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'आर्थिक नीति' की आड़ में वर्गों की लड़ाई शुरू हो चुकी है

मुद्रास्फ़ीति, वह "समस्या" है जो इन दिनों पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं को प्रताड़ित कर रही है, जिससे हमें ऐसी नीतियों का पहला उदाहरण मिलता है।
'आर्थिक नीति' की आड़ में वर्गों की लड़ाई शुरू हो चुकी है

जुलाई के अंत में, बैंक ऑफ अमेरिका के एक आर्थिक सलाहकार ने एक मेमो लिखा जो लीक हो गया। इसने अपने जानकार निवेश सलाहकारों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सामान्य ज्ञान को बेहतर ढंग से स्पष्ट किया: कि "आर्थिक नीतियों" पर राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों और कर्तव्यपरायण जन मीडिया के बीच बहस दो अलग-अलग स्तरों पर होती है। एक, सार्वजनिक स्तर पर, बहस करने वाले चर्चा करते हैं कि "हमारी अर्थव्यवस्था की समस्याओं" को ठीक करने के लिए "हमें" क्या करने की जरूरत है। यह उस "हम सब इसमें एक साथ हैं" की भाषा है जो हमें व्यावसायिक ग्रीटिंग कार्ड कविता की याद दिलाती है। दूसरी ओर, निजी स्तर पर, अंदरूनी सूत्र चर्चा करते हैं कि सरकार को आर्थिक समस्याओं का जवाब किस तरह से देना चाहिए जिससे कर्मचारियों या जनता की कीमत पर मालिकों/नियोक्ताओं के मुनाफे को बढ़ावा जा सके। अंदरूनी सूत्र अपने पसंदीदा समाधान को उस अच्छी तरह से निष्फल शब्द में व्यक्त करते हैं: जिसका नाम है "नीतियां।"

मुद्रास्फीति, वह "समस्या" है जो इन दिनों पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं को प्रताड़ित कर रही है, जिन नीतियों से हमें ऐसी नीतियों का पहला उदाहरण मिलता है। मुद्रास्फीति का मतलब कीमतों में सामान्य वृद्धि से है। ये पूँजीपतियों/नियोक्ता हैं न कि कर्मचारी, जो अपने कर्मचारियों के श्रम से उत्पादित किसी भी सामान और सेवाओं के बदले शुल्क वसूल करने लेने के लिए कीमतें तय करते हैं। ये नियोक्ता आबादी का अधिकतम 1 प्रतिशत हिस्सा हैं जबकि कर्मचारी और उनके परिवार अन्य 99 प्रतिशत हैं जो बहुमत है। वे 1 प्रतिशत अन्य 99 प्रतिशत आबादी के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। 

मुद्रास्फीति सीधे तौर पर 99 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करती है, लोगों के जीवन स्तर को कम करती है। एकमात्र अपवाद वे कर्मचारी हैं जो अपना वेतन या सुविधाओं को कम से कम उतनी ही तेजी से बढ़ाने में सक्षम होते हैं, जितनी तेजी से मुद्रास्फीति कीमतें बढ़ाती हैं। यह सामान्य रूप से कर्मचारियों का एक छोटा सा हिस्सा है और जो अभी भी 2022 अमेरिकी मुद्रास्फीति के दौरान मौजूद है। यदि मुद्रास्फीति मजदूरी से अधिक तेजी से कीमतें बढ़ाती है, तो यह कर्मचारियों की झोली से आय को नियोक्ताओं की झोली में डालने में, धन के पुनर्वितरण की जिम्मेदार होती है।

"मात्रात्मक सहजता" (क्यूई) पर ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने फेड चेयर जेरोम पॉवेल को  मंदी के मामले में एक नीतिगत समाधान की पेशकश करते हुए दोहराया और कहा, कि तकनीकी-लगने वाला वाक्यांश केवल फेडरल रिजर्व की विशेष आर्थिक नीति को संदर्भित करता है जो 2020 में शुरू हुई तेज आर्थिक मंदी को धीमा करने या रोकने के लिए था और जो स्थिति कोविड-19 महामारी के कारण खराब हो गई थी। इसलिए उस फेड नीति ने एक बड़ी और नई राशि तैयार की और बड़े बैंकों और अन्य बड़े वित्तीय संस्थानों को ऋण और सुरक्षा खरीद के माध्यम से इसे प्रदान किया था।

यहां स्पष्ट होने की जरूरत है कि, फेड ने कुछ सबसे बड़े और सबसे अमीर वित्तीय नियोक्ताओं को विशाल नए मौद्रिक संसाधन उपलब्ध कराए थे। इसका घोषित लक्ष्य "अर्थव्यवस्था" को प्रोत्साहित करना था। फेड को उम्मीद थी कि कर्ज़ देकर जिन वित्तीय नियोक्ताओं को इसने समृद्ध बनाया है, वे इस पैसे का इस्तेमाल गैर-वित्तीय नियोक्ताओं को अधिक उधार देने के लिए करेंगे, और वे बेरोजगार श्रमिकों को काम पर रख पाएंगे। ध्यान दें कि क्यूई नियोक्ता या पूँजीपतियों के पक्ष में है। यह शीर्ष 1 प्रतिशत को समृद्ध बनाने में  सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण काम करता है और फिर "उम्मीद" करता है कि बाद वाले का लाभ अन्य 99 प्रतिशत को जाएगा। आगे ध्यान दें कि श्रमिकों को बड़े पैमाने पर इस तरह के धन देने की उम्मीद नहीं की जाती है ताकि वे इसे खर्च करें जिससे नियोक्ताओं को बिक्री और मुनाफा पैदा होगा। "अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने" का ऐसा "नीचे तक जाने वाला लाभ" या दृष्टिकोण श्रमिकों के पक्ष में होगा। यही कारण है कि यह दुर्लभ है और लगभग कभी भी "विस्तारवादी मौद्रिक नीति" का प्राथमिक फोकस नहीं रहा है।

मुद्रास्फीति के खिलाफ-पूंजीवाद की अस्थिरता का दूसरा संकट-फेड की पसंदीदा नीति को "मात्रात्मक कसाहट" (क्यूटी) के बहाने उलट दिया गया है। यह नीति प्रचलन में धन की मात्रा को कम करती है और ब्याज दरों को बढ़ाती है। इसलिए, फेड मुख्य रूप से प्रमुख वित्तीय संस्थानों को प्रतिभूतियों को बेचता है (उन प्रतिभूतियों को आकर्षक बनाकर, उन्हे कम कीमत दिया जाता है)। वे प्रमुख वित्तीय संस्थान तब अपने ग्राहकों (व्यक्तियों और व्यवसायों) को उच्च दरों (साथ ही अपने स्वयं के लाभ के लिए तय राशि) के ब्याज़ पर धन देते हैं। संक्षेप में, प्रमुख वित्तीय खिलाड़ी फेड नीति से लाभान्वित होते हैं, जबकि वे अपनी लागत को छोटे आर्थिक खिलाड़ियों पर डाल देते हैं जो वे ऋण के ज़रिए वसूल करते हैं। ध्यान दें कि नीति सबसे बड़े वित्तीय खिलाड़ियों का पक्ष लेती है और केवल "उम्मीद" करती है कि महंगा ऋण उधारकर्ताओं को निराश करेगा, इसलिए सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जाता है और उम्मीद की जाती कि इससे वस्तुओं और सेवाओं में मांग बढ़ेगी और इस प्रकार विक्रेताओं को अपनी कीमतों को कम करने को "प्रेरित" करेगी। सभी "अगर" और "उम्मीदें" ऐसी नीतियों के अंतिम परिणामों से संबंधित हैं। वे प्रमुख नियोक्ताओं, विशेष रूप से वित्तीय उद्यमों को तुरंत नक़दी का लाभ देते हैं। क्यूटी नीतियां इसी तरह सभी व्यक्तियों और व्यवसायों के बीच अमीरों का पक्ष लेती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उच्च ब्याज लागत एक भारी बोझ है, और अधिक जोख़िम भरा है, यह व्यवसाय के आकार या किसी व्यक्ति के धन के आकार जितना छोटा होता है।

ध्यान दें कि मुद्रास्फीति को अन्य तरीकों से कम किया जा सकता है या कम किया भी गया है, जिसके ज़रिए श्रम के खिलाफ पूंजी को कम अनुकूल और बाकी के मुकाबले अमीरों के लिए कम किया जा सकता है। अगस्त 1971 में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड एम. निक्सन ने वेतन-मूल्य फ्रीज किया था औरर साथ ही वैकल्पिक मुद्रास्फीति विरोधी नीतियां लागू की थी। इसी तरह, महंगाई को रोकने के लिए राशनिंग बाजारों की जगह ले सकती है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकिन डी. रूजवेल्ट ने 1940 के दशक की शुरुआत में राशनिंग का इस्तेमाल किया था। लेकिन यह भी ठीक है कि ऐसी नीतियां नियोक्ता वर्ग के लिए कम अनुकूल होती हैं, इसलिए उनका इस्तेमाल शायद ही कभी किया जाता है।

राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन (और जटिल जीओपी) की संदिग्ध उपलब्धि के बारे में बोलना और जताना कि जैसे क्यूटी ही एकमात्र नीति थी जो मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए मौजूद थी। अमेरिकी आय और धन असमानताओं के बारे में येलेन और बाइडेन की "चिंता" ने पिछले कामों के ज़रिए कुछ लाभ हासिल जरूर किए होंगे, जिसमें मजदूरी में वृद्धि के साथ संयुक्त कीमतों को फ्रीज करना था, वास्तव में यह नीति उन असमानताओं को कम करने में सक्षम थी। यह एक मुद्रास्फीति विरोधी नीति होती है, जो मौजूदा असमानताओं को बढ़ाने के बजाय दोहरा कर्तव्य निभाती है।

राजकोषीय नीतियां काफी हद तक मौद्रिक नीतियों की तरह काम करती हैं, जो उनमें निर्मित वर्ग पक्षपात के संदर्भ में होती हैं। जब मंदी की समस्या होती है, तो विस्तारवादी राजकोषीय नीति - उदाहरण के लिए, सरकारी खर्च में वृद्धि - आमतौर पर बुनियादी ढांचे, रक्षा और अन्य वस्तुओं पर खर्च करने के पक्ष में होती है जहां अच्छी तरह से स्थापित, बड़े पूंजीवादी उद्यम प्रबल होते हैं। मंदी को कम करने के लिए सरकारी खर्च सबसे पहले बड़े नियोक्ताओं के हाथों में चला जाता है। वे बदले में उस धन का उतना ही उपयोग करेंगे जितना वे अपनी सारी पूंजी और राजस्व के साथ करते हैं: श्रम और अन्य लागतों को कम करते हैं ताकि पूंजी संचय के  लाभ और धन को अधिकतम किया जा सके। जब यह राजनीतिक रूप से अपरिहार्य हो जाता  है, तो सरकारी खर्च नियोक्ताओं को बायपास करता है और सीधे कर्मचारी वर्ग के हाथों में चला जाता है। 

"ट्रांसफर पेमेंट्स" या "एंटाइटेलमेंट" नियोक्ता वर्ग के दबाव के परिणामस्वरूप सबसे अधिक प्रतिरोध, देरी, पूर्ववत या कटौती का सामना करते हैं। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, 2020 और 2021 में अतिरिक्त सरकारी परिव्यय बेरोजगारी बीमा और कोविड-19 शटडाउन के दौरान बड़े पैमाने पर इस किस्म की सहायता नहीं दी गई थी, क्योंकि बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे पर खर्च और नियोक्ताओं को "चिप सब्सिडी" देने की बातचीत आगे बढ़ गई थी।

इसी तरह, जब मंदी-विरोधी राजकोषीय नीतियों ने करों में कटौती की, तो इतिहास बताता है कि बड़े निगमों और अमीरों पर करों में असमान रूप से कटौती की गई थी। निश्चित रूप से, 2017 के अंत में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के तहत बड़े पैमाने पर कर कटौती ने उस पैटर्न को आगे बढ़ाया था। 

वर्ग युद्ध के मायने हैं कि, कितने राजनेता, जनसंचार माध्यम और शिक्षाविद आर्थिक समस्याओं की व्याख्या करते हैं जिनके समाधान की जरूरत होती है जो उनकी नीतियों की पेशकश करते हैं। उदाहरण के लिए, 2022 की मुद्रास्फीति के दौरान विशिष्ट विश्लेषणों पर विचार करें क्योंकि यह यू.एस. और उसके बाहर एक गर्म सार्वजनिक मुद्दा बन गया था। हमें बताया गया कि कीमतें इसलिए बढ़ीं क्योंकि मांग बढ़ी थी (कोविड​​-पर हुए खर्च के कारण) और आपूर्ति गिर गई थी (बाधित आपूर्ति श्रृंखलाओं के कारण) ऐसा हुआ। रूढ़िवादियों ने मांग पक्ष पर जोर दिया: कोविड-19 (सरकारी चेक और अतिरिक्त बेरोजगारी नकद) का जवाब देने वाली विशाल राजकोषीय उत्तेजना जो कि बजट घाटे से वित्त पोषित होगी। उदारवादियों ने इसके बजाय आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों पर जोर दिया (इसके लिए वे कोविड-19 की वजह से चीन में लगे सख्त लॉकडाउन और रूस का यूक्रेन पर आक्रमण) को वजह बताते हैं। ध्यान दें कि कैसे दोनों पक्षों ने अपने-अपने विश्लेषणों में नियोक्ताओं की लाभ-आधारित मूल्य वृद्धि को बड़े करीने से हटा दिया।

फिर भी नियोक्ता के फैसले आधुनिक पूंजीवाद की मुद्रास्फीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब मांग बढ़ती है (किसी भी कारण से), तो अधिकांश नियोक्ता जानते हैं कि उन्हें निर्णय लेना है। वे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए या तो अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं और माल की बिक्री करते हैं या वे उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ा सकते हैं जो उनके पास पहले से होती हैं। उनके द्वारा चुने गए अधिक उत्पादों की उच्च कीमत और उपलब्धता का जो भी मिश्रण है, वह इस बात से निर्धारित होता है कि उनके लिए क्या अधिक लाभकारी है। 2022 में उनकी पसंद ने अमेरिका और उसके बाहर बड़ी मुद्रास्फीति पैदा की है। फिर भी मुख्यधारा के मीडिया, राजनेताओं और शिक्षाविदों पर मुद्रास्फीति पर अधिकांश चर्चाओं का उल्लेख करने के लिए छोड़ दिया गया, इसलिए आप खुद इसका विश्लेषण करें कि कैसे नियोक्ताओं के लाभ-संचालित विकल्पों ने मुद्रास्फीति को जन्म दिया है।

अंतहीन नीतिगत चर्चाएं, मंदी या मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के तरीकों के रूप में करों या सरकारी खर्च को बढ़ाने या कम करने पर केंद्रित हैं। विरले ही इस बात पर चर्चा केंद्रित होती है कि किसके करों को बढ़ाया या घटाया जाना चाहिए और किस को सरकारी खर्च कम या ज्यादा मिलना चाहिए। फिर भी यह सर्वविदित है कि मध्यम आय वाले और गरीब व्यक्तियों और उनके परिवारों पर लगाए गए करों में कटौती आमतौर पर निगमों या अमीरों पर करों में कटौती से अधिक उत्तेजक है। उन नीतियों के वर्ग आयामों को देखते हुए सटीक रूप से करों या व्यय के सार के संदर्भ में राजकोषीय नीतियों पर चर्चा करना और मतदान होना जरूरी है।

आर्थिक नीति के वर्गीय विश्लेषण से पता चलता है कि इसके लक्ष्यों में तत्काल आर्थिक समस्या को हल करने से कहीं अधिक बातें शामिल है। नीतियों को सावधानीपूर्वक चुना और छांटा जाता है और उद्यमों के नियोक्ता-कर्मचारी ढांचे और इस प्रकार बुनियादी आर्थिक प्रणाली को बरकरार रखा जाता है। इससे जुड़े पूर्वाग्रह को उज़ागर करके सभी नीतिगत चर्चाओं को लाभकारी बनाया जा सकता है और उन्हे विभिन्न विकल्पकों पर चर्चा के माध्यम से एजेंडे पर लाया जा सकता है, जिन्हें अब तक सामाजिक एजेंडे से दूर रखा गया था। व्यवस्था परिवर्तन तब ध्यान में आ सकता है और आर्थिक प्रणाली को बीमार करने वाली समस्याओं को हल करने के अन्य तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। आज वैश्विक पूंजीवाद का सामना करने वाली समस्याओं के संचय को देखते हुए, व्यवस्था परिवर्तन को चर्चा में लाना लंबे समय से और बेहद जरूरी हो गया है।

रिचर्ड डी. वुल्फ़ मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट में अर्थशास्त्र के सेवा मुक्त प्रोफेसर हैं, और न्यूयॉर्क में न्यू स्कूल विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्नातक कार्यक्रम में गेस्ट प्रोफेसर हैं।

यह लेख इकॉनोमी फॉर ऑल द्वारा तैयार किया गया था, जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट का एक प्रोजेक्ट है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में रखने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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