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कोरोना संकट:  वेतन, भोजन और रहने की समस्या से जूझते देश की राजधानी में मजदूर

लॉकडाउन के चलते दिल्ली के सफ़दरजंग एयरपोर्ट पर काम करने वाले 250 से 300 मजदूरों की दशा बहुत ख़राब हो गई है। ये सभी यहां एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के लिए आये थे। लेकिन सरकार द्वारा बिना किसी पुख़्ता इंतजाम किये गए लॉकडाउन में फँस गए हैं।
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लॉकडाउन के चलते दिल्ली के सफ़दरजंग एयरपोर्ट पर काम करने वाले 250 से 300 मजदूरों की दशा बहुत ख़राब हो गई है।

दिल्ली : 'लॉकडाउन के पहले से हमे कोई वेतन नहीं मिला है। हमारे पास न खाने के लिए है, न ही पीने का साफ पानी है। शौचालय और पहनने के साफ कपड़े भी नहीं है। छोटी-छोटी झुग्गियों में पांच-पांच, छह-छह लोग रहते हैं। यहां इतना मच्छर काटता है कि लगता है कोरोना से नहीं तो डेंगू-मलेरिया से पक्का मर जाएंगे।'

ये बातें हमें दिल्ली के सफ़दरजंग एयरपोर्ट पर लॉकडाउन से फंसे एक 52 वर्षीय प्रवासी मज़दूर मंगरू ने बताई। मंगरू करीब 30 साल से निर्माण मजदूरी का काम करते हैं। इस लॉकडाउन में वो और उनके जैसे करीब 250 से 300 मजदूर यहां फंसे हुए हैं। ये सभी यहां एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के लिए आये हुए थे। लेकिन सरकार द्वारा बिना किसी पुख़्ता इंतजाम किये गए लॉकडाउन में फँस गए हैं।

फंसे मज़दूरों ने पत्र लिखकर दिल्ली के मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई । पूरा पत्र देखिए

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गौरतलब है कि निर्माण मजदूर पूरी तरह से असंगठित तौर पर घूमते हुए काम करते हैं। इनके पास कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है, ये रोज कमाते और रोज खाते हैं। ऐसे में इस लॉकडाउन में काम बंदी से इनका जीवन बहुत ही मुश्किल हो गया है।

आपको बता दें कि इस तरह पूरे देश में कई जगह निर्माण मज़दूर फंसे हुए हैं। देश में करोडों की संख्या में निर्माण मजदूर काम करते हैं। ये अधिकांशतया ठेकदारों के नीचे काम करते हैं।

कई मजदूरों ने बताया किस प्रकार से उन्हें लगातार 12-12 घन्टे काम कराया जाता है और फिर उन्हें 200 से 600 तक दिहाड़ी दी जाती है। उन्हें कोई भी छुट्टी नहीं मिलती है, न ही उनका कोई दुर्घटना बीमा होता है। अगर उन्हें किसी दुर्घटना में चोट आ भी जाती है तो उन्हें कोई मदद ठेकेदार या मालिक के द्वारा नहीं दी जाती है।

फंसे मजदूरों ने बताया कि पहले भी हम लोग कोई बहुत बेहतर स्थिति में नहीं थे लेकिन कम से कम खाने और पहनने की दिक्क्त नहीं होती थी। लेकिन अभी जनवरी से ही वेतन नहीं मिला है। लॉकडाउन से पहले ठेकदार 10 दिन पर एक हजार रुपये दे देता था लेकिन अब वो भी नहीं दे रहा है। यहां तक की ठेकदार ने कहा था कि वो हमे सरकार से मिलने वाला पांच हजार रुपये दिलाएगा लेकिन अभी तक हमे कोई पैसा नहीं मिला है।

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मंगरु के साथ के ही एक अन्य मजदूर ने बताया कि सर यहाँ का बाथरूम इतना गंदा है कि आदमी उसी से मर जाए। इसके साथ ही हम और हमारे बच्चे खतरनाक जगह पर रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि झुग्गियों का एक ही रास्ता है और बीच रास्ते में लगभग 40 फिट का विशाल गढ्ढा है। वहां मात्र 3 से 3.5 फुट की जगह जाने के लिए है। यहां से गुजरने पर हमेशा लगता है कही इसमें गिर न जाए। कई बार शिकायत करने के बाद भी कोई हमारी समस्याओं पर ध्यान नहीं देता हैं।  

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         (मज़दूर इसी शौचालय में जाते है ।)

पीपल्स एसोसिएसन इन ग्रासरूट एक्शन एंड मूवमेंट (PAIGAM) के संस्थापक सदस्य गिरी जो इन मज़दूरों के राहत के लिए कार्य कर रहे है। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा कि "यह हमारे देश की दुर्दशा है कि जो लोग देश का निर्माण करते हैं वो ही आज बदहाली में जी रहे हैं।"

उन्होंने कहा "इन मज़दूरों की झुग्गियां ठीक उस हैलीपैड के सामने हैं जहाँ से देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री उड़ान भरते हैं। आप सोचिए ये मज़दूर किसके लिए एयरपोर्ट बना रहे हैं इनमें से तो कोई भी मज़दूर अपनी ज़िंदगी में इसका फायदा नहीं लेगा लेकिन ये अपनी जान जोख़िम में डालकर देश का निर्माण कर रहे हैं। लेकिन हमारी सरकारें इन्हे ही हाशिये पर धकेल दे रही हैं।"

फंसे मज़दूरों में से एक मज़दूर आशिक ने वीडियो जारी कर कहा कि ‘हम सफ़दरजंग एयरपोर्ट से बोल रहे हैं। यहाँ हम एनकेजी कंपनी में काम कर रहे हैं। यहां हम लोगो को कोई मदद नहीं कर रहा है ठेकेदार बोलता है कि भाई कंपनी पैसा नहीं दे रही तो मै कहाँ से दूँ। इसके बाद कंपनी के स्टाफ ने हमारा बैंक खाता, आधार, फोन नंबर लिखा था कि वो हमारे खाते में सरकार की तरफ से पैसा डलवाएगी लेकिन कुछ नहीं आ रहा है।'

इसके साथ ही आशिक ने कंपनी के स्टाफ पर बदतमीज़ी के भी आरोप लगाए हैं। वो कहते हैं कि कंपनी हम लोगों को बाहर नहीं निकलने देती है। यहाँ सभी लोगों की जांच की जा चुकी है किसी को बीमारी नहीं है। हम हिंदू मुस्लिम सब साथ में रहते हैं। यहाँ बहुत लोग रोज़ा करते हैं, हम लोगों को इफ्तारी और सहरी के लिए कुछ नहीं मिलता है। न ही हमारे पास पैसा है। इसलिए हम अनुरोध करते हैं कि सरकार की ओर से जल्दी से जल्दी कुछ मदद की करे।’

इसके साथ ही एक महिला मज़दूर ने कहा कि "हम लोग यहाँ फंसे हुए है कोई हमारी नहीं सुन रहा हैं। थोड़ा कुछ कच्चा राशन दिया है वो भी इतना कम है कि हम कैसे इसमें पांच बच्चो के साथ रहे है।"

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हालंकि गुरुवार को मज़दूरों द्वारा बहुत हंगामा और कंपनी स्टाफ के घेराव करने के बाद मज़दूरों को 500 रुपये दिया गया है लेकिन मज़दूरों का कहना है कि इससे कितने दिन का खर्च चलेगा। इसलिए हमें पूरा वेतन देकर घर भेज दिया जाए।  

लगभग इन सभी मज़दूरों ने निम्न मांग रखी है...

1) इन मजदूरों को दिल्ली सरकार द्वारा घोषित 5000 रुपये आर्थिक मदद मिले जो अभी तक नहीं मिली है।  

2) भोजन और साफ पानी की व्यवस्था की जाए।

3) पहले तो उनके पिछले मासिक वेतन का भुगतान  किया जाए इसके साथ ही इस लॉकडाउन के दौरान कामबंदी का भी भुगतान किया जाए।  

4) जहाँ ये लोग अभी रुके हुए हैं वहां साफ़-सफ़ाई कराई जाए। साथ ही मच्छर भगाने वाली दवा का छिड़काव किया जाए। मच्छर के चलते मज़दूर रात में सो नहीं पाते हैं।

हालंकि सरकार ने देशभर में फंसे मज़दूरों को उनके घर भेजने की बात कही हैं। इसके लिए काम भी किया जा रहा है लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है।  

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