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बिहार : सामाजिक-आर्थिक सर्वे पर INDIA गठबंधन की बैठक

1 दिसंबर’23 को जगजीवन राम-स्मृति व्याख्यान के तहत आयोजित ‘सामाजिक-आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के आईने में बिहार के विकास की कार्ययोजना’ विषयक विमर्श इसी कि एक कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है।
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चर्चा है कि महागठबंधन सरकार द्वारा जारी किये गए बिहार के सामाजिक-आर्थिक सर्वे रिपोर्ट की चर्चा को दबाने के लिए “गोदी मिडिया” ने अपना पुरा दम-खम लगा दिया। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि न्यूज़क्लिक मिडिया संस्थान समेत कई वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकारों पर दिल्ली पुलिस का  छापेमारी-गिरफ़्तारी और पूछताछ प्रकरण भी उसी का सुनियोजित हिस्सा था।

बावजूद इसके यह मुद्दा मौजूदा राजनितिक विमर्शों के केंद्र में निरंतर अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। एक ओर, बिहार की तर्ज़ पर कई अन्य राज्यों की गैर भाजपा सरकारों ने अपने यहाँ भी ऐसा ही सर्वेक्षण कराने की घोषणा कर दिया है। वहीँ, हालिया संपन्न हुए कई राज्यों की विधान सभा चुनावों में भी इस मुद्दे को कॉंग्रेस समेत कई राजनितिक दलों द्वारा काफी ज़ोर शोर से उठाया गया।

वैसे, इन दिनों प्रदेश में अन्दर से लेकर बाहर की राजनीतिक चर्चाओं में इस मुद्दे को लेकर लगातार सरगर्मी बनी हुई है। विपक्ष एनडीए गठबंधन दलों-नेताओं द्वारा सर्वे रिपोर्ट में “विसंगति-कमी” दिखाकर ऐतराज तो जताया जा रहा है लेकिन खुलकर विरोध करने का जोखिम कोई भी नहीं लेना चाह रहा है।

सर्वे रिपोर्ट के निष्कर्षों-नतीजों को आधार बनाकर बिहार के सम्यक विकास की भावी कार्ययोजनाओं को लेकर कई स्तरों पर गहन विमर्श भी ज़ोरों पर है।

1 दिसंबर’23 को जगजीवन राम-स्मृति व्याख्यान के तहत आयोजित ‘सामाजिक-आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के आईने में बिहार के विकास की कार्ययोजना’ विषयक विमर्श इसी कि एक कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है। जिसमें महागठबंधन से जुड़े वाम एवं समाजवादी धारा के राजनितिक दलों के अलावे कई सामाजिक विशेषज्ञ प्रतिनिधियों का जुटान हुआ।

विमर्श के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनितिक शोध संस्थान के निदेशक नरेंद्र पठाक ने कहा, "बिहार की सरकार द्वारा जारी सामाजिक-आर्थिक सर्वे रिपोर्ट आने के बाद से मौजूदा राजनीति की भाषा-शैली तक में साफ़ परिवर्तन दीख रहा है। क्योंकि सर्वे रिपोर्ट ने दिखला दिया है कि आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस प्रदेश के अंदर वंचित-उपेक्षित समुदाय के लोगों विकास और उनके सामाजिक न्याय की ज़मीनी सच्चाई क्या और कैसी है। जिसे लेकर सामाजिक न्याय और जन मुद्दों को लेकर संघर्ष करनेवाले दलों-संगठनों को बिहार के सम्यक विकास की कार्ययोजना को सरकार के समक्ष लाना एक अहम् कार्यभार है।"

महागठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल की ओर से बोलते हुए पार्टी मख्यालय प्रभारी श्रीमती मुकुंद सिंह ने कहा, "सचमुच में बिहार की सरकार ने लम्बे संघर्षों के बाद सर्वे रिपोर्ट लाकर एक साहसिक व ऐतिहासिक काम किया है। भाजपा व केंद्र सरकार द्वारा पैदा की गयी तमाम बाधा-अड़चनों से लड़ते हुए बिहार की सरकार ने असंभव को संभव कर दिखाया। लेकिन अब यहाँ से आगे का रास्ता कहाँ जाएगा, यह सवाल भी केन्द्रिय महत्व रखता है। क्योंकि ये मौन आंकड़े हमारे विकास की वास्तविक तस्वीर को सामने ला दे रहें हैं कि- क्या स्मार्ट सिटी, बड़े बड़े फ्लाई ओवर और चमचमाती बिल्डिंगें ही विकास का पैमाना होंगी या कि इसी विकास के अंतिम पायदान पड़े उन असंख्य वंचित समुदायों के लोगों का विकास भी कोई मुद्दा बनेगा। सर्वे रिपोर्ट के प्रति अपने दल की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए इसके आधार बनाकर ज़ल्द से ज़ल्द विकास की पूरी कार्ययोजना बनाने और उनका ज़मीनी अनुपालन की आवश्यकता पर विशेष ज़ोर दिया। क्योंकि योजनायें तो बन जाती हैं लेकिन ज़मीनी धरातल पर लागू करने का काम अक्सर छूट जाता है।"

वाम दलों की ओर से बोलते हुए भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, "आज पूरे देश में इस सर्वे रिपोर्ट की ज़बरदस्त चर्चा है। जिसमें बहुत ज़रूरी आंकड़े सामने आये हैं। इसे लेकर पुरे देश में ऐसी जनगणना कराने की मांग उठ रही है।"

सर्वे रिपोर्ट में बिहार की गरीबी जो सामने आ गयी है, वास्तव में वह अति गंभीर गरीबी का मामला है। जिसके त्वरित और स्थायी समाधान को लेकर काफी गंभीर होने की आवश्यकता है। सरकार ने अति गरीब परिवारों के लिए जो दो लाख रूपये देने की घोषणा की है वो तो भारी क़र्ज़ के बोझ में डूबे इन परिवारों का कर्जा चुकाने में ही ख़त्म हो जाएगा। क्योंकि इन दिनों महाजनी व्यवस्था नए नए रूपों में धड़ल्ले  से जारी है। इसलिए फौरी ज़रूरत इस बात की है कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाय, जिसके लिए निशचय ही सरकार को कारगर ढंग से योजनायें बनानी होंगी।"

दीपंकर ने आगे कहा, "एक कड़वा सच जो बार बार सामने लाया जाता रहा है कि- भारत में जिस पूंजीवाद का विकास ब्राह्मणवाद के साथ मिलकर हुआ है, इन दोनों से लड़े बगैर जातीय वर्चस्व और जाति उन्मूलन से निजात नहीं मिल सकती है। जिसके लिए एक समीकृत योजना की ज़रूरत है।"

ए एन सिन्हा सामाजिक संस्थान के डा. विद्यार्थी  विकास ने कहा, "दुनिया में आज़ाद भारत ही एकलौता ऐसा देश रहा जहाँ कभी भी जाति आधारित जनगणना नहीं होने दिया गया। आज जब बिहार की सरकार ने यह साहस दिखलाया है तो हमें ये देखना ही होगा कि वे कौन लोग हैं जो जाति जनगणना नहीं चाहते हैं। जबकि बाबा साहेब से लेकर अनेक विद्वान-विशेषज्ञ बार बार कहते रहें हैं कि इस देश के ज़र्रे ज़र्रे में जाति समायी हुई है। जिसका सम्पूर्ण उन्मूलन किये बगैर कोई भी विकास बेमानी होगा।"

सामाजिक कार्यकर्त्ता संतोष यादव ने कहा, "वर्षो पूर्व लोहिया जी ने कहा था कि- लोग मेरी बात मानेंगे मेरे मरने के बाद, आज वो सच में चरितार्थ हो रहा है। बिहार में जारी सर्वे रिपोर्ट और आंकड़े सबको आईना दिखा रहें हैं। जो इस बात को भी खुलकर कह रहें हैं कि आज जाति पर खुलकर बात होनी चाहिए। जिस विशाल समुदायों को दबंगों-शासकों द्वारा पिछले 5000 सालों से भी अधिक समय से वंचित-उपेक्षित बनाकर हाशिये पर रखा गया, सर्वे रिपोर्ट चीख़ चीख़ कर उसे सार्वजनिक कर रहा है। वर्चस्व और पूंजी कि ताक़तों द्वारा देश पर थोपे जा रहे यूरोपीय विकास के मॉडल को रकना होगा। जिसका लक्ष्य ही है कि भारत जैसे देशों को सस्ता श्रम और लूट का चारागाह बना कर रखो।"

किसान आंदोलन के चर्चित नेता सुनीलम ने कहा, " जैसे देश के किसानों के लिए एम्एसपी का सवाल एक केन्द्रीय महत्व का उसी प्रकार से कर्ज़ा मुक्ति का मुद्दा भी अब एक बड़ा सवाल बन गया है। जिसके वास्तविक समाधान किये बगैर हमारा कोई भी विकास बेमानी होगा। बिहार में बाढ़-सुखाड़ के भयावह सवाल को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए और राज्य की सरकार को इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे। "

दिल्ली से आये वरिष्ठ समाजवादी एक्टिविष्ट विजय प्रताप ने इस बात पर काफी प्रसन्नता जाहिर की कि आज वामपंथी और समाजवादी धारा के लोग एक साथ एक मंच पर आ रहें हैं। उन्होंने कहा, "आज जबकि केंद्र संचालित “हिन्दू-मुसलमान वोट की राजनीति” का कारगर काट बिहार द्वारा जारी समाजिक सर्वे रिपोर्टों की सच्चाई के सवालों से ही किया जा सकता है। तमाम तरह के सामाजिक अभियानों और जन संघर्षों को एक मंच पर लाने का भी आह्वान किया।"

इसके अलावा कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे, जिनके अनुसार सर्वे रिपोर्ट को एक नए सामाजिक न्याय का आंदोलन बनाना समय की मांग है। जिसकी शुरुआत बिहार में होना, साबित करता है कि “बिहार शोज द वे” कहा जाना, एक बार फिर से चरितार्थ हो रह है। 

कार्यक्रम का संचालन समकालीन लोकयुद्ध पत्रिका संपादक मंडल के कुमार परवेज़ ने की।

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