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बिहार ज़हरीली शराब कांड: नहीं थम रहा मौत का सिलसिला, 16 नवंबर को समीक्षा करेगी सरकार

‘ताला लागल बा, पाला खुलल बा’ की तर्ज़ पर जारी है शराबबंदी: भाकपा माले ने विपक्षी महागठबंधन से एकजुट होकर राज्य सरकार को घेरने का किया आह्वान।
Bihar Poisonous Liquor Case

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा ‘शराबबंदी कानून तोड़नेवाले को नहीं छोड़ेंगे’ की सख्त चेतावनी के बावजूद आ रही ख़बरों की माने तो जहरीली शराब से हो रही मौतों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है।

सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि जब से नीतीश कुमार ने ये घोषणा की है कि 16 नवंबर को वे शराबबंदी अभियान समेत अन्य सभी मामलों की समीक्षा करेंगे तो ऐसे में शराब माफिया व कारोबारियों को एक तरह से मौका मिल गया है कि वे 16 नवंबर तक पूरा लाभ उठाकर अपने जमा माल को खपा डालें। नकली व जहरीली शराब से होनेवाली मौत की घटनाएं भी यही दिखा रहीं हैं कि तमाम गिरफ्तारियों को धता बताते हुए भी शराब माफिया अपना कारोबार धड़ल्ले से किये जा रहें हैं।

प्रदेश में त्योहारों की गहमागहमी के बावजूद मौजूदा हालात यही बता रहें हैं कि फिलहाल यह पूरा मामला नहीं थमने वाला है. त्योहारों के समाप्त होते ही इस मद्दे को लेकर सत्ता और विपक्षी राजनितिक दलों द्वारा एक दूसरे को घेरने की प्रक्रिया और अधिक तीखी होनी है।

उक्त सन्दर्भों में ही 11 नवंबर को मीडिया में आई ख़बरों में के अनुसार भाकपा माले बिहार सचिव का विशेष बयान गौर करने वाला है। जिसमें उन्होंने सम्पूर्ण विपक्ष से राज्य में पूर्ण शराबबंदी अभियान की विफलता और जहरीली शराब से हो रही मौत की जिम्मेवार नीतीश कुमार सरकार को घेरने का आह्वान किया है। 29 नवंबर से 3 दिसंबर तक होनेवाले बिहार विधान मंडल के सत्र में विपक्षी महागठबंधन की तमाम पार्टियों से एकजुट होकर सदन से सड़क तक की लड़ाई शुरू करने की बात कही है। इस बाबत भाकपा माले की ओर से राजद और कांग्रेस को विशेष पत्र भेजने की भी बात कही गई है।

जहरीली व नकली शराब से हो रही मौत की घटनाएं उत्तर बिहार के गोपालगंज व पश्चिम चंपारण के बाद समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिले में भी हो चुका है। 9 नवंबर को मुजफ्फरपुर के कांटी प्रखंड स्थित बरियारपुर व मनिकापुर इलाके में आधा दर्जन से अधिक लोगों के जहरीली शराब का शिकार होने की सूचना है। जिसमें से पांच लोगों की मौत हो चुकी है और शेष स्थानीय अस्पतालों में गंभीर अवस्था में इलाजरत हैं।

छठ पूजा की गहमागहमी के बीच भी सामाजिक जनसंगठन इंसाफ मंच और भाकपा माले की जांच टीम प्रभावित गांव में पीड़ित परिजनों से मिलने पहुंची। इस जांच टीम ने भी लगभग वही निष्कर्ष दिया है जो इसके पहले जहरीली शराब से प्रभावित इलाकों में गयी अन्य जांच टीमों ने वहां के अध्ययन में पाया था।

सनद रहे कि ये जांच टीमें क्रमशः इसी माह के 4 नवंबर भाकपा माले विधायक अमरजीत कुशवाहा तथा 5 नवंबर को माले के ही विधायक वीरेन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में प्रभावित इलाकों में गयी थीं। जिसने गोपालगंज और पश्चिमी चंपारण के जहरीली शराब हादसा क्षेत्रों का दौरा कर मृतकों के पीड़ित परिवारों तथा ग्रामीण समाज के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की थी।

सियासी चर्चाओं में जहरीली शराब पी कर मरनेवालों पर मुख्यमंत्री की टीप्पणी – जो लोग गड़बड़ करेंगे तो इसी तरह से चले जायेंगे... मृतकों व उनके पीड़ित परिजनों के प्रति एक किस्म का नकारात्मक रुख और इस घटना के दोषियों का मनोबल बढ़ाने वाला कहा जा रहा है।

बिहार में जहरीली शराब से मौत होने की कई घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं लेकिन इस बार का मामला ज़्यादा संगीन लग रहा है। जो विशेषकर नीतीश सरकार द्वारा पिछले पांच वर्षों से बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के तमाम दावा और दलीलों को झूठा साबित कर रहा है। साथ ही वर्तमान समय में पूरे प्रदेश के गांव टोले मुहल्लों से लेकर कस्बों शहरों और महानगरों में संस्थाबद्ध हो चुके शराब तस्करी और अवैध-नकली शराब कारोबार के सर्वव्यापी होने को भी उजागर कर रहा है।

जहरीली शराब से मौत को लेकर पूरा विपक्ष न सिर्फ सरकार की असफलताओं को उठा रहा है बल्कि पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से जारी अवैध और नकली शराब कारोबार को नहीं रोक पाने के पीछे सत्ताधारी दल के राजनेताओं, अफसर, पुलिस प्रशासन और शराब माफियाओं की चौकड़ी को खुला संरक्षण देने का भी आरोप लगा रहा है।

जहरीली शराब की घटनाओं को लेकर लगातार मांग की जा रही है कि आखिर कैसे हो रहा है ज़हरीली शराब का उत्पादन, इसकी उच्च स्तरीय जांच करायी जाए, राज्य के मद्द्य निषेध मंत्री को बर्खास्त किया जाए। साथ ही प्रत्येक मृतक के परिजनों को 20-20 लाख मुआवजा देने की मांग निरंतर उठ रही है। नीतीश सरकार पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा जा रहा है कि बिहार में ज़हरीली शराब से दलित-गरीबों की मौत एक सामान्य घटना बन गयी है। एक समय प्रदेश में शराबबंदी की मांग पूरे बिहार में एक लोकप्रिय मांग बन गयी थी और इसके लिए पूरे राज्य में जबरदस्त आंदोलन भी हुआ था। लेकिन व्यवहार में अब यह आम जनता के लिए जहां एक काला कानून ही साबित हो रहा है वहीँ सरकार द्वारा समय रहते अवैध व नकली शराब कारोबार में शामिल नेताओं -अफसर-पुलिस और शराब माफिया गंठजोड़ पर जो करवाई करनी थी नहीं की गयी।

वैसे, गठबंधन सरकार के प्रमुख सहयोगी भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने भी अपने बयान में माना है कि - कई स्थान ऐसे हैं जहां प्रशासन के सहयोग से शराब बिक रही है। प्रशासन के सहयोग से जहां एक नंबर की शराब बिक रही है वहां कोई घटना नहीं होती। भाजपा प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि राज्य में शराबबंदी लागू हुए पांच वर्ष बीत गए हैं, अब इसकी समीक्षा होनी चाहिए।

इस प्रकरण में बिहार के नागरिक समाज प्रतिनिधियों द्वारा नीतीश कुमार सरकार की नाकामी और पुलिस प्रशासन की संलिप्तता को लेकर मुखर आलोचना की जा रही है। नागरिक अधिकारों के लिए सक्रीय रहनेवाले डा. पीएन पाल ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा– जैसे एक समय बिहार में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में विफल हो रही अपनी ही सरकार की नाकामी पर तल्ख़ टिप्पणी करते हुए बिहार के चर्चित मुख्यमंत्री रहे दरोगा प्रसाद राय जी ने कहा था, ‘ताला लागल बा, पाला खुलल बा’ (दरवाजे के एक किवाड़ में ताला लगा हुआ है और दूसरी किवाड़ खुली हुई है)। आज यह हू ब हू वैसी ही स्थिति बिहार में जारी पूर्ण शराबबंदी को लेकर देखी जा सकती है। जिसमें एक ओर, नीतीश कुमार सरकार ने आतिशी प्रचार के जरिए स्थापित कर रखा है कि बिहार में पूर्ण शराब बंदी है। लेकिन दूसरी सच्चाई जहरीली व नकली शराब की धड़ल्ले से बिक्री और तस्करी की जारी घटनाएं और हो रही मौतें खुद बयां कर रहीं हैं।

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