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बिहार: ईंट भट्टा चिमनी ब्लास्ट आपदा नहीं लापरवाही का नतीजा है

मोतीहारी के रामगढ़वा स्थित ईंट भट्टा में शुक्रवार देर शाम एक जबरदस्त ब्लास्ट हुआ और ऊपर से चिमनी का हिस्सा ढह गया। इसमें अभी तक 9 लोगों की मौत की ख़बर है।
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9 मौतें, 10 घायल और 2 गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती। जो मजदूर ज़िंदा बच गए हैं, वो इतने भयभीत हैं कि कुछ बोलने को तैयार नहीं। यह स्थिति है, बिहार, मोतीहारी के रामगढ़वा स्थित ईंट भट्टा की, जहां कल, शुक्रवार, 23 दिसंबर की देर शाम एक जबरदस्त ब्लास्ट हुआ और ऊपर से चिमनी का हिस्सा ढह गया। इस ब्लास्ट में अब तक (24 दिसंबर की दोपहर 2 बजे तक) जिन 9 मजदूरों की मौत की खबर आ रही हैं, उनमें से कम से कम तीन उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और स्थानीय मजदूर भी हैं।

राज्य आपदा प्रबंधन और अग्निशमन विभाग की टीम अभी भी चिमनी एरिया में राहत कार्य जारी रखे हुए है, बावजूद भारी धुंध के कारण कल पूरी रात राहत कार्य में बाधा आती रही। दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने वाले में ईंट भट्टा के एक मालिक नजरूल भी हैं जबकि एक मालिक की मौत इसी ब्लास्ट में हो चुकी है।

लापरवाही किसकी?

पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने मीडिया को बताया है कि प्रथम दृष्टया चिमनी को शुरू करने के लिए आग लगाने के दौरान कुछ ऐसे मैटेरियल के इस्तेमाल की बात सामने आ रही है, जो परमिटेड (अनुमति) नहीं हैं, जैसे टायर वगैरह।

न्यूज़क्लिक के लिए इस लेखक ने मौके पर कैंप कर रहे जिला श्रम अधीक्षक सत्यप्रकाश से फ़ोन पर जब इस ब्लास्ट के कारण के बारे में पूछा तो उनका भी कहना था, “ऐसी सूचना मिल रही है कि फायरिंग (चिमनी स्टार्ट करने की प्रक्रिया) के दौरान ही यह ब्लास्ट हुआ। इन दोनों बयानों को मिला कर अगर देखा जाए तो इससे समझा जा सकता है कि कहीं न कहीं ईंट भट्टा चलाने वालों ने चिमनी स्टार्ट करने के लिए आवश्यक और लीगल प्रक्रिया का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से यह गंभीर दुर्घटना हुई।

इस संबंध में जब स्थानीय पत्रकार ईटीवी भारत के ब्रजेश झा से बात की गई तो उनका कहना था, “हर साल चिमनी को जलाने (काम शुरू किए जाने यानी फायरिंग) से पहले चिमनी को साफ़ किया जाता है। भीतर से उसकी सफाई की जाती है। ऐसा यह देखने के लिए किया जाता है कि कहीं उसके भीतर चिड़ियों ने घोंसला तो नहीं बना लिया, जाले वगैरह तो नहीं लगे हुए हैं या किसी अन्य कारण से चिमनी का मार्ग अवरूद्ध तो नहीं हो गया है। ऐसा करना इसलिए जरूरी होता है ताकि धुआँ आसानी से बाहर निकल सके।” ब्लास्ट के समय जो स्थानीय लोग वहाँ मौजूद थे, उन्होंने बताया कि ब्लास्ट के वक्त चिमनी से धुआँ का एक बड़ा गुबार निकला।

इससे यह अंदेशा भी पैदा होता है कि क्या चिमनी स्टार्ट करने से पहले सुरक्षा संबंधित जांच पूरी कर ली गई थी?

चूंकि चिमनी के काम में एक लंबे समय तक चिमनी बंद रहती है। उस दौरान मिट्टी से ईंट बनाने का काम होता है और एक बार जब वांछित संख्या में कच्ची ईंटें तैयार हो जाती है तब चिमनी को स्टार्ट किया जाता है। तो सवाल है कि क्या लंबे समय तक ठन्डी रही चिमनी को स्टार्ट करने से पहले उसकी सुरक्षा सबंधी जांच, किसी तरह के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी किए जाने का प्रावधान है? अगर हां, तो क्या ऐसा कोई एनओसी संबंधित विभाग की तरफ से जारी किया गया था? और अगर जारी नहीं किया गया था या ऐसा किए जाने का कोई प्रावधान ही नहीं है, तो फिर इस ब्लास्ट की जिम्मेदारी कैसे तय की जाएगी?

अफवाहों से भयभीत हैं मज़दूर

श्रम अधीक्षक सत्यप्रकाश से जब न्यूज़क्लिक के लिए प्रशासन द्वारा इस घटना पर कार्रवाई किए जाने को ले कर पूछा तो उनका कहना था, “नि:संदेह हमलोग अभी जांच कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी। लेकिन अभी जो मजदूर प्रत्यक्षदर्शी थे, वे इतने भयभीत हैं कि न तो अपना नाम-पता बता रहे हैं और न ही कुछ बोलने को तैयार हैं।” दरअसल, कुछ लोगों ने वहाँ यह अफवाह फैला दी है कि तुमलोगों (मजदूरों) का नाम भी एफआईआर में डाला जाएगा। इस अफवाह से मजदूर डरे हुए हैं, लेकिन प्रशासन स्थानीय जनप्रतिनिधियों से मिल कर इन मजदूरों को समझाने-बुझाने के काम में लगा हुआ है ताकि उनके बयान दर्ज किए जा सकें।

मुआवज़ा मिलेगा लेकिन न्याय...?

प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इस दुर्घटना पर संवेदना व्यक्त करते हुए ट्वीट किया है और मृतकों के आश्रितों को 2 लाख और घायलों को 50 हजार रुपये देने की बात कही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं। हिन्दी में आए उनके ट्वीट के मुताबिक़, घायलों के सही उपचार के निर्देश दे दिए गए हैं। श्रम अधीक्षक सत्यप्रकाश ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अगर मृतक मजदूर निबंधित श्रमिक होंगे तो उनके आश्रितों को 4 लाख रुपया दिया जाएगा और अगर वे निबंधित नहीं होंगे तो विभाग की तरफ से 1 लाख रुपये दिए जाएंगे। बहरहाल, यह अभी तक जांच का विषय है कि जितने मजदूर इस दुर्घटना के शिकार हुए हैं क्या वे ई-श्रम कार्डधारी थे या नहीं? समस्या यह भी है कि इनमें से कुछ मजदूर उत्तर प्रदेश के भी हैं और उनके दस्तावेज की सही जांच और सत्यापन के लिए संबंधित जिले के अधिकारियों की मदद की भी आवश्यकता होगी।

मानवाधिकार: संवेदनशील ईंट भट्टे

रामगढ़वा की यह घटना दुखद तो है ही लेकिन एक और भी तथ्य है, जिस पर रामगढ़वा के बहाने ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इन पंक्तियों के लेखक से पूर्व में हुई बातचीत में जिला श्रम अधीक्षक सत्य प्रकाश ने बताया था कि तकरीबन पिछले 2-3 महीनों के दौरान मेहसी, संग्रामपुर, ढाका आदि स्थित कई ईंट भट्टों पर श्रम विभाग को मिली गुप्त सूचना के आधार पर जब रेड मारे गए तो वहाँ से दर्जनों की संख्या में ऐसे मजदूर मिले, जो उत्तर प्रदेश के जिलों से लाए जाते हैं। रेड के बाद उनसे जब पूछताछ की जाती है तो उनके पास कोइ पहचान का दस्तावेज तक नहीं होता। न कोई मोबाइल, न कोई पहचान पत्र। उसके बाद श्रम विभाग कानूनी प्रावधानों के अनुसार उन्हें कुछ पैसे वगैरह दिलवा कर उन्हें उनके घर भेज देती है। सवाल है कि क्या ऐसा काम अनायास ही हो रहा है या इसके पीछे कोई एक ख़ास पैटर्न काम कर रहा है? यह भी जांच का विषय है, जिस पर समय रहते ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में रामगढ़वा जैसी कोई अन्य दुर्घटना न हो।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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