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बिहार: ओवैसी के बाद मुकेश सहनी की एंट्री से कुढ़नी उपचुनाव में ट्विस्ट

यह तोप मुक़ाबिल हो तो तोप निकालो स्टाइल की पॉलिटिक्स है और शायद मौजूदा वक़्ता की मांग भी।
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बेहतर राजनेता वही होता है जो समय रहते अपनी गलतियों और अपने प्रतिद्वंदियों से सीखे। कुढ़नी उपचुनाव के जरिये ही सही, तेजस्वी यादव यह “सीख” लेते नजर आ रहे हैं। गोपालगंज में मिली हार के बाद यह बात कही गयी थी कि राजद और जद (यू) को तत्काल सावधान हो जाना चाहिए। और ऐसा ही कुछ होता नजर आ रहा है कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में।

असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार ने गोपालगंज में 12 हजार वोट लिए थे और दूसरी तरफ साधु यादव की पत्नी को 8 हजार वोट मिले थे। यानी, 20 हजार वोट ये दो नेता ले कर निकल गए और इस तरह राजद का उम्मीदवार मात्र 18 सौ वोट से चुनाव हार गए। जाहिर है, यह सत्तापक्ष के लिए एक जोरदार झटका था। तेजस्वी यादव के लिए इससे भी बड़ा झटका था क्योंकि गोपालगंज उनका गृह क्षेत्र है और इस वजह से ही जद (यू) ने इस सीट पर अपना दावा नहीं किया था। तेजस्वी अगर यह सीट जीत जाते तो उनकी नेतृत्व क्षमता और अधिक मजबूत होती लेकिन, “ओवैसी” फैक्टर की की वजह से वे चुनाव हार गए।

राजद की सीट, जद (यू) का उम्मीदवार

बहरहाल, यात्रा भत्ता में अनियमितता के आरोप में राजद विधायक कुढ़नी विधानसभा से अपनी सदस्यता गँवा चुके थे और इस वजह से उपचुनाव होना है। कायदे से इस सीट से राजद का उम्मीदवार होना चाहिए था लेकिन यहाँ से जद (यू) चुनाव लड़ रही है और सामने एक बार फिर भाजपा है। तो, सबसे पहले तो राजद और जद (यू) की आपसी समझदारी और सहमति यह बताती है कि बिहार का महागठबंधन फिलवक्त बहुत मजबूत स्थिति में है। लेकिन, इस चुनाव में ओवैसी के बाद, मुकेश सहनी की औपचारिक एंट्री ने एक जबरदस्त ट्वीस्ट ला दिया है और बिहार की राजनीति ने एक बार फिर भाजपा को हारने का एक नया फॉर्म्यूला तैयार कर दिया है। हालांकि, यह फॉर्म्यूला कितना कारगर साबित होगा, यह चुनाव परिणाम से पता चलेगा।

तेजस्वी की “ओवैसी” पॉलिटिक्स

यह तोप मुकाबिल हो तो तोप निकालो स्टाइल की पॉलिटिक्स है और शायद मौजूदा वक्त की मांग भी। ओवैसी पर हमेशा भाजपा के इशारे पर विपक्षी वोट काटने की राजनीति का आरोप लगता है। जानकार कहते भी हैं कि अगर सचमुच ओवैसी भाजपा को हराने की बात करते हैं तो उन्हें विपक्ष के साथ आना चाहिए था। लेकिन वे कहीं भी विपक्ष के साथ नहीं आते, बल्कि चुपके-चुपके विपक्ष की ही हवा निकालने की कोशिश करते हैं। बिहार में सीमांचल के बाद, यह काम उन्होंने गोपालगंज में बखूबी किया है। लेकिन, बिना महागठबंधन में शामिल हुए, जिस तरह मुकेश सहनी ने कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में एंट्री मारी है, वह बहुत कुछ इशारे दे रहा है। इस विधानसभा में 48 हजार भूमिहार जाति का वोट है। मुकेश सहनी ने नीलाभ कुमार (भूमिहार जाति से आते है और उनके दादा यहाँ के लोकप्रिय विधायक रह चुके हैं) को मैदान में उतार दिया है। मुकेश सहनी ने इस संवाददाता से कई बार हुई बातचीत में यह खुलेआम स्वीकार किया है कि भाजपा ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है और वे भाजपा को हर हाल में झुकाना चाहते हैं। बोचहां विधानसभा उपचुनाव में भी मुकेश सहनी ने अपना उम्मीदवार दिया था, जिन्हें 25 हजार से ज्यादा वोट मिले थे और भाजपा की हार हुई थी। वहाँ से राजद के अमर पासवान जीते थे। तब भी, मुकेश सहनी इसमें अपनी बड़ी जीत देख रहे थे क्योंकि उन्होंने भाजपा को हरा दिया था।

बोचहां पार्ट-2 या...?

अगर नीलाभ कुमार अपनी जाति के चंद हजार वोट भी अपने नाम करते हैं तो उस वोट का मेजोरिटी हिस्सा भाजपा का कोर वोटर्स ही होगा। यानी, भाजपा का नुकसान तय है। यह कुछ-कुछ वैसा ही होगा, जैसे ओवैसी की पार्टी को मिलने वाला हर वोट राजद-जद (यू) का कोर वोटर (माई) माना जाता रहा है। लेकिन, यहाँ एक छोटा सा पेच है। नीलाभ कुमार भले अपनी जाति का वोट पाने में सफल हो जाए। लेकिन, क्या मुकेश सहनी जिसे अपना कोर वोटर मानते हैं, वो क्या वीआईपी उम्मीदवार को वोट देगा या फिर वह भाजपा के पाले में जाएगा? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि मुजफ्फरपुर लोकसभा से भाजपा सांसद अजय निषाद इसी कोर वोटर (मल्लाह) जाति से आते है और उनके पिता कैप्टन जयनारायण निषाद एक बड़े नेता रहे हैं। एक तस्वीर यह भी कि अगर मुकेश सहनी भूमिहार-मल्लाह वोट पूरी तरह अपने पाले में कर लेते है, तब नतीजा कुछ भी हो सकता है। कुछ भी मतलब, वे चुनाव जीत भी सकते है।

कुल मिला कर, मुकेश सहनी जीतते है या भाजपा को हरा देते है, तब तो उनके लिए और कुछ हद तक महागठबंधन के लिए फायदेमंद हालत बनेंगे। लेकिन, इस चक्कर में अगर कहीं जद (यू) उम्मीदवार की हार होती है और भाजपा चुनाव जीतती है तो उसे तेजस्वी यादव पर यह आरोप लगाने में आसानी होगी कि मुकेश सहनी को आगे कर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को शिकस्त देने की कोशिश की।

एक तीर से दो शिकार!

लेकिन, तेजस्वी यादव ने बोचहां में जो रणनीति तैयार की थी और मुकेश सहनी ने उस रणनीति को सफल बनाया, अगर वैसा ही कुछ कुढ़नी में होता है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हां, इससे एक तीर से दो शिकार करने की बात फिर सही साबित हो जाएगी। मुकेश सहनी इस वक्त खुद जीतने पर जितने खुश होंगे, उससे कहीं ज्यादा भाजपा को हराने पर भी खुश होंगे। और इस चुनाव में ओवैसी के उतरने के बाद भी अगर भाजपा यह सीट हारती है तो तेजस्वी यादव के हाथ ओवैसी की काट के लिए एक ऐसा तुरुप का पत्ता लग जाएगा, जो शायद पूरे देश के विपक्ष के लिए नजीर बन जाएगा। यह नजीर बताएगी कि भाजपा के कथित “एजेंट” का आरोप झेलने वाली ओवैसी की पार्टी का मुकाबला कैसे करना है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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