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कांग्रेस और प्रशांत किशोर... क्या सोचते हैं राजनीति के जानकार?

कांग्रेस को उसकी पुरानी पहचान दिलाने के लिए प्रशांत किशोर को पार्टी में कोई पद दिया जा सकता है। इसको लेकर एक्सपर्ट्स क्या सोचते हैं।
prashant kishor

एक वक्त था जब इंडियन नेशनल कांग्रेस हिंदुस्तान की राजनीतिक धुरी में अव्वल थी। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं से सजी कांग्रेस में एक से बढ़कर रणनीतिकार हुआ करते थे। लेकिन आज वक्त बदल गया है, सत्ता के केंद्र में काबिज भाजपा ने कांग्रेस की विचारधारा को उसी के खिलाफ कर दिया है। विधानसभा के चुनाव हों या फिर लोकसभा के, पार्टी को हर बार खाली हाथ ही रह जाना पड़ता है। हालात ये हैं कि किसी भी राज्य में पार्टी खुद के बल पर सभी सीटों पर चुनाव भी नहीं लड़ सकती। इन्ही कमज़ोरियों से उबरने के लिए पहली बार कोई रणनीतिकार कांग्रेस में बुलाया जा रहा है।

हम बात कर रहे हैं प्रशांत किशोर की। जिनके बारे में कहा जाता है कि वे अपने राजनीतिक सर्वे और अपने गणित से किसी भी प्रदेश की सियासत बदल सकते हैं। प्रशांत किशोर अब कांग्रेस के लिए भी यही काम करने वाले हैं।  

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24 अकबर रोड पर इन दिनों अचानक बढ़ी गहमागहमी कांग्रेस में बड़े बदलाव के संकेत दे रही है। जिसकी शुरुआत शायद प्रशांत किशोर द्वारा प्रेजेंटेशन से हो भी चुकी है। प्रशांत किशोर ने 2024 में कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिए एक रोडमैप तैयार किया है। जिसमें 1984 से लेकर 2024 तक पैदा हुए मुद्दों का तोड़ हो सकता है। प्रशांत किशोर ये भी तय करते हैं कि पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, किस राज्य में अकेली लड़ेगी कहां गठबंधन करेगी।

क्योंकि लगातार दो बार से लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस का मनोबल गिर चुका है। पार्टी के दिग्गज और भरोसेमंद नेता कांग्रेस छोड़-छोड़ कर जा रहे हैं। मौजूदा स्थिति ये हैं कि देश के महज़ दो राज्यों में कांग्रेस पूर्ण शासन कर रही है। उसमें भी राजस्थान की कांग्रेस सरकार हमेशा ख़तरे में ही रहती है। दूसरी ओर पार्टी के भीतर की गुटबाज़ी और राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की कलह बार-बार पार्टी के दामन पर एक दाग मलकर चली जाती है। भाजपा समेत दूसरी पार्टियों का कहना है कि गांधी परिवार के रहते कांग्रेस का उद्धार कभी नहीं हो सकता। हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है बिना गांधी परिवार के कांग्रेस की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इन्ही तमाम असमंजस के बीच प्रशांत किशोर बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना करने वाले हैं।

प्रशांत किशोर को कांग्रेस के भीतर क्या जगह दी जा सकती है? या फिर प्रशांत किशोर कांग्रेस में ख़ुद क्या पोज़ीशन चाहते हैं। ऐसे ही तमाम मुद्दों पर जब हमने वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से किए तो देखिए जवाब क्या मिले:

इस बारे में हमने वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उर्मिलेश से बात की। उन्होंने कहा कि ये कांग्रेस पार्टी को तय करना है कि वो प्रशातं किशोर को कोई पद देते हैं या फिर महज़ चुनावी रणनीतिकार के तौर पर रखते हैं। जिसके लिए कांग्रेस अध्यक्षा ने एक कमेटी भी बनाई है जिसमें मुकुल वासनिक और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं, वो ही तय करेंगे कि प्रशांत की प्रेजेंटेशन में कितना दम है।

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उर्मिलेश के मुताबिक अगर प्रशांत किशोर को कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कराई जाती है तो उन्हें जनरल सेक्रेटरी कम्युनिकेशन का पद दिया जा सकता है। साथ ही उन्होंने और महत्वपूर्ण बताई कि 2015 में प्रशांत को जेडीयू का उपाध्यक्ष बनाया गया था, ऐसे में अगर कांग्रेस के भीतर भी कोई ऐसा पद दिया जाता है तो वो सिर्फ एक समझौता होगा। क्योंकि हर पार्टी की तरह भी कांग्रेस की अपनी एक विचारधारा है, और इतनी जल्दी अपनी विचारधारा बदलना किसी के लिए भी आसान नहीं है, कहने का अर्थ ये है कि फिलहाल प्रशांत किशोर की कोई पॉलिटिकल कमिटमेंट आईडियोलॉजी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस में शामिल होने के लिए प्रशांत किशोर का सही मकसद क्या है, ये फिलहाल एक रहस्य है।

हमने जब उर्मिलेश से सवाल किया कि क्या प्रशांत बिना गांधी परिवार के कांग्रेस को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्होंने प्रशांत के टीएमसी के लिए काम करते हुए एक बयान याद दिलाया, जिसमें प्रशांत ने कहा था कि कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार से हटकर रहना चाहिए। जिसके बाद नेहरू-गांधी परिवार के कई लॉयलिस्ट नाराज़ हो गए थे। उर्मिलेश का ये मानना है कि अगर गांधी परिवार से इतर कोई अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाया गया तो वो नॉर्थ इंडिया या साउथ इंडिया से होगा। लेकिन फिलहाल प्रशांत को ये सौभाग्य मिलने वाला नहीं है।

इसी मामले में जब न्यूज़क्लिक ने राजनीतिक विश्लेषक डॉ. नदीम से बातचीत की... तो उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर डिप्टी प्रेसिडेंट जैसे किसी पद की भी मांग कर सकते हैं, दरअसल डॉ नदीम के कहने का मतलब था कि प्रशांत किसी बड़े पद की ही मांग करेंगे। प्रशांत किशोर की रणनीति में गांधी परिवार के बिना कांग्रेस चलाए जाने के सवाल पर डॉ नदीम ने कहा कि अगर पार्टी को आगे बढ़ना है तो गांधी परिवार को कुर्बानी देनी पड़ेगी। उन्होंने कहा फिलहाल गांधी परिवार को कोई पसंद नहीं कर रहा है। इसलिए नेतृत्व को बदलना ही पड़ेगा।

हालांकि कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिना गांधी परिवार के कांग्रेस का अस्तित्व फिलहाल नहीं है। न्यूज़क्लिक ने जब वरिष्ठ पत्रकार वेदावाल से इस विषय में बातचीत की.... तो उनका कहना था कि प्रशांत किशोर को अभी से कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी में बेलगाम छोड़ देना ठीक नहीं होगा। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया जा सकता है लेकिन इससे ऊपर का कोई ओहदा या फिर किसी भी तरह का निर्णय लेने की छूट नहीं देनी, हालांकि प्रशांत एक अच्छे रणनीतिकार हैं लेकिन पार्टी के भीतर एक बाध्यता उनके लिए भी ज़रूरी है। जब हमने पूछा कि प्रशांत किशोर अगर बग़ैर गांधी परिवार के कांग्रेस को आगे बढ़ाने की बात करेंगे तो?  इसपर वेदवाल का जबाव था कि कांग्रेस फिलहाल डूबता जहाज है। लेकिन एक वक्त था जब इंदिरा इज़ इंडिया और इंडिया इज़ इंदिरा हुआ करता था। और आज के दौर में कांग्रेस के लिए सत्ता का केंद्र सिर्फ राहुल गांधी हैं। क्योंकि कांग्रेस को ज्यादातर लोग आज राहुल के नाम से जान रहे हैं। ऐसे में अचानक प्रयोग करना ठीक नहीं होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ऐसा कोई नेता तैयार नहीं किया है जो गांधी परिवार की जगह ले सके। इसलिए प्रशांत किशोर को गांधी परिवार के सानिध्य में ही काम करना पड़ेगा।

वहीं राजनीतिक विश्लेषक अमित कुमार की मानें तो प्रशांत किशोर की नज़र कांग्रेस के भीतर बड़े पद पर हो सकती है, ऐसे में वो उपाध्यक्ष पद की मांग भी कर सकते है। अमित कुमार के मुताबिक अगर गांधी परिवार से इतर किसी को अध्यक्ष बनाया जाता है तो पुराने नेताओं को दिक्कत हो सकती है। राहुल गांधी के सवाल पर अमित ने कहा कि राहुल की छवि मीडिया वालों ने ख़राब कर रखी है। क्योंकि कांग्रेस गांधी परिवार के सहारे ही आगे बढ़ी है, ऐसे में ग़ैर गांधी अध्यक्ष बनने से अलग-अलग गुट बन जाएंगे। जो कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

भले ही वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों के अपने-अपने तर्क हों, लेकिन भाजपा के सामने कांग्रेस को फिर से खड़ा करना प्रशांत किशोर के लिए बेहद चुनौतीभरा होने वाला है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आप जब मौजूदा कांग्रेस के बारे में सोचते हैं तो राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी.... यही तीनों नाम ज़हन में आते हैं। ज्यादा ज़ोर डालने पर भूपेश बघेल, अशोक गहलोत, सचिन पायलट, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बारे में भी सोच सकते हैं। लेकिन इन्हें मिलाकर भी 10 पूरे नहीं होते हैं। जबकि दूसरी ओर भाजपा को सोचते ही तमाम ऐसे नाम ज़हन में आते हैं जो मौजूदा वक्त में बेहद एक्टिव हैं। हालांकि वहां भी बस एक नाम के आगे किसी की ज़्यादा हैसियत नहीं है। कुछ भी हो लेकिन प्रशांत किशोर का काम आसान नहीं है, क्योंकि कांग्रेस को लेकर उनका काम सिर्फ पार्टी को चुनावी गणित समझाना नहीं है बल्कि बूथ लेवल पर कांग्रेस नेताओं को फिर पहचान दिलाना भी है। 

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