कार्टून क्लिक : शराब नहीं रोटी चाहिए सरकार!
लॉकडाउन-3.O के दौर में शराब की दुकानें खोलने के साथ अब एक भ्रम यह फैलाया जा रहा है कि इन दुकानों पर लाइन लगाने वालों में सबसे ज़्यादा ग़रीब लोग हैं, वे लोग जो कल तक राशन की मांग कर रहे थे। यह एक तरह की उच्चवर्गीय या मिडिल क्लास की धारणा या सोच है, जिसे हर मामले में ग़रीब वर्ग में खोट ही नज़र आता है। इससे उसका किसी को मदद न करने का तर्क मजबूत होता है। ऐसे लोग राशन या खाने के लिए लगी लंबी लाइनों को देखकर भी यही कहते थे कि ये कई-कई बार राशन या खाना ले जा रहे हैं।
हमारी सरकारें भी इस झूठ या धारणा को मजबूत करने में ही मदद करती हैं, क्योंकि इससे उन्हें अपनी नाकामी छुपाने का मौका मिल जाता है। इसी तरह नोटबंदी में भी अमीरों से ज़्यादा ग़रीबों पर ही उंगली उठी थी कि वे कई-कई बार नोट बदलने की लाइन में लग रहे हैं। जबकि अपनी सुविधा और भ्रष्टाचार छुपाने के लिए उनका इस्तेमाल यही वर्ग कर रहा था।
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