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CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा

न्यूज़क्लिक ने यूपी सरकार का नोटिस पाने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।
CAA

उत्तर प्रदेश सरकार नगरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ मुखर रहे आंदोलनकारियों को एक बार फिर निशाना बना रही है। आंदोलनकारियों को एक बार फिर “वसूली” के लिये नोटिस भेजे गये हैं।

केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के विवादित नगरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ पूरे देश में 2019-20 में विपक्षी दलों और नागरिक समाज द्वारा आंदोलन किये गये थे। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में पुलिस ने आंदोलन दबाने की हर संभव कोशिश करी थी।

इसी दौरान आंदोलन हिंसक हो गया था। जिसमें क़रीब 20 आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। आरोप है कि आंदोलनकारियों की मौत पुलिस की गोली से हुई।

इसके अलावा प्रदेश में 19 दिसंबर 2019 को सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में सरकारी और निजी सम्पत्ति का भी नुक़सान हुआ था। हालाँकि आंदोलनकारियों का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के बीच मौजूद दक्षिणपंथीयों ने शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने के लिये हिंसा की थी।

जबकि योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदर्शनकारियों, आंदोलनकारियों को ही सरकारी और निजी सम्पत्ति का भी नुक़सान का ज़िम्मेदार मानती है। सरकार ने हिंसा में हुए नुक़सान की “वसूली” के लिये आंदोलनकारियों की तस्वीरों वाले होर्डिंग तक शहरों में लगवा दिये थे। इस विवादास्पद होर्डिंग पर अधिवक्ता, पूर्व आईपीएस, लेखक, समाज सेवी और मुस्लिम धर्मगुरुओं समेत तमाम आंदोलनकारियों की तस्वीरें थी।

जिस पर आंदोलनकारियों ने सख़्त आपत्ति करी थी। उनका कहना था कि उनकी तस्वीरें सार्वजनिक कर के सरकार ने उनके लिये “लंचिंग” का ख़तरा पैदा कर दिया है।

हाई कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से होर्डिंग हटाने का आदेश दिया। हालाँकि सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी 2022 में एक बड़ा झटका दिया। अदालत ने योगी आदित्यनाथ सरकार को आदेश दिया है कि वह 2019 में सीएए के ख़िलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकारी संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाने के एवज़ में प्रदर्शनकारियों से वसूली गई करोड़ों रुपये की रकम को वापस करे।

अदालत ने सरकारी अधिकारियों द्वारा वसूली गई राशि को “अन्यायपूर्ण” करार दिया। हालाँकि अदालत ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश सरकार नए क़ानून “यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू प्रॉपर्टी एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी ऐक्ट, 2020” के तहत बनाए गए “न्यायिक न्यायाधिकरण” के ज़रिए नए सिरे से वसूली की प्रक्रिया को शुरू कर सकती है।

ईद से पहले मिले नए नोटिस पर आंदोलनकारियों का कहना है कि यह नोटिस “ग़ैरक़ानूनी” हैं, क्यूँकि अभी अदालत में उनके विरुद्ध कोई अपराध सिद्ध नहीं हुआ है। इसके अलावा उनका कहना है कि सरकार “आंदोलनकारियों” से “अपराधियों” जैसा सुलूक कर रही है। 

न्यूज़क्लिक ने नोटिस प्राप्त करने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।

दीपक कबीर का कहना है कि 02 मई, 2022 को एक नया नोटिस मिला है। उनके अनुसार योगी सरकार लगातार आंदोलनकारियों का पक्ष सुने बिना उनके विरुद्ध कार्यवाही कर रही है। उनका कहना है- उनके ऊपर क़रीब 64 लाख का जुर्माना लगाया गया था।

वह कहते हैं कि “मैं अभी दोषी सिद्ध नहीं हुआ हूँ। इसके बावजूद मेरे नाम और तस्वीर की होर्डिंग लगाई गईं थी”।

प्रसिद्ध रंगकर्मी दीपक कबीर कहते हैं सरकार न्याय नहीं करना चाहती है बल्कि असहमति की आवाज़ उठाने वालों से बदला लेना चाहती है। उनका मानना है कि  सरकार “अहंकार” में डूबकर मसले का हल करना चाहती है। जबकि लोकतंत्र में ऐसा संभव नहीं है।

सीएए के दौरान जेल जाने वाले दीपक हाल में मिले नोटिस के बारे में कहते हैं “ हमको 16 फ़रवरी 22 को जारी नोटिस 02,मई 22 को मिला”। “जिसमें  मुझको (न्यायालय दावा अधिकरण), लखनऊ मण्डल में 10, मई 2022 को पेश होने को कहा गया है”।

उनके अनुसार यह नोटिस “न्याय के लिये नहीं, बल्कि राजनीति से प्रेरित है”। उन्होंने कहा कि सीएए आंदोलन के मसले को सरकार बदले और नफ़रत से नहीं बल्कि इंसाफ़ के साथ हल करे और प्रशासन से भी सवाल किया जाये, जिसके द्वारा आंदोलनकरियों का दमन किया गया था।

वह आगे कहते हैं “हम अगर ग़लत नहीं हैं तो सरकार कितना भी प्रताड़ित करे, हम सरकार के आगे नहीं झुकेगे”। “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चाहे जेल भेंजे या घर की कुर्की करवा दें। 

वह मानते हैं कि सरकार उन्ही लोगों को चिन्हित कर के निशना बना रही है जो सरकार के हर आलोकतंत्रिक क़दम के विरुद्ध असहमति की आवाज़ उठाते हैं। दीपक कहते हैं कि “सरकार अपने प्रचार तंत्र से यह साबित करना चाहती है कि सरकार के विरोधी-देश के ख़िलाफ़ है”। जबकि सरकार केवल एक प्रबंधन है, और उसके ख़िलाफ़ बोलने का अधिकार संविधान ने प्रत्येक नागरिक को दिया है”।

उन्होंने कहा कि “देश के भले के लिये हम लोग हमेशा सरकार की ग़लत नीतियों की आलोचना करते रहेंगे।” “हम अपराधी नहीं आंदोलनकारी हैं- सरकार को अपराधी और आंदोलनकारी का अंतर समझना चाहिये।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सीएए आंदोलन में शामिल सदफ़ जाफ़र कहती हैं कि “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यही उम्मीद थी, भाजपा सरकार बदले की भावना से काम कर रही है”। सदफ़ कहती हैं कि हम बेगुनाह हैं और हमने कोई अपराध नहीं किया है”।

वह मानती हैं कि सीएए विरोधी आंदोलन वैसे ही किया गया जैसे संविधान नागरिकों को विरोध-प्रदर्शन की इजाज़त-अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि अगर संविधान बचाने के लिये, ज़रूरत पड़ी तो, तो भविष्य में भी वह ऐसे आंदोलन में फिर भाग लेंगी। वह कहती हैं- सरकार का अहंकार हमको अन्याय के ख़िलाफ़ बोलने से नहीं रोक सकता है।

उल्लेखनीय है कि नोटिस में कहा गया है- अभियुक्त आंदोलनकरी अदालत में हाज़िर होकर बताएँ कि उनके ख़िलाफ़ “वसूली” की करवाई क्यूँ न की जाये। नोटिस में यह भी साफ़ किया गया है कि अगर अभियुक्त आंदोलनकरी अदालत में हाज़िर नहीं होते हैं तो उनके विरुद्ध “वसूली” की करवाई शुरू कर दी जायेगी।

क़ानून और संविधान के जानकार मानते हैं कि यह नोटिस “असंविधानिक” हैं। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कबीर दीक्षित कहते हैं कि जुर्म साबित होने से पहले किसी सज़ा नहीं दी जा सकती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता कबीर दीक्षित मानते हैं की अभी मुक़दमे के ट्रायल भी पूरे नहीं हुए हैं, ऐसे में “दंडात्मक” करवाई कैसे की जा सकती है? कौन “दोषी” है कौन “निर्दोष” यह सरकार नहीं “अदालत” फ़ैसला करेगी।

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