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बंगाल: पीएमएवाई योजना बंद होने से जंगल महल के हज़ारों परिवार अधर में

केंद्र और राज्य के आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसे ग़रीब परिवार भविष्य में आने वाले वार्षिक तूफान से डर रहे हैं, जो घरों को उखाड़ देगा, नष्ट कर देगा।
Bengal
बांकुड़ा के ओंडा ब्लॉक के कोचखाली गांव में भूमि मजदूरों के घरों की दशा

तापमान पहले ही 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है। कुछ ही दिनों में, भयानक कालबैशाखी झोर (गड़गड़ाहट के साथ तूफान) शुरू हो जाएगा, जो बंगाल के जंगल महल इलाकों के बांकुरा, पुरुलिया और झाड़ग्राम जिलों के दूरदराज के गांवों में जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले हजारों गरीब और हाशिए पर रहने वाले परिवारों के लिए खतरा पैदा करेगा।

इन हाशिए पर रह रहे परिवारों को अपनी छतें खोने और दीवार गिरने का खतरा झेलना पड़ता है, जिससे संभावित मौतें होती हैं, जो हर साल बड़ा दुखद होता है। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) तीन सालों से निष्क्रिय है, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) का काम भी पश्चिम बंगाल में एक विस्तारित अवधि के लिए रोक दिया गया है। दोनों ही केंद्र प्रायोजित योजनाएं हैं।

इलाके में बड़ी संख्या में गरीब लोग रहते हैं जिनके पास अपने घरों की सबसे बुनियादी मरम्मत का खर्च उठाने के लिए भी वित्तीय साधन नहीं हैं, जिससे राज्य में कालबैशाखी झोर आने पर विनाशकारी घटनाएं हो सकती हैं।

इन इलाकों से संसद के सभी तीन सदस्य (सांसद) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हैं जो केंद्र में सत्ता में है जबकि बंगाल की विधान सभा और पंचायत समिति (निर्वाचित ब्लॉक विकास प्राधिकरण) के अधिकांश सदस्य सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से हैं। लेकिन, स्थानीय निवासियों का कहना है कि आवास के लिए बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, पीएमएवाई परियोजना रुकने के बाद से कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

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बांकुरा 1 ब्लॉक, बांकुरा के बादुलारा गांव बाउरीपारा की घर की दशा।

केंद्र और राज्य के सत्ताधारी दल के नेता और निर्वाचित सदस्य केवल आरोप-प्रत्यारोप में लगे हुए हैं और लोगों को कोई जवाब नहीं मिलता है। पीएएमवाई परियोजना के तहत कंक्रीट के घरों के निर्माण की मांग को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा पंचायतों, ब्लॉक स्तरों और यहां तक कि संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों के समक्ष कई विरोध प्रदर्शन और ज्ञापन दिए हैं, लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

“वर्तमान में, प्रशासन (लोकसभा) चुनाव अभियान पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है। जबकि बीजेपी और टीएमसी केंद्र सरकार की ओर से मोदीजी और बंगाल की ओर से ममता बनर्जी इन इलाकों में किए गए कथित व्यापक विकास का प्रदर्शन करने में व्यस्त हैं। हालांकि, हमें कोई ठोस विकास नहीं दिख रहा है।'' बांकुरा जिले के रानीबंध में रुद्र के बुधोन सरदार और झाड़ग्राम जिले के बेलपहाड़ी के कटिपदा हांसदा ने इस लेखक को उक्त बातें बताई। सरदार की पत्नी, निर्मला ने कालबैशाखी झोर के दौरान उनके घरों पर होने वाले विनाश पर चिंता व्यक्त की। 

प्रत्येक गांव में स्कूल भवनों की अनुपस्थिति चुनौतियों को बढ़ाती है, जिससे निराश्रित परिवारों को खुली हवा में बने अस्थायी तंबुओं में आश्रय लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उन्हें जहरीले सांपों और कीड़ों का खतरा रहता है। दो स्थानीय निवासियों ने कहा कि हर साल इस दौरान लोग सांप के काटने से मर जाते हैं और गर्भवती महिलाओं को बहुत परेशानी उठनी पड़ती है। प्रशासन कुछ सूखा भोजन उपलब्ध कराता है, लेकिन पीने के पानी की कमी है। उन्होंने आगे कहा कि, “क्या यही वह विकास है जो हम चाहते हैं? हजारों लोग सचमुच बेघर होने को मजबूर हैं।”

पीएमएवाई मकान किसे मिले और किसे नहीं मिले?

2011 की जनगणना के बाद, अगले वर्ष आर्थिक सर्वेक्षण शुरू हुआ था। इस सर्वे के दौरान सरकारी कर्मचारियों के साथ हाल ही में राज्य की सत्ता में आई टीएमसी के कार्यकर्ता भी मौजूद थे। सत्ताधारी दल के निर्देशानुसार आवास के लाभार्थियों के नाम दर्ज किए गए थे। 

”रानीबंद ब्लॉक बांकुरा के अंतर्गत रावतोरा ग्राम पंचायत के एक पंचायत अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “इस आर्थिक सर्वेक्षण का संचालन करते समय, विशेष व्यक्तियों की वित्तीय और आवास स्थितियों का दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिए था। इस जानकारी के आधार पर अंक निर्धारित किये गये। पीएमएवाई नियमों के अनुसार, न्यूनतम आय या पर्याप्त आवास के बिना परिवारों को परियोजना में शामिल किया जाना चाहिए। (पीएमएवाई के तहत, लाभार्थी को बरामदा/बालकनी वाला एक कमरा और एक अनिवार्य शौचालय बनाने के लिए 1 लाख 47,000 रुपये दिए जाते हैं)। कंक्रीट कमरे की छत एस्बेस्टस शीट से ढकी होनी चाहिए। हालांकि, हमें स्थानीय टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा बताए गए नामों को पंजीकृत करने पर मजबूर होना पड़ा। भले ही व्यक्तियों के पास वित्तीय स्थिरता हो या उनके पास मौजूदा कंक्रीट के घर हों, उनके नाम इस योजना में लाभार्थियों के रूप में पहचाने किए गए थे।” 

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ओंदा प्रखंड अंतर्गत कोचखाली गांव की माधुरी दास यहीं रहकर खाना बनाने को मजबूर हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि, इसके अलावा, आर्थिक सर्वेक्षण करने के बाद, सरकारी अधिकारियों ने वास्तविक नाम दर्ज किए, लेकिन राजनीतिक कारणों से, उन नामों को सत्तारूढ़ टीएमसी के नेतृत्व वाली पंचायत द्वारा मनमाने ढंग से सूची से हटा दिया गया था।

उदाहरण के लिए, बांकुरा के रानीबांध ब्लॉक के अंतर्गत सिंदुरपुर गांव के एक गरीब खेत मजदूर बिजॉय दास को पीएमएवाई में सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन कथित तौर पर उनका नाम राजाकाटा ग्राम पंचायत द्वारा हटा दिया गया था। दास की उसके बाद मृत्यु हो गई, वह अपनी पत्नी हिरामोनी और बेटे अमल को बिना किसी नौकरी या आय के एक जीर्ण-शीर्ण घर में छोड़ गए हैं। बेटा अब एक मजदूर के रूप में बेंगलुरु चला गया है, और हिरामनी को अकेला छोड़ गया है, जो मुश्किल से गुजर-बसर कर रही है।
हीरामोनी ने इस लेखक को बताया कि, "मैंने सूची ली और राजाकाटा ग्राम पंचायत प्रधान और रानीबांध खंड विकास अधिकारी को यह बताने के लिए दिखाया कि कैसे मेरे पति का नाम एक झटके में काट दिया गया।" उन्होंने कहा कि प्रधान या बीडीओ की ओर से इस बारे में कोई जवाब नहीं आया कि उनके पति का नाम क्यों हटा दिया गया, संदेह है कि यह जानबूझकर किया गया था क्योंकि परिवार ने टीएमसी का समर्थन नहीं किया था। उसने रोते हुए कहा कि, "किसी भी क्षण, मैं इस घर में मर सकती हूं।"  

झाड़ग्राम जिले के बेलपहाड़ी ब्लॉक के अंतर्गत शिमुलपाल ग्राम पंचायत के कोडोलबोनी गांव की जमुना और माया शबर ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इस जंगली इलाके में 36 परिवारों के बीच रहने के बावजूद, उनमें से किसी को भी पीएमएवाई घर नहीं मिला है।

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झारग्राम जिले के बेलपहाड़ी ब्लॉक के अंतर्गत कोडोलबोनी गांव में माया शबर की घरेलू स्थिति।

माया शबर ने कहा कि, "हमने कई बार ग्राम पंचायत कार्यालय और बेलपहाड़ी ब्लॉक कार्यालय का दौरा किया है, लेकिन हमें नजरअंदाज कर दिया जाता है।" यह सच है कि इस इलाके में एक भी घर रहने लायक नहीं है।  

पुरुलिया जिले के सतुरी ब्लॉक के हंसदिमा गांव की एक मजदूर और विधवा आकुरी बाउरी ने कहा कि उन्हें पीएमएवाई योजना के तहत एक घर के लिए मंजूरी मिली थी, और उन्होंने कर्ज़ लेकर 8/6 फीट का घर बनाना शुरू किया, लेकिन दीवार के निर्माण के बाद उन्हें भुगतान नहीं किया गया। उसने आरोप लगाया कि किसी ने उसके घर निर्माण के पैसे का दुरुपयोग किया है। बाउरी अब अपने तीन बच्चों के साथ फटे तंबू के नीचे रहती है, वह इस बात को लेकर अनिश्चितता व्यक्त करती है कि कहां रहे और कर्ज़ कैसे चुकाया जाएगा। 

मीडिया में यह व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया है कि पुरुलिया, बांकुरा और झाड़ग्राम जिलों में हजारों परिवार पीड़ा में अपने दिन बिता रहे हैं, उनमें से कई को पीएमएवाई के तहत घर बनाने के लिए मिलने वाली धनराशि नहीं मिल रही है।

पीएमएवाई के तहत घर के लिए कई बार आवेदन करने के बावजूद, बांकुरा जिले के ओंडा ब्लॉक के अंतर्गत पुनीसोल गांव की 40 वर्षीय विधवा रेशमा बीबी को छह साल में घर नहीं मिला है। गांव के केशबपुर इलाके में उनका घर कुछ साल पहले कालबैशाखी झोर के दौरान नष्ट हो गया था।

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रेशमा बीबी अपने तीन नाबालिग बच्चों के साथ बांकुरा के पुनीसोल के घने वन इलाके में रहती हैं। 

रेशमा बीबी ने बताया कि, “कई बार मैं घर के लिए आवेदन जमा करने के लिए पुनीसोल ग्राम पंचायत कार्यालय और ग्राम पंचायत प्रधान के घर गई, लेकिन प्रधान ने मेरा आवेदन भी स्वीकार नहीं किया। इस स्थिति में, मुझे अपने तीन बच्चों के साथ 8 किलोमीटर दूर नटुनग्राम वन कार्यालय के पास जंगल के बीच में मिट्टी और पेड़ की शाखाओं जैसी स्थानीय सामग्री इकट्ठा करके एक झोपड़ी में रहने को मजबूर होना पड़ा है।” 

यह जंगल इतना घना है कि लोग दिन के उजाले में इसमें जाने से डरते हैं और यहां एक भी मवेशी नहीं चरता है। रेशमा बीबी गांव-गांव बेचने के लिए पेड़ों की पत्तियां और टहनियां इकट्ठा करती हैं, और बमुश्किल गुजारा कर पाती हैं। वह और उसके बच्चे आधा पेट खाना खाकर अपना दिन बिताते हैं। पिछले छह साल से हर साल तूफान और बारिश में उनकी झोपड़ी ढह जाती है।

पूछा कि, ऐसी स्थिति में भी उसे पंचायत से कोई मदद नहीं मिली है। “मैं कब तक ऐसे जी सकता हूं? क्या मुझे पंचायत से घर पाने का अधिकार नहीं है?” 

उन्होंने कहा कि दो साल पहले, ओंडा ब्लॉक विकास अधिकारी शुभंकर भट्टाचार्य ने रेशमा बीबी के लिए एक घर की व्यवस्था करने का वादा किया था, लेकिन आज तक कोई प्रगति नहीं हुई है।

2018 में, पीएमएवाई परियोजना के पहले चरण के पूरा होने के बाद, आवास प्लस नामक एक सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें आवास की स्थिति की स्थिर तस्वीरों की जरूरत थी। सर्वेक्षण नागरिक स्वयंसेवकों और पंचायत कर्मचारियों द्वारा किया गया था और टीएमसी कार्यकर्ताओं की निगरानी में हुआ था। कथित तौर पर यहां भी राजनीतिक वफादारी को तरजीह दी गई। इसके बावजूद, कई वास्तविक लोगों को पंजीकृत किया गया था, लेकिन बंगाल के विभिन्न हिस्सों के लोगों ने पहले चरण में आवास भ्रष्टाचार की शिकायत की।
जब 2021 में एक केंद्रीय ऑडिट टीम ने दौरा किया, तो उन्हें पीएमएवाई आवास परियोजना के संबंध में कई अनियमितताएं मिलीं। “जब हमने केंद्रीय टीम को पहले चरण के घर दिखाए, तो हम शर्मिंदा हुए। कई आर्थिक रूप से संपन्न परिवार, जिनके पास पहले से ही कंक्रीट के घर थे, उन्हें इस परियोजना के तहत घर मिले, कुछ ने इस परियोजना के तहत गौशाला भी बनाई। उन्होंने इस अवसर का लाभ केवल राज्य की सत्ताधारी पार्टी के प्रति वफादारी दिखाने के लिए उठाया,'' बांकुरा जिले के सोनामुखी, रायपुर, सारेंगा, बरजोरा पुरुलिया, और झाड़ग्राम जिले में लोधासुली, बेलपहाड़ी और गोपीबल्लभपुर और ओंडा के साथ-साथ मानबाजार, जॉयपुर और झालदा ब्लॉक के कई कर्मचारियों के लिए यह आम बात थी। 

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ड्रम म्यूजिशियन धिरेन को जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि उन्हें पीएमएवाई परियोजना का लाभ नहीं मिला। 

जांच में भ्रष्टाचार का खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल में पीएमएवाई के लिए धन आवंटन बंद कर दिया था। लेकिन स्थानीय लोगों का सवाल है कि दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए शिकायत क्यों नहीं दर्ज करायी गयी। 

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बांकुरा में 2,24,072 परिवार, पुरुलिया में 2,50,917 और झारग्राम में 99,326 परिवार आवास प्लस सर्वेक्षण में पंजीकृत पाए गए थे। उनमें से एक बड़ा हिस्सा अभी भी कमजोर परिस्थितियों में रह रहा है, और दो साल से वे इस सहायता से वंचित है।

बांकुरा से सांसद और केंद्रीय राज्य शिक्षा मंत्री भाजपा नेता सुभाष सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के कारण इस परियोजना की फंडिंग रोक दी है। दूसरी ओर, टीएमसी नेता, रानीबांध विधायक और बंगाल के खाद्य मंत्री जोत्स्ना मंडी ने दावा किया कि केंद्र सरकार के "एकतरफा फैसले" के कारण पीएमएवाई रोक दी गई थी।

इस मामले पर तीनों जिलों के संबंधित सरकारी अधिकारी कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।

पश्चिम बंगाल प्रवासी श्रमिक संघ के राज्य नेता उज्ज्वल सरकार ने कहा कि, "सच्चाई यह है कि गरीब, बेघर परिवार दो सत्तारूढ़ दलों के बीच इस राजनीतिक लड़ाई के शिकार हैं।" उन्होंने कहा कि जंगल महल के इन तीन जिलों से कई युवा, श्रमिक के रूप में अपने माता-पिता, पति-पत्नी और बच्चों को जर्जर घरों में छोड़कर चले गए हैं। इसकी जानकारी होते हुए भी सरकारें और पंचायतें चुप क्यों हैं? 

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पश्चिम बंगाल में 'गणशक्ति' अखबार के लिए जंगल महल इलाके को कवर करते हैं। 
 

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