छत्तीसगढ़: हज़ारों संविदा कर्मियों का प्रदर्शन, 15 मई से निकलेगी 'संविदा नियमितीकरण रथयात्रा'

छत्तीसगढ़ में चुनावी समर के बीच सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को संविदा कर्मचारियों से नई चुनौती मिल रही है। प्रदेशभर के सभी संविदा कर्मचारी सरकार के खिलाफ एकजुट होकर विरोध-प्रदर्शन करने की चेतावनी दे चुके हैं। वहीं आगामी सोमवार, 15 मई से सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में छत्तीसगढ़ सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी संघ के नेतृत्व में 'संविदा नियमितीकरण रथयात्रा' का आयोजन किया जा रहा है, जो प्रदेश के सभी 33 जिलों से होकर गुजरेगी और इसमें जिले के सभी संविदा कर्मी 1 दिन की छुट्टी लेकर धरना-प्रदर्शन करेंगे और कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेंगे।
बता दें कि ये रथयात्रा 21 जून तक चलेगी, जिसके बाद भी अगर सरकार इन संविदा कर्मियों की मांगों को नहीं मानती तो ये आगे तालाबंदी कर बड़े आंदोलन को भी तैयार हैं। महासंघ के अनुसार इस यात्रा का अंतिम जिला रायपुर होगा, जिसमें एक विशाल प्रदर्शन की भी योजना है और इसके आगे इस विरोध-प्रदर्शन को अनिश्चितकालीन आंदोलन का रूप दिया जाएगा। जिसमें संविदा कर्मचारियों की यह मांग रहेगी कि मानसून सत्र में प्रस्तुत अनुपूरक बजट में अनिवार्य रूप से नियमितीकरण का अपना वादा सरकार पूरा करे, क्योंकि 'अब नहीं तो कब'?
सरकार अगर मांगे नहीं मानती, तो हो सकती है तालाबंदी
सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष कौशलेश तिवारी ने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया कि फिलहाल प्रदेश के 54 सरकारी विभागों में करीब 45 हजार संविदा कर्मी तैनात हैं। जो सरकार द्वारा नियमितीकरण की आस सालों से लगाए हुए हैं। ऐसे में अगर कोई घोषणा जल्द नहीं होती तो ये सभी कर्मचारी अनिश्चितकालीन आंदोलन पर जाने को मजबूर होंगे, जिससे सभी विभागों में तालाबंदी की नौबत आ सकती है।
कौशलेश तिवारी के मुताबिक भूपेश बघेल सरकार को सत्ता में आए चार साल से अधिक का समय बीत गया है लेकिन कर्मचारियों से किये उनके वादे अब तक पूरे नहीं हुए हैं। जब वो विपक्ष में थे, तब वे संविदा कर्मियों के धरनास्थल पर आते थे। अपने मेनिफेस्टो में भी उन्होंने सभी अनियमित कर्मियों को नियमित करने का लिखित वादा किया था। लेकिन अब अपने आखिरी बजट में भी उन्होंने इस मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया है। इसको लेकर राज्य के सभी विभागों में कार्यरत संविदा कर्मचारियों में नाराजगी है।
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सरकार की मंशा पर कई सवाल
महासंघ के प्रदेश सचिव श्रीकांत लास्कर ने बताया कि इस रथयात्रा में कृषि, स्वास्थ्य, श्रम और पंचायत ग्रामीण विकास सहित सभी विभागों के सभी संविदाकर्मी शामिल होंगे। क्योंकि अब सबका धैर्य समाप्त हो गया है और लगभग साढ़े चार साल के इंतजार के बाद भी बजट में उनकी मांगों को शामिल नहीं करना सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े करता है।
श्रीकांत लास्कर आगे कहते हैं कि साल 2018 में कांग्रेस ने वादा किया था कि संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाएगा। इसके बाद जब सरकार ने इसको लेकर कुछ नहीं किया तो कई बार विरोध प्रदर्शन किया गया। तब जाकर साल 2019 में नियमित करने को लेकर सरकार ने कमेटी बनाई। तबसे लेकर अब तक हर साल बस कमेटी बना दी जाती है, लेकिन रिजल्ट कुछ नहीं होता। न ही कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक होती है और न ही कोई कर्मचारी नियमित होता है।
मेनिफेस्टो में किए वायदों के जाल में उलझती कांग्रेस सरकार
ध्यान रहे कि बीते साल नवंबर में भी इन कर्मचारियों ने मनोकामना पदयात्रा निकालकर कई दिनों तक बड़ा आंदोलन किया था, तब सरकार की ओर से एक बार फिर इन्हें बजट में पक्का करने का आश्वासन मिला था, और सभी विभागों से कर्मचारियों की लिस्ट भी मंगवाई गई थी। लेकिन इस पर आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई और न ही बघेल सरकार के इस साल फरवरी में पेश आखिरी पूर्णकालिक बजट में इन पर कोई संज्ञान ही लिया गया। ऐसे में सरकार ने इन संविदा कर्मियों को एक बार फिर सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है।
गौरतलब है कि अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ में पंचायत सचिवों का अनिश्चितकालीन धरना देखने को मिला था। ये लोग भी लगातार अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं और सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। वहीं बजट से पहले प्रदेश के स्वास्थ्य कर्मी और अन्य विभागों के कर्मचारी भी अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन और हड़ताल कर चुके हैं। ऐसे में राज्य की कांग्रेस सरकार बार-बार अपने ही मेनिफेस्टो में किए वायदों के जाल में उलझती नज़र आ रही है, जो आने वाले चुनावों में निश्चित तौर पर विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है।
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