कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव: गहलोत रेस से बाहर, अब दिग्विजय बनाम थरूर?
कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा... ये बात सुनने में आसान है, लेकिन इसके इतर असल में चल पाना पार्टी के लिए कितना मुश्किल है, ये इन दिनों बखूबी दिखाई दे रहा है। एक ओर राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में मशगूल हैं, तो दूसरी ओर अपनी नासाज़ तबीयत से जूझ रहीं अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी के लिए मामला निपटाना बेहद पेचीदा हो गया है।
दिल्ली से लेकर राजस्थान तक कांग्रेस के भीतर ज़बरदस्त घमासान मचा हुआ है, हालांकि अब ऐसा लगता है कि पार्टी हाईकमान ने किसी तरह इसका एक चैप्टर तो निपटा लिया है, जिसमें अशोक गहलोत शामिल हैं और सचिन पायलट शामिल हैं।
जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए तारीखों के ऐलान हुए, तभी हाईकमान ने लगभग तय कर लिया था कि कमान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संभालेंगे, लेकिन ये बात अशोक गहलोत को पूरी तरह से पसंद इसलिए नहीं आई क्योंकि उनके अध्यक्ष बन जाने के बाद राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन बनता? ज़ाहिर है हाईकमान सचिन पायलट की ओर जाता, जो गहलोत को कतई मंजूर नहीं था।
यही कारण था कि बीते रविवार यानी 25 सितंबर को जब अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे, राजस्थान के कांग्रेस विधायकों से उनके नए मुख्यमंत्री के रूप में पसंद पूछने पहुंचे तो गहलोत के समर्थकों ने बगावत कर दी और कहा कि अगर गहलोत के अलावा कोई और मुख्यमंत्री बनेगा को सामूहिक इस्तीफा दिया जाएगा। जिसके बाद वो दोनों वहां से लौट आए।
इस घटना से हुई हाईकमान की किरकिरी ने शायद अध्यक्ष पद का पूरा सिनैरियो ही बदल दिया। इधर अशोक गहलोत सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए वक्त मांगते रहे, लेकिन उन्हें हर बार नाराज़गी का दंश झेलना पड़ रहा था।
आखिरकार गुरुवार यानी 29 सितंबर को दिल्ली के 10 जनपथ सोनिया गांधी के आवास पर अशोक गहलोत ने उनसे करीब आधे घंटे से ज्यादा मुलाकात की, और जब बाहर आए तो अब तक की सबसे बड़ी ख़बर लेकर आए। गहलोत ने साफ कहा कि वो अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे।
गहलोत की इस बात के बाद ऐसा लगा कि अब राजस्थान वाला चैप्टर तो क्लोज़ हो गया, लेकिन राजनीति मे कुछ भी ऐसे ही नहीं होता। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, इसके लिए अशोक गहलोत ने क्या कुछ कहा ये जानते हैं...
"जो दो दिन पहले घटना हुई, उस घटना ने हम सबको हिला कर रख दिया, मुझे दुख है और वो मैं ही जान सकता हूं, क्योंकि पूरे देश में मैसेज चला गया कि मैं मुख्यमंत्री बने रहना चाहता हूं, इसलिए सब कुछ हो रहा है। मैंने सोनिया जी से भी माफ़ी मांगी है, क्योंकि एक लाइन का प्रस्ताव पास नहीं करवा पाया। इस बात का दुख मुझे ज़िंदगी भर रहेगा."
इसके बाद अशोक गहलतो से सवाल किया गया कि क्या वो अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने कहा कि-- "मैंने तय किया है कि अब मैं इस माहौल के अंदर चुनाव नहीं लडूंगा, ये मेरा फ़ैसला है।"
अशोक गहलोत के बयान में सबसे पहले ग़ौर करने वाली बात ये है कि उन्होंने पिछले दिनों हुए घटनाक्रम के लिए माफी मांगी वो सोनिया गांधी से, फिर अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ने वाला फैसला भी ख़ुद का बताया। कहने का अर्थ ये है कि अशोक गहलोत पूरी तरह से हाईकमान के लिए नरमी बरतते नज़र आ रहे हैं, क्योंकि शायद वो जो चाहते हैं(मुख्यमंत्री बने रहना), इसके लिए हाईकमान का साथ होना बेहद ज़रूरी भी है।
अगर हम कारण पर चर्चा करना चाहें कि अशोक गहलोत अध्यक्ष क्यों नहीं बनना चाहते... तो इसका जवाब अशोक गहलोत को उनके विधायकों ने ही दे दिया। जिस तरह 90 से ज्यादा विधायक उनके समर्थन में खड़े हो गए, उससे ये ज़ाहिर होता है कि अशोक गहलोत आगे आने वाले विधानसभा चुनावों में फिर एक बार राजस्थान कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा बनने की कोशिश करेंगे। दूसरी ओर गहलोत को ये भी पता कि उनके अध्यक्ष बनने के लिए बाद भी अगर पार्टी 2024 में आम चुनाव हार जाती है, या ख़राब प्रदर्शन करती है, तो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए संकट खड़ा हो जाएगा। यानी कुछ सालों में ही गहलोत खत्म से हो जाएंगे। लेकिन राजस्थान में रहकर वो अपनी कुर्सी पूरी तरह से सुरक्षित रख सकते है। भविष्य में भी।
यानी ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अशोक गहलोत का अध्यक्ष पद के लिए मना करना, राजस्थान में बगावत होना... ये सब उन्ही की जादूगरी है, और इतने दिनों से सबकुछ उन्ही की धुरी पर नाच रहा था। हालांकि उन्होंने इस घटनाक्रम के लिए माफी मांग ली है।
लेकिन गहलोत की ये जादूगरी अभी भी बरकरार है या नहीं इसका फैसला भी हाईकमान के हाथ में ही है, क्योंकि अशोक गहलोत के बयान के बाद जब मामला थोड़ा शांत हो रहा था, तबी पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल राव ने एक बयान में कह दिया कि राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन होगा, इसका फैसला अध्यक्ष सोनिया गांधी अगले दो दिनों में कर लेंगी।
अब जो सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सचिन पायलट का क्या होगा? तो पिछले कुछ दिनों से हम देख पा रहे हैं, कि सचिन पायलय के खिलाफ लगातार आवाज़ें बुलंद हो रही हैं, और हर बार उनके पार्टी के साथ बगावत वाली घटना को कुरेदा जा रहा है। हालांकि इस बार कहीं न कहीं उन्होंने अपने बरताव से पार्टी हाईकमान का दिल जीता है, क्योंकि उन्होंने इतना जबकुछ होने के बाद भी किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं की है। शायद इसका नतीज ये हो कि सचिन पायलट को थोड़ा इंतज़ार और भले करना पड़े लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव में उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा जाए।
वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कुछ संकेत ऐसे भी हैं, 19 अक्टूबर यानी अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद राजस्थान कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव देखने को भी मिल सकता है। यानी यूं कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत के मुंह से निकले शब्द राजस्थान में तूफान से पहले वाली शांति का भी एक इशारा है। हम ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अशोक गहलोत ने कहा था कि सोनिया गांधी जिसे चाहेंगी वही मुख्यमंत्री बनेगा।
आप इस बात को कुछ देर के लिए सचिन पायलट की और हाईकमान की जीत के तौर पर भी देख सकते हैं। लेकिन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता, जहां एक ओर अशोक गहलोत अपने पद और प्रतिष्ठा के लिए हाईकमान के सामने खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं, और अपने विधायकों का विश्वास साथ लिए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर सचिन पायलट को बार-बार हाईकमान की बैसाखी का सहारा लेना पड़ रहा है।
ख़ैर... अशोक गहलोत के अध्यक्ष पद से हाथ खींचने के अलावा दिग्विजय सिंह का अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने का ऐलान भी बड़ा दिलचस्प है। उन्होंने साफ कर दिया कि वो अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे, जिसके लिए उन्होंने नॉमिनेशन का फॉर्म भी ले लिया है।
अब अगर दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ने जा रहे हैं, तो ज़ाहिर है कि ये हाईकमान का ही इशारा होगा। क्योंकि दिग्विजय सिंह इंदिरा गांधी के वक्त से ही गांधी परिवार के बहुत करीबी रहे हैं। दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, हिंदी पर अच्छी पकड़ रखते हैं। यानी अगर दिग्विजय सिंह के सामने शशि थरूर के अलावा कोई और प्रतिद्विंदी नहीं आता है, तो उनकी जीत सुनिश्चित होगी। इससे पहले शशि थरूर भी नॉमिनेशन फॉर्म लेकर जा चुके है।
अब दोनों ही उम्मीदवार आख़िरी दिन यानी 30 सितंबर को नामांकन दाखिल करेंगे। हालांकि कुछ हद तक उम्मीद ऐसी भी है, कि कोई तीसरा नाम भी निकल सामने आए। हालांकि अभी तक ऐसा कोई जिक्र नहीं हुआ है।
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