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चंडीप्रसाद भट्ट के पत्र: इंदिरा गांधी ने की थी कार्रवाई, प्रधानमंत्री मोदी से जवाब भी नहीं मिला

“जोशीमठ बचाने के लिए 1976 में जो परीक्षा उन 60 छात्रों ने दी थी, अब एक बार फिर उस परीक्षा की ज़रूरत है।”
CP Bhatt
चमोली में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को लेकर तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकार को लिखे गए पत्रों को दिखाते चंडीप्रसाद भट्ट

वर्ष 1976 में यतींद्रकुमार डोबरियाल और प्रकाशचंद्र डिमरी ने अपने साठ साथियों के साथ जो परीक्षा दी थी, नतीजे के तौर पर उसका फायदा जोशीमठ में रहनेवाले और जोशीमठ से गुजरने वाले लोगों ने कम से कम 45 वर्षों तक  उठाया। हरिद्वार से करीब 296 किलोमीटर दूर 6100 फुट की ऊंचाई पर बसे इस छोटे से सुंदर नगर पर उस ज़माने में भी मुसीबत के बादल मंडराने लगे थे। शहर के ऊपर और नीचे जंगल कट चुके थे। समूचे इलाके के धंसने का खतरा सामने था।

प्रख्यात पत्रकार अनुपम मिश्र ने 3 जुलाई 1976 को दिनमान में “अगली पीढ़ी के वृक्ष” शीर्षक से ये लेख लिखा था। जोशीमठ की दरकती ढलानों पर विद्यार्थी फावड़ा, कुदाल और सब्बल लेकर दस हज़ार पेड़ों का जंगल तैयार कर रहे थे। पेड़ों के साथ दस हजार गड्ढे और आठ हजार नालियां भी खोदी गईं। जिनमें विशेष किस्म की घास लगाई गई जो ज़मीन को बांधकर रखने में कारगर होती है।

अनुपम मिश्र ने लिखा “ये परीक्षा कॉलेज की दीवारों से घिरी मेज़ कुर्सियों पर नहीं हो रही थी।”

बद्रीनाथ और जोशीमठ से जुड़ी अपनी स्मृतियों, संघर्षों और मौजूदा बेचैनियों के साथ सर्वोदयी कार्यकर्ता चंडीप्रसाद भट्ट इस लेख का ज़िक्र करते हैं। 90 वर्ष के हो चले भट्ट उस ज़माने में चिपको आंदोलन के सूत्रधार के तौर पर पूरी दुनिया में जाने गए। उनके हाथों में मौजूद इस फाइल में कई महत्वपूर्ण पत्र हैं। इनमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा गया पत्र और भट्ट के पत्र का संज्ञान लेते हुए लिखा गया हेमवती नंदन बहुगुणा का पत्र भी शामिल है।

वह कहते हैं “उस समय प्रधानमंत्री से लेकर बड़े नेताओं और अधिकारियों ने मेरे लिखे पत्रों का संज्ञान लिया। उस पर कार्रवाई भी की गई”। लेकिन अब की सरकार चुप है। जवाब नहीं देती। भट्ट ने इस वर्ष 7 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक पत्र लिखा था। वे पत्र की एक प्रति दिखाते हैं। यह पत्र बद्रीनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य के चलते यहां की पंचधाराओं में से एक कूर्माधारा का जल स्थानांतरित होने की सूचना पर लिखा गया।

7 जनवरी 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा गया चंडीप्रसाद भट्ट का पत्र

“...बद्रीनाथ धाम भूगर्भीय एवं भू-आकृतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। समय-समय पर होने वाले हिमस्खलनों, भूकंपों और अलकनंदा नदी के कटाव के कारण पूर्व में बद्रीनाथ धाम अने विभीषिकाओं को झेल चुका है। इनमें वर्ष 1803, 1930, 1949, 1954, 1970 और 2007 की में आई आपदाएं उल्लेखनीय हैं। इन्हीं कारणों से वर्ष 1974 में बिरला ग्रुप द्वारा बद्रीनाथ धाम के स्वरूप को बदलने के प्रयासों का विरोध हुआ था। और तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के वित्त मंत्री नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में गठित समिति ने इस कार्य पर रोक लगा दी थी।

....माणा गांव के मेरे कुछ साथियों ने बद्रीनाथ धाम में हो रहे पुनर्निर्माण कार्य के बारे में जानकारी दी थी। मुझे यह भी जानकारी मिली की पंच-धाराओं में से एक कूर्माधारा का जल स्थानांतरित हो गया है। और यहां खनन कार्य तेजी से हो रहा है। यह सुनना मेरे लिए अत्यंत कष्टप्रद था। एक तरह से यह बद्रीनाथ धाम के स्वरूप को बदलने जैसा है।”

चंडीप्रसाद भट्ट ने प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध किया कि बद्रीनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों से धाम के मूलभूत स्वरूप पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े।

बद्रीनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों से लेकर जोशीमठ की मौजूदा स्थिति पर भट्ट गहरी चिंता जताते हैं।

उधर, उत्तराखंड सरकार एक बार फिर चारधाम यात्रा की तैयारियों को लेकर व्यस्त है। बद्रीनाथ धाम जाने के लिए जोशीमठ से गुजरना होता है। यहां दरारों का सिलसिला थम नहीं रहा है। 22 फरवरी को नगर के खेतों और आम रास्तों पर करीब 300 मीटर लंबी दरारें देखी गईं। कुछ जगहों पर 4 फीट से गहरे गढ्ढे बन गए।

जोशीमठ संकट को लेकर वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा गया चंडीप्रसाद भट्ट का पत्र

आज की जैसी स्थितियां वर्ष 1976 में भी जोशीमठ पर संकट के बादल लेकर आई थीं। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भेजे पत्र में चंडीप्रसाद भट्ट लिखते हैं कि

“उत्तराखंड का ऐतिहासिक और धार्मिक नगर जोशीमठ जो कि सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है, गत वर्षों से तेजी से धंस रहा है। यदि जोशीमठ की सुरक्षा के लिए तत्काल प्रभावी कदम न उठाए गए तो कुछ वर्षों में जोशीमठ का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। गत फरवरी में लगातार वर्षा से जोशीमठ स्थित सार्वजनिक निर्माण विभाग का विश्राम गृह का आधा हिस्सा नष्ट हो गया है। शेष भाग किसी भी समय धंस सकता है। जिसके बाद मुख्य बाजार के धंसने की संभावना है।

...जोशीमठ के धंसने के बारे में जो कारण बताए जाते हैं वे इस प्रकार हैं

(अ) गत दस वर्षों में जोशीमठ की आबादी कई गुणा बढ़ गई है। इसके लिए अतिरिक्त पानी लाया गया है किंतु पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है।

(आ) जोशीमठ में मोटर सड़क पहुंचने के बाद ऊपर और दाएं ओर का बांज का जंगल पूरी तरह नष्ट किया गया है। अलकनंदा के उपर मारवाड़ी से विष्णुप्रयाग तक का घना जंगल पूरी तरह नष्ट किया गया।

(इ) विष्णु गंगा और अलकनंदा के संगम से आगे लगातार नदियों के बहाव के कारण एक किलोमटीर तक कटाव हो रहा है।“

इस पत्र में भट्ट ने जोशीमठ के लिए विशेष वनीकरण योजना लाने की मांग की थी।


न्यूज़क्लिक से बातचीत में वह कहते हैं कि जोशीमठ के धंसने की जो वजहें उस समय थीं, आज भी कमोबेश वही वजह हैं।

अनुपम मिश्र उस समय के अपने लेख में लिखते हैं “क्योंकि शहर के धंसने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई थी। इसलिए लोग इस खतरे को राई के अनुपात में तौलते रहे। पर विशेषज्ञों ने इस राई में छुपे खतरे के पहाड़ को काफी पहले भांप लिया था”।

पत्रों के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकार को चेताने के साथ जोशीमठ में जंगल तैयार करने और सुरक्षात्मक कार्रवाइयां भी युद्ध स्तर पर की जा रही थीं।

मिश्र के लेख में वर्णन है “दीवार बनाने का काम करने वाली टुकड़ी नाश्ता नहीं करती थी। क्यों? जवाब मिला भारी-भारी पत्थरों को तोड़कर घेरा बांधने के काम में बहुत ज्यादा भूख लगती है। सुबह 6 बजे नाश्ता करने के बाद भी 2-3 घंटे के भीतर-भीतर फिर से भूख लगती है। इसलिए हम सुबह खाली पेट आते हैं। 7 बजे के बाद हम अपना नाश्ता काम करने की जगह पर ही करते हैं। 8 बजे किए गए नाश्ते से दोपहर के खाने तक का गुजारा हो जाता है। सुबह 6 बजे से दोपहर के 12 बजे तक काम चलता। फिर 12 से 3 बजे तक नहाना, धोना, खाना और थोड़ा-सा आराम। शाम 3 बजे से 5 बजे तक फिर से काम। 5 बजे के बाद शिविरार्थी अपनी मिट्टी वगैरह झाड़कर ऊपर जोशीमठ के बाजार में चले आते। बाजार में कभी-कभी पेड़ों को कटने से बचाने और नए पेड़ लगाने के बारे में छोटी-मोटी नुक्कड़ सभाएं आयोजित हो जातीं”।

5 मार्च 2023, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के तहसील में चल रहे आंदोलन का 60वां दिन। पुनर्वास, मुआवजा, जोशीमठ धंसाव और तबाही के कारणों की पड़ताल की मांग। विनाशकारी परियोजनाओं पर रोक और ज़िम्मेदार एजेंसी पर कार्रवाई और जुर्माने की मांग। तस्वीर क्रेडिट- अतुल सती

इस समय भी जोशीमठ बचाने के लिए लगातार विरोध प्रदर्शन और नुक्कड सभाएं चल रही हैं। एनटीपीसी की पनबिजली परियोजना और हेलंग-मारवाडी बाईपास निर्माण का स्थानीय लोग लगातार विरोध कर रहे हैं। पनबिजली परियोजना की सुरंग के लिए किया गया निर्माण कार्य और जोशीमठ की तलहटी में करीब 6 किलोमीटर लंबे बाईपास निर्माण से जोशीमठ की पहाडी के अस्थिर होने का अंदेशा जताया जा रहा है।

हेलंग बाईपास को केंद्र सरकार ने चारधाम सडक परियोजना के तहत वर्ष 2021 में हरी झंडी दी थी। बद्रीनाथ यात्रा और सेना की जरूरतों के लिए ये सड़क महत्वपूर्ण बतायी जा रही है। 2023 के भूधंसाव के बाद 5 जनवरी को इस सडक का काम रोक दिया गया और प्रदेश सरकार ने आईआईटी रुड़की से इस पर रिपोर्ट मांगी। इस खबर के मुताबिक आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट में वह तथ्य स्पष्ट नहीं हो पाए, जिससे बाईपास निर्माण पर फैसला लिया जा सके। प्रदेश सरकार ने इसके लिए संस्थान से दोबारा रिपोर्ट देने को कहा है।

हेलंग बाईपास को लेकर 1987 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को लिखा गया चंडीप्रसाद भट्ट का पत्र

वर्ष 1987 में भी हेलंग से विष्णुप्रयाग तक प्रस्तावित बाइपास को लेकर चंडीप्रसाद भट्ट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखा था। पत्र में लिखा गया “विष्णुप्रयाग पनबिजली परियोजना के लिए बनाई जा रही इस बाइपास से पारिस्थतकीय, सामाजिक और आर्थिक मुश्किलें जुड़ी हुई हैं। इसकी गंभीरता इस हद तक है कि इस बाइपास से जोशीमठ नगर पर संकट आ सकता है। लेकिन योजनाकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया”।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में भट्ट कहते हैं कि उस समय भी हमने इस बाइपास का विरोध किया था। ये सड़क जोशीमठ की पहाडी की तलहटी में बनाई जा रही थी।

विनाश रहित विकास शीर्षक से लिखे गए चंडीप्रसाद भट्ट के पत्र का तत्कालीन सांसद हेमवती नंदन बहुगुणा ने संज्ञान लिया।

1982 में भी भट्ट ने उस समय सांसद रहे हेमवती नंदन बहुगुणा को चमोली में पनबिजली परियोजना और सडकों के अवैज्ञानिक निर्माण को लेकर एक पत्र लिखा। उस समय सांसद रहे हेमवती नंदन बहुगुणा ने यह पत्र आगे इंदिरा गांधी को बढ़ाया। उस पत्र में लिखा गया कि-

“ ‘विनाश रहित विकास’ के संदर्भ में.....सड़कों के जाल तथा विकास परियोजनाओं के नाम पर जिस प्रकार बेतहाशा वनों का सफाया हो रहा है उससे भूस्खलन, कृषि भूमि के कटाव, मकानों को क्षति और जन-धन की व्यापक हानि होती रही है। विकास के लिए परियोजनाओं की नितांत आवश्यकता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। किंतु सही मायने में वही परियोजाएं सफल मानी जाएंगी जो विनाश रहित होंगी और जिनके क्रियान्वयन से क्षेत्र की जनता को, प्राकृतिक संपदा को और क्षेत्र की रमणीयता को किसी प्रकार की कोई क्षति न पहुंचती हो”।

बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे चंडीप्रसाद भट्ट के इन पत्रों ने अपने समय में केंद्र और राज्य सरकारों का ध्यान खींचा। वह एक बार फिर बद्रीनाथ जाना चाहते हैं। “मैं खुद से देखना चाहता हूं कि धाम के पुनर्निर्माण का कार्य किस तरह किया जा रहा है और वहां किस तरह का बदलाव आया है। वहां हो रहे खनन और निर्माण कार्यों का आकलन करन बहुत जरूरी है”।

बद्रीनाथ दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। 2022 में रिकॉर्ड 17 लाख 60 हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने यहां दर्शन किए।

क्या मौजूदा परिस्थितियों को देख बद्रीनाथ यात्रा पहले की तरह ही होनी चाहिए?

भट्ट इसका सीधा जवाब नहीं देते। वे जानते हैं कि ये प्रश्न स्थानीय लोगों की आजीविका से भी जुड़ा हे। वह ये जरूर कहते हैं कि 70-80 के दशक में भी प्राकृतिक आपदाओं के चलते जब सड़क या अन्य परियोजनाओं को लेकर आवाज उठाते थे तो स्थानीय लोग विकास विरोधी कहकर उनका विरोध किया करते थे। वह इस बात पर ज़ोर देते हैं “बद्रीनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों का वहां की पारिस्थतकीय पर प्रभाव का आकलन जरूरी है। नहीं तो बद्रीनाथ धाम सुरक्षित नहीं रहेगा। जोशीमठ हमारे सामने है”।

उनका मानना है कि जोशीमठ बचाने के लिए 1976 में जो परीक्षा उन 60 छात्रों ने दी थी, अब एक बार फिर उस परीक्षा की जरूरत है।

(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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