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त्रिपुरा; यदि मतदान निष्पक्ष रहा तो बीजेपी हारेगी : जितेंद्र चौधरी 

नगरपालिका चुनावों से पहले और इस पूर्वोत्तर राज्य में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के बाद, माकपा और आदिवासी नेता तथा पूर्व लोकसभा सांसद का कहना है कि त्रिपुरा के लोग भाजपा से नाराज़ हैं।
Tripura

जैसा कि त्रिपुरा 25 नवंबर को होने वाले नगरपालिका चुनावों से पहले राजनीतिक और सांप्रदायिक हिंसा से जूझ रहा है, न्यूज़क्लिक के संदीप चक्रवर्ती ने स्थिति का जायज़ा लेने के लिए पूर्व लोकसभा सांसद और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के त्रिपुरा राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी से बात की। चौधरी त्रिपुरा के एक प्रमुख आदिवासी संगठन गणमुक्ति परिषद के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने त्रिपुरा पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से 2014 में लोकसभा चुनाव जीता था, लेकिन 2019 में भारतीय जनता पार्टी के रेबती त्रिपुरा से हार गए थे। चौधरी अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव भी हैं। उन्होंने 1993 से 2014 तक लगातार माणिक सरकार की अध्यक्षता में बने चार मंत्रिमंडलों में मंत्री के रूप में काम भी किया है। न्यूज़क्लिक को दिए साक्षात्कार के संपादित अंश नीचे दिए जा रहे हैं:

प्रश्न: क्या यह त्रिपुरा के इतिहास में संकट की अवधि है?

मैं इसे संकट काल नहीं बल्कि एक चरण कहूंगा। पिछले 25 वर्षों से, भारत की कॉम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) राज्य की सत्ता में थी, और इस दौरान भर्ती हुए कैडर का हिस्सा 93 प्रतिशत था। उन्हें यह चरण इसलिए मुश्किल लग रहा है क्योंकि उनके पास फासीवादी हमलों का सामना करने का अनुभव नहीं है। साथ ही, वाम मोर्चे के शासन करने का तरीका जो लोकतांत्रिक मानदंडों का पालन करता है और एक फासीवादी (भाजपा के नेतृत्व वाली) सरकार का काम करने का तरीका अलग है। समय के साथ अनुभव हासिल कर पार्टी कैडर इससे निपटने में कामयाब हो जाएगा।

अलगाववादी टिपरा मोथा (जो एक अलग टिपरालैंड के निर्माण की मांग करता है और जिसका नेतृत्व पूर्व कांग्रेस नेता प्रद्योत देबबर्मा कर रहे हैं) के उदय पर आपका क्या कहना है?

यह हाल की घटना है और समय की कसौटी पर खरी नहीं उतरी है। त्रिपुरा में इस तरह की राजनीति 1980 के दशक में 'मुक्त त्रिपुरा' के नाम पर शुरू हुई थी। इस राजनीति की शुरुवात राज्य के पहाड़ी इलाकों से हुई थी। उन्होंने तब कहा था कि गणमुक्ति परिषद, माकपा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण, 'मुक्त त्रिपुरा' के उनके प्रयास में समर्थन नहीं करती है। 

फिर, वर्ष 2000 में, माणिक सरकार के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान, इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफटी) – जो आज राज्य सरकार में भाजपा की सहयोगी है ने - त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्रों के स्वायत्त जिला परिषद चुनावों में सत्ता हासिल की थी। हालांकि, उनका प्रयास भी विफल रहा। अब 20 साल बाद एक और प्रयास शुरू हुआ है और यह भी विफल हो जाएगा क्योंकि दोनों ही आंदोलन अपनी प्रकृति में विभाजनकारी और राष्ट्रविरोधी हैं।

हर जगह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गरीब विरोधी है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ है और सभी जनोन्मुखी योजनाओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है। हालांकि, टिपरा मोथा उनके बारे में चुप्पी साधे हुए है। हमें लगता है कि पथभ्रष्ट युवा शीघ्र ही जनता के पाले में लौट आएंगे और यह भ्रम का दौर मिट जाएगा।

त्रिपुरा में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है?

राज्य में लगभग 9 प्रतिशत अल्पसंख्यक (मुस्लिम) आबादी है। पूरे देश की तरह, वे त्रिपुरा के कुछ विधानसभा क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में केंद्रित हैं। बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद, बांग्लादेश सरकार ने मजबूत छात्र-युवा आंदोलन और देश के वामपंथियों की सहायता से वहां हिंसा पर काबू पाने के लिए साहसिक कदम उठाए हैं।

त्रिपुरा में, 1960 के दशक में कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़कर, सदियों से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक सौहार्दपूर्ण संबंध रहा है।

भाजपा, जिसका पहले जनता ने बहिष्कार किया हुआ था, ने राज्य में हिंदू जागरण मंच नामक एक संगठन बनाना शुरू कर दिया था, और अचानक, हमने देखा कि भाजपा के सभी जाने-माने चेहरे हिंदू जागरण मंच की टोपी पहने हुए हैं और अल्पसंख्यकों के इलाकों में उनके खिलाफ घृणा का चला रहे हैं। 

बांग्लादेश की घटना पर प्रतिक्रिया के मामले में अल्पसंख्यकों के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक अभियान चलाया गया था। दशहरे के बाद धमकियों की घटनाएं बढ़ने लगीं, उदयपुर और पानीसागर के रोया में छह-सात घर आग की चपेट में आ गए थे। मस्जिदों पर भी हमला किया गया। मुझे लगता है कि घटनाएं अधिक व्यापक इसलिए नहीं हो पाईं क्योंकि त्रिपुरा के शांतिप्रिय लोग इसे रोकने के लिए हरकत में आ गए थे। इस दौरान पुलिस पंगु बनी रही।

त्रिपुरा के लोगों ने सांप्रदायिक हिंसा का विरोध शुरू किया। उन्होंने सवाल किया, कि जब पश्चिम बंगाल या असम जैसे बड़े राज्यों में कुछ नहीं हुआ, फिर त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में घटनाएं कैसे हो रहीं थीं। इस बीच केंद्रीय एजेंसियों ने जब राज्य सरकार को अलर्ट किया तब यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन रहा था। इसके बाद ही पुलिस हरकत में आई।

इस तरह की सांप्रदायिक घटनाएं 27 अक्टूबर के बाद नहीं हुईं, इसका श्रेय त्रिपुरा के लोकतांत्रिक, शांतिप्रिय लोगों को दिया जाना चाहिए। फिर भी कुछ क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के मन में भय बना हुआ है। इन घटनाओं ने भारतीय जनता के मन में त्रिपुरा की छवि को गिरा दिया है और भाजपा के गेम प्लान पर पानी फिर गया है।

आपके अनुसार नगर निगम चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन कैसा रहेगा?

मैं लगभग उन सभी क्षेत्रों में घूमा हूं जहां चुनाव हो रहे हैं और मैंने विभिन्न वर्गों के मतदाताओं से बात की है। यदि चुनाव सामान्य, शांतिपूर्ण परिस्थितियों में होते हैं, तो 13 नगर पालिकाओं में से एक भी भाजपा के पास नहीं जाएगी, और अगरतला (राज्य की राजधानी) में, 51 सीटों में से, वे पांच सीटें भी नहीं जीत पाएंगे।

कल (यानि रविवार को) भाजपा की एक बैठक में उसके नेतृत्व का दिवाला तब सामने आया जब बट ताला में उनकी रैली में चलने के लिए दैनिक वेतन भोगियों को 350 रुपये प्रति दिन की दर से दिहाड़ी दी गई थी। 

वे आज तक चुनाव में अच्छी खासी संख्या में लोगों को नहीं ला पाए हैं। ऐसे में अगर सामान्य मतदान होता है तो वे हर जगह हार जाएंगे। मुख्यमंत्री की उपस्थिति में एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, "25 (नवंबर) को कोई दया और शिष्टाचार नहीं होगा," अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से हजारों की संख्या में मतदान करने के लिए कहा।

हालांकि इस तरह की धमकियां प्रशासन की नजर में नहीं आ रही हैं और यहां तक कि चुनाव आयोग भी इस तरह के भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है.

क्या आपको लगता है कि लोग अब बीजेपी से नाराज़ हैं और उसके खिलाफ रुख कर हैं?

2018 के चुनावों में, भाजपा देश के प्रधानमंत्री से मिले आश्वासनों का इस्तेमाल करके सत्ता में आई थी, जिन्होंने इस राज्य के हर जिले का दौरा किया और त्रिपुरा के लोगों से कहा कि उन्हें उन पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि वे देश के प्रधानमंत्री के रूप में बोल रहे हैं। 

आज 44 महीनों के बाद उनके 'विजन डॉक्युमेंट' में सूचीबद्ध एक भी आश्वासन पर अमल नहीं हुआ है। इसके विपरीत, लोगों पर कई गुना टैक्स बढ़ गए हैं। लोगों पर संपत्ति कर, अस्पताल शुल्क और शिक्षा लागत का बोझ बढ़ा है। इसी वजह से लोग बेहद दुखी और गुस्से में हैं और पूरे राज्य में व्यापक सत्ता विरोधी लहर है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Tripura: ‘If Polling is Fair, BJP Will Lose’, Says Jitendra Chaudhu

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