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मानव-पशु संघर्ष बढ़ने का एक कारण जलवायु परिवर्तन भी : संरक्षणवादियों का दावा

रिपोर्ट में कहा गया है कि सुंदरबन में जहां बाघों की संख्या स्थिर है, वहीं पश्चिमी घाट में यह काफी हद तक कम हो गई है। पश्चिमी घाट में 2022 में 824 बाघ पाए गए, जबकि 2018 में यहां उनकी संख्या 981 थी।
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नयी दिल्ली: संरक्षणवादियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं, वनस्पति घट रही है और प्राकृतिक रिहायशों में कमी आ रही है, जिसकी वजह से वन्यजीव वन क्षेत्रों से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो रहे हैं और मानव के साथ उनके संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में नवीनतम अखिल भारतीय बाघ आकलन रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने समय के साथ रिहायशों पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रभावों और वनों की गुणवत्ता के नुकसान के ‘‘मौन लेकिन बढ़ते’’ खतरों पर प्रकाश डाला है।

इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के चलते सुंदरबन में बाघों के अस्तित्व को खतरा है और यह उन प्रमुख चुनौतियों में से एक है जिनका सामना पश्चिमी घाट में वन्यजीव कर रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सुंदरबन में जहां बाघों की संख्या स्थिर है, वहीं पश्चिमी घाट में यह काफी हद तक कम हो गई है। पश्चिमी घाट में 2022 में 824 बाघ पाए गए, जबकि 2018 में यहां उनकी संख्या 981 थी।

एनटीसीए के सहायक वन महानिरीक्षक मोहम्मद साजिद सुल्तान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का वन्यजीवों पर असर पड़ रहा है और नए कीट एवं बीमारियां सामने आ रही हैं।

उन्होंने कहा ‘‘वर्षा चक्र भी एक साथ नहीं, बल्कि धीरे-धीरे बदल रहा है। बाघों के, उन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहुंच जाने की खबरें आई हैं जहां हिम तेंदुए रहते हैं। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।’’

सुल्तान ने कहा ‘‘इससे पता चलता है कि पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन हो रहे हैं, जिसमें मानसूनी चक्र में बदलाव, बारिश के बिना लंबी अवधि और इसकी पुनरावृत्ति तथा जंगल में आग लगने की बढ़ती घटनाएं शामिल हैं। जंगल में वनस्पति और जीव-जंतुओं पर इसका प्रभाव पड़ सकता है और इससे बाघ जैसे बड़े शिकारी जानवर का बच पाना भी नामुमकिन है।’’

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को पूरी तरह से समझने के लिए अनुभवजन्य साक्ष्य की आवश्यकता है, लेकिन इसमें दो मत नहीं है कि यह वन्य जीवन को, उनके प्रवासन और प्रजनन चक्रों को भी प्रभावित कर रहा है।

वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट के अध्यक्ष और एनटीसीए के सदस्य अनीश अंधेरिया ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का वन्यजीवों और समुदायों दोनों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है।

उन्होंने कहा ‘‘जलवायु परिवर्तन की वजह से ही मौसम चक्र अनियमित हो गया है, जिससे फसल की पैदावार कम हो गई है और आजीविका के लिए वनों पर किसानों की निर्भरता बढ़ती जा रही है।’’

अंधेरिया ने कहा ‘‘यही वजह है कि गरीब लोग भोजन और ईंधन की लकड़ी के लिए जंगलों पर और भी अधिक निर्भर होते जा रहे हैं, जिसके कारण मानव-पशु संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।’’

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, जंगल में आग लगने की बढ़ती घटनाएं शुष्क मौसम की स्थिति का प्रत्यक्ष परिणाम हैं। इन घटनाओं से पेड़ तो जलते ही हैं साथ ही जमीन भी खराब हो जाती है। इससे पूरे जंगलों का क्षरण होता है और पशुओं के लिए वनों से निकलना अनिवार्य हो जाता है। उन्होंने कहा कि वन्य जीवों के वन से बाहर निकलने पर उनका मानव से संघर्ष तय है।

‘‘लीड-टाइगर्स फॉर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया’’ के प्रणव चंचानी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का बाघों के आवासों पर कई तरह से प्रभाव पड़ता है, और सुंदरबन वह क्षेत्र है जहां इन प्रभावों को साफ देखा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि समुद्र के जल स्तर में वृद्धि बाघों और उनके शिकार के लिए उपलब्ध मैंग्रोव रिहायश को संकुचित करती जा रही है।

चंचानी ने कहा कि अन्य क्षेत्रों में, जलवायु परिवर्तन का संबंध गर्मी और जल संकट के कारण वनों के क्षरण तथा वनस्पति में कमी से है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, जंगल की आग, वनस्पति और वन संपदा के बीच संबंध स्थापित करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

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