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नागरिकता मुद्दा: उच्चतम न्यायालय ने असम और पश्चिम बंगाल पर अलग-अलग रुख़ को लेकर सवाल उठाए

उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि पश्चिम बंगाल को नागरिकता प्रदान करने से क्यों बाहर रखा गया है, जबकि वह बांग्लादेश के साथ लंबी सीमा साझा करता है।
supreme court

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र से पूछा कि उसने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के तहत असम और पश्चिम बंगाल से अलग-अलग व्यवहार को लेकर सवाल उठाते हुए पूछा कि पश्चिम बंगाल को नागरिकता प्रदान करने से क्यों बाहर रखा गया है, जबकि वह बांग्लादेश के साथ लंबी सीमा साझा करता है।

नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए असम में अवैध अप्रवासियों से संबंधित है।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि अवैध आप्रवासन एक गंभीर समस्या है। उन्होंने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि केंद्र सरकार सीमा की सुरक्षा के लिए क्या कर रही है।

पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने पूछा, ‘‘आपने असम को क्यों अलग रखा जबकि पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ बहुत बड़ी सीमा साझा करता है? हम जानना चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल को नागरिकता देने से बाहर क्यों रखा गया... तर्क यह नहीं हो सकता कि असम में आंदोलन हुआ था...पश्चिम बंगाल को अकेला क्यों छोड़ दिया गया... पश्चिम बंगाल में अब क्या स्थिति है?’’

सुनवाई शुरू होते ही केंद्र ने स्पष्ट किया कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता की जांच का नागरिकता अधिनियम में किसी अन्य संशोधन से कोई लेना-देना नहीं है।

मेहता ने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि धारा 6ए का अनुप्रयोग केवल एक विशिष्ट अवधि तक ही सीमित है।

उन्होंने पीठ को बताया, ‘‘मैं कुछ तथ्यात्मक स्पष्टीकरणों के साथ शुरुआत करना चाहूंगा। माननीय अदालत धारा 6ए की संवैधानिक वैधता के एक सीमित प्रश्न की जांच कर रही है। यह एक विशेष अवधि के दौरान बहुत कम व्यक्तियों तक ही सीमित है। नागरिकता अधिनियम के लिए इस परीक्षण का किसी अन्य संशोधन से कोई लेना-देना नहीं है।’’

मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि जहां तक याचिकाकर्ताओं द्वारा बताए गए तर्कों का संबंध है जैसे कि विदेशों से अप्रवासियों का आना, उनके लिए उपलब्ध संसाधनों की कमी आदि, उनकी सभी चिंताएं सही हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘व्यक्ति को देश का नागरिक तब माना जाता है जब उसके माता-पिता या दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो। यह श्रेणी बहुत सीमित है - यह असम में एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र में लागू होती है। जिस श्रेणी से व्यक्तियों को अनुमति दी गई है वह केवल बांग्लादेश के एक बहुत ही सीमित क्षेत्र से है।’’

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि ऐसे लोग भी हैं जिन्हें धारा 6ए के तहत नागरिकता मिलने से फायदा हुआ है।

उन्होंने कहा, ‘‘उन लोगों का क्या होगा जिन्हें नागरिकता का लाभ नहीं दिया गया लेकिन वे अवैध अप्रवासी हैं। उनके बारे में कुछ भी नहीं किया गया।’’

असम समझौते के तहत आने वाले लोगों के नागरिकता संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए डाली गई है।

बयान में कहा गया है कि जो लोग 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार बांग्लादेश सहित उक्त क्षेत्रों से एक जनवरी, 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए थे और तब से वे पूर्वोत्तर राज्य के निवासी हैं और उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा।

नतीजतन प्रावधान में असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की कट-ऑफ तारीख 25 मार्च, 1971 तय की गई है।

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