमीन पर बनी आदर्श हाउसिंग सोसायटी में बाहरी लोगों को घर देने से जुड़े इस घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम आया था। यह घोटाला जब जोर पकड़ने लगा था तब कांग्रेस आलाकमान ने अशोक चव्हाण को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था। हालांकि उसके बाद भी वे कांग्रेस के बड़े नेता बने रहे थे और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी बने। अब करीब 10 साल के बाद भाजपा की सरकार ने आदर्श घोटाले की याद दिलाई। यह संयोग है कि श्वेतपत्र आया, जिसमें आदर्श घोटाले का जिक्र है और उसके आरोपी अशोक चव्हाण ने कांग्रेस छोड़ दी। इसके एक दिन बाद भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा श्वेतपत्र को संशोधित करती है या वैसे ही रहने देती है। अगर संशोधन नहीं करती है तो इसका मतलब होगा कि भाजपा अब वाशिंग मशीन वाले आरोपों को घोल कर पीने की आदी हो चुकी है।

केजरीवाल के मामले में ईडी का उतावलापन

प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को भाजपा का इलेक्शन डिपार्टमेंट यूं ही नहीं कहा जाता है। ईडी के अफसर भी इस बात को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने शराब नीति में हुए कथित घोटाले से जुड़े धन शोधन के मामले में छठा नोटिस भेजा है। ईडी ने उनको 19 फरवरी को पूछताछ के लिए हाजिर होने के लिए कहा है। सवाल है कि जब ईडी ने पांचवें समन पर केजरीवाल के हाजिर नहीं होने की शिकायत विशेष अदालत से की है तो अदालत की सुनवाई से पहले फिर नोटिस देने का क्या औचित्य है? उनकी पार्टी ने कहा भी है कि वह अदालत में हाजिर होकर बताएगी कि ईडी का समन कैसे गैरकानूनी है। लेकिन विशेष अदालत में सुनवाई से पहले ही ईडी ने एक और समन भेज दिया। समन के लिए उसने 19 फरवरी का दिन चुना, जिस दिन दिल्ली सरकार का बजट पेश होना है। सवाल है कि क्या यह विशेष अदालत पर दबाव बनाने की रणनीति है या कुछ और? क्या ईडी यह उम्मीद कर रही थी कि 17 फरवरी को जब विशेष अदालत में सुनवाई होगी तो उससे पहले नोटिस भेजने का फायदा यह होगा कि अदालत केजरीवाल को अगले नोटिस पर हाजिर होने के लिए कह देगी और तब उन्हें 19 फरवरी को हाजिर होना ही पड़ेगा? बहरहाल, अदालत से ईडी को निराशा मिली है, क्योंकि उसने केजरीवाल की अर्जी पर मामले की सुनवाई को 16 मार्च तक के लिए टाल दिया है। 

भारत रत्न के जरिए भाजपा की राजनीति 

भारत रत्न या दूसरे नागरिक पुरस्कार पहले भी राजनीतिक मकसद के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं। इसलिए अब हो रहे हैं तो कोई हैरानी की बात नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका इस्तेमाल ज्यादा बेहतर रणनीति के साथ किया है। वे भावना में बह कर अपने राजनीतिक पुरखों को ही भारत रत्न नहीं बांट रहे हैं। उन्होंने हिंदुत्व से बाहर वोट की राजनीति को ध्यान में रखा और उसके केंद्र में कांग्रेस विरोध की राजनीति को रखा। हिंदुत्व के आईकॉन या भाजपा के नेता के तौर पर तो मोदी ने सिर्फ तीन लोगों- अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नानाजी देशमुख को भारत रत्न दिया। लेकिन पांच ऐसे लोगों को दिया, जो कांग्रेस या समाजवादी राजनीतिक पृष्ठभूमि के रहे हैं। मोदी ने 10 में से सिर्फ दो ही गैर राजनीतिक हस्तियों को भारत रत्न दिया है। मोदी ने मदन मोहन मालवीय से शुरुआत की थी। वे कांग्रेस में रहे थे लेकिन बाद में हिंदू महासभा में शामिल हो गए थे। मोदी ने प्रणब मुखर्जी और पीवी नरसिंह राव को भी भारत रत्न दिया है। सब जानते हैं कि दोनों नेताओं से सोनिया गांधी के परिवार के संबंध कभी भी अच्छे नहीं रहे हैं। सो, इस तरह से तीन ऐसे नेता चुने गए, जिनका योगदान तो बड़ा था लेकिन साथ ही कांग्रेस के प्रथम परिवार के साथ जिनके संबंध अच्छे नहीं थे। इसी तरह कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह भी कांग्रेस विरोधी राजनीति के लिए जाने जाते रहे हैं। 

संसद में तृणमूल की 40 फीसदी महिलाएं

महिला आरक्षण को लेकर देश की लगभग सारी पार्टियां पाखंड कर रही है। सबसे बड़ा पाखंड भाजपा का है, जिसने 'नारी शक्ति वंदन’ नाम से महिला आरक्षण विधेयक पास कराया है लेकिन वह न तो पार्टी के संगठन में महिलाओं को कोई खास जिम्मेदारी देती है और न चुनाव में 10-15 फीसदी से ज्यादा टिकट महिलाओं को देती है। कांग्रेस भी दशकों से यह पाखंड कर रही है कि वह महिला आरक्षण के पक्ष में है। सोनिया गांधी के 20 साल तक अध्यक्ष रहने के बावजूद न तो संसद में और न राज्यों की विधानसभाओं में कांग्रेस की ओर से महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ सका। इस देश में दो ही पार्टियां हैं, जिन्होंने बिना महिला आरक्षण के महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। एक है ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और दूसरा नवीन पटनायक का बीजू जनता दल। ममता बनर्जी ने नवीन पटनायक से भी आगे बढ़ कर संसद के दोनों सदनों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि संसद के दोनों सदनों में तृणमूल कांग्रेस के सांसदों की संख्या 40 फीसदी हो जबकि महिला आरक्षण विधेयक में तो 33 फीसदी प्रतिनिधित्व का ही प्रावधान है। ममता बनर्जी ने इस साल राज्यसभा चुनाव के लिए चार उम्मीदवारों की घोषणा की है जिनमें तीन महिलाएं हैं। अब राज्यसभा में तृणमूल के 13 सदस्यों में पांच महिलाएं होंगी। इसी तरह पिछले लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने 40 फीसदी से ज्यादा टिकट महिलाओं को दिए थे। गौरतलब है कि लोकसभा में तृणमूल के 23 सांसदों में महिलाओं की संख्या 41 फीसदी है।

चुनाव में विपक्षी दिग्गजों को घेरने की रणनीति 

राजीव गांधी की अगुवाई में 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ने उतरी कांग्रेस के रणनीतिकारों ने तय किया था कि विपक्ष के दिग्गज नेताओं को लोकसभा में नहीं पहुंचने देना है और इसलिए उनके खिलाफ ऐसे उम्मीदवार उतारने हैं, जो उनको हरा दे। इसीलिए आखिरी समय में माधवराव सिंधिया को ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी के सामने और इलाहाबाद में हेमवतीनंदन बहुगुणा के सामने अमिताभ बच्चन को उतारा गया था। बताया जा रहा है कि भाजपा ने भी इस बार विपक्षी पार्टियों के तमाम बड़े नेताओं को उनके क्षेत्र में ही घेर देने की रणनीति बनाई है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के तमाम बड़े नेताओं के खिलाफ भाजपा अपने बड़े नेताओं को चुनाव में उतारेगी। इसके लिए 20 लोकसभा सीटों की पहचान की गई है और उन पर भाजपा के दिग्गज नेता चुनाव लड़ेंगे। इसीलिए भाजपा ने राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे बड़े नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को इस बार राज्यसभा चुनाव में नहीं उतारा है। धर्मेंद्र प्रधान को मध्य प्रदेश से और सुशील कुमार मोदी को बिहार से पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव भी राज्यसभा में जाने की बजाय लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। पीयूष गोयल, एस. जयशंकर, नारायण राणे, हरदीप पुरी, राजीव चंद्रशेखर जैसे मंत्रियों को भी लोकसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा है।

कांग्रेस आलाकमान की जिद 

कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए 10 उम्मीदवारों की जो सूची जारी है उसमें दो नाम बहुत दिलचस्प हैं। एक नाम है महाराष्ट्र के चंद्रकांत हंडारे का नाम और दूसरा है कर्नाटक के उम्मीदवार अजय माकन का। माकन को कांग्रेस आलाकमान ने दो साल पहले 2022 में हरियाणा से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया था। तब भाजपा ने निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा को समर्थन देकर चुनाव उलझा दिया था। माकन की जीत सुनिश्चित करने के लिए हरियाणा के विधायकों को छत्तीसगढ़ ले जाकर एक रिसोर्ट में रखा गया था। लेकिन यह रणनीति काम नहीं आई थी और कांग्रेस के एक विधायक की क्रॉस वोटिंग के चलते अजय माकन एक वोट से चुनाव हार गए थे। इसी तरह पार्टी आलाकमान ने करीब दो साल पहले महाराष्ट्र में विधान परिषद चुनाव के लिए चंद्रकांत हंडारे को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस ने अपने कोटे की दो सीटों में से पहली सीट के लिए हंडारे को और दूसरी सीट के लिए भाई जगताप को उम्मीदवार बनाया था। वोटिंग के बाद पता चला कि दूसरे नंबर के उम्मीदवार भाई जगताप तो जीत गए लेकिन दलित समुदाय के हंडारे हार गए। पार्टी के विधायकों ने ही उनको हरा दिया। अब कांग्रेस आलाकमान हंडारे को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है। इस तरह कांग्रेस आलाकमान ने भी अपनी जिद दिखाई है कि उसने जिसको पसंद किया है उसे चुनना ही होगा। अगर एक बार में नहीं तो दूसरी बार में और एक जगह से नहीं तो दूसरी जगह से।

पवार चाचा-भतीजे की लड़ाई मिली-जुली नहीं

पिछले साल जब अजित पवार ने एनसीपी तोड़ी थी और 40 विधायकों के साथ आने का दावा किया था तब माना गया था कि यह शरद और अजित पवार का मिला-जुला खेल है, जैसा उन्होंने 2019 में भी खेला था। कई महीनों तक इसकी अटकलें चलती रहीं और यह कहा जाता रहा कि जितनी आसानी से अजित पवार कामयाब हो गए हैं वह शरद पवार की मर्जी के बगैर संभव नहीं है। इसी तरह यह भी कहा गया कि प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल कैसे शरद पवार से बाहर जा सकते हैं। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दोनों में स्थायी दूरी बन गई है और कम से कम अगले महीने घोषित होने वाले लोकसभा चुनाव तक दोनों अलग रहने वाले हैं। बहरहाल, जब से चुनाव आयोग ने अजित पवार खेमे को असली एनसीपी माना है तब से उनकी राजनीति ज्यादा आक्रामक हो गई है। उन्होंने खुल कर शरद पवार के खिलाफ बयानबाजी भी शुरू कर दी है और बारामती में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को हराने का ऐलान भी किया है। वे पिछले दिनों बारामती गए तो उन्होंने कहा कि वे उनके द्वारा उतारे गए उम्मीदवार का समर्थन करे और अपने क्षेत्र को मुक्त कराएं। उन्होंने शरद पवार पर निशाना साधते हुए यह भी कहा कि लोगों को उनकी भावनात्मक अपील पर ध्यान देने की जरुरत नहीं है। अजित पवार ने अपने चाचा पर तंज भी किया कि पता नहीं उनका आखिरी चुनाव कौन सा होगा! इस बीच शरद पवार खेमे के साथ रह गए रोहित पवार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की जांच भी तेज हो गई है। इससे लगता है कि परिवार में दूरी बढ़ गई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 

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