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बंगाल के मज़दूर-किसान 26 नवंबर की हड़ताल के लिए हैं तैयार
हड़ताल के तीन बचे हैं और मज़दूर एवं किसान संगठन सरकार की नीतियों के खिलाफ अपने अभियान के अंतिम पड़ाव में हैं। हड़ताल को कलाकारों का भी समर्थन हासिल है। 
रवीन्द्र नाथ सिन्हा
24 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
26 नवंबर की हड़ताल

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों, स्वतंत्र फेडेरेशनस ने 26 नवंबर को केंद्र सरकार की जन-विरोधी, किसान विरोधी और मज़दूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ होने वाली आम हड़ताल के समर्थन में अपने संयुक्त और स्वतंत्र अभियानों के अंतिम पड़ाव में पहुँच गए हैं। 

हड़ताल में बचे तीन दिनों में सभी संगठन पूर्व निर्धारित अभियान के कार्यक्रम को पूरा करने में व्यस्त हैं, उन्हें पश्चिम बंगाल की डेमोक्रेटिक राइटर्स आर्टिस्ट एसोसिएशन की तरफ से समर्थन भी मिला है, कलाकारों ने हड़ताल के उन उद्देश्यों और समझ को अपना नैतिक समर्थन दिया है, जिसके कारण 26 नवंबर की देशव्यापी आम हड़ताल की जा रही है।

पश्चिम बंगाल डेमोक्रेटिक राइटर्स आर्टिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष पबित्रा सरकार और महासचिव रजत बंद्योपाध्याय ने एक बयान जारी कर कहा है कि उन्हे इस बात की बड़ी चिंता है कि भारत के लोग इतने बड़े संकट से गुजर रहे हैं; साम्प्रदायिक उन्माद का माहौल तैयार किया जा रहा है और महामारी के बहाने किसानों और मज़दूरों पर पूर्व नियोजित हमले किए जा रहे हैं। ये हालात ज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र को भी दूषित कर रहे है। सरकर और बंद्योपाध्याय ने कहा कि इन वास्तविकताओं को देखते हुए, लेखक, कलाकार और नागरिक समाज के अन्य वर्ग उदासीन नहीं रह सकते हैं और उन्हें आगे आकर एक दिवसीय आम हड़ताल में अपना समर्थन देना चाहिए।

जादवपुर विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार बंद्योपाध्याय ने न्यूज़क्लिक को बताया, “लोकतंत्र खतरे में है। हम इससे अप्रभावित नहीं रह सकते हैं; इसलाइए हमें एक स्टैंड लेना चाहिए”। यह पूछे जाने पर कि क्या हड़ताल के दिन एसोसिएशन के सदस्य सड़कों पर उतरेंगे, उन्होंने कहा कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है। व्यक्तिगत रूप से, सदस्य कविता पाठ कर सकते हैं और इस अवसर पर उपयुक्त गीत प्रस्तुत कर सकते हैं।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के आहवान पर किसान संगठन बंगाल में 26 नवंबर को 'ग्रामीण बंद' आयोजित करेंगे। ग्रामीण बंद ’के लिए समर्थन जुटाने का अभियान भी अंतिम चरण में पहुंच गया हैं और किसान कार्यकर्ता और नेताओं को काफी उम्मीद हैं कि कार्यक्रम काफी सफल रहेगा।

ज़मीनी तैयारी 

पश्चिम बंगाल राज्य कृषक सभा (भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी की किसान इकाई) के सचिव अमल हलदर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने लोगों को मुद्दों के बारे में जागरूक करने के लिए स्थानीय स्तर पर व्यापक अभियान चलाया है। उन्होंने कहा, “हमने ब्लॉक स्तर पर बैठकें आयोजित करने के अलावा, हाट और अन्य स्थानों पर जहां लोग इकट्ठा होते हैं, वहां बैठकें की तथा कई ग्रामीण परिवारों का दौरा किया है। हमने उन्हें पर्चे और पोस्टर के माध्यम से मुद्दों के बारे में समझाया है। हम अच्छी प्रतिक्रिया की उम्मीद करते हैं।”

बंगाल के किसानों की दुर्दशा पर रोशनी डालते हुए हलदर ने बताया कि “किसान अपनी फसल  की बिक्री से अपनी लागत को भी कवर करने में असमर्थ हैं। पश्चिम बंगाल में मंडी का बुनियादी ढांचा उतना विकसित नहीं है जितना कि पंजाब और हरियाणा में हुआ है। हमारे किसानों को धान के लिए जो कीमत मिलती है, वह पंजाब और हरियाणा के मुक़ाबले बहुत कम है। इसके अलावा, कई ऐसे उदाहरण हैं जब किसानों को फसल बीमा से उनका मुवावजा नहीं मिलता है”।

पश्चिम बंगाल प्रदेश कृषक सभा (जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की किसान इकाई है) ने कहा है कि 'ग्रामीण बंद' को सफल बनाने के लिए ग्रामीण लोगों में चलाए अपने अभियानों में उन्होंने संसद द्वारा सितंबर में किसान की कमाई और आजीविका पर पारित तीन नए कृषि कानूनों के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बताया है। संगठन के मुताबिक इन कानूनों की मदद से कॉरपोरेट्स की घुसपैठ बढ़ेगी और माध्यम दर्जे के किसान ‘खेत मज़दूर’ बन जाएंगे और उनकी आमदनी आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने केंद्र द्वारा पारित कृषि कानूनों का विरोध किया है, हड़ताल पर उनकी प्रतिक्रिया उनके स्टैंड की प्रतिबद्धता को दर्शाएगी, उक्त बातें संयुक्ता किसान सभा (आर॰एस॰पी॰ की किसान इकाई) के सचिव और पूर्व मंत्री सुभाष नस्कर ने कही। उन्होंने यह भी कहा कि, "हमने उनसे [सीएम] कहा है कि वे घोषणा करें कि बंगाल उन अधिनियमों को राज्य में लागू नहीं करेगा और उनके विकल्प के रूप में किसान समर्थक कानून बनाएँ जाएंगे। टीएमसी सरकार विरोध के रूप में 'बंद' का विरोध करता है। चूंकि वे भी नए कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं, यह समय उनकी ईमानदारी की जांच का है।” 

“हमने मुख्यमंत्री से विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों के उदाहरणों का पालन करने का आग्रह किया है, जिन्होंने किसान-समर्थक कानून पारित किए है और घोषित किया है कि केंद्रीय कानूनों को उनके राज्यों में लागू नहीं किया जाएगा। अखिल भारतीय किसान महासभा (सीपीआई मार्क्सवादी-लेनिनवादी से संबद्ध) के उपाध्यक्ष कार्तिक पाल ने कहा कि हमें अभी तक उनका जवाब नहीं मिला है।

पाल ने आगे कहा कि उनका संगठन ग्रामीण इलाकों में आम सभाओं के अलावा, पिछले तीन सप्ताह से 'रास्ता रोको' और राज्य राजमार्ग नाकाबंदी कार्यक्रम आयोजित कर रहा है, ताकि किसानों के संकट के पीछे के कारणों को उजागर किया जा सके और वे नए कृषि कानूनों के बारे में क्या सोचते हैं? कि ये कैसे उनकी तकलीफ को बढ़ाएँगे। 

यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आरएसपी की मज़दूर इकाई) के सचिव अशोक घोष ने कहा कि प्रधानमंत्री और उनके श्रम मंत्री आदतन ट्रेड यूनियनों की उपेक्षा करते हैं और वे महत्वपूर्ण श्रम कानून बदलावों पर आगे बढ़ने से पहले बैठकों और चर्चाओं के लिए यूनियनों के अनुरोधों का जवाब भी नहीं देते हैं। “केंद्र सरकार फंडिंग के स्रोतों की पहचान किए बिना उद्योगपतियों के लिए आर्थिक प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा करके गर्व महसूस करते हैं। उन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं है कि प्रवासी मज़दूर आबादी किस हद तक प्रभावित हुई है। बड़ी संख्या में प्रवासियों को अपने कार्यस्थलों पर लौटना बाकी है जिन्हे वे अपने गावों को वापस लौटने से पहले छोड़ गए थे।”

"हमारा आकलन है कि कई औद्योगिक इकाइयाँ और एमएसएमई (MSMEs) मज़दूरों की कमी के कारण उत्पादन के पहले के स्तर तक नहीं पहुँच पाएंगी। नौकरी छूटना जारी है; घोष ने कहा कि जो लोग पहले जिन इकाइयों में काम कर रहे थे, उन्हें वापस लेने के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा रहा हैं। यूटीयूसी सचिव घोष ने कहा, '' भारतीय मज़दूर संघ (बीजेपी की श्रमिक इकाई) से जुड़े लोग भी हमारी मांगों के चार्टर से सहमत हैं, लेकिन राजनीतिक कारण से वे अलग रहने पर मजबूर हैं”, ।

कांग्रेस की मज़दूर इकाई इंटक की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष क़मरुज्जमन क़मर ने बताया कि क्षेत्रों में भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन के संयुक्त अभियानों के सामान्य तरीकों के अलावा, जहां एक मजबूत उपस्थिति है, वहाँ सदस्यों ने मोटर साइकिल रैली निकाली है। उदाहरण के लिए, शहर के बाहरी इलाके यानि गार्डन रीच में, एक बाइक रैली आयोजित की गई थी। उनके संयुक्त और व्यक्तिगत अभियानों की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर, क़मर ने कहा, "इस बार ममता की पार्टी के कार्यकर्ता हड़ताल का विरोध करने के लिए सड़कों पर नहीं उतरेंगे जैसा कि उन्होंने पिछले अवसरों पर किया था। इस बार टीएमसी कार्यकर्ता चुप रहेंगे क्योंकि दीदी ने नए कृषि-कानूनों का विरोध किया है, साथ ही आवश्यक वस्तु अधिनियम में व्यापारी समर्थक कॉर्पोरेट परिवर्तन का भी विरोध किया है।”

पश्चिम बंगाल में बिहार और उत्तर प्रदेश के बाद अनुमानित 35 लाख प्रवासी मज़दूरों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर जो वापस लौट आए हैं और राज्य में रह रहे हैं; वे बिना नौकरी के हैं। "स्थिति बहुत खराब है।" क़मर ने कहा।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Bengal Workers, Farmers Ready for Nov 26 General Strike; Artists’ Outfit Extends Support

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November 26 Strike

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