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अमीरों का, पैसे से पैसा बनाने के कुचक्र का हथियार है बैड बैंक!

बैंक डूब रहे हैं, उनका कर्जा बढ़ता जा रहा है, इस पर पर्दा डालने के लिए सरकार बैड बैंक का कांसेप्ट लेकर आई है, वहीं दूसरी तरफ सेंसेक्स पहली बार 60 हजार के पार चला गया है, अर्थव्यवस्था के गिरने और सेंसेक्स के ऊपर चढ़ने के पीछे की कहानी को समझने की जरूरत है।
bad bank

पैसे से पैसा बनाने का खेल ऐसा है कि अगर लोग समझ जाएं तो हर रोज बगावत करने लगेंगे। इस बात को एक उदाहरण से समझिए, अभी हाल ही में सेंसेक्स 60 हजार से पार चला गया है। यानी अगर किसी ने स्टॉक मार्केट में लिस्ट सबसे बड़ी 30 कंपनियों में सितंबर 2018 में ₹1 लाख रुपए का निवेश किया होगा तो उसका पैसा तकरीबन 1 लाख 65 हजार बन चुका होगा। लेकिन यही पैसा अगर किसी ने बैंक में सबसे ज्यादा ब्याज मिलने वाले फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा किया होगा तो उसे महज 1 लाख 22 हजार मिलेगा। ऊपर से इसमें सरकार 20% की दर से टैक्स भी वसूलेगी।

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यही भारत के चरमराते सिस्टम की असली तस्वीर है। जहां पर आम लोग बैंकों में पैसा जमा करते हैं और उन्हें रत्ती बराबर भी ब्याज नहीं मिलता है। जो चंद लोग पैसे से पैसा बनाने के कारोबार में लगे हुए हैं वह उतनी ही मात्रा में पैसा स्टॉक मार्केट में जमा करते हैं और खूब कमाई करते हैं। इन सब में सबसे अजीब बात तो यह है कि यह सब तब होता है जब अर्थव्यवस्था लचर हालात से गुजर रही होती है और इस लचर अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने के लिए आम लोगों के पैसे का इस्तेमाल किया जाता है। आप पूछेंगे कैसे तो अर्थव्यवस्था के बाजार में आए नए नवेले बैड बैंक की कहानी सुनिए।

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मोटे तौर पर समझिए तो बैड बैंक यानी ऐसा बैंक जहां पर बैंकों के डूबने वाले कर्ज़ों को उबारने के लिए भेजा जाएगा। बैंक अपने खाते से कर्जा हटा देंगे। कर्जा बैड बैंक को दे देंगे। कर्जा वसूलने का काम बैड बैंक के जरिए किया जाएगा। इसके बदले में बैड बैंक कुछ कमीशन लेंगे। यही बैड बैंक की कमाई होगी।

टेक्निकल तौर पर देखें तो बैड बैंक को सरकार ने नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL) का नाम दिया है। अवधारणा के तौर पर भले इसे बैड बैंक कहा जाए, लेकिन नाम सरकार ने साफ सुथरा दिया है।

NARCL कई फेज में लगभग दो लाख करोड़ रुपए के बैड लोन लेगी। उसे पहले चरण में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा के कुल 90,000 करोड़ रुपए के बैड लोन दिए जाएंगे। NARCL बैड लोन की कीमत 15% नकदी और बाकी 85% सिक्योरिटी रिसीट के तौर पर चुकाएगी। सिक्योरिटी रिसीट की ट्रेडिंग भी हो सकेगी।

सरकार ने गारंटी दी है कि अगर बैड बैंक पैसा वसूल नहीं पाया तो सरकार की तरफ से सरकारी बैंकों को कर्ज का पैसा दिया जाएगा। लेकिन यहां पेंच है कि सरकार डूबा हुआ पूरा पैसा बैंक को नहीं देगी। बल्कि उसने महज 30600 करोड़ रुपए देने की लिमिट लगाई है।

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यह तो बैड बैंक का सरकारी कायदा कानून हुआ। लेकिन समझदारी का असली खेल तो तब शुरू होता है, जब इस कायदे कानून को उधेड़ा जाता है। अगर जनता उसे उधड़ पाती तब वाकई भारत के बैंकिंग जगत के खिलाफ बगावत शुरू हो जाती।

जनता पूछती कि अगर सरकारी बैंक खुद डूबा हुआ कर्जा वसूल नहीं कर पा रहे हैं तो बैड बैंक डूबा हुआ कर्जा कैसे वसूल लेंगे? अपने ग्राहक के बारे में जितनी जानकारी सरकारी बैंक के पास मौजूदा होगी, उससे ज्यादा जानकारी बैड बैंक को नहीं होगी तो वह कैसे पैसा वसूल सकता है?

बैड बैंक में काम करने वाले भी सरकारी बैंक की तरह पढ़े लिखे होंगे. सरकारी बैंक में काम करने वाले कर्मचारियों की जितनी विशेषज्ञता होती है, उतनी ही विशेषज्ञता बैड बैंक में काम करने वाले कर्मचारी की भी होगी तो यह कैसे संभव है कि जो डूबा हुआ पैसा सरकारी बैंक से वापस नहीं आ पा रहा है, वह बैड बैंक से वापस चला आएगा? यह मामूली से लगने वाले प्रश्न ही बैड बैंक के संदर्भ में बड़े गंभीर प्रश्न हैं।

बैंकिंग क्षेत्र के भीतर बैंकों का आपसी लेन देन नगदी में नहीं होता है। बल्कि एक खाते से राशि निकालकर दूसरे खाते में डाल दी जाती है। 2 लाख करोड़ रुपए की राशि सुनने में बहुत बड़ी लग सकती है लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में यह अकाउंट ट्रांसफर का खेल होता है। बैंक से पैसा ट्रांसफर होकर बैड बैंक में चला जाएगा। बैंक में बैड लोन कम हो जाएगा। बैंक के खातों अपनी सफाई कर साफ-सुथरे दिखने लगेंगे। बैंक की साख सुधर जाएगी। लेकिन हकीकत में सब जस का तस होगा। केवल लीपापोती कर के बैंकों की छवि चमकती हुई दिखेगी।

मौजूदा वक्त में बैंकों का बाजार में तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपए बकाया है। इसमें से बैंक 90 हजार करोड़ रुपए पहली किस्त में बैड बैंक को देंगे। 15 फ़ीसदी के हिसाब से नगद के तौर पर बैंकों को महज 13500 करोड़ रुपए मिलेगा। यह 15 फ़ीसदी भी बैड बैंक अपनी जेब से नहीं देगा, बल्कि देश के 16 बैंक जो इस के प्रवर्तक हैं। उन्हीं की पूंजी बैड बैंक में लगी है। वहीं से ये पैसा आएगा। यानी यह पैसा भी जनता का ही है।

बाकी 85 फ़ीसदी राशि सिक्योरिटी के तौर पर मिलेगी। जिस सिक्योरिटी का इस्तेमाल कर बैंकों को लेन-देन करने की सहूलियत मिलेगी।

लेकिन आखिरकर कोई भी व्यक्ति या संगठन वह सिक्योरिटी क्यों लेगा जो पहले से ही डूबे हुए कर्ज की है? जो पैसा पहले ही डूबा हुआ दिख रहा है उसकी वसूली से जुड़ा हुआ प्रपत्र लेकर कोई भी बैंकों के साथ लेनदेन क्यों करेगा? इस तरह से 10 लाख करोड़ रुपए के बकाया पर बैंकों को महज 13500 करोड़ रुपए मिलेगा। बैंकों की नगद की राशि बढ़ जाएगी। बैंकों का खाता साफ सुथरा हो जाएगा।

इस तरह से बैंक आरबीआई के निगरानी वाले नियमों से आजाद होते हुए धड़ल्ले से उसी तरह से लोन दे सकेंगे, जिस तरह से पहले देते आए हैं। लोन का पैसा नीरव मोदी, विजय माल्या, अनिल अंबानी जैसे कॉरपोरेट की जेब में जाएगा। जो पैसा लेकर भाग जाएंगे। भीतर ही भीतर बैंक की कमाई टूटेगी। इसलिए लोगों को बैंक से मिलने वाला ब्याज दर कम होगा। इसी बीच टूटते हुए बैंकों को बचाने के लिए सरकार बैंकों में पैसा डालेगी। पैसे का भार भी करदाताओं पर पड़ेगा। यह सारा चक्र जस का तस चलता रहेगा। बस नाम बदल जाएगा। जटिलताएं बढ़ जाएंगी। ब्याज दर आम लोगों को कम मिलेगा लेकिन वहीं पैसा स्टॉक मार्केट में लगेगा तो ज्यादा रिटर्न देगा। स्टॉक मार्केट में पैसा वही लगाता है जिसके पास पहले से भरपूर पैसा होता है। यानी अर्थव्यवस्था का वही चक्र चलता रहेगा जिसे पैसे से पैसे की कमाई वाला अर्थव्यवस्था का कुचक्र कहा जाता है।

वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार अंशुमान तिवारी अपने ब्लॉग पर लिखते हैं ‘’बैंकों में डूब रहे पैसे को बचाने की यह सरकार की तीसरी कोशिश है। पहले से ही आरबीआई की तरफ से डूबे हुए कर्ज की वसूली करने के लिए 26 ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां मौजूद हैं। जो रिजर्व बैंक के मुताबिक, बकाए की 26 फीसद वसूली कर सकीं। दूसरी कोशिश बैंकरप्टसी कानून के जरिए हुई। इससे औसत वसूली महज 21 फीसदी हुई। अब तीसरी कोशिश बैड बैंक के तौर पर की का रही है। जिससे वसूली की संभावना सबसे कम दिख रही है।’’

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