कार्टून क्लिक : उलट नगरी, चौपट फ़ैसले
इसे क्या कहा जाएगा कि अब जब मज़दूर-कर्मचारियों को उनके घर से वापस काम पर लाने की कवायद शुरू होनी थी, मज़दूरों को उनके घर भेजने के लिए श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई जा रही हैं। जबकि यह काम चालीस दिन पहले होना था। इसे ही कहते हैं कुप्रबंधन या नियोजन की कमी। न पहले पूरी तरह ट्रेन बंद करने का तर्क समझ आया, न अब ट्रेन चलाने का कोई वाजिब तर्क दिया जा रहा है।
वाकई, यह कितना विचित्र है कि जब आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू करने की तैयारी की जा रही है तब विभिन्न राज्यों से करोड़ों की संख्या में मज़दूर अपने गांव लौट रहे हैं या लौटने को मजबूर हैं। ऐसे में सवाल है कि यदि हमारे औद्योगिक शहर मज़दूरों से खाली हो गए तो फिर आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों का थमा पहिया नए सिरे से गति कैसे पकड़ेगा?
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