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बजट केवल देश की एक प्रतिशत आबादी के लिए: चिदंबरम

राजयसभा में बजट पर चर्चा। विपक्ष ने लगाया बजट में आंकड़ों की बाजीगरी करने का आरोप, तो सत्ता पक्ष ने बताया विकासोन्मुखी बजट।
चिदंबरम

नई दिल्ली: बजट 2021-22 को कोरोना काल में उत्पन्न समस्याओं का समाधान न होने का आरोप लगाते हुए विपक्षी दलों ने बृहस्पतिवार को कहा कि इसमें आंकड़ों की बाजीगरी कर वास्तविक स्थिति को छिपाने का प्रयास किया गया है और आम आदमी को राहत देने की कोई कोशिश न करते हुए निजीकरण पर जोर दिया गया है। वहीं सत्ता पक्ष ने बजट को विकासोन्मुखी बताते हुए कहा कि इसमें सभी वर्गों और हर क्षेत्र पर ध्यान दिया गया है तथा आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में आम बजट को ‘‘निराशाजनक’’ करार देते हुए कहा कि ‘‘अमीरों का, अमीरों के लिए और अमीरों द्वारा ’’ बनाया यह बजट देश की उस एक प्रतिशत आबादी के लिहाज से लाया गया है जिसके नियंत्रण में देश की 73 प्रतिशत संपदा है।

उन्होंने उच्च सदन में आम बजट पर चर्चा में भाग लेते हुए दावा किया कि 2021-22 का बजट विफल रहा है क्योंकि गरीब को नकदी अंतरण के तहत छोटी राशि भी नहीं दी गई तथा राशन प्रदान करने की सुविधा को भी जारी नहीं रखा गया।

उन्होंने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था को निरंतर नकारती रही है और मानती है कि अर्थव्यवस्था की समस्या ढांचागत नहीं वरन चक्रीय है।

पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘विश्व के प्रत्येक अर्थशास्त्री ने कहा कि हमें मांग पैदा करनी होगी तथा मांग पैदा करने का श्रेष्ठ तरीका है कि लोगों के हाथों में पैसा दिया जाए। यह सरकार इसे लेकर विफल रही है। मैं अपना आरोप दोहरा रहा हूं। आप पिछले 36 माह के दौरान मिले सबक अभी तक नहीं सीख पाए हैं। मुझे भय है कि आपके द्वारा सबक नहीं सीखे जाने के कारण 12 महीने और व्यर्थ हो जाएंगे तथा गरीब परेशानी झेलेगा, और बुरी तरह झेलेगा।’’

उन्होंने कहा कि 2004-05 में स्थिर मूल्यों पर जीडीपी करीब 32.42 लाख करोड़ रूपये थी जो संप्रग सरकार के सत्ता से हटने के समय तीन गुना से अधिक बढ़कर 105 लाख करोड़ रूपये हो गयी।

चिदंबरम ने कहा, ‘‘उसके बाद से क्या हुआ? 2017-18 में यह 131 लाख करोड़ रूपये थी। 2018-19 में यह 139 लाख करोड़ रूपये पर पहुंच गयी। 2019-20 में यह थोड़ा और बढ़कर 145 लाख करोड़ रूपये हो गयी। 2020-21 में, जो वर्ष समाप्त होने वाला है, पहली छमाही के दौरान यह 60 लाख करोड़ रूपये के करीब रही तथा वर्षांत तक यह करीब 130 लाख करोड़ रूपये पहुंचेगी। इसका मतलब है कि हम वापस वहीं आ गये जहां हम 2017-18 में थे।’’

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने तीन साल में ‘‘अकुशल आर्थिक कुप्रबंधन’’ किया है।

चिदंबरम ने कहा, ‘‘माननीय वित्त मंत्री को मेरे द्वारा अकुशल शब्द का प्रयोग करने पर आपत्ति हुई। मैं संसद में कठोर शब्द का उपयोग नहीं कर सकता। मेरे पास जो उपलब्ध है, उसमें मैं सबसे मृदु शब्द का उपयोग कर रहा हूं। अकुशल आर्थिक कुप्रबंधन के तीन वर्षों के कारण का अर्थ है कि 2020-21 में हम ठीक वहीं पहुंच गये जहां हम 2017-18 में थे।’’
राज्यसभा में 2021-22 के बजट पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए सपा के विशंभर प्रसाद ने कहा कि यह बजट केवल आंकड़ों की बाजीगरी है और वास्तविक स्थिति को इसमें नहीं दर्शाया गया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि बजट में उत्तर प्रदेश की अनदेखी की गई है और यह बजट पश्चिम बंगाल के चुनाव के ध्यान में रखते हुए लाया गया है।

उन्होंने कहा ‘‘उत्तर प्रदेश में सड़कों की हालत बहुत खराब है। राज्य में बालू का अवैध खनन होने की वजह से कई सड़कों की हालत खराब हो गई है। बीते तीन माह में सरकारी गौशालाओं में कई गायों की मौत हुई है। गोशालाओं की हालत राज्य में अच्छी नहीं है’’

प्रसाद ने कहा कि किसानों की समस्याएं कई हैं। उन्होंने कहा ‘‘राज्य में पशुओं से फसलों को नुकसान बड़ी समस्या है। इसे फसल बीमा योजना के दायरे में ला कर इसके लिए मुआवजे की व्यवस्था की जानी चाहिए।’’

उन्होंने कहा ‘‘सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले रेल क्षेत्र की हालत खराब है। कोविड महामारी के दौरान लोगों की नौकरियां खत्म हुई हैं। इसके बावजूद भारतीय जीवन बीमा, सैनिक स्कूल, रेलवे, बैंकों सहित कई क्षेत्रों के निजीकरण की तैयारी चल रही है। इससे हालात सुधरेंगे नहीं बल्कि बिगड़ेंगे। सरकारी बैंकों से लोग पैसा लेकर देश छोड़ गए तो निजी बैंकों को कौन बख्शेगा ?’

सपा सदस्य ने तीन नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग करते हुए कहा ‘‘कुछ उद्योगपतियों के लिए तीनों किसान कानून बनाए गए हैं। इन्हें तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। किसानों की बात सुनी जानी चाहिए। आंदोलन के दौरान जिन किसानों की मौत हुई है उनके परिजन को आर्थिक मदद दी जानी चाहिए।’’

उन्होंने शिकायत की कि शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में बजट घटाया गया। ओलंपिक खेल होने जा रहे हैं लेकिन खेलों में भी बजट कटौती हुई है।’’

प्रसाद ने मांग की ‘‘कैंसर का इलाज बहुत महंगा है। गरीबों को कैंसर के नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही लोगों को कोविड-19 का टीका भी नि:शुल्क लगाया जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा ‘‘सांसद आदर्श गांव योजना के लिए न पैसा मिल रहा है और न ही निकट भविष्य में इसकी उम्मीद है इसलिए इस योजना को वापस ले लिया जाना चाहिए।’’

जदयू के रामचंद्र प्रसाद सिंह ने बजट को विकासोन्मुखी बताते हुए कहा कि महामारी के इस दौर में इससे बेहतर बजट नहीं बन सकता था।

उन्होंने कहा कि यह एक अहम तथ्य है कि पूरे देश में कोरोना काल में भुखमरी से कोई मौत नहीं हुई। उन्होंने कहा ‘‘कोरोना का टीका भी आ गया है। वर्ष 1967 में जब अकाल पड़ा था, देश में अनाज और दूध बाहर से आता था तब अगर कोविड-19 महामारी आती तो क्या होता ? आज हमें कुछ भी बाहर से नहीं मंगवाना पड़ा बल्कि हमने अपने ही देश में टीका विकसित कर लिया। यही है आत्मनिर्भर भारत।’’

सिंह ने कहा ‘‘बिहार में ‘न्याय के साथ समावेशी विकास’ को हमने मूलमंत्र बनाया है। कोरोना काल में हमारे प्रदेश के कई मजदूरों को राज्य सरकार ने उनके खातों में एक एक हजार रुपये दिए, राज्य में वापस लौटने पर उनके पृथकवास के खर्च तौर पर भी आर्थिक मदद दी गई।’’

उन्होंने कहा ‘‘ कोरोना काल में भी कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ। इसीलिए देश में अधिशेष अनाज है, अनाज की हमें कमी नहीं हुई। स्कूल बंद रहने के बावजूद ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई नहीं रूकी। जिन बच्चियों को साइकिल दी जानी थी, उनके खातों में इसके लिए पैसे दिए गए।’’

उन्होंने कहा ‘‘विपक्षी दलों का आरोप है कि काम केवल बड़े लोगों के लिए हुए। लेकिन असलियत यह है कि एकलव्य स्कूलों में बड़े लोगों के बच्चे नहीं पढ़ते। जन धन खाते बड़े लोगों के नहीं हैं। ’’

बजट की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को आय कर भुगतान से राहत मिलना बड़ी बात है।

माकपा के इलामारम करीम ने बजट को बेहद निराशाजनक बताते हुए कहा कि देश क्या, पूरी दुनिया ही अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है, ऐसे में बजट से बड़ी उम्मीदें थीं, जो पूरी नहीं हो पाईं।
 
तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर राय ने कहा ‘‘आथिर्क सर्वे में बताया गया है कि 2021-22 में हमारी आर्थिक वृद्धि दर 11 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि बजट में यह अनुमान 14.4 फीसदी बताया गया है। यह कैसे हो सकता है, इसका आधार क्या होगा ?

उन्होंने कहा ‘‘2019-20 में अर्थव्यवस्था में 4.1 फीसदी और 2020-21 में 7.1 फीसदी का संकुचन हुआ। इस साल जनवरी में विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान जताया था कि 2021-22 में हमारी जीडीपी में 9.6 फीसदी का संकुचन होगा। लेकिन सरकार की ओर से कहा गया कि विश्व बैंक की रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है। हमें अभी तक समीक्षा के बाद तैयार अनुमानों का पता नहीं है फिर हम 14.4 फीसदी वृद्धि दर होने का अनुमान कैसे जता सकते हैं या विश्व बैंक की रिपोर्ट को कैसे नकार सकते हैं ? ’’

राय ने कहा ‘‘बड़ी संख्या में एमएसएमई बंद हो गए। अब तो कोई ऋण लेने के लिए भी तैयार नहीं है।’’

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