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ग्रामीण भारत में कोरोना-13 : थेरी गांव के किसान श्रमिकों की कमी को लेकर चिंतित

सरकार और सामुदायिक समूह पंजाब के इस गांव में इस महामारी से पैदा हुई समस्याओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
ग्रामीण भारत में कोरोना
प्रतीकात्मक तस्वीर

यह इस श्रृंखला की 13वीं रिपोर्ट है जो ग्रामीण भारत में लोगों के जीवन पर COVID-19 से संबंधित नीतियों के प्रभाव की तस्वीर पेश करती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा तैयार की गई इस श्रृंखला में कई स्कॉलर की रिपोर्ट शामिल है जो भारत के विभिन्न गांव का अध्ययन कर रहे हैं। ये रिपोर्ट अध्ययन किए जाने वाले गांवों में प्रमुख श्रोतों के साथ टेलीफोन पर साक्षात्कार के आधार पर तैयार की गई है। ये रिपोर्ट में पंजाब के थेरी गांव के लोगों की आजीविका, जीवन और अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रव्यापी पाबंदी और COVID-19 महामारी के प्रभाव की व्याख्या करता है।

थेरी गांव पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब ज़िले में स्थित है। ये गांव ज़िला मुख्यालय (श्री मुक्तसर साहिब शहर) से34 किमी दूर है और राज्य की राजधानी चंडीगढ़ से255 किमी दूर है।

ग्राम पंचायत के मुखिया के अनुसार इस गांव में 734परिवार है और लगभग 4,000 की कुल आबादी है। भारत के कई अन्य गांवों की तरह थेरी में भी जातियों के आधार पर बस्ती का बसावट है। जाट सिख परिवार गांव के तीन वार्डों में रहते हैं जबकि बाकी छह वार्डों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार रहते हैं।

इस पंचायत के मुखिया के मुताबिक गांव में जाति, गोत्र और आदिवासी समूहों में जाट, चमार, बाज़ीगर, मज़हबी,सुनार और तरखान शामिल हैं। जाट सिख मुख्य भूस्वामी समूह हैं और इनकी लगभग 30% आबादी है। मजहबी सिख ज्यादातर भूमिहीन हैं और इनकी लगभग 20%आबादी है। बाज़ीगर भी ज्यादातर भूमिहीन हैं जिनकी आबादी लगभग 13% है। इस गांव में गैर-कृषि व्यवसायों में भी कई लोग लगे हुए हैं जिनमें बढ़ई, रिपेयर वर्कशॉप वर्कर, राजमिस्त्री, निर्माण श्रमिक (जैसे जेसीबी ऑपरेटर) और वे हैं जो स्पेयर पार्ट्स की दुकानों के मालिक हैं या यहां काम करते हैं।

जब साक्षात्कार (1 मार्च और 3 अप्रैल) किए गए थे तब तक गेहूं की कटाई शुरू नहीं हुई थी। यहां के किसान कंबाइन हार्वेस्टर का इस्तेमाल करके गेहूं की कटाई करते हैं लेकिन वे चढ़ाने और उतारने (लोडिंग और अनलोडिंग) के लिए श्रमिकों को काम पर रखते हैं। इसलिए, इस अवधि में कृषि कार्य की तलाश करने वाले प्रवासी श्रमिकों की आमद सामान्य घटना है।

हालांकि, लॉकडाउन ने प्रवासी श्रमिकों को इस साल इस गांव में आने से रोक दिया है। एक किसान ने बताया कि गांव में रहने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिक अपने गृह राज्यों की ओर लौट चुके हैं। श्रमिकों की कमी उनके लिए चिंता बनी थी। उन्होंने यह भी कहा कि गेहूं की बिक्री कब होगी और लॉकडाउन के दौरान ख़रीद कैसे होगी इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है।

ये गांव मलाउट और गिद्दड़बाह जैसे दो शहर से 8 किमी दूर है। किसान आमतौर पर इन दो शहरों के अनाज मंडी में अपनी उपज बेचते हैं। लॉकडाउन के चलते आने जाने पर पाबंदी लगने के बाद से ये किसान इस बात से चिंतित थे कि वह अपनी उपज को किस तरह स्टोर करेंगे,क्योंकि उनके पास स्टोर करने के लिए जगह की कमी थी।

कृषि बाजार भी श्रमिकों की कमी है क्योंकि वे भी आमतौर पर प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर करते हैं।

गैर-कृषि कार्यों में लगे कई लोगों की आय ख़त्म हो गई है। एक बढ़ई ने बताया कि लॉकडाउन ने उनकी कमाई पर बुरा असर डाला है जिससे उनके परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनके परिवार में उनकी पत्नी, चार बच्चे और उनकी बीमार मां हैं।

लॉकडाउन से पहले उन्होंने गांव में या आसपास के शहरों में काम किया। उन्होंने यह भी कहा कि इस गांव के दो फार्मेसियों में कई दवाएं स्टॉक में नहीं थी। इस बारे में पूछे जाने पर, एक फार्मेसी के मालिक ने कहा कि सप्लाई चेन में रुकावट के चलते उन्हें दवा नहीं मिली है। इस गांव के अधिकांश ग़रीब परिवार पैसे की कमी के कारण आवश्यक दवाईयां नहीं रखते हैं और जरूरत पड़ने पर कम मात्रा में खरीदते हैं। गांव के दो घरों में काम करने वाली 50 वर्षीय एक महिला श्रमिक ने कहा कि लॉकडाउन के चलते उनकी आमदनी रुक गई है। उन्होंने कहा कि वह प्रति माह 1,700 रुपये कमा लेती थीं।

इस गांव में कृषि से जुड़े मशीन की मरम्मत करने वाले एक दुकान के मालिक ने कहा कि वे आमतौर पर मार्च महीने में बहुत काम करते हैं लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद पहले कुछ दिनों के तक दुकान बंद करना पड़ा। यद्यपि उन्हें लॉकडाउन के दूसरे सप्ताह के बाद फिर से खोलने की अनुमति दी गई है लेकिन उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वे मशीनों की मरम्मत के लिए ज़रुरी उपकरण और स्पेयर पार्ट्स लाने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि ये आमतौर पर पास के शहरों से खरीदे जाते हैं।

अर्थ मूवर मशीनरी के संचालक भी पास के बायोमास थर्मल प्लांट के बंद होने के साथ साथ अन्य विनिर्माण कार्य के रुकने से प्रभावित हुए हैं। गांव के बाज़ीगर परिवार के पास 50-60 ट्रैक्टर हैं और इसका इस्तेमाल कृषि उपज को पंजाब के कुछ हिस्सों और हरियाणा,हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में ढ़ोने के लिए करते हैं। वे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं क्योंकि सामानों के अंतर-राज्यीय परिवहन को रोक दिया गया है।

थेरी गांव में एक निजी बैंक (एक्सिस बैंक) है लेकिन एटीएम नहीं है। बैंक के प्रबंधक ने बताया कि वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत लाभार्थियों को प्रति माह 500रुपये मिलते थे लेकिन मार्च महीने में उन्हें 750 रुपये मिले थे क्योंकि राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान कुछ राहत देने के लिए उन्हें 250 रुपये बढ़ा दिया था।

प्रधान के अनुसार, लगभग 161 गरीब परिवारों को आवश्यक खाद्य आपूर्ति (नमक, हल्दी, चीनी, चाय,चावल और घी) देने के लिए ग्राम पंचायत ने अब तक50,000 रुपये खर्च किए हैं। पंचायत के मुखिया ने कहा कि राज्य सरकार के राहत पैकेज के बारे में तब तक कोई पुष्टि नहीं हुई थी।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था जो पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रही थी वह अब COVID-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है। थेरी गांव में सबसे ज्यादा प्रभावित कैजुअल वर्कर, प्रवासी मज़दूर और अन्य दिहाड़ी मजदूर हैं। इनमें से कई लोग आवश्यक चीज तक नहीं हासिल कर पाए हैं। हालांकि, स्थानीय सरकार और समुदायिक समूह महामारी से पनपी समस्याओं को कम करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

[ये साक्षात्कार टेलिफोन पर लिए गए। सूचना एकत्रित करने के लिए पहले ग्राम प्रधान से लिया गया फिर अन्य लोगों से लिया गया। सूचना देने वालों में एक किसान,एक राजमिस्त्री, अर्थमूवर मशीनरी के एक ऑपरेटर,मशीनरी मरम्मत करने वाले दुकानों के दो मालिक, एक महिला श्रमिक, एक बैंक प्रबंधक और बाजीगर जनजाति के तीन व्यक्ति शामिल हैं। ये साक्षात्कार इस साल 31 मार्च और 3 अप्रैल के बीच लिए गए थे।]

लेखक पटियाला स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19 in Rural India-XIII: Lack of Labour, a Key Anxiety for Farmers in Theri Village

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