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बजट 2021: यूनियन नेताओं ने कहा मज़दूरों के लिए नहीं कोई राहत की उम्मीद 

ट्रेड यूनियन के नेताओं को लगता है कि इतने व्यापक विरोध के बावजूद, मोदी सरकार का आगामी केंद्रीय बजट भी ‘मज़दूर-विरोधी’ और ‘जन-विरोधी’ नीतियों की ओर रुख करेगा। 
बजट 2021

जिस दिन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया ताकि इस साल का तूफानी केंद्रीय बजट सत्र शुरू किया जा सके, उसी दिन ट्रेड यूनियन के नेताओं ने केंद्र सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि अगले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की आगामी योजनाओं से मजदूरों की स्थिति में बदलाव आने की कोई उम्मीद नहीं है।

“यह देश का मजदूर वर्ग ही था जिसे कोविड-19 महामारी और सरकार द्वारा बाद में खराब तरीके से लगाए गए लॉकडाउन से सबसे भारी झटका लगा था। तपन सेन, सीटू (CITU) के महासचिव ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “इन सब के बावजूद, हमें नहीं लगता है कि केंद्र सरकार अपनी ‘मजदूर-विरोधी’ और ‘जन-विरोधी’ नीतियों से एक कदम भी पीछे हटेगी। वास्तव में हमें इस बजट से बहुत अधिक उम्मीद नहीं हैं।”

पिछले साल मार्च में पूरा देश एक महामारी से पनपे भयंकर लॉकडाउन में चला गया था, जिसने अर्थव्यवस्था को बेतरतीब झटके दिए थे। सोमवार को कोविड से कुछ हद तक उभरने के बाद का यह पहला केंद्रीय बजट सत्र होगा और बजट 21 को संसद में पेश किया जाएगा।

सेन ने हाल के दिनों में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा उठाई गई कई मांगों को नरेंद्र मोदी द्वारा न मानने पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि पिछले साल सामाजिक सेवाओं पर सरकारी खर्च बहुत नीचे चला गया था। यह विडंबना ही थी कि जब पिछले साल महामारी से पनपी चुनौतियों से निपटने के लिए निजी क्षेत्र छटपटा रहा था तब सरकार को "वास्तव खर्च" को बढ़ाना चाहिए था।

सेन ने कहा कि केंद्र सरकार "सार्वजनिक कंपनियों में अधिक विनिवेश करने" के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएगी और आगामी आम बजट में "कॉर्पोरेट्स को अधिक रियायतें" देगी और इसके साथ व पूरी अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगी।

केंद्रीय बजट पर मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि सेन की आशंकाएं निराधार नहीं हैं। केंद्र से विनिवेश प्राप्ति के लक्ष्य को निर्धारित करने की उम्मीद की जाती है-जो वित्त वर्ष 2022 के लिए लगभग 2 लाख करोड़ हो सकता है, उक्त जानकारी फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने बुधवार को दी थी। पिछले साल केंद्रीय बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सार्वजानिक क्षेत्र की परिसंपत्ति की महत्वाकांक्षी बिक्री का लक्ष्य निर्धारित कर सबको चौंका दिया था जोकि 2.1 लाख करोड़ था-जो सामान्य लक्षित राशि का तीन से चार गुना था।

पिछले एक साल में विनिवेश से प्राप्त राजस्व सबसे निचले स्तर पर होने की संभावना है क्योंकि कोविड-19 महामारी ने केंद्र के शेयर बिक्री की महत्वाकांक्षाओं को पटरी से उतार दिया है। लेकिन क्या यह हालात आगामी वित्तीय वर्ष में विनिवेश प्रक्रिया में और तेजी नहीं लाएगी, जो पहले से ही ज़ोरों पर हैं।

एटक यानि अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की महासचिव अमरजीत कौर भी ऐसा मानती है। उन्होंने कहा, "लॉकडाउन के अनुभव से कम से कम अब तक यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि यह सार्वजनिक क्षेत्र ही है जो देश में कठिन दौर में भी साथ खड़ा रहा है, न कि निजी कंपनियां।"

उन्होंने आगे कहा, “इस सब के मद्देनजर कौर ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल देश की रणनीतिक संपत्ति को बेचने/छीनने पर तुली है। यह उन नीतिगत निर्णयों से बहुत स्पष्ट है जो तथाकथित आत्मनिर्भरता के नाम लिए गए थे।”

पिछले साल मई में, वित्त मंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज की घोषणा की थी, जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र की एक नई उद्यम नीति की घोषणा की गई थी। इसमें रणनीतिक क्षेत्रों की अधिकतम चार हुकूमत के स्वामित्व वाली कंपनियां, अन्य क्षेत्रों में सार्वजनिक कंपनियों का  अंततः निजीकरण किया जाएगा। 

इसके अलावा, सितंबर 2020 में, केंद्र ने संसद में कुल चार-श्रम कोडों में से तीन को पारित करा लिया था, एक और चाल जिसने मजदूर संगठनों की नारजगी को बढ़ा दिया था। 

कौर ने न्यूजक्लिक को बताया, "हम जानते हैं कि आगामी बजट सत्र में केंद्र सरकार मजदूरों के लिए कुछ खास नहीं करेगी और राष्ट्र को झूठ का सहारा लेकर बताया जाएगा कि इस तरह के सुधार कितने जरूरी हैं।"

इसके विपरीत, यूनियनों और श्रम विशेषज्ञों का मानना है कि श्रम कानूनों को श्रम-कोड में बदलने से "हम 19 वीं शताब्दी में वापस चले जाएंगे।"

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 3 फरवरी को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है जहां चार लेबर-कोड की प्रतियां जलाई जाएंगी। कौर ने बताया, "हम भी बजट के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करेंगे। हमें यकीन है कि इस कॉर्पोरेट सरकार समर्थक ने हमारे सुझावों पर विचार नहीं किया होगा।"

सुझावों के बारे में बोलते हुए, कौर ने बताया कि ट्रेड यूनियनों ने केंद्र से गैर-कर दाता परिवारों को 7,500 रुपये की आय सहायता प्रदान करने की मांग की थी। "हमने यह भी मांग की थी कि कॉर्पोरेट कर दरों को अपने पिछले स्तरों पर बहाल किया जाना चाहिए और एक वेल्थ-टैक्स लागू किया जाना चाहिए-इस प्रकार के धन का इस्तेमाल सामाजिक सेवाओं का विस्तार करने में  किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र को “एमएसएमई” जो सबसे अधिक नौकरियाँ प्रदान करती हैं, उस को पुनर्जीवित करने पर भी ध्यान देना चाहिए।

तपन सेन ने कहा कि केंद्र के साथ बजट से पहले राय-मशविरा करने के लिए हुई बैठकों में, ट्रेड यूनियनों ने अपनी मांगों का चार्टर प्रस्तुत किया था। उन्होंने बताया कि ये वही चार्टर था जिसे लेकर पिछले साल ट्रेड यूनियनों ने आम हड़ताल की थी और असंख्य विरोध प्रदर्शन किए थे। चार्टर में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्य दिवसों को बढ़ाने, राशन का समर्थन बढ़ाने और नई पेंशन योजना (एनपीएस) को वापस लेने की मांग की गई थी।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Budget 2021: Union Leaders Say No Hopes for Respite of Workers, More Privatisation to Follow

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