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बिहार चुनाव: प्रधानमंत्री आवास योजना की क्या है हक़ीक़त 

बिहार चुनाव में आवास के अधिकार को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही है जबकि चुनाव से कुछ दिनों पहले कोरोना से हुए लॉकडाउन में केंद्र की मोदी सरकार ने अपने विशेष पैकेज में भी प्रवासी मज़दूरों जो वापस अपने राज्य गए उन्हें सस्ते मकान का वादा किया था परन्तु वो कितना हक़ीक़त हुआ ये अभी भी एक सवाल है।
प्रधानमंत्री आवास योजना
Image courtesy: YouTube

बिहार दूसरे दौर के चुनाव के लिए तैयार है लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात है,पिछले डेढ़ दशक में कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी और एनडीए की सरकार ही सत्ता में रही है और पिछले छह साल से केंद्र में भी उनकी सत्ता है। इस दौरन उन्होंने कई बड़े वादे किये चाहे वो बिहार में बंद पड़े उद्योग को चालू करने या फिर बेहतर शिक्षा-स्वास्थ्य और आवास देने का वादा और दावा किया। लेकिन इस चुनाव में एनडीए और बीजेपी अपने पिछले वादों पर कुछ नहीं बोल रही है। वो केवल मतदाताओं को लालू राज की यदा दिला रही है, उनका बहुत ही पापुलर वादा था कि 2022 तक सभी को पक्के मकान दिए जाएंगे। अब हम साल 2020 के लगभग अंत में आ गए हैं लेकिन अभी यह योजना कहाँ तक पहुंची इसपर एक गंभीर सवाल है।

सबसे बड़ी बात है बिहार चुनाव में आवास के अधिकार को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही है, जबकि चुनाव से कुछ दिनों पहले कोरोना से हुए लॉकडाउन में केंद्र की मोदी सरकार ने अपने विशेष पैकेज में भी प्रवासी मज़दूरों जो वापस अपने राज्य गए उन्हें सस्ते मकान का वादा किया था परन्तु वो कितना हक़ीक़त हुआ ये अभी भी एक सवाल है।  

पूरा देश ही अपने निर्धारित लक्ष्य से बहुत पीछे है लेकिन बिहार राज्य देश के औसत से भी बहुत कम घर बना रहा है। देश का राष्ट्रीय औसत 52% है यानी देश अपने निर्धारित लक्ष्य का 52 % काम पूरा कर रहा है जबकि बिहार मात्र 39%  कर पा रहा है।

बिहार में बहुत बड़ी आबादी आज भी बेघर या कच्चे मकानों में रहने को मज़बूर है लेकिन सरकार प्रशासन के मिलीभगत के कारण आज भी वो अपने सुरक्षित आवास के अधिकार से वंचित है।

2022 तक 'सबके लिए घर' के लक्ष्य को हासिल के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण को 2016 में बड़े ही जोर शोर से लॉन्च किया था। हालंकि यह कोई नई योजना नहीं थी पिछली मनमोहन सरकार की इंदिरा आवास योजना का नाम बदलकर इस नई योजना को शुरू किया गया था। केंद्र सरकार ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को प्रोजेक्ट लागू करने वाले सहयोगी के तौर पर अधिकृत किया। उसने इस वित्त वर्ष तक 2 करोड़ 27 लाख (22698293) तक घर बनाने का लक्ष्य रखा था लेकिन अभी तक इसका मात्र 1 करोड़ 18 लाख (11841594) घर ही बन सके हैं।  

बिहार  की स्थति तो बाकी देश से और भी बदतर है। संसद के मानसून सत्र में एक प्रश्न के उत्तर में ग्रामीण विकास मंत्री ने प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत बिहार में बने घरों और फंड के स्टेट्स के बारे में जानकारी दी। आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 18 सितंबर तक 12,32,977 हाउसिंग यूनिट का निर्माण हुआ था। केंद्र ने जिलावार आंकड़ा भी जारी किया था। जिसके तहत अररिया जिले में सबसे अधिक 73,263 , जबकि, अरवल जिले में सिर्फ 4954 यूनिट का निर्माण हुआ।

मानसून सत्र में प्रश्नकाल के दौरान ग्रामीण विकास मंत्री ने प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत 2016-17 से 2020 तक आवंटित किए गए फंड और  इस्तेमाल किए गए फंड के बारे में भी जानकारी दी। लिखित उत्तर में उन्होंने कहा था कि मार्च 2020 तक ग्राम सभा द्वारा सत्यापित आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 33,48,928 लाभार्थी परमानेंट वेट लिस्ट (पीडब्ल्यूएल) में है यानी इतने लोगो को मकान मिलने हैं। इनमें से 21,85,181 को आवंटन 2016-17 से 2019-20 तक किया जा चुका है। आवंटित घरों में 19,93,783 घरों की स्वीकृति मिल चुकी है और 9,09,121 मकान पूर्ण हो चुके हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत लाभार्थियों का चयन सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना-2011 का आकलन करने के आधार पर किया गया था। 

जबकि एक अन्य सवाल के जवाब में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने लिखित में जवाब दिया है कि उन्होंने अभी तक बिहार को कुल 41 हज़ार करोड़ (4107681.222) की राशि आबंटित की है जबकि उन्होंने रिलीज किया लगभग इसका आधा 21 हज़ार करोड़ (2176075.483), लेकिन बिहार सरकार इसे भी पूरा खर्च नहीं कर पाई है।

ये हाल उस राज्य का है जहाँ हर साल बाढ़ के कारण हज़ारों कच्चे मकान ढह जाते हैं, आज भी बड़ी संख्या में लोग पक्के मकान की आस लगाए हैं लेकिन सरकारी दावे एक तरफ ज़मीनी हक़ीक़त दूसरी तरफ है।

हमने बिहार के कई गाँवो के लोगो से बात की सभी ने सरकार के इस दावे को नकारा और बोला कि एक तो प्रधानमंत्री आवास योजन के तहत मकान मिल नहीं रहे हैं और जहाँ दिए भी जा रहे है वहां इसके लिए रिश्वत के रूप में मोटी रकम ली जाती है। इस बात की पुष्टि कई जिलों के ग्राम निवसियों ने की, सभी ने कहा 15 से 20 हज़ार रुपये समान्य तौर लिए जाते हैं और अगर आपके कागज़ पूरे नहीं हैं तो 30 हज़ार तक लिया जाता है। कई जगह तो यह भी देखा गया कि संपन्न परिवार को इसका लाभ दिया गया क्योंकि उसने लगातर घूस दी। जो जरूरतमंद भी हैं और इसके लिए योग्य हैं उन्हें इसका फायदा नहीं मिल रहा है। लेकिन ये सवाल इस चुनाव से पूरी तरह गायब दिख रहा है कोई भी दल इसको लेकर खुलकर नहीं बोल रहा है। हालांकि विपक्षी गठबंधन के नेता तेजस्वी ने गाहे बगाहे सरकारी योजनाओ में हो रहे भ्रष्टाचार पर बोला है परन्तु सत्ताधारी दल इसपर बोलने से बच रहा है। वो नए वादे कर रहा है लेकिन सवाल यह भी कि उसके पुराने वादो का क्या हुआ? उनपर कौन जवाब देगा! इस तरह के कई सवाल इस चुनाव में हैं और उम्मीद की जा रही है इन सभी सवालों पर जनता के जवाब का खुलासा 10 नवंबर होगा। आपको मालूम है कि बिहार चुनाव के तीनों दौर की मतगणना 10 नवंबर को की जाएगी। 

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