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मिड-डे मील में व्यवस्था के बाद कैंसर से जंग लड़ने वाले पूर्वांचल के जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल के साथ 'उम्मीदों की मौत'

जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल की प्राण रक्षा के लिए न मोदी-योगी सरकार आगे आई और न ही नौकरशाही। नतीजा, पत्रकार पवन जायसवाल के मौत की चीख़ बनारस के एक निजी अस्पताल में गूंजी और आंसू बहकर सामने आई।
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आज पहली बार एहसास हो रहा है कि कितना मुश्किल होता है गिरते हुए आंसुओं को लफ्जों में बताना और एक सतर में लिखना। मिर्जापुर के एक छोटे से कस्बे के पत्रकार पवन जायसवाल कैंसर से लड़ते हुए अनंत में चले गए। आखिरी दम तक इस जानलेवा बीमारी से मुकाबला किया, लेकिन उससे हार गए। अंततः कैंसर की बीमारी उन्हें भी निगल गई। इस पत्रकार को बचाने के लिए पत्रकार साथियों और सियासी दलों के कुछ नेताओं ने बहुत कोशिश की। आर्थिक मदद भी दी, लेकिन कैंसर पीड़ितों के इलाज के लिए दिल खोलकर मदद करने का दावा करने वाली डबल इंजन की सरकार ने कुछ भी नहीं किया। पीएम नरेंद्र मोदी के दफ्तर से मदद के बजाए सिर्फ एक चिट्ठी आई। जांबाज पत्रकार पवन जायसवाल की प्राण रक्षा के लिए न मोदी-योगी सरकार आगे आई और न ही नौकरशाही। नतीजा, पत्रकार पवन जायसवाल के मौत की चीख बनारस के एक निजी अस्पताल में गूंजी और आंसू बहकर सामने आई।

38 वर्षीय पवन जायसवाल मिर्जापुर जिले के एक छोटे से कस्बे अहरौरा के रहने वाले ऐसे जाने-पहचाने पत्रकार थे, जिनके अंदर एक ऐसा जिंदादिल इंसान था जो समाज का दर्द, सिसकियां और हर किसी की पीड़ा को पल भर में पढ़ लेता था। प्राणों के चीत्कार को वो कागजों पर स्याही से उकेर दिया करते थे। वे सिर्फ पत्रकार ही नहीं, सिद्धहस्त फोटोग्राफर भी थे। सामाजिक दायित्वों को बेहतरीन ढंग से निभाने में सबसे आगे रहने वाले पवन जायसवाल ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने खबरों को कभी नहीं बेचा। वह कहते थे, "बिकने वाले पत्रकारों की खबरें नहीं बिका करती हैं। हमने मुश्किलों से लड़ना सीखा है और मुश्किलों में जीना सीखा है। हमारा नेता गांव का वह आखिरी आदमी है जो दो वक्त की रोटी के लिए ईमानदारी और निष्ठा से काम करता है। जिस दिन आम आदमी की जिंदगी में उजाला होगा, उस दिन समझूंगा की हमारा मंत्र सफल हो गया। "

बिक गए मां व पत्नी के जेवर

साल 2021 में पवन जायसवाल को मुंह में दिक्कत हुई तो वाराणसी के डॉक्टर की सलाह पर बायोप्सी (Biopsy) करवाई गई। रिपोर्ट आई तो कैंसर की पुष्टि हुई। फिर भी पवन ने हिम्मत नहीं हारी और सितंबर 2021 में उनके मुंह का ऑपरेशन किया गया। पवन के कुछ पत्रकार साथियों ने क्राउड फंडिंग के जरिये इलाज के लिए धन जुटाया, लेकिन लाइलाज बीमारी जिंदगी के साथ रुपये निगलती चली गई। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर पवन के इलाज के लिए मां और पत्नी को अपने जेवर तक बेचने पड़ गए। ऑपरेशन के बाद एक बार लगा कि पवन ने कैंसर से जंग जीत ली है।

आख़िरी दौर में कैंसर ने इस स्थिति में पहुंचा दिया था पत्रकार पवन जायसवाल को

डाक्टरों ने आराम करने के लिए उन्हें घर भेज दिया था, लेकिन मार्च 2022 में दोबारा दिक्कत होने लगी। जांच हुई तो पता चला कि इंफेक्शन गले तक पहुंच गया है। डाक्टरों ने फिर से ऑपरेशन की सलाह दी और फिर ऑपरेशन किया गया। आखिरी दौर में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने एक-एक लाख रुपये की सहायता दी। बाद में मिर्जापर के डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार ने अपने कोष से कुछ मदद दी।

क्रांतिकारी पत्रकार पवन जायसवाल 23 अगस्त 2019 को तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने यूपी के मिर्ज़ापुर के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों को नमक और रोटी परोसे जाने का मामला उजागर किया। उन दिनों वह जनसंदेश टाइम्स से जुड़े थे। पवन जायसवाल ने नमक रोटी खा रहे बच्चों का वीडियो भी बनाया था। खबर छपने के बाद यूपी के नौकरशाह इस कदर बौखला गए कि उन्होंने इस पत्रकार के खिलाफ दफा 420, 120बी, 193, 186 के तहत फर्जी मामले दर्ज करा दिए।

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दरअस्ल पवन को 22 अगस्त 2019 की सुबह करीब 11 बजे फोन से सूचना मिली कि मिर्जापुर के सिऊर गांव के प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के साथ बहुत ज्यादती हो रही है। बच्चों को कई दिनों से नमक-रोटी और नमक-चावल दिया जा रहा है। इस सूचना पर पवन जायसवाल दोपहर में घर से निकले और विद्यालय पहुंचने से पहले उन्होंने खंड शिक्षा अधिकारी (एबीएसए) बृजेश सिंह को फोन कर सूचना दी। एबीएसए ने इस सूचना को गंभीरता से नहीं लिया और ठीक है... कहकर फोन काट दिया।

बाद में पवन सिऊर पहुंचे और पूरे वाकये को अपने कैमरे में रिकार्ड किया। वहां उन्होंने देखा कि विद्यालय में एक बाल्टी में रोटी रखी हुई है। बच्चे थाली लेकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। बच्चों को पहले रोटी दी गई और फिर नमक दिया गया। भोजन के बाद पवन ने कई स्कूली बच्चों और ग्रामीणों से बात भी की।

 घिर गई थी डबल इंजन की सरकार

अखबार में खबर छपने के बाद तत्कालीन डीएम अनुराग पटेल ने चुनार के एसडीएम और तहसीलदार को मौके पर भेजा तो दोनों अफसरों ने पत्रकार पवन जायसवाल के खबर  की पुष्टि की। 23 अगस्त 2019 को खुद डीएम अनुराग पटेल भी मौके पर गए और जांच-पड़ताल के बाद सिऊर प्राथमिक विद्यालय के दो अध्यापकों, एनसीआरपी अधिकारी (नया पंचायत रिसोर्स सेंटर) और मिड-डे मील प्रभारी को निलंबित कर दिया। बाद में इसी मामले में शिक्षा विभाग के आधा दर्जन अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई।

यूपी के स्कूलों में मिड-डे मील के नाम पर नमक रोटी परोसे जाने के मामले ने तूल पकड़ा तो योगी सरकार सवालों के घेरे में आ गई। तब प्रशासन ने 27 अगस्त 2019 को दोबारा मिर्जापुर के सीडीओ को मौके पर भेजा और पहले के सभी जांच रिपोर्ट को खारिज कर दिया। नमक रोटी कांड के दस दिन बाद 31 अगस्त 2019 की रात जिलाधिकारी अनुराग पटेल के निर्देश पर बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने पवन जायसवाल के अलावा उस व्यक्ति के खिलाफ भी फर्जी मामला दर्ज करा दिया जिसने स्कूली बच्चों को नमक-रोटी परोसे जाने की सूचना लीक की थी।

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मिर्जापुर के तत्कालीन डीएम अनुराग पटेल तब विवाद में ज्यादा घिर गए जब उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहा कि, "प्रिंट मीडिया का पत्रकार होकर आपने वीडियो क्यों बनाया? " इस पर पत्रकार पवन जायसवाल का कहना था, "हमने खबरों की पुष्टि के लिए वीडियो बनाया था। विवाद बढ़ा तो उस वीडियो को हमने खबरिया चैनलों को भी दे दिया। इतना हक तो एक आम आदमी को भी होता है कि वह वीडियो बनाकर कार्रवाई के लिए किसी को भी दे सकता है। "

पीसीआई ने लगाई थी फटकार

पत्रकार पवन जायसवाल के मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया (पीसीआई) तक को हस्ताक्षेप करना पड़ा। पीसीआई ने 18 दिसंबर 2019 को इलाहाबाद में इस मामले की सुनावाई करते हुए मिर्जापुर पुलिस को जमकर फटकार लगाई। चेयरमैन पूर्व न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार ने पुलिस की भूमिका को क्रूर बताते हुए  ‘पुलिस गुंडों का संगठित गिरोह’ वाले फैसले को याद दिलाया। पूर्व न्यायमूर्ति ने यहां तक कहा, "दुख है कि जिस व्यक्ति ने पत्रकार को सूचना देकर मिड डे मिल का सच उजागर करने को कहा, उसको भी षड्यंत्र में फंसा दिया गया। "

पीसीआई के चेयरमैन ने मिर्जापर के पुलिस अधिकारियों को बुरी तरह लताड़ते हुए पूछा, "अगर वे ऐसे ही संविधान का उल्लघंन करेंगे तो पत्रकार कैसे पत्रकारिता करेगा? नमक-रोटी कांड को उन्होंने क्रूर करार दिया और मिर्जापुर से आए पुलिस अधिकारी अजय सिंह को बुरी तरह डांटते हुए कहा–हंसिए मत, ये आपकी डिपार्टमेंटल इंक्वायरी नहीं है। "

चेयरमैन ने अजय सिंह से पूछा कि जब वे अस्पताल जाते हैं और डॉक्टर उनके साथ खराब व्यवहार करता है तो उन्हें कैसा लगता है? ऐसा कहते हुए उन्होंने पत्रकार की मनोदशा की बात की और कहा, "उसके ऊपर क्या गुजर रही होगी, जिसे झूठे मामले में फंसा दिया गया। मिर्जापुर के नमक रोटी प्रकरण में पत्रकार का उत्पीड़न करने के मामले में दुनिया भर से उनके पास चिट्ठियां आ रही हैं। ऐसे लोगों के पत्र मिल रहे हैं जिन्हें वो जानते तक नहीं। पत्रकार पवन जायसवाल ने नमक-रोटी की खबर लिखकर प्रशासन और समाज को आगाह किया। समूचे समाज को सतर्क किया कि देखिए, इतनी कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद बच्चों को नमक रोटी खानी पड़ रही है। मिर्जापुर के तत्कालीन डीएम को इस खबर की तारीफ करनी चाहिए थी। उल्टे आप लोगों ने पत्रकार को झूठे साजिश के केस में फंसा दिया। इस तरह कोई भी पत्रकार पत्रकारिता ही नहीं कर पाएगा। " पीसीआई के चेयरमैन ने पत्रकार पवन के खिलाफ जांच किए बगैर फर्जी रिपोर्ट दर्ज करने और कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मिर्जापुर के अपर पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया।

जांबाज़ पत्रकार का संघर्ष

मिर्जापुर के अहरौरा कस्बे के मूल निवासी पवन जायसवाल ने इंटर पास करने के बाद यहीं वनस्थली महाविद्यालय में बीकॉम में दाखिला लिया। पढ़ाई में मन नहीं लगा और पत्रकारिता शुरू कर दी। पत्रकारिता में कदम रखने से पहले पवन भाजपा युवा मोर्चा के पदाधिकारी थे, लेकिन पत्रकारिता में कदम रखने के साथ ही त्यागपत्र दे दिया था। बेबाक और निर्भीक पत्रकारिता के लिए पत्रकार पवन जायसवाल को साल 2020 में पंडित कमलापति त्रिपाठी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान से नवाजा गया था।

पवन के सामने सबसे बड़ा संकट आजीविका चलाने का था। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की अहरौरा शाखा से दो लाख रुपये का लोन लिया और मोबाइल एसेसिरीज की दुकान खोली। यही दुकान इनकी आजीविका का जरिया थी। उनकी गिनती तेज तर्रार पत्रकार के रूप में होती थी। पवन के मां, भाई, के साथ पत्नी और 2 छोटे छोटे बच्चे भी है।

पवन जायसवाल का परिवार

पत्रकार पवन जायसवाल अपने जीवन के आखिरी दौर में दिल्ली के पोर्टल जनज्वार से जुड़कर आजाद पत्रकार के रूप में पत्रकारिता कर रहे थे। चार मई 2022 की रात पवन ने आखिरी सांस ली। अब वह दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी मौत नौकरशाही और सरकार से सवाल-दर-सवाल कर रही हैं कि आखिर उनकी मौत का गुनहगार कौन है? खुद पवन जायसवाल ने अपने कैंसर के इलाज के लिए डिमांड लेटर और जरूरी अभिलेख सीएम योगी आदित्यानाथ के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी के पास भेजे थे। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अर्जी भेजी थी। पीएम से लेकर सीएम तक से गुहार लगाई गई, लेकिन डबल इंजन की सरकार काठ साबित हुई।

मदद नहीं, मिली सिर्फ़ पीएम की चिट्ठी।

पवन जायसवाल की जिंदगी बचाने के लिए ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन सबसे पहले आगे आया। आंचलिक पत्रकारों के इस संगठन के अलावा दिल्ली के तमाम पत्रकारों ने सत्तासीनों से  गुहार लगाई, लेकिन लालफीताशाही की लापरवाही ने पवन की लाश को श्मशान घाट पहुंचने पर विवश कर दिया।

लोकतंत्र का चौथा खंभा मर्माहत

जांबाज पत्रकार पवन जायसवाल की मौत ने लोकतंत्र के चौथे खंभे को बुरी तरह झकझोर दिया है। इनके निधन से पूर्वांचल ही नहीं, देश भर के तमाम पत्रकार मर्माहत और व्यथित है। पवन ऐसे शख्स थे जो सबके लिए आदत, सबके लिए जरूरत और अपने परिवार के लिए तो पूरी जिंदगी थे। इलाज के दौरान 17 अप्रैल 2022 को पवन जायसवाल ने द्रवित मन से कहा था, "भैया, मेरा इलाज ठीक से नहीं हो रहा है। अब नहीं लगता कि बच पाऊंगा। मेरा दिल बैठता जा रहा है। समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर क्या करें? "

मिर्जापुर के इस पत्रकार की मौत योगी सरकार और नौकरशाही के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। तभी तो पत्रकार पवन जायसवाल से वादे तो सभी ने किए, लेकिन सामने कुछ ही लोग आए। पत्रकार पवन जायसवाल के इलाज के लिए हर संभव कोशिश करने वाले बनारस के पत्रकार शिवदास और राजीव मौर्य कहते हैं, "यूपी में पत्रकारों की जिंदगी कीड़े मकोड़ों से भी बदतर हो गई है। चौबीस घंटे अखबारी ड्यूटी करने वाले आंचलिक पत्रकारों की हालत बिगाड़ने के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार? शासन-प्रशासन, नेता-परेता या फिर अखबार के मालिक?  मिर्जापुर के अहरौरा कस्बे के पत्रकार पवन जायसवाल की मौत इतनी खामोश और गुमनाम रहेगी,  इसका हमें तनिक भी एहसास नहीं था। इनकी मौत ने तो सिर्फ समूचे पूर्वाचल में चौथे खंभे को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। कैंसर के खंजर के मारे गए हरदिल अजीज पत्रकार साथी के जाने का दर्द और बेचैनी हमें सालों-साल याद आएगी।"

न्यूजक्लिक परिवार की ओर से भी जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल के निधन पर शोक संवेदना।

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