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जलवायु परिवर्तन से उत्तर प्रदेश में दोगुनी हुई लू चलने की आशंका

हाल में भीषण लू की गिरफ्त में आने के कारण उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा था। अकेले बलिया में लू की चपेट में आने से जिला अस्पताल में पांच दिनों में 68 मरीजों की मौत होने की खबर थी।
heat wave
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

नयी दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर प्रदेश में लू चलने की आशंका कम से कम दोगुनी हो गई। क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) नामक पद्धति से किए गए एक विश्लेषण में यह दावा किया गया है।
 
सीएसआई का विकास ‘क्लाइमेट सेंट्रल’ ने किया है, जो अमेरिका में रह रहे वैज्ञानिकों और संचारकों का एक स्वतंत्र समूह है। यह पद्धति दैनिक तापमान पर जलवायु परिवर्तन का असर आंकने में मदद करती है।

हाल में भीषण लू की गिरफ्त में आने के कारण उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा था। अकेले बलिया में लू की चपेट में आने से जिला अस्पताल में पांच दिनों में 68 मरीजों की मौत होने की खबर थी। हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि लू के कारण सिर्फ दो लोगों की जान गई। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, पड़ोसी देवरिया जिले में भी लू से कई मौतें हुईं।

‘क्लाइमेट सेंट्रल’ का सीएसआई इस बात का अंदाजा लगाता है कि तापमान में ऐतिहासिक औसत से कितनी बार और किस हद तक बदलाव आया है। सीएसआई स्तर एक अंक से अधिक होना जलवायु परिवर्तन का संकेत देता है। वहीं, इसके दो से पांच अंक के बीच होने का मतलब है कि जलवायु परिवर्तन ने तापमान में बदलाव की संभावना दो से पांच गुना बढ़ा दी।

विश्लेषण से पता चला है कि उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में सीएसआई स्तर तीन अंक तक पहुंच गया, जिसका अर्थ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में बदलाव की संभावना तीन गुना बढ़ गई।

‘क्लाइमेट सेंट्रल’ के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि नये विश्लेषण से संकेत मिलते हैं कि उत्तर प्रदेश 14 से 16 जून तक भीषण लू की चपेट में था और इस दौरान मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने क्षेत्र में लू चलने की आशंका को कम से कम दोगुना कर दिया था।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बेहद उच्च तापमान और उमस के कारण लू का प्रकोप काफी बढ़ गया।

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