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बिहार: वायरल फीवर की चपेट में बच्चे, कोविड और चमकी बुखार की तरह लाचार हेल्थ सिस्टम

पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग में 67 बच्चें भर्ती हैं। साथ ही एनएमसीएच बच्चा वार्ड में 84 बेड हैं। सभी बेड पर मरीज हैं। पीएमसीएच और एनएमसीएच के अलावा आइजीआइएमएस और पटना एम्स और दानापुर, बिहटा, मसौढ़ी, पालीगंज व बिहटा अनुमंडलीय अस्पताल में भी वायरल फीवर से पीड़ित बच्चों का इलाज चल रहा है।
Viral Fever
पीएमसीएच का शिशु रोग विभाग

8 साल की मासूम ब्यूटी अपने घर सिवान से 135 किलोमीटर दूर, पटना के पीएमसीएच अस्पताल में 20 दिनों से वायरल बुखार और निमोनिया से लड़ रही है। ब्यूटी की तबीयत में अभी उतना सुधार नहीं हुआ है कि उसे अस्पताल से रिलीज किया जा सके। लेकिन अस्पताल की सुविधा और घर की तंगी हालात की वजह से ब्यूटी वापस अपने घर की ओर जा रही है।

ब्यूटी के पिता सुरेंद्र मंडल न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि, "ब्यूटी का प्लेटलेट अचानक गिर गया था। तभी दूसरे दिन हम लोग भागते हुए पटना आए। घर की हालात इतनी अच्छी नहीं है कि प्राइवेट हॉस्पिटल जा पाते इसलिए पीएमसीएच आ गए। लेकिन शुरुआत में अस्पताल में एडमिट नहीं किया गया। हम लोग बाहर ही चादर बिछा कर तीन दिन तक ब्यूटी का इलाज करवाए।"

आगे सुरेंद्र मंडल बताते हैं- "इलाज के दौरान अधिकतर दवाई अस्पताल के बाहर से ही मंगवानी पड़ीं । ऐसे में सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल में क्या ही फर्क रहेगा। ब्यूटी पूरी तरह ठीक तो नहीं है लेकिन घर जाकर हो जाएगी। ऐसा लगता है हॉस्पिटल की बदतर स्थिति ब्यूटी को और भी बीमार कर रही है" 

ब्यूटी कुमारी (7वर्ष) सीवान जिला 

पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग में 67 बच्चें भर्ती हैं। साथ ही एनएमसीएच बच्चा वार्ड में 84 बेड हैं। सभी बेड पर मरीज हैं। पीएमसीएच और एनएमसीएच के अलावा आइजीआइएमएस और पटना एम्स और दानापुर, बिहटा, मसौढ़ी, पालीगंज व बिहटा अनुमंडलीय अस्पताल में भी वायरल फीवर से पीड़ित बच्चों का इलाज चल रहा है।

शुरू में लगा चमकी बुखार है

पटना के अलावा मुजफ्फरपुर, सारण, गोपालगंज, सीवान और पश्चिमी चंपारण के शहर से लेकर गांव तक वायरल फीवर की हवा पहुंच चुकी है। हालांकि बुखार से पीड़ित बच्चों की संख्या में कमी आ रही है।

शिवानी कुमारी (10 साल) नालंदा जिला

सारण जिले के अमनौर प्रखंड के सिरसा खेमकरण गांव से आई सुनिता देवी अपनी 7 साल की बेटी का इलाज पीएमसीएच में करवा रही है।

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वो न्यूजक्लिक को बताती हैं कि, "हमारे गांव की महादलित बस्ती में बीते दस से पंद्रह दिनों में करीब दो दर्जन बच्चे तेज बुखार की चपेट में आए हैं। शुरू में हमें लगा, फिर चमकी बुखार का प्रकोप शुरू हो गया हैं। लेकिन किसी में चमकी बुखार की पुष्टि नहीं हुई। बच्चों को वायरल फीवर ही है। जिसमें कई का इलाज़ सारण के ही अस्पताल में चल रहा है। और जिस की स्थिति थोड़ी भी खराब हुई वह पटना में इलाज करवा रहा है।"

दावों के विपरीत जमीनी हालत

बिहार में डेंगू और वायरल फीवर से मासूम बच्चों की मौत होने का सिलसिला थम रहा है। पिछले महीने में डेंगू और वायरल फीवर की वजह से कई जानें चली गई है। जिसमें अधिकांश छोटे-छोटे बच्चे हैं।  

इससे पहले कोरोना महामारी की दो लहरों का दंश झेल चुके बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने इस साल के मई महीने में ही ऐलान कर दिया था कि उनकी सरकार कोविड की तीसरी लहर से निपटने के लिए तैयार है।

लेकिन असलियत में बिहार का हेल्थ सिस्टम इतना लचर है कि इलाज के अभाव में माता पिता अपने बच्चों को गोद में लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। 

गंदगी, बीमारी और मौत

वायरल फीवर! इस बीमारी के सामान्य लक्षणों में कंपकंपी और बहुत तेज बुखार शामिल हैं। लेकिन मुजफ्फरपुर जिले के सुधीर यादव बताते हैं कि, "पिछले 20 दिनों में हमारे गांव में बुखार के मरीज तेजी से बढ़े। फिर सरकार और स्वास्थ्य दल के द्वारा गांव में फॉगिंग (मच्छर नियंत्रण के लिए) की गई। पूछने पर सरकारी कर्मचारियों ने बताया था कि 'मलेरिया हो या डेंगू, ये बुखार गंदगी और मच्छर से फैलते हैं" 

डाक्टरों का क्या कहना है

पीएमसीएच की शिशु रोग विभाग की एक डॉक्टर अपना नाम न बताने की शर्त पर बताती है कि, "पटना में डेंगू और स्वाइन फ्लू के बाद अब चिकनगुनिया व जेइ के मरीजों का जिले में मिलने का सिलसिला जारी है। इसलिए जिले के सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को अलर्ट जारी करते हुए डेंगू जांच करने के निर्देश दिये गये हैं। 

आगे वो बताती  हैं- "पहले से स्थिति बेहतर है। अगर बेड बढ़ाने की जरूरत होगी तो हमारे पास उपलब्ध है। अधिकांश बच्चों को दवा देकर घर पर इलाज कराने के लिए भेजा जा रहा है।" 

पीएमसीएच का शिशु रोग विभाग

अगर अभी कोरोना की तीसरी लहर आ जाए तो क्या बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था स्थिति को संभाल सकती है? इस सवाल के जबाव पर डॉक्टर साहिबा खामोश हो गईं। और बिना कुछ उत्तर दिए चली गईं।

माता-पिता के बीच जागरुकता की कमी

पीएमसीएच की एक स्टाफ न्यूज़ क्लिक को बताती हैं कि "बीमारियों के प्रकोप और इलाकों में स्वच्छता की कमी के अलावा, बच्चों की खराब प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण की गंभीरता को और बढ़ा रहे हैं। इन बच्चों का लंबे समय तक बाहरी वातावरण से संपर्क नहीं हुआ है। इस सब के बाद अब अचानक सब कुछ खुल गया है।"

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वे आगे बताती हैं- "अब भी घरों से रुका हुआ पानी निकालने में घोर लापरवाही बरती जा रही है। संक्रमित बच्चों के माता-पिता के बीच जागरुकता की कमी के कारण बड़ी संख्या में मामले सामने आ रहे हैं।"

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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