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बनारस: वाटर टैक्सी चलाने के फ़ैसले से मल्लाह समाज में भारी रोष, कहा ‘होगा बड़ा आंदोलन’

"बनारस के मल्लाह गंगा को अपनी मां समझते हैं। उनकी आजीविका का नाता गंगा से तोड़ना अक्षम्य अपराध है। बनारस में जो कुछ हो रहा है इससे ज़्यादा भद्दा मज़ाक और कुछ नहीं होगा।"
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उत्तर प्रदेश के बनारस की गंगा में वाटर टैक्सी चलाए जाने के फैसले ने उन मांझियों की चिंता बढ़ा दी है जिनकी ज़िंदगी में पहले से ही तमाम मुश्किलें हैं। बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। वाटर टैक्सी के संचालन को लेकर बनारस के नाविक काफी गुस्से में हैं। 06 जुलाई को बनारस में नौकाओं का संचालन पूरी तरह ठप रहा। काफी मान-मनौव्वल के बाद देर रात नौकायन शुरू कराने का निर्णय लिया गया, लेकिन अस्सी घाट समेत कई घाटों के मांझियों ने अपनी नावों को गंगा में नहीं उतारा।

बनारस के लिए दस वाटर टैक्सियां मंगाई गई हैं और सरकारी तंत्र ने इनका भाड़ा भी तय कर दिया है। नौकरशाही का मानना है कि वाटर टैक्सियों के संचालन से पर्यटन उद्योग को नई रफ्तार मिलेगी, लेकिन मांझियों को लगता है कि बीजेपी सरकार उनकी आजीविका की नाव पूरी तरह डुबो देने पर तुली है। साल 2018 में गंगा में पहली मर्तबा अलखनंदा क्रूज़ उतारा गया था तब मांझियों ने कड़ा विरोध किया था। उस समय करीब 18 दिनों तक गंगा में नावों का संचालन बंद रहा। पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावित दौरे के चलते मांझियों की हड़ताल ने सरकार को झकझोर दिया।

छह जुलाई को दिन भर मान-मनौव्वल का सिलसिला चलता रहा, लेकिन बात नहीं बनी। शाम को बनारस के आयुष राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु ने मांझियों को समझाने के लिए ताकत झोंकी। उन्होंने पहले राजघाट के मांझियों से बात की और बाद में मां गंगा निषादराज सेवा न्यास से जुड़े मल्लाहों से। काफी जद्दोजहद के बाद भी जब बात नहीं बनी तो कलेक्टर एस. राजलिंगम मांझियों को समझाने के लिए आगे आए और भरोसा दिया कि पीएम के लौटने के बाद नौ जुलाई को वाटर टैक्सियों के संचालन के मुद्दे पर उनसे बात होगी। मल्लाह समुदाय के हितों का ध्यान रखा जाएगा और बनारस की गंगा में कोई ऐसी गतिविधि नहीं शुरू की जाएगी, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो।

मंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु और जिलाधिकारी एस. राजलिंगम के आश्वासन के बाद माझी समुदाय के लोग गंगा में अपनी नाव चलाने के लिए तैयार हो गए। हालांकि अस्सी घाट और उसके आसपास के इलाके के मांझियों ने ज़बरदस्त नाराजगी के चलते अपनी नाव गंगा में नहीं उतारीं। हड़ताली नाविकों का कहना है कि "बनारस की सरकार झूठी है और वह गुमराह करती है। बनारस की गंगा में जब पहली मर्तबा अलखनंदा क्रूज़ उतारा गया था तब अफसरों ने दावा किया था कोई दूसरा क्रूज़ नहीं चलाया जाएगा। बारी-बारी से आधा दर्जन क्रूज़ गंगा में उतार दिए गए।"

बनारस के युवा

गंगा में बंद पड़ी नावों की ओर इशारा करते हुए मां गंगा निषादराज सेवा न्यास के अध्यक्ष प्रमोद निषाद कहते हैं, "धनकुबेर पहले रोड पर कमाई करते थे अब वो नदी में उतर गए हैं। उनके आधा दर्जन क्रूज़ पहले से ही हमारे पारंपरिक धंधे पर डाका डाल रहे हैं और अब हमें बर्बाद करने के लिए वाटर टैक्सियां लाई गई हैं। क्रूज़ों के चलने से मांझियों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। बनारस की गंगा में जब धन कुबेरों की वाटर टैक्सियां दौड़ेंगी तो हमारी नाव कहां चलेंगी? हमारी बात नहीं मानी गई तो बड़ा आंदोलन खड़ा होगा, रूकेगा नहीं। गंगा में चलने वाली कोई नाव नहीं चलने नहीं देंगे। क्रूज़ भी नहीं चलने देंगे। इनके क्रूज़ के सामने रस्सी लगाकर घेर लेंगे। गिरफ्तारी होगी तो हम जेल जाने से पीछे नहीं हटेंगे।"

वाटर टैक्सियों का हो चुका है ट्रायल

बनारस की गंगा में जिन वाटर टैक्सियों को चलाया जाना प्रस्तावित है, उनका ट्रायल हो चुका है। प्रशासन ने इन्हें सावन महीने में चलाने की योजना बनाई है। शुरू में सिर्फ दो वाटर टैक्सियां चलेंगी और बाद में क्रमशः इनकी तादाद बढ़ाई जाएगी। वाराणसी सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड (वीसीटीएसएल) के अधीन वाटर टैक्सियों को चलाने की योजना बनाई गई है। मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा कहते हैं, "बनारस की गंगा में राजघाट, ललिता घाट (काशी विश्वनाथ धाम), दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट से वाटर टैक्सियां संचालित होगी। डीजल चालित इन टैक्सियों को बाद में सीएनजी में परिवर्तित कर दिया जाएगा। एक निश्चित अंतराल पर ये वाटर टैक्सी उपलब्ध होगी। इससे न केवल सड़कों पर भीड़ कम होगी, बल्कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में श्रद्धालुओं को पहुंचने में आसानी भी होगी। नाविकों को भी वाटर टैक्सी से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।"

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बनारस की गंगा में वाटर टैक्सी के संचालन को लेकर सरकार काफ़ी आश्वान्वित है। अफसरों को लगता है कि इन टैक्सियों के चलने पर पर्यटन कारोबार में ज़बरदस्त इजाफा होगा और कुछ लोगों की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा। गंगा में वाटर टैक्सी सेवा शुरू होने से पर्यटकों को गंगा नदी के सुंदर दृश्यों का आनंद लेने का अवसर मिलेगा। वाटर टैक्सी सेवा उन लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित होगी जो गंगा के किनारे निवास करते हैं और विभिन्न गांवों और शहरों के बीच संचार करना चाहते हैं। इससे उन्हें समय की बचत होगी और यात्रा करने के लिए सुरक्षित और आरामदायक विकल्प मिलेगा।

मांझियों की चिंताएं कितनी वाजिब?

बनारस में 84 गंगा घाटों के किनारे बसे करीब 32 से 35 हज़ार मांझियों की ज़िंदगी नौकायन से ही चलती है। यहां करीब 1500 नांव हैं और हर नाव पर करीब चार लोग काम करते हैं। बनारस में मांझियों अपना महत्व है, लेकिन गंगा के किनारे बसे इस समाज का दर्द साफ-साफ दिखता है। गंगा में एक के बाद एक नए आलीशान क्रूजों को चलाए जाने से मल्लाह समुदाय अपने पारंपरिक पेशे को लेकर खासा आशंकित है।

पर्यटकों को नौकायन कराने वाले दुर्गा माझी राजघाट पर गंगा के किनारे अपनी पत्नी रानी देवी और बच्चों के साथ बैठे मिले। शाम करीब सात बजे हमारी उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने गंगा में वाटर टैक्सी चलाने से नाविकों को होने वाले भविष्य के संभावित खतरे गिनाने शुरू कर दिए। दुर्गा ने ‘न्यूज़क्लिक’ के लिए कहा, "वाटर टैक्सी चलाकर सरकार हमारी बदरंग ज़िंदगी में ज़हर घोलना चाहती है। जब टेंट सिटी लेकर आए थे तब कहा गया था कि वहां बनारसियों को काम मिलेगा। न टेंटी सिटी चली, न बनारसियों का भला हुआ। हमारी आमदनी तो घटकर आधी रह गई है।"

दुर्गा माझी की पत्नी रानी देवी और उनके बच्चे फूल व पूजा सामग्री बेचते हैं। वह कहती हैं, "समझ में यह नहीं आ रहा है कि खुद को गंगा का बेटा बताकर बनारस से चुनाव लड़ने आए मोदी जी आखिर मल्लाहों के दुश्मन क्यों बन गए हैं। सरकार खुद बताएं कि हम क्या खाएंगे और अपने परिवार को कैसे ज़िंदा रखेंगे। ज़मीन जायदाद होती तो खेती-किसान कर लेते। बनारस में बहुत से नाविक दूसरे काम की तलाश कर रहे हैं। जो बचे हैं उनकी नावों की पतवार कब तक सही-सलामत रह पाएगी? बहुत से नाविक अपने पारंपरिक धंधे को छोड़कर दूसरा काम तलाशने लगे हैं। आप खुद बताइए, बगैर कमाई के कोई कितने दिन ज़िंदा रह पाएगा। यहां कोई दूसरा काम भी नहीं है।"

"सरकार के संरक्षण में चल रहे आधा दर्जन क्रूज़ क्या कम थे जो यहां वाटर टैक्सियों को उतारने की तैयारी चल रही है। पहले जो भी विदेशी पर्यटक आते थे वो हमारी नावों से ही गंगा विहार करते थे। हमारे धंधे को छीनने के लिए ये वाटर टैक्सियां लाई गईं हैं। ये टैक्सियां तो नाविकों की रोटी ही छिनेंगी और बाद में हमें पूरी तरह बर्बाद कर देंगी। सभी कायदे-कानून सिर्फ हमारे ऊपर ही लादे जा रहे हैं, क्रूज़ कारोबारियों को लिए कोई कानून नहीं है। किसी भी क्रूज़ पर जाकर देख लीजिए, कोई पर्यटक लाइफ जैकेटे पहने नहीं दिखेगा। वो क्रूज़ पर नाच-गाना करते हैं और गंदगी गंगा में बहा देते हैं। सभी क्रूज़ डीजल चालित हैं और हमारे ऊपर नौकाओं पर सीएनजी इंजन लगाने के लिए दबाव डाला जा रहा है। मोदी सरकार ने हमारे बुरे दिन ला दिए हैं।"

"कुछ ख़ास कारोबारियों को दी जा रही वरीयता"

राजघाट पर मांझियों से गुफ्तगू करते हमें मिले कांग्रेस के नेता अनुपम राय। उन्होंने एक सांस में सरकार पर कई तल्ख सवाल खड़े कर दिए। वे बोले, "वाटर टैक्सियों के ज़रिए सरकार कुछ ख़ास कारोबारियों का हित साध रही है। ये टैक्सियां भी उन्हीं की हैं। सरकार पहले यह बताए कि ये वाटर टैक्सियां क्यों लाई गई हैं। गंगा में ये टैक्सियां चलेंगी तो क्या मांझियों के घर नहीं उजड़ेंगे? कारोबारियों के जो क्रूज़ गंगा में चल रहे हैं उससे रोज़ाना चार-पांच लाख रुपये की कमाई होती है। ये पैसा कहां जा रहा है? बनारस के रामनगर से सराय मोहाना तक माझी समुदाय की आबादी करीब साढ़े चार लाख है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के समय नारा उछाला गया था कि मांझियों ने राम को पार लगाया तो बीजेपी को भी पार लगाएंगे। सत्ता में आ गए तो वो मांझियों को क्यों साइड लगा रहे हैं?”

बनारस में गंगा के किनारे दुर्गा माझी के साथ कांग्रेसी नेता अनुपम राय

समूची ज़िंदगी गंगा में बिता देने वाले पंचू साहनी हताश नज़र आए। वह कहते हैं, "वो हमारा घाट, हमारा मकान सब कुछ छीन लेना चाहते हैं। हम अपने बाल-बच्चों को लेकर कहां जाएंगे? धरम-करम के नाम पर शव वाहिनी चलाई जा रही है। हमारा पारंपरिक धंधा बंद कराने के लिए ही शव वाहिनियां लाई गई हैं। पहले शवों और लकड़ियों की ढुलाई माझी समुदाय के लोग अपनी नौकाओं से करते थे। शक्का घाट पर माझी समुदाय के लोग अपने बेटे-बेटियों की शादियां किया करते थे। वहां निषादराज की मूर्ति लगाकर वहां से गरीबों को खदेड़ दिया गया और अब वहां पार्क बनाकर बिज़नेस शुरू करने की तैयारी है।"

राजघाट पर अनगिनत लोगों को डूबने से बचाने वाले गोताखोर कल्लू साहनी का दर्द यह है कि बीजेपी सरकार ने उन्हें आज तक कोई सहूलियत नहीं दी। वह कहते हैं, "जी-20 में लुटाने के लिए इनके पास अथाह पैसा है। बनारस का राजघाट सालों से सुसाइडल पॉइंट बना हुआ है। मालवीय पुल पर झालर-बत्ती लगाने के लिए दौलत है, लेकिन वहां जाली लगाने के लिए पैसा नहीं है। इन्हें किसी की ज़िंदगी और मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता। कारोबारियों ने गंगा घाटों पर जेटी लगाकर घेराबंदी और कब्जा शुरू कर दिया है। हम विरोध में खड़े होते हैं तो वे पुलिस बुला लेते हैं।"

गंगा पर अधिकार चाहते हैं माझी

बनारस का माझी समुदाय यह मानता रहा है कि गंगा और उससे जुड़े पेशे पर उसका पहला अधिकार है। यह समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी गंगा में नाव चलाना, मछली पकड़ना, गोताखोरी करना और बालू निकालने का काम करता रहा है। माझी समाज के लोग ख़ासतौर पर इन्हीं कामों में पारंगत होते हैं, लेकिन कुछ सालों से सरकार और पैसे वाले लोगों का गंगा में हस्तक्षेप तेज़ी से बढ़ा है। बेकारी का आलम यह है कि बहुत से मल्लाह अपने पारंपरिक पेशे को छोड़कर शहर में निर्माणाधीन इमारतों में ईंटा-गारा ढोने के लिए विवश हैं। गंगा घाटों पर बहुत से नाविक मिल जाएंगे जो बोहनी (पहली कमाई) तक के लिए तरसते नज़र आते हैं।

पर्यटकों को नौकायन कराने वाले दौलत साहनी कहते हैं, "वाटर टैक्सी चलाकार वो पहले हमारी नाव छीनेंगे, फिर घर। हमें हर तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। नतीजा यह है कि हम अपनी बेटियों की शादी भी नहीं कर पा रहे हैं। बनारस की गंगा में जब 100-200 वाटर टैक्सियां चलने लगेंगी तो हमारे पास कौन सा काम बचेगा और हम कहा जाएंगे?"

नारायण माझी बताते हैं, "दूसरे धंधों के मुकाबले मल्लाहों की कमाई 90 फीसदी तक कम हुई है। बनारस में सालों से सिर्फ जुमले उछाले जा रहे हैं और हवा-हवाई बातें की जा रही हैं। माझी समुदाय को उबारने के लिए प्रशासन ने फॉर्म भी भरवाया, लेकिन खाते में फूटी कौड़ी नहीं आई। क्रूज़ संचालकों के लिए कोई नियम-कानून नहीं है। वो अपने क्रूज़ पर नाच-गाना कर सकते हैं और हम अपने बजड़ों पर ढोल भी बजा दें तो जेल भेज दिया जाता है। आखिर ये नाइंसाफी हमारे पारंपरिक धंधे को चौपट करने के लिए ही तो है। हमारा व्यवसाय पूरा टूरिज्म से है और टूरिज्म महकमा खुद हमें बर्बाद करने पर तुल गया है। हमें बर्बाद करने के लिए जनवरी 2023 में 5 स्टार सुविधाओं वाला गंगा विलास क्रूज़ गंगा में उतारा गया था। हमारी किस्मत अच्छी थी कि वो पटना में बालू में फंस गया और नहीं चल पाया। सरकार जब वाटर टैक्सी और क्रूज़ चलवाती रहेगी तो हमारी नौकाओं पर विदेशी टूरिस्ट क्यों बैठेंगे? हमारे हालात ऐसे हो गए हैं कि हम न रो सकते हैं, न ही कुछ बोल सकते हैं। यूं समझिए कि हम बस किसी तरह से ज़िंदा हैं।"

सैलानियों को गंगा में नौकायन कराने वाले मुन्ना की पत्नी मुन्नी देवी बताती हैं, "कमरतोड़ महंगाई के चलते हमारे बच्चों भविष्य बर्बाद हो रहा है। हमें इस बात की चिंता है कि वो कायदे से पढ़-लिख नहीं पा रहे हैं। बच्चों को पढ़ाएं या बुज़ुर्गों के लिए दवा का इंतज़ाम करें? पहले मुफ्त में रसोई गैस की टंकी दी और बाद में दाम इतना ज़्यादा बढ़ा दिया कि खाना पकाना दुश्वार हो गया। बीजेपी के लोग हमें यह बताएं कि किस चीज़ का दाम कम हुआ है और किसका स्थिर है? टमाटर की तरह सभी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इंदिरा गांधी जब पीएम थी तब सोने का दाम 1700 रुपये तोला था और अब 60 हज़ार हो गया है। हमारे गले का मंगल-सूत्र और कान की बालियां देखिए, सब नकली हैं। कोई पीतल की हैं तो कोई गीलट की।"

गंगा को मां समझते हैं माझी

बनारस के प्रबुद्धजनों का मानना है कि वाटर टैक्सी सेवा की शुरुआत नई पर्यटन पहल के रूप में महत्वपूर्ण ज़रूर है, लेकिन मल्लाहों की चिंताओं को भी सरकार को ध्यान में रखनी चाहिए। मल्लाहों को डर है कि वाटर टैक्सी की शुरुआत से उनकी आजीविका को खतरा होगा। वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "बनारस का मूल चरित्र है नौकायन, जिसके स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। यहां नौकायन की परंपरा सदियों पुरानी है। नैनीताल की झील में आप मोटर बोट नहीं चला सकते तो आप गंगा के तट को मैरिन ड्राइव बनाने पर क्यों उतारू हैं? बनारस का हर आदमी जानता है कि गंगा का रिश्ता मांझियों से सदियों पुराना है। किसी भी पारंपरिक व्यवसाय से इतना भद्दा मज़ाक कहीं नहीं होता। कभी टेंट सिटी बसा दी जाती है तो कभी सरकार बालू पर नहर खुदवाने लग जाती है। इस तरह के बेकार कामों से बनारस की ख़ास किस्म की जीवनशैली और इस शहर का ईको सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। मल्लाहों की आजीविका से खिलवाड़ करना और नैसर्गिक सौंदर्य को मशीनीकरण से ध्वस्त करना जघन्य अपराध है।"

नाविकों की चिंताओं को वाजिब बताते हुए प्रदीप कुमार कहते हैं, "बनारस के मल्लाह सिर्फ नाविक नहीं है। वो गंगा को जीते हैं। उसे अपनी मां समझते हैं। उनकी आजीविका का नाता गंगा से तोड़ना अक्षम्य अपराध है। बनारस में जो कुछ हो रहा है इससे ज़्यादा भद्दा मज़ाक और कुछ नहीं होगा। गंगा के किनारे एक्सप्रेस-वे बनने से इस नदी का समूचा प्रवाह और उसकी प्रकृति नष्ट होगी। काशी के घाट खतरे में पड़ जाएंगे। दुनिया के मुल्क प्राकृतिक संसाधनों को सहेज कर रखते हैं, कोई खिलवाड़ नहीं करते। यहां तो सपना दिखाने का खेल चल रहा है। बड़ी संख्या में लोगों के दिलो-दिमाग पर उसी सपने की खुमारी छाई हुई है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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