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बजट 2023-24 : सरकार ने 'अमृत काल' में कल्याणकारी ख़र्च में की कटौती

केंद्रीय बजट 2023-24 में आजीविका, भोजन और पोषण, पेंशन, किसानों और बच्चों के लिए वित्तीय सहायता कम कर दी गई।
welfare state

'अमृत काल' के पहले केंद्रीय बजट ने देश की मेहनतकश जनता के हितों और अधिकारों पर हमले की घोषणा कर दी है। आजीविका और काम, भोजन और पोषण, वृद्धावस्था पेंशन, किसानों की ज़रूरतों और बच्चों के कल्याण का समर्थन करने वाली कई योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए आवंटन में या तो कटौती की गई है या फिर उनका बजट छोटा कर दिया गया है।

ऐसा करने का कोई और कारण नहीं है, सिवाय इसके कि वर्तमान सरकार धनी और विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों का खुलेतौर पर और स्पष्ट रूप से समर्थन करने में विश्वास करती है, क्योंकि सरकार ये विश्वास करती है कि शायद ये 'धन निर्माता' ही सुनिश्चित करेंगे कि उनकी सेवा करने वाले गरीबों को अपने आप ही किसी 'काल्पनिक कहानी' से लाभ होगा और समृद्धि आएगी। दुनिया भर के देशों ने इस विश्वास को बार-बार खारिज़ किया है लेकिन जब तक लोग इसे बर्दाश्त करते रहेंगें तबतक ये वित्तीय नीति को तय करते रहेंगे। जैसा कि नारा दिया जाता है-मोदी है तो मुमकिन है!

लोकप्रिय ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना (MGNREGS) जो नौकरी की तलाश कर रहे लाखों लोगों के लिए अब एक जीवन रेखा बन गया है, इसके लिए बजट के आवंटन को देखें तो संशोधित अनुमानों के अनुसार पिछले वर्ष खर्च किए गए 89,400 करोड़ रुपये की तुलना में आने वाले वर्ष के लिए भारी कटौती कर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह 33 प्रतिशत की एक बड़ी कटौती है।

सरकार के प्रवक्ता अक्सर यह तर्क देते हैं कि मनरेगा एक मांग आधारित योजना है और मांग गिर रही है। लेकिन यह हक़ीक़त से बहुत दूर है, जैसा कि इस तथ्य में पाया गया है कि 2019-20 के महामारी वर्ष में 7.9 करोड़ की तुलना में, इस वर्ष 8 करोड़ से अधिक व्यक्तियों ने इस योजना के तहत काम किया है। 2020-21 और 2021-22 की महामारी के दौरान, जैसा कि सर्वविदित है, काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या क्रमशः 11.2 करोड़ और 10.6 करोड़ हो गई थी। इसलिए, आवंटन में वर्तमान कटौती से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक संकट पैदा होगा खासतौर पर उन लोगों के बीच जो पहले से ही बहुत परेशान हैं।

आजीविका से जुड़ी एक अन्य योजना, जिसमें मामूली कटौती हुई है, वह राष्ट्रीय आजीविका मिशन है, जिसे पिछले साल के 14,236 करोड़ रुपये के मुक़ाबले 14,219 करोड़ रुपये मिले हैं, जिसमें से सरकार पिछले साल 13,886 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई थी। इसलिए, वास्तव में, पिछले वर्ष के आवंटन की तुलना में 0.75 प्रतिशत की गिरावट आई है।

किसानों से वादा किया गया था कि 2022 तक उनकी आय दोगुनी हो जाएगी, जो होता नज़र नहीं आ रहा है। सनद रहे कि, किसानों ने कुख्यात कृषि कानूनों के खिलाफ और सरकार की कृषि के "कॉर्पोरेटीकरण" की योजना के खिलाफ एक लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है। इसलिए सरकार को इन कानूनों को वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा था। लेकिन सरकार अब समर्थन मूल्य पर गारंटी देने वाली प्रमुख मांग से अपने पैर खींच रही है। बजट में, किसानों के प्रति कोई भी चिंता नज़र नहीं आती है क्योंकि इनसे जुड़ी दो प्रमुख योजनाओं के आवंटन में कटौती की गई है, जबकि सभी महत्वपूर्ण उर्वरक सब्सिडी में नाटकीय रूप से कटौती की गई है।

पीएम किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान), जो हर साल छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये नकद प्रदान करती है और जिसे 2019 के आम चुनाव में शुरू किया गया था, में लगभग 12 प्रतिशत की कटौती की गई है और इसे 60,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं जो पिछले साल के 68,000 करोड़ रुपये के आवंटन से कम है।

सिंचाई के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण योजना, जिसे पीएम कृषि सिंचाई योजना कहा जाता है, को 10,787 करोड़ रुपये मिले हैं, जबकि पिछले साल इसे 12,954 करोड़ रुपये मिले थे। यह लगभग 17 प्रतिशत की कटौती है। दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल, सरकार आवंटित राशि को खर्च नहीं कर पाई थी, जिससे इस योजना का कुल खर्च 8,085 करोड़ रुपये ही रहा।

लेकिन उर्वरक सब्सिडी में, सरकार की वित्तीय तंगी की क्रूरता स्पष्ट नज़र आती है। यूरिया सब्सिडी पिछले साल के 1,54,098 करोड़ रुपये से घटाकर इस साल 1,31,100 करोड़ रुपये कर दी गई है, जो लगभग 15 प्रतिशत कम है। पोषक तत्व आधारित सब्सिडी पिछले साल के 71,122 करोड़ रुपये से 38 प्रतिशत कम करके संशोधित अनुमान में 44,000 करोड़ रुपये कर दी गई है। यूक्रेन में युद्ध के चलते उर्वरक आपूर्ति में विघ्न पड़ा और उर्वरक की कीमतों बड़ा उछाल आया था। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि 2023-24 में चीज़ें सामान्य हो जाएँगी फिर भी सरकार ने सब्सिडी कम कर दी है, जिससे किसानों की पहले से ही कम कमाई और भी कम हो जाएगी।

ऐसा लगता है कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) की सब्सिडी में कटौती के साथ ही खाद्य सब्सिडी में भी भारी कटौती की गई है, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिए ज़रूरी खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, और परिवहन को संभालती है। पिछले साल, FCI को उनके खर्चों को कवर करने के लिए 2.15 लाख करोड़ रुपये दिए गए थे। इस साल, इसमें 38 प्रतिशत की भारी कटौती कर 1.37 लाख करोड़ दिए गए हैं।

खाद्य सब्सिडी का एक अन्य घटक जिसे कटौती का सामना करना पड़ा है, वह खाद्यान्नों की विकेंद्रीकृत खरीद है। इस साल के बजट में इसे 72,283 करोड़ रुपये (संसोधित अनुमान) से घटाकर सिर्फ 59,793 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो 36 प्रतिशत की भारी कमी को दर्शाता है। शायद, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि चालू वर्ष में पूरी खरीद-पीडीएस वितरण श्रृंखला जर्जर हो गई है क्योंकि पिछले फरवरी में यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद निर्यात की मृगतृष्णा के बाद गेहूं की खरीद में भारी गिरावट आई है। इस साल इसी तरह के परिदृश्य से निपटने के बजाय, सरकार इस संकट का इस्तेमाल पूरी व्यवस्था को खत्म करने के लिए कर रही है-ये एक सपना है जो लंबे समय से देखा जा रहा है।

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP), जिसमें वृद्धावस्था और विधवा पेंशन आदि जैसे महत्वपूर्ण घटक शामिल हैं, को पिछले साल के आवंटन से मामूली कटौती कर 9,652 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 9,636 करोड़ रुपये कर दिया गया है-जो 0.17 प्रतिशत की गिरावट का सामना कर रही है। यह देखते हुए कि आवंटन वांछित स्तर से लगातार काफी नीचे रहा है, यह कटौती इंगित करती है कि सरकार का वंचितों और ज़रूरतमंद वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करने का कोई इरादा नहीं है।

अल्पसंख्यकों और दलितों व आदिवासियों के लिए आवंटन के मामले में सामाजिक-आर्थिक सरोकार की यह कमी और भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। अल्पसंख्यकों के विकास के लिए बने विशाल कार्यक्रम के आवंटन में पिछले साल के 1,810 करोड़ रुपये से घटाकर 2023-24 में 610 करोड़ रुपये दिए गए हैं। यह 66 प्रतिशत से अधिक की गिरावट है। ध्यान दें कि पिछले साल 2022-23 में सरकार ने आवंटित 1,810 करोड़ रुपये में से केवल 530 करोड़ रुपये ही खर्च किए थे। यह अपने आप में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए बजटीय सहायता के प्रति यदि उदासीनता नहीं लेकिन घोर लापरवाही को दर्शाता है।

अनुसूचित जाति (अनुसूचित जाति) और अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित जनजाति) समुदायों के विकास के लिए बने विशाल कार्यक्रमों में क्रमशः पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 2023-24 के आवंटन में 8 प्रतिशत और 4.5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। ये केवल प्रतीकात्मक प्रकृति की वृद्धि है, क्योंकि मुद्रास्फीति इस तरह की मामूली वृद्धि को बेअसर कर देती है। दूसरे शब्दों में, ऐसा लगता है कि सरकार को आबादी के इन दो सबसे उत्पीड़ित वर्गों के लिए कोई खास चिंता नहीं है।

मध्याह्न भोजन कार्यक्रम, जिसका नाम बदलकर पीएम पोषण शक्ति निर्माण किया गया है, को पिछले वर्ष के 10,234 रुपये की तुलना में आने वाले वर्ष के लिए 11,600 करोड़ रुपये मिले हैं, हालांकि संशोधित अनुमान बताते हैं कि बच्चों के पोषण पर वास्तव में पिछले वर्ष इस प्रमुख कार्यक्रम पर 12,800 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इसलिए पिछले साल के खर्च की तुलना में इस साल के आवंटन में 9 फीसदी से ज़्यादा की कमी आई है। यह न केवल प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के पोषण की स्थिति को प्रभावित करेगा बल्कि ड्रॉप-आउट में भी वृद्धि कर सकता है।

विशाल आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास योजना) योजना, जिसमें आंगनवाड़ी के माध्यम से 6 वर्ष की आयु तक के लाखों बच्चों को पौष्टिक भोजन देना शामिल है, को पिछले वर्ष की तुलना में आवंटन में 1.4 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है-जो 20,263 करोड़ रुपये से 20,554 करोड़ का आवंटन है। आंगनवाड़ी श्रमिकों और सहायिकाओं को दी जाने वाली मज़दूरी या 'मानदेय' और अन्य लाभों के पूर्ण अभाव को देखते हुए, यह एक स्पष्ट संकेत है कि सरकार इन प्रमुख श्रमिकों को सम्मानजनक वेतन देने को तैयार नहीं है। वास्तव में, खाद्य लागत भी इस मामूली वृद्धि से पूरी नहीं होगी क्योंकि सामान्य मुद्रास्फीति 5-6 प्रतिशत पर चल रही है, और खाद्य पदार्थों पर तो यह और भी अधिक है।

इस साल बजट के इस छोटे से सर्वेक्षण से नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार के अहंकार का पता चलता है, जो शायद सोचती है कि वित्तीय तंगी के प्रति उसकी प्रतिबद्धता (जैसा कि कॉर्पोरेट क्षेत्र और विदेशी पूंजी की मांग है) की भरपाई छद्म राष्ट्रवादी बयानबाज़ी और कट्टरता से की जाएगी। क्या वास्तव में ऐसा होगा, या लोग आर्थिक बदहाली से तंग आ जाएंगे, यह आने वाले महीनों और वर्षों में स्पष्ट हो जाएगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Union Budget 2023-24: Govt Slashes Welfare Spending in ‘Amrit Kaal’

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