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वाह रे ओपिनियन पोल : जेडीयू के वोट घटेंगे, सीटें बढ़ेंगी और आरजेडी-कांग्रेस के वोट बढ़ेंगे सीटें घटेंगी!

सर्वे में वोट शेयर और सीटों के साथ-साथ मुद्दे और सरकार से नाराज़गी जैसे तमाम पहलुओं को देखें तो यह विरोधाभास का पुलिंदा लगता है। 2015 में इसी सी-वोटर के सर्वे ने एनडीए को कांटे की टक्कर में दिखाया था जबकि नतीजे बिल्कुल उलट आए थे और महागठबंधन को दो तिहाई सीटें हासिल हुई थीं।
Bihar election

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले ओपिनियन पोल का खेल भी जारी है। सितंबर और अक्टूबर में सी-वोटर के दो अलग-अलग ओपिनियन पोल सामने आए हैं। दोनों में एनडीए की सरकार बनती दिख रही है। ऐसा इसी सर्वे की एक और परस्पर विरोधी सच्चाई के बावजूद है कि एनडीए की वर्तमान सरकार से ज्यादातर लोग नाखुश हैं। सवाल ये है कि जब एनडीए सरकार से खुश नहीं हैं तो उसे दोबारा लाना ही क्यों चाहते हैं? इस सवाल का जवाब ‘विकल्प नहीं है’ बोलकर दिया जा रहा है। अगर ऐसा है तो जेडीयू का वोट शेयर गिरना नहीं चाहिए।

अक्टूबर में हुए ताजा सी वोटर के सर्वे में एनडीए के भीतर ही बीजेपी का वोट शेयर बढ़ता हुआ और जेडीयू का घटता हुआ दिखाया जा रहा है। यह मुमकिन है मगर फासला इतना बड़ा है और उस हिसाब से सीटों का आकलन इतना जुदा है कि यकीन नहीं होता। ताजा सर्वे में बीजेपी को 33.8 फीसदी समर्थन दिखाया गया है जो 2015 में उसे हासिल समर्थन 24.8 फीसदी से 9 फीसदी ज्यादा है। वहीं, जेडीयू को 14.4 फीसदी वोट दिखाया गया है जो 2015 में उसे मिले 16.7 फीसदी से 2.3 फीसदी कम है।

एनडीए में बीजेपी को जेडीयू से दुगुने से भी ज्यादा वोट शेयर!

एनडीए के भीतर बीजेपी को 33.8 फीसदी और जेडीयू को उसके आधे से भी कम 14.4 फीसदी वोट मिलने के क्या मायने हो सकते हैं? एक मतलब ये होगा कि बीजेपी को जितनी सीट मिल रही है उसकी आधी से भी कम जेडीयू को मिले। इस हिसाब से देखें तो सी वोटर का सर्वे कहता है कि बीजेपी को 85 सीटें मिलने जा रही है। इसका आधा 43 होता है। मगर, यही सर्वे जेडीयू को 70 सीटें दे रहा है। है न आश्चर्य की बात!

सी वोटर-टाइम्स नाऊ का सर्वे कहता है कि जेडीयू के वोट तो घटेंगे, लेकिन सीटें नहीं घटेंगी। विगत चुनाव में 71 सीटें पाने वाली जेडीयू को एक बार फिर 70 सीटें मिलती दिखाई जा रही हैं। गठबंधन में बीजेपी 110 सीटों पर जेडीयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। अगर 115 सीटों पर जेडीयू के कारण एनडीए को एंटी इनकंबेंसी झेलनी पड़ रही है तो यह सीटों में नुकसान के तौर पर व्यक्त नहीं होगा- यह इस सर्वे का विरोधाभास है। विरोधाभास यह भी है कि 9 फीसदी अधिक वोट हासिल करने के बावजूद बीजेपी की सीटों में केवल 32 सीटों का ही फायदा होगा।

क्या कहता है एनडीए से बाहर होकर एलजेपी का प्रदर्शन?

सी वोटर-टाइम्स नाऊ का सर्वे कह रहा है कि एलजेपी को 5 सीटें मिलेंगी और वोट 6.7 फीसदी हासिल होगा। ऐसा तब है जब वह एनडीए से बाहर निकलकर चुनाव लड़ रही है। एनडीए में रहकर एलजेपी को 2015 में एक भी सीट नहीं मिली थी जबकि 4.8 फीसदी वोट मिले थे। यह तथ्य एनडीए सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की पुष्टि करता है।

महागठबंधन के घटक दलों के वोट बढ़ेंगे, सीटें घटेंगी!

महागठबंधन के सभी घटक दलों को अधिक वोट मिलता बता रहा है सर्वे, लेकिन सीटें घटती दिखा रहा है। यह भी बहुत बड़ी विडंबना है। आरजेडी को 2015 में 18.5 फीसदी वोट मिले थे। इस बार ताजा सर्वे के मुताबिक उसे 24.3 प्रतिशत वोट मिलने जा रहा है। यानी 5.8 फीसदी वोटों का इजाफा। मगर, सीटें 80 से घटकर 56 होती दिखाई जा रही है!

कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही है। कांग्रेस को 2015 में 6.7 फीसदी वोट मिले थे और ताजा सर्वे में यह प्रतिशत बढ़कर 11 हो चला है। मगर 2015 में मिली 27 सीटों के मुकाबले कांग्रेस को महज 15 सीटें मिलती बतायी जा रही हैं। यह बात इसलिए भी चौंकाने वाली है कि जेडीयू के वोटों में भारी गिरावट के बावजूद सर्वे के मुताबिक उसकी सीटें कम नहीं होंगी और महागठबंधन के वोटों में भारी बढ़ोतरी के बावजूद सीटें घट जाएंगी!

ज्यादातर लोग न एनडीए सरकार से खुश, न सीएम से!

सी वोटर-टाइम्स नाऊ का ताजा सर्वे यह भी कहता है कि ज्यादातर लोग न एनडीए सरकार से खुश हैं और न मुख्यमंत्री से। एनडीए सरकार से संतुष्ट केवल 25.46 फीसदी वोटर हैं और नीतीश कुमार को सीएम देखने वाले लोगों की तादाद भी महज 32 फीसदी रह गयी है। ऐसे में ये तथ्य एनडीए सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी का प्रमाण हैं।

पहले सर्वे में सी वोटर ने एनडीए के लिए 44.8 फीसदी और यूपीए के लिए 33.4 फीसदी वोट दिखाया था। दूसरे सर्वे में वह गठबंधन के बजाए दलीय आधार पर समर्थन दिखाने लगा। यह चालाकी क्यों की गयी, ये वही बता सकते हैं।

सितंबर के सर्वे में 56.7 फीसदी लोगों में एनडीए सरकार को लेकर गुस्सा था और वे बदलाव चाहते थे। यह गुस्सा अक्टूबर के सर्वे में और भी अधिक नज़र आता है अगर आप ये देखेंगे कि सितंबर के सर्वे में 25.1 फीसदी लोगों के लिए चुनाव का मुद्दा बेरोजगारी और प्रवासी मजदूर थे, तो अक्टूबर आते-आते 49 प्रतिशत लोग सर्वे में मानने लगे कि बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है।

सर्वे में वोट शेयर और सीटों के साथ-साथ मुद्दे और सरकार से नाराज़गी जैसे तमाम पहलुओं को देखें तो यह विरोधाभास का पुलिंदा लगता है। 2015 में इसी सी-वोटर के सर्वे ने एनडीए को कांटे की टक्कर में दिखाया था जबकि नतीजे बिल्कुल उलट आए थे और महागठबंधन को दो तिहाई सीटें हासिल हुई थीं। ऐसे में इस ओपिनियन पोल से कोई भी ओपिनियन बनाना उचित नहीं लगता।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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