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मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
कोविन-19: क्या रिवर्स माइग्रेशन से उड़ीसा की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है?
वर्तमान में जो रोज़ी-रोटी का संकट उठ खड़ा हुआ है, उससे बचा जा सकता था, यदि सरकार ने गंजाम इलाके के ग्रामीण आधार के जीवन स्तर को मजबूत करने के लिए कई छोटी और मझौली औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने की पहल की होती।
अरबिंद आचार्य, नीलाचल आचार्य
10 May 2020
Odisha
प्रतीकात्मक तस्वरी। साभार: स्क्रॉल.इन

अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिए प्रवासन को एक रणनीतिक तौर पर लाखों-लाख लोगों ने अपना रखा है। भारत में होने वाले अधिकतर पलायन का रुख शहरों की ओर या तो काम के सिलसिले में या रोजगार या छोटे-मोटे व्यवसायों को लेकर होता है। समूचे देश भर में लॉकडाउन को प्रभावी तौर पर लागू कर दिए जाने ने शहरों में रह रहे इन प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी और जीवन में एक तूफ़ान खड़ा कर दिया है। ये वे लोग हैं जो मुख्य रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में अपने श्रम के योगदान के जरिये किसी तरह अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे।

पलायन के आँकड़े इस बात की ओर संकेत देते हैं कि बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और ओडिशा जैसे निम्न-आय वाले राज्यों की तुलना में प्रति व्यक्ति उच्च आय वाले विकसित राज्यों जैसे कि दिल्ली, गोवा, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में आगत-प्रवासन (in-migration) की दर कहीं अधिक है। ये निम्न-आय और अविकसित राज्य, भारत के विकसित राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च बहिरागत-पलायन (out-migration) को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन 2010 की रिपोर्ट बताती है कि करीब 30% प्रवासी अस्थाई मजदूरों के तौर पर कार्यरत थे और सिर्फ 35% प्रवासी मजदूर ही नियमित/ वेतनभोगी श्रमिकों के बतौर काम पाए हुए थे। बिना किसी पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा और शारीरिक सुरक्षा उपायों के ये लोग काम करने को मजबूर हैं। बेहद ख़तरनाक औद्योगिक क्षेत्रों और खदानों में काम करने वाले लाखों प्रवासी श्रमिकों की मांगों की अनदेखी करते हुए मनमाने ढंग से नीतियों के क्रियान्वयन, बुनियादी न्यूनतम सुविधाओं में कमी के साथ सामाजिक तौर पर भेदभाव और निरक्षरता और इसके शीर्ष पर, हाल ही में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप ने इन प्रवासी श्रमिकों को हाशिये पर धकेलने का ही काम किया है।

2011 की जनगणना के अनुसार ओडिशा के कुल 13 लाख प्रवासी कामगार हैं, जो अलग-अलग कारणों से देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवासियों के तौर पर रह रहे थे। इनमें से अधिकांश लोग आंध्र प्रदेश (14.6%),  और इसके बाद गुजरात (13.6%), पश्चिम बंगाल (11%) और महाराष्ट्र (9%) में रह रहे हैं। उड़िया प्रवासियों के लिए दूसरी सबसे बड़ी पसंद के रूप में गुजरात राज्य है, जबकि गुजरात में रहने वाले कुल उड़िया प्रवासियों में से बहुमत (45%) नौकरी या व्यवसाय के सिलसिले में रह रहे थे। गुजरात के कुल उड़िया प्रवासियों में से करीब 30% लोग थोड़े समय के लिए ही प्रवासी के तौर पर कार्यरत थे, जैसे उदहारण के तौर पे वे चार साल से कम समय से पश्चिमी राज्य में निवास कर रहे हैं। इन प्रवासियों में से अधिकांश लोग (खासतौर पर सूरत शहर में) गंजाम जिले के रहने वाले हैं। हालिया अनुमान इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जो 7 से 8 लाख लोग गुजरात में पलायन किये हुए हैं उनमें से अधिकतर लोग सूरत में काम करते हैं।

लॉकडाउन के जारी रहने के बीच केंद्र से हरी झंडी मिलने के बाद से उड़ीसा सरकार ने अपने प्रवासी श्रमिकों के घर वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार ने इन श्रमिकों की संख्या का आकलन 7.5 लाख तक किया है जो कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन की वजह से अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। जबकि ओडिशा सरकार के वेब पोर्टल पर करीब 10 लाख फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों और अन्य मूल निवासियों ने अपने-अपने घरों में वापसी के लिए पहले से ही पंजीकरण करा रखा है।

इसके लिए सरकार ने समूचे राज्य में फैले कई ग्राम पंचायतों की सरकारी स्वामित्व वाली इमारतों (स्कूलों) में 7,200 आइसोलेशन सुविधाओं में  करीब 2.27 लाख बिस्तर तैयार कर रखे हैं। प्रवासियों की वापसी के लिए सरकार की ओर से एक मानक प्रोटोकॉल भी तैयार किया गया है। प्रवासियों को अनिवार्य तौर पर 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन की प्रक्रिया से गुजरना ही होगा और हर व्यक्ति के हाथ में न मिटने वाली स्याही से तारीख वाली मुहर लगाई जाएगी। प्रत्येक क्वारंटाइन केन्द्रों और पंचायतों के लिए सरकार द्वारा नमूनों की जाँच और उसके बाद स्वास्थ्य उपायों की शुरुआत की गई है। इसके अलावा पंचायतों को कहा गया है कि वे बुनियादी न्यूनतम सुविधाओं के साथ भोज्य सामग्री की व्यवस्था करके रखें। 14 दिनों तक क्वारंटाइन में रखे जाने की अवधि पूरी हो जाने पर प्रत्येक प्रवासी को 2000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जायेगी।

उड़ीसा में साल दर साल के क्रम में बाढ़, चक्रवात, बवंडर या सूखे जैसी जैसी आपदाओं का सिलसिला बना रहता है और इस साल उसे कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की और से इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए तमाम तरह की आपदा प्रतिरोधी योजनायें और कार्यक्रमों के प्रति सजगता बनी रहती है जिससे विभिन्न निवारक और सुरक्षात्मक उपायों के जरिये जीवन और संपत्ति के नुकसान को कम से कम किया जा सके। लेकिन मौजूदा महामारी ने सरकार के समक्ष कहीं बड़ी चुनौती पेश की है जिसमें घर वापसी कर रहे लाखों प्रवासियों के लिए आजीविका प्रदान करने की चुनौती सबसे बड़ी बनकर खड़ी हो गई है। वर्तमान में जिस प्रकार से यह आजीविका का संकट खड़ा हो गया है इसे टाला जा सकता था। यदि सरकार की ओर से गंजाम के ग्रामीण जीवन के आधार में ढेर सारे छोटे और मझौले उद्योग धंधों की स्थापना की गई होती, जिसमें बंदरगाह और खनिज आधारित उद्योग शामिल हैं।

स्वास्थ्य के मोर्चे पर तो जिला प्रशासन द्वारा इस महामारी से निपटने के सम्बंध में कई पहलकदमीयाँ ली गई हैं, लेकिन ज़िले में प्रवासी मज़दूरों के बड़े हिस्से के लिए आजीविका और रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप को विकसित किये जाने की सख्त आवश्यकता है। जब वर्तमान दौर में सारी दुनिया ही आर्थिक मंदी की चपेट में है ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि भुवनेश्वर या दिल्ली से आने वाले आदेशों की प्रतीक्षा करने के बजाय स्थानीय स्तर पर त्वरित निर्णय लिए जाएं। इस महामारी से मानवता की रक्षा हेतु प्रशासन को दूरदर्शी नीति के कार्यान्वयन के साथ-साथ पर्याप्त तैयारी करने की आवश्यकता है। ग्रामीण इलाकों में इन प्रवासियों को समुचित आर्थिक अवसर प्रदान कराना बेहद महत्व का हो जाता है।

राज्य चाहे तो स्वयं सेवी समूह (एसएचजी) के सदस्यों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत 20 लाख रुपये के गैर जमानती ऋण सहायता में शामिल कर उन्हें इसका फायदा उठाने के लिए प्रभावी तौर पर मदद पहुँचा सकती है। उत्तर प्रदेश सरकार के रास्ते पर चलते हुए वह चाहे तो एसएचजी को उन वस्तुओं /उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने के निर्देश दे सकती है जिनकी स्थानीय स्तर पर मांग बनी रहती है; और एक-जिला-एक-उत्पाद मॉडल का पालन किया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कच्चे माल का उपयोग करके आपूर्ति श्रृंखला में होने वाले अवरोधों की चुनौतियों से निपटा जा सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मांग कैसे पैदा की जाए, इसकी योजना बनाई जा सकती है। सरकार को चाहिए कि इन एसएचजी और एजेंसियों को क्रेडिट लिंकेज की सुविधा प्रदान करे, जिसमें किसान उत्पादक संगठन और पंचायतों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि वे  न्यूनतम निर्धारित मूल्य पर इन उत्पादों को खरीदें जिससे कि उचित बाजार लिंकेज की सुविधा सुनिश्चित हो सके।

ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के तहत अतिरिक्त 100 दिनों की मांग भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण मदद पहुँचा सकती है। राज्य सरकार ने अपनी ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में काम के दिनों को दुगुना करने की घोषणा कर दी है, हालांकि गैर-सिलसिलेवार तरीके से अग्रिम भुगतान के तौर पर कम से कम 50 दिनों का वेतन का यदि इन प्रवासी श्रमिकों के खातों में डाल दिया जाए तो यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों में मांग की कमी को एक हद तक कम कर सकता है। इसके अलावा मनरेगा के माध्यम से किए जाने वाले कार्यों की सूची में विस्तार दिया जा सकता है, जिसमें यदि निजी भूमि में खेती सम्बंधी गतिविधियाँ हो सकें तो ये सहायक सिद्ध हो सकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की मांग पैदा करने के लिए मनरेगा के तहत नियमित गतिविधियों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण, बागवानी, मछली पालन से संबंधित कार्यों को शुरू किया जा सकता है।

सरकार को चाहिए कि छोटे ग्रामीण उद्यमों को सुनिश्चित ऋण सहायता की सुविधा भी प्रदान करे। प्रवासी मजदूरों को आवश्यक प्रशिक्षण देने के बाद राज्य सरकार सुचारू रूप से आपूर्ति श्रृंखला बनाये रखने के लिए किसानों के घर से ही बागवानी के उत्पादों की खरीद कर सकती है।

ऐसी खबरें सुनने में आ रही हैं कि मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते प्रवासी लोग क्वारंटाइन केंद्रों से निकलकर भाग जा रहे हैं। इन प्रवासियों के प्रति जिला प्रशासन को क्वारंटाइन अवधि के दौरान और बाद में भी मानवतावादी रुख को अपनाना चाहिए। यदि इन पहले से पीड़ित और आघात झेल रहे प्रवासियों को नियंत्रण में रखने के लिए कानून व्यवस्था का सख्ती से पालन किया गया तो महामारी की मार झेल रहे प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अकाल और इससे जुड़ी अशांति के फैलने का ख़तरा पैदा हो सकता है।

(अरबिंद आचार्य ([email protected]) केयर- इंडिया, भुवनेश्वर से जुड़े हैं। निलाचला आचार्य ([email protected]) सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी, नई दिल्ली से सम्बद्ध हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

COVID-19: Can Reverse Migration Help Revive Rural Economy of Odisha?

Odisha
Migrant workers
COVID-19
novel coronavirus
Rural Economy
MGNREGA
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